भारतीय शासकों के विरुद्ध तुर्की की सफलता के क्या कारण थे? - bhaarateey shaasakon ke viruddh turkee kee saphalata ke kya kaaran the?

B.A,History I / 2020 

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प्रश्न 1. बारहवीं शताब्दी में तुर्कों के विरुद्ध राजपूतों की पराजय के कारणों की विवेचना कीजिए।

उत्तर- राजपूत जाति विश्व की महान जातियों में से एक थी। राजपूतों में वीरताशौर्यस्वामिभक्तिकिन्तु एकता का अभावपारस्परिक ईर्ष्या एवं द्वेषकूटनीति का अभावसरल स्वभावमनोविनोद आदि ऐसे अवगुण थेजो उनके पतन का कारण बने।

राजपूतों के पतन के कारण

तुर्क आक्रमणकारियों के हाथों राजपूतो के पराजित होने के मुख्य कारण निम्नलिखित विंदुओ से समझ सकते है

भारतीय शासकों के विरुद्ध तुर्की की सफलता के क्या कारण थे? - bhaarateey shaasakon ke viruddh turkee kee saphalata ke kya kaaran the?

(1) अयोग्य सेनापति -

बार बार पराजय का मुख्य कारण ,राजपूत सेनापति व्यक्तिगत वीरता एवं शौर्य दिखाने के मोह में सेना का संचालन ठीक ढंग से नहीं कर पाते थे, जबकि तुर्क आक्रमणकारियों के सेनापति अपना अधिक ध्यान सैन्य संचालन पर ही देते थे। भारतीय सेना का संचालन करने के लिए उनके पास महमूदगजनवी(971-1030) या मुहम्मद गौरी (पूरा नाम - शहाब-उद-दीन मुहम्मद ग़ोरी) जैसा कोई आक्रामक शासक योद्धा नहीं था। राजा स्वयं ही सेनापति होता था और राजा के घायल होते ही सेना में भगदड़ मच जाती थी। इस प्रकार सेनापति की अयोग्यता के कारण भी बार बार राजपूत सेना को अनेक बार पराजय का सामना करना पड़ा।

 (2) सीमान्त प्रदेशों की सुरक्षा की उपेक्षा- 

राजपूतों ने सीमान्त प्रदेशों को सुरक्षा का कोई प्रबन्ध नहीं किया था। यह पता होते हुए भी कि आक्रमणकारी उत्तर-पश्चिम से आ सकते हैं, राजपूत उत्तर-पश्चिम की सुरक्षा के प्रति उदासीन रहे। इसका परिणाम यह हुआ कि राजपूत अपनी सुरक्षा अच्छी तरह से नहीं कर पाए और तुर्कों ने उन्हें पराजित कर भारत में मुस्लिम शासन की नींव रख दी।

(3) राष्ट्रीय भावना का अभाव - 

राजपूतों में धार्मिक भावना उस प्रकार की नहीं थी जैसी कि मुसलमानों में थी, साथ ही राजपूतों में राष्ट्रीय भावना का भीपूर्ण अभाव था। देशप्रेम तथा देश-रक्षा की भावना न होने के कारण उन्होंने कभी भी संयुक्त रूप से तुर्कों को रोकने का प्रयास नहीं किया। राजपूतों में स्थानीय प्रेम और सत्ता स्वार्थ इतना अधिक था कि वे एक-दूसरे की सहायता नहीं करते थे। इसके अतिरिक्त युद्ध के लिए केवल राजपूत जाति ही जाती थी, अन्य जातियों को युद्ध से कोई मतलब ही नहीं था। इससे भी राजपूत तुर्कों द्वारा पराजित हो गए।

(4) सैन्य दोष - 

राजपूतों की सेना में अनेक दोष थे। राजपूतों की सेना में गज सेना प्रधान थी, जो कि युद्ध क्षेत्र में उनके लिए हानिकारक सिद्ध होती थी। राजपूतों की पैदल सेना की अधिकता भी उनकी पराजय का कारण बनी। सामन्तवादी सैन्य व्यवस्था होने के कारण सैनिकों में सामन्तों के प्रति भक्ति होती थी। इस प्रकार की सेना पर राजा का नियन्त्रण नहीं रहता था। भारतीय सैनिक संगठित नहीं थे और वे कूपमण्डूक भी थे। सैन्य दोषों ने भी राजपूतों को पराजित कराने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

(5) प्राचीन युद्ध प्रणाली - 

राजपूतों की युद्ध प्रणाली अत्यन्त दोषपूर्ण थी। राजपूत परम्परागत युद्ध प्रणाली द्वारा ही लड़ते थे। राजपूत कोई नवीन युद्ध प्रणाली नहीं सीख पाए, जबकि तुर्क आक्रमणकारियों ने नई युद्ध प्रणाली से युद्ध करके ही विजय प्राप्त की। राजपूतों के पास घुड़सवार सेना का न होना और तीर-कमान का प्रयोग करना तो हानिकारक रहा ही, साथ ही बिना योजना के युद्ध लड़ना भी - उनकी पराजय का प्रमुख कारण बना।

(6) राजनीतिक एकता का अभाव -

 राजपूत काल में भारत की राजनीतिक दशा बड़ी शोचनीय थी। राजपूत राजा आपस में युद्ध करते रहते थे, परन्तु विदेशी आक्रमणकारियों का उन्होंने कभी भी सम्मिलित होकर सामना नहीं किया। भारत में राजनीतिक एकता के अभाव के कारण राजपूत तुर्कों के हाथों पराजित हुए।

(7) धार्मिक कारण-

अपनी धार्मिक मान्यताओं के कारण हिन्दू कमजो होते जा रहे थे। वे अपने उपास्य देव को प्रसन्न करने में ही लगे रहते थे, जबान मुसलमानों के लिए तलवार ही धर्म था। मुसलमान विभिन्न उपास्य देवों को। पूजकर केवल अल्लाह में विश्वास करते थे। इससे मुस्लिम समाज संगठित था हिन्दुओं में इस प्रकार की कोई भावना नहीं थी कि उनका धर्म खतरे में है या उन अपने धर्म का प्रसार करना चाहिए, जबकि आक्रमणकारी मुसलमान धार्मिक जोश के साथ भारत आए थे। उनका उद्देश्य इस्लाम धर्म का प्रसार और हिन्दू धर्म को नष्ट करना था। इसलिए मुसलमान जी-जान से लड़े और उन्होंने राजपूतों को पराजित कर दिया।

(8) आर्थिक कारण- 

इस काल में राजपूत परस्पर लड़ते रहते थे। उनका राजकोष आपसी लड़ाइयों में ही नष्ट होता रहता था। राजकोष की कमी के कारण सैनिक शक्ति क्षीण होती गई। दूसरे दान-दक्षिणा के माध्यम से धन मन्दिरों में एकत्रित होता जा रहा था। मन्दिरों में एकत्रित धन किसी कार्य में नहीं लगता था। अत: इस धन का सदुपयोग न होने के कारण सैनिक शक्ति क्षीण होती गई और मन्दिरों का नैतिक वातावरण कलुषित होता गया। आर्थिक कठिनाइयों के कारण भी राजपूत पराजित हुए और तुर्क आक्रमणकारी विजयी हुए।

(9) भाग्यवादिता और नैतिक आदर्श-

राजपूत अपने भाग्य पर बहुत अधिक भरोसा करते थे, पर इसी भाग्य ने उन्हें धोखा दिया। इसके विपरीत तुर्क आक्रमणकारियों ने अनेक युद्ध केवल भाग्य के कारण ही जीते। इसके अतिरिक्त राजपूत अपने नैतिक आदर्शों के साथ लड़ते थे। धर्म युद्ध, वीरगति प्राप्ति की इच्छा, निहत्थे पर वार न करना, युद्ध से न भागना, कायरता व छल-कपट की नीति का प्रयोग न करने के उच्च आदर्श भी राजपूतों की पराजय का प्रमुख कारण बने।

(10) मुस्लिम सेना का कुशल संगठन–

राजपूतों की सेना की तुलना में मुस्लिम सेना का संगठन अधिक अच्छा था। राजपूत हाथियों पर अधिक विश्वास करते थे, जो घायल होते ही अपनी ही सेना को रौंद डालते थे। तुर्क घुड़सवारों के बारे में स्मेल ने कहा है कि "वे घोड़े की पीठ पर बैठे हुए और गतिशील रहते हुए धनुष का प्रयोग करते थे। यह इन्हें धीमी गति से चलने वाली राजपूत सेनाओं के मुकाबले एक अतिरिक्त लाभ प्रदान करता था।" डॉ. सरकार ने कहा है कि "सीमा पार के इन आक्रमणकारियों के शस्त्रों और घोड़ों ने उनको भारतीयों पर विवाद रहित सैनिक श्रेष्ठता प्रदान की।" इसके अतिरिक्त राजपूत रक्षित सेना भी नहीं रखते थे।

निष्कर्ष - उपर्युक्त सभी कारणों से राजपूतों की पराजय हुई। डॉ. घोषाल ने मूलत: सैनिक कमजोरी को राजपूतों की पराजय का कारण माना है। यह भी उल्लेखनीय है कि राजपूत राजा अपनी वीरता और महानता दिखाने के मोह में परस्पर लड़ते रहते थे। इन शासकों का नैतिक पतन भी उनकी पराजय के लिए उत्तर दायी था


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भारत में तुर्की की सफलता के प्रमुख कारण कौन कौन से हैं?

वास्तविकता यह है कि तुर्कों की विजय और राजपूत की पराजय के लिए अनेक राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा सैनिक कारण उत्तरदायी थे। धार्मिक कारण : नियतिवाद और भाग्यवाद पर आश्रित होना धार्मिक 11 भी तुर्कों की विजय और राजपूतों की पराजय हुई। तुर्क आक्रमणकारी धर्म के नाम +1 fi. करते थे।

राजपूतों के विरुद्ध तुर्कों की सफलता के क्या कारण थे?

तुर्कों के गुप्तचर शत्रु पक्ष की कमजोरियों का ज्ञान प्राप्त करके उसका पूरा लाभ उठाते थेतुर्कों को विजय से धन, यश, राज्य आदि के लाभ की इच्छा के कारण उनमें युद्ध के समय अधिक उत्साह तथा जोश का होना सर्वथा स्वाभाविक था। इस प्रकार राजपूतों की पराजय में तुर्कों की सैनिक श्रेष्ठता की भूमिका प्रमुख थी।

भारत पर तुर्की आक्रमणों का क्या प्रभाव पड़ा?

दिल्ली के सुल्तान की शक्ति पहले के भारतीय राजाओं से भिन्न और अधिक थी । इस प्रकार छोटे-छोटे भारतीय राजाओं के स्थान पर शक्तिशाली सल्तन्त की स्थापना हुई । (2) सामन्ती प्रथा का पतन - तुर्को के आक्रमण के बाद राजपूत कालीन सामन्ती व्यवस्था का पतन हो गया । तुर्क शासकों ने मुख्य राजपूत सरदारों को उनके पद से हटा दिया ।

तुर्की आक्रमण के परिणाम क्या थे?

आक्रमण के परिणाम मुस्लिम व्यापारियों के माध्यम से मध्य एवं पश्चिम एशिया के साथ भारतीय व्यापर में वृद्धि। मुस्लिम व्यापारियों के साथ इस्लाम प्रचारकों का भारत में प्रवेश। लाहौर अरबी तथा फारसी साहित्य का केन्द्र बन गया। मुस्लिम राज्य की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ।