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खूनी, बादी या मस्से वाली बवासीर ये 5 उपाय देंगे इन सभी में राहत, जानें कौन सी बवासीर में अपनाएं कौन सा नुस्खा बवासीर एक ऐसी समस्या है, जो अगर बिगड़ जाए तो किसी व्यक्ति का जीना दूभर कर सकती है। बवासीर का प्रमुख कारण है आपकी डाइट, जो आपको इस रोग का शिकार बनाने का काम करती है। इसके अलावा पेट से जुड़ी समस्याएं भी आपको बवासीर का शिकार बना सकती है। हालांकि ढेर सारे ऐसे चिकित्सा संस्थान हैं, जो बवासीर को जड़ से खत्म करने का दावा करते हैं लेकिन अक्सर लोग इन दावों के झांसे में आकर अपनी परेशानी और बढ़ा लेते हैं। इस लेख में हम आपको बवासीर को ठीक करने के कई उपायों के बारे में बता रहे हैं, जिनमें से कुछ खास उपाय अपनाकर आप अपनी इस परेशानी को कम कर सकते हैं। आइए जानते हैं कौन से हैं उपाय। बवासीर के शुरुआती लक्षण दिखाई देने पर करें ये उपायउपाय 1-सुबह-सुबह उठकर करें ये कामनियमित रूप से एक हरा करैला और पीपल की दो मुलायम पत्ती को एक गिलास पानी मे पिसकर छान लें और सुबह खाली पेट पीएं। ये ड्रिंक आपको दोनों प्रकार की बवासीर से आराम दिलाने में मदद करेगा। उपाय 2- सुबह-शाम करें ये उपायआपको नियमित रूप से सूखे आंवले के चूर्ण की 6-6 ग्राम मात्रा सुबह -शाम गाय के दूध में मिलाकर लेनी है। इस ड्रिंक को पीने से खूनी बवासीर में बहुत ज्यादा लाभ मिलता है। उपाय 3-बादी बवासीर के लिए उपायआपको डेढ़ ग्राम रसौत को तीन ग्राम अनार की छाल दोनों को कूटकर चूर्ण बना लेना है और उसे छः ग्राम गुड़ मे मिलाना है। आपको इस मिश्रण को बेर की गुठली के बराबर गोली बना लेना है। एक गोली सुबह -शाम पानी से खाने से बादी बवासीर ठीक हो जाती है। उपाय 4-बवासीर के मस्से को खत्म करता है ये नुस्खाआपको नारियल की बूंच यानी जटा को जलाकर राख बना लेना है और एक चममच राख को छाछ में मिलाकर सुबह-शाम खाली पेट पीना है। इस ड्रिंक को पीने से बवासीर के मस्से खत्म हो जाते हैं। उपाय 5- खूनी बवासीर में रामबाण ये नुस्खानागकेसर,नीम की निबौरी, बीज निकले हुए रसवत मुनक्के इन सभी चीजों को 12 ग्राम की मात्रा में लें। इसके अलावा आपको भीमसेनी कपूर 6 ग्राम लेना है । अब मुनक्को को छोड़कर सभी को बारीक पीसकर छानकर चूर्ण बना लें। फिर मुनक्के डालकर अच्छे से घोटें और छोटी बेर के बराबर गोली बनाकर रख ले। एक गोली सुबह-शाम पानी से गटक लें। यह नुस्खा खूनी बवासीर के लिए रामबाण है। Total Wellness is now just a click away.Follow us on बवासीर जिसे पाइल्स एवं अर्श रोग भी कहा जाता है, बेहद तकलीफदेह होता है। इस समस्या में रोगी को गंभीर कब्ज तो होता ही है, मलद्वार में असहनीय तकलीफ, कांटों सी चुभन, मस्से एवं घाव, जलन आदि गंभीर समस्याएं हैं, जो रोगी को कमजोर बना देती हैं और मल द्वारा रक्त की भी हानि होती है। ऐसे में इसका सही इलाज ही रोगी को इस समस्या में राहत दे सकता है, अन्यथा तकलीफ बढ़ सकती है। बवासीर की बीमारी जब उग्र रूप धारण कर लेती है, तब उस स्थिति में त्रिफला चूर्ण पेट की बीमारी के लिए अमृतस्वरूप है। पेट (शौच) की समस्याएं जब गंभीर रूप धारण करती हैं, तभी बवासीर की बीमारी होती है, ऐसा सभी जानकारों का कहना है। >
बवासीर या पाइल्स या (Hemorrhoid / पाइल्स या मूलव्याधि) एक भयानक रोग है। बवासीर 2 प्रकार की होती है। आम भाषा में इसको खूनी और बादी बवासीर के नाम से जाना जाता है। कहीं पर इसे महेशी के नाम से जाना जाता है।
कारण[संपादित करें]कुछ व्यक्तियों में यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी पाया जाता है। अतः अनुवांशिकता इस रोग का एक कारण हो सकता है। जिन व्यक्तियों को अपने रोजगार की वजह से घंटों खड़े रहना पड़ता हो, जैसे बस कंडक्टर, ट्रॉफिक पुलिस, पोस्टमैन या जिन्हें भारी वजन उठाने पड़ते हों,- जैसे कुली, मजदूर, भारोत्तलक वगैरह, उनमें इस बीमारी से पीड़ित होने की संभावना अधिक होती है। कब्ज भी बवासीर को जन्म देती है, कब्ज की वजह से मल सूखा और कठोर हो जाता है जिसकी वजह से उसका निकास आसानी से नहीं हो पाता मलत्याग के वक्त रोगी को काफी वक्त तक पखाने में उकडू बैठे रहना पड़ता है, जिससे रक्त वाहनियों पर जोर पड़ता है और वह फूलकर लटक जाती हैं। बवासीर गुदा के कैंसर की वजह से या मूत्र मार्ग में रूकावट की वजह से या गर्भावस्था में भी हो सकता है। उपचार[संपादित करें]रोग निदान के पश्चात प्रारंभिक अवस्था में कुछ घरेलू उपायों द्वारा रोग की तकलीफों पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। सबसे पहले कब्ज को दूर कर मल त्याग को सामान्य और नियमित करना आवश्यक है। इसके लिये तरल पदार्थों, हरी सब्जियों एवं फलों का बहुतायात में सेवन करें। तली हुई चीजें, मिर्च-मसालों युक्त गरिष्ठ भोजन न करें। रात में सोते समय एक गिलास पानी में इसबगोल की भूसी के दो चम्मच डालकर पीने से भी लाभ होता है। गुदा के भीतर रात के सोने से पहले और सुबह मल त्याग के पूर्व दवायुक्त बत्ती या क्रीम का प्रवेश भी मल निकास को सुगम करता है। गुदा के बाहर लटके और सूजे हुए मस्सों पर ग्लिसरीन और मैग्नेशियम सल्फेट के मिश्रण का लेप लगाकर पट्टी बांधने से भी लाभ होता है। मलत्याग के पश्चात गुदा के आसपास की अच्छी तरह सफाई और गर्म पानी का सेंक करना भी फायदेमंद होता है। यदि उपरोक्त उपायों के पश्चात भी रक्त स्राव होता है तो चिकित्सक से सलाह लें। इन मस्सों को हटाने के लिये कई विधियां उपलब्ध है। मस्सों में इंजेक्शन द्वारा ऐसी दवा का प्रवेश जिससे मस्से सूख जायें। मस्सों पर एक विशेष उपकरण द्वारा रबर के छल्ले चढ़ा दिये जाते हैं, जो मस्सों का रक्त प्रवाह अवरूध्द कर उन्हें सुखाकर निकाल देते हैं। एक अन्य उपकरण द्वारा मस्सों को बर्फ में परिवर्तित कर नष्ट किया जाता है। शल्यक्रिया द्वारा मस्सों को काटकर निकाल दिया जाता है। परिचय[संपादित करें]होमोरोइड या अर्श UK /ˈhɛmərɔɪdz/, गुदा-नाल में वाहिकाओं की वे संरचनाएं हैं जो मल नियंत्रण में सहायता करती हैं।[1][2] जब वे सूज जाते हैं या बड़े हो जाते हैं तो वे रोगजनक या बवासीर हो जाते हैं। अपनी शारीरिक अवस्था में वे धमनीय-शिरापरक वाहिका और संयोजी ऊतक द्वारा बने कुशन के रूप में काम करते हैं। बवासीर दो प्रकार की होती है - खूनी बवासीर और बादी वाली बवासीर। खूनी बवासीर में मस्से खूनी सुर्ख होते है और उनसे खून गिरता है जबकि बादी वाली बवासीर में मस्से काले रंग के होते है और मस्सों में खाज पीडा और सूजन होती है। अतिसार, संग्रहणी और बवासीर यह एक दूसरे को पैदा करने वाले होते है। मनुष्य की गुदा में तीन आवृत या बलियां होती हैं जिन्हें प्रवाहिणी, विर्सजनी व संवरणी कहते हैं जिनमें ही अर्श या बवासीर के मस्से होते हैं आम भाषा में बवासीर को दो नाम दिये गए है बादी बवासीर और खूनी बवासीर। बादी बवासीर में गुदा में सुजन, दर्द व मस्सों का फूलना आदि लक्षण होते हैं कभी-कभी मल की रगड़ खाने से एकाध बूंद खून की भी आ जाती है। लेकिन खूनी बवासीर में बाहर कुछ भी दिखाई नहीं देता लेकिन पाखाना जाते समय बहुत वेदना होती है और खून भी बहुत गिरता है जिसके कारण रकाल्पता होकर रोगी कमजोरी महसूस करता है। रोगजनक अर्श के लक्षण उपस्थित प्रकार पर निर्भर करते हैं। आंतरिक अर्श में आम तौर पर दर्द-रहित गुदा रक्तस्राव होता है जबकि वाह्य अर्श कुछ लक्षण पैदा कर सकता है या यदि थ्रोम्बोस्ड (रक्त का थक्का बनना) हो तो गुदा क्षेत्र में काफी दर्द व सूजन होता है। बहुत से लोग गुदा-मलाशय क्षेत्र के आसपास होने वाले किसी लक्षण को गलत रूप से “बवासीर” कह देते हैं जबकि लक्षणों के गंभीर कारणों को खारिज किया जाना चाहिए। हालांकि बवासीर के सटीक कारण अज्ञात हैं, फिर भी कई सारे ऐसे कारक हैं जो अंतर-उदर दबाव को बढ़ावा देते हैं- विशेष रूप से कब्ज़ और जिनको इसके विकास में एक भूमिका निभाते पाया जाता है। हल्के से मध्यम रोग के लिए आरंभिक उपचार में फाइबर (रेशेदार) आहार, जलयोजन बनाए रखने के लिए मौखिक रूप से लिए जाने वाले तरल पदार्थ की बढ़ी मात्रा, दर्द से आराम के लिए NSAID (गैर-एस्टरॉएड सूजन रोधी दवा) और आराम, शामिल हैं। यदि लक्षण गंभीर हों और परम्परागत उपायों से ठीक न होते हों तो अनेक हल्की प्रक्रियाएं अपनायी जा सकती हैं। शल्यक्रिया का उपाय उन लोगों के लिए आरक्षित है जिनमें इन उपायों का पालन करने से आराम न मिलता हो। लगभग आधे लोगों को, उनके जीवन काल में किसी न किसी समय बवासीर की समस्या होती है। परिणाम आमतौर पर अच्छे रहते हैं। चिह्न व लक्षण[संपादित करें]वाह्य तथा आंतरिक बवासीर भिन्न-भिन्न रूप में उपस्थित हो सकता है; हालांकि बहुत से लोगों में इन दोनो का संयोजन भी हो सकता है।[2] रक्ताल्पता पैदा करने के लिए अत्यधिक रक्त-स्राव बेहद कम होती है,[3] और जीवन के संकट पैदा करने वाले रक्तस्राव के मामले तो और भी कम हैं।[4] इस समस्या का सामना करने वाले बहुत से लोगों को लज्जा आती है[3] और मामला उन्नत होने पर ही वे चिकित्सीय लेने जाते हैं।[2]
सावधानियाँ एवं उपचार[संपादित करें]
वाह्य[संपादित करें]यदि थ्रोम्बोस्ड (रक्त का थक्का बनना) न बने तो वाह्य बवासीर कुछ समस्याएं पैदा कर सकता है।[5] हालांकि, जब रक्त का थक्का बनता है तो बवासीर काफी दर्द भरा हो सकता है।[2]फिर भी यह दर्द आम तौर पर 2 – 3 दिनों में कम हो जाता है।[3] हालांकि सूजन जाने में कुछ सप्ताह लग सकते हैं।[3] ठीक हो जाने के बाद त्वचा टैग (त्वचा का एक टुकड़ा) बचा रह सकता है[2] यदि बवासीर बड़े हों और स्वच्छता से जुड़ी समस्याएं पैदा करें तो वे आसपास की त्वचा में परेशानी पैदा कर सकते हैं और गुदा के आसपास खुजली पैदा कर सकते हैं।[5] आंतरिक[संपादित करें]आंतरिक वबासीर आमतौर पर दर्द रहित, चमकदार लाल होता है तथा मल त्याग के दौरान गुदा से रक्त स्राव हो सकता है।[2] आम तौर पर मल रक्त से लिपटा होता है यह एक स्थिति होती है जिसे हेमाटोचेज़िया कहते है इसमें रक्त टॉएलेट पेपर पर दिखता है या शौच स्थान से बह जाता है।[2] मल का अपना रंग सामान्य होता है।[2] अन्य लक्षणों में श्लेष्म स्राव, यदि मांस का टुकड़ा गुदा से भ्रंश हो तो वह, खिचाव तथा असंयमित मलशामिल हैं।[4][6] आंतरिक बवासीर आम तौर पर केवल तब दर्द रहित होते हैं जब वे थ्रोम्बोस्ड या नैक्रोटिक हो जाते हैं।[2] कारण[संपादित करें]लक्षणात्मक बवासीर का सटीक कारण अज्ञात है।[7] इसके होने में भूमिका निभाने वाले कारकों में अनियमित मल त्याग आदतें (कब्ज़ या डायरिया), व्यायाम की कमी, पोषक कारक (कम-रेशे वाले आहार), अंतर-उदरीय दाब में वृद्धि (लंबे समय तक तनाव, जलोदर, अंतर-उदरीय मांस या गर्भावस्था), आनुवांशिकी, अर्श शिराओं के भीतर वॉल्व की अनुपस्थिति तथा बढ़ती उम्र शामिल हैं।[3] अन्य कारक जो जोखिम बढ़ाते हैं उनमें मोटापा, देर तक बैठना,[2] या पुरानी खांसी और श्रोणि तल दुष्क्रिया शामिल हैं। हालांकि इनका संबंध काफी कमजोर है। गर्भावस्था के दौरान भ्रूण का उदर पर दाब तथा हार्मोन संबंधी बदलाव अर्श वाहिकाओं में फैलाव पैदा करते हैं। प्रसव के कारण भी अंतर-उदरीय दाब बढ़ता है।[8] गर्भवती महिलाओं को शल्यक्रिया उपचार की बेहद कम आवश्यकता पड़ती है क्योंकि प्रसव के पाद लक्षण आमतौर पर समाप्त हो जाते हैं। पैथोफिज़ियोलॉजी (रोग के कारण पैदा हुए क्रियात्मक परिवर्तन)[संपादित करें]अर्श कुशन सामान्य मानवीय संरचना का हिस्सा हैं और वे रोग जनक केवल तब बनते हैं जब उनमें असमान्य परिवर्तन होते हैं।[2] सामान्य तौर पर गुहा मार्ग में तीन मुख्य प्रकार के कुशन उपस्थित होते हैं। ये बाएं पार्श्व, दाएँ अग्रस्थ और दाएँ कूल्हे की स्थितियों पर स्थित होते हैं।[3] इनमें न तो धमनियां होती है और न ही नसें बल्कि इनमें रक्त वाहिकाएं होती हैं जिनको साइनोसॉएड्स कहा जाता है तथा इनमें संयोजी ऊतक तथा चिकनी मांसपेशियां होती हैं।[9] साइनोसॉएड की दीवारों में रक्त वाहिकाओं के समान मांसपेशीय ऊतक नहीं होते हैं।[2] रक्त वाहिकाओं के इस समूह को अर्श स्नायुजालकहा जाता है। अर्श कुशन मल संयम के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। ये आराम की स्थिति में गुदा बंदी दाब का 15–20% भाग का योगदान करते हैं और मल को मार्ग देते समय गुदा संवरणी मांसपेशियों की रक्षा करते हैं।[2] जब कोई व्यक्ति नीचे झुकता है तो अंतर-उदर दाब बढ़ता है और अर्श कुशन, अपने आकार को संयोजित करके गुदा को बंद रखने में सहयोग करता है।[3] यह विश्वास किया जाता है कि बवासीर लक्षण तब पैदा होते हैं जब ये संवहनी संरचनाएं नीचे की ओर सरकती हैं या जब शिरापरक दबाव बहुत अधिक बढ़ जाता है। बढ़ा हुआ गुदा संवरणी दाब भी बवासीर लक्षणों में शामिल हो सकता है।[3] बवासीर दो तरह के होते हैं:बढ़े हुए अर्श स्नायुजाल के कारण आंतरिक और घटे हुए अर्श स्नायुजाल के कारण वाह्य।[3] एक दांतेदार पंक्ति दोनो क्षेत्रों को विभक्त करती है।[3] निदान[संपादित करें]आंतरिक रक्तस्रावी ग्रेड
बवासीर का निदान आम तौर पर शारीरिक परीक्षण से किया जाता है।[10] गुदा तथा इसके आसपास के क्षेत्र को देख कर वाह्य या भ्रंश बवासीर का निदान किया जा सकता है।[2] किसी गुदा परीक्षण को करके संभव गुदीय ट्यूमर, पॉलिप, बढ़े हुए प्रोस्टेट या फोड़े की पहचान की जाती है।[2] दर्द के कारण, यह परीक्षण शांतिकर औषधि के बिना संभव नहीं है, हालांकि अधिकांश आंतरिक बवासीर में दर्द नहीं होता है। आंतरिक बवासीर की देख कर पुष्टि करने के लिए एनोस्कोपी की जरूरत पड़ सकती है जो कि एक खोखली ट्यूब वाली युक्ति होती है जिसके एक सिरे पर प्रकाश का स्रोत लगा होता है।[3] बवासीर के दो प्रकार होते हैं: वाह्य तथा आंतरिक। इनको दांतेदार पंक्तिके सापेक्ष इनकी स्थिति से निर्धारित किया जाता है। कुछ लोगों में एक साथ दोनो के लक्षण होते हैं।[3] यदि दर्द उपस्थित हो तो यह स्थिति एक गुदा फिशर या वाह्य बवासीर की हो सकती है न कि आंतरिक बवासीर की।[3] चिकित्सा[संपादित करें]सबसे पहले रोग में मुख्य कारण कब्ज को दूर करना चाहिए जिसके लिए ठण्डा कटि स्नाना व एनिमा लेना चाहिए पेट पर ठण्डी मिट्टी पट्टी रखनी चाहिए लेकिन यदि सूजन ज्यादा हो तो एनिमा लेने की बजाय त्रिफला आदि चूर्ण का सेवन करना चाहिए गुदा पर ठण्डी मिट्टी की पट्टी रखनी चाहिए। और सूजन दूर होने पर ही तेज आदि लगाकर एनिमा लेना चाहिए। उपवास करना चाहिए और यदि उपवास ना कर सके तो फलाहार या रसा हार पर रखना चाहिए और साथ-साथ आसन, प्राणायाम, कपाल भाति आदि करने से इस भयंकर रोग से छुटकारा पाया जा सकता है। बवासीर के आयुर्वेदिक उपचार • डेढ़-दो कागज़ी नींबू अनिमा के साधन से गुदा में लें। दस-पन्द्रह संकोचन करके थोड़ी देर लेते रहें, बाद में शौच जायें। यह प्रयोग 4- 5 दिन में एक बार करें। 3 बार के प्रयोग से ही बवासीर में लाभ होता है। साथ में हरड या बाल हरड का नित्य सेवन करने और अर्श (बवासीर) पर अरंडी का तेल लगाने से लाभ मिलता है। • नीम का तेल मस्सों पर लगाने से और 4- 5 बूँद रोज़ पीने से लाभ होता है। • करीब दो लीटर छाछ (मट्ठा) लेकर उसमे 50 ग्राम पिसा हुआ जीरा और थोडा नमक मिला दें। जब भी प्यास लगे तब पानी की जगह पर यह छास पी लें। पूरे दिन पानी की जगह यह छाछ (मट्ठा) ही पियें। चार दिन तक यह प्रयोग करें, मस्से ठीक हो जायेंगे। • अगर आप कड़े या अनियमित रूप से मल का त्याग कर रहे हैं, तो आपको इसबगोल भूसी का प्रयोग करने से लाभ मिलेगा। आप लेक्टूलोज़ जैसी सौम्य रेचक औषधि का भी प्रयोग कर सकते हैं। • आराम पहुंचानेवाली क्रीम, मरहम, वगैरह का प्रयोग आपको पीड़ा और खुजली से आराम दिला सकते हैं। • ऐसे भी कुछ उपचार हैं जिनमे शल्य चिकित्सा की और अस्पताल में भी रहने की ज़रुरत नहीं पड़ती। बवासीर के उपचार के लिये अन्य आयुर्वेदिक औषधियां हैं: अर्शकुमार रस, तीक्ष्णमुख रस, अष्टांग रस, नित्योदित रस, रस गुटिका, बोलबद्ध रस, पंचानन वटी, बाहुशाल गुड़, बवासीर मलहम वगैरह। बवासीर की रोकथाम: • अपनी आँत की गतिविधियों को सौम्य रखने के लिये, फल, सब्ज़ियाँ, सीरियल, ब्राउन राईस, ब्राउन ब्रेड जैसे रेशेयुक्त आहार का सेवन करें। • तरल पदार्थों का अधिक से अधिक सेवन करें। आंतरिक[संपादित करें]आंतरिक बवासीर वे हैं जो दांतेदार पंक्ति के ऊपर पैदा होते हैं।[5] वे स्तम्भाकार उपकला से ढ़ंके होते हैं जिनमें दर्द ग्राहीनहीं होते हैं। इनको 1985 में चार स्तरों में वर्गीकृत किया गया था जो कि भ्रंश(आगे के विस्तार) के स्तर पर आधारित है।
वाह्य[संपादित करें]एक थ्रोम्बोस्ड वाह्य बवासीर वाह्य बवासीर वे हैं जो दांतेदार पंक्ति के नींचे पैदा होते हैं।[5] अचर्म से नज़दीकी से तथा त्वचा से बाहरी से ढ़ंके रहते हैं, ये दोनो ही दर्द तथा तापमान के प्रति संवेदी होते हैं। विभेदक[संपादित करें]गुदा एवं मलाशय संबंधी बहुत सी समस्याएं, जिनमें [ फिसर, नालव्रण, फोड़े, कोलोरेक्टल कैंसर, गुदा वैरिक्स तथा खुजलाहट शामिल हैं, समान लक्षणों वाली होती हैं और इनको गल्ती से बवासीर के रूप में संदर्भित किया जा सकता है। गुदीय रक्त स्राव का कारण कोलोरेक्टल कैंसर, कोलाइटिस के कारण हो सकती है तथा इसमें सूजन वाला आंत्र रोग, डाइवर्टिक्युलर रोग तथा एंजियोडाइप्लासियाभी शामिल हैं।[10] यदि रक्ताल्पता पस्थित है तो अन्य संभावित कारणों पर भी विचार किया जाना चाहिए।[3] अन्य परिस्थितियां जो गुदीय मांस में शामिल है वे निम्नलिखित हैं: त्वचा टैग, गुदा गाँठ, गुदीय भ्रंश, पॉलिप तथा बढ़ा हुआ गुदीय उभार।[3] बढ़े हुए पोर्टल रक्तचाप (पोर्टल शिरापरक प्रणाली में रक्त दाब) के कारण हुए गुदा वैरिक्स भी बवासीर जैसी स्थिति पैदा कर सकता है लेकिन वह एक भिन्न स्थिति हैं।[3] बचाव[संपादित करें]बचाव के कई उपायों की अनुशंसा की गयी है जिनमें मलत्याग करते समय ज़ोर लगाने से बचना, कब्ज़ तथा डायरिया से बचाव शामिल है जिसके लिए उच्च रेशेदार भोजन तथा पर्याप्त तरल को पीना या रेशेदार पूरकों को लेना तथा पर्याप्त व्यायाम करना शामिल है।[3][11] मलत्याग के प्रयास में कम समय खर्च करना, शौच के समय कुछ पढ़ने से बचना और साथ ही अधिक वज़न वाले लोगों के लिए वजन कम करना तथा अधिक भार उठाने से बचना अनुशंसित है।[12] प्रबंधन[संपादित करें]परम्परागत उपचार में आमतौर पर पोषण से भरपूर रेशेदार आहार लेना, तथा जलयोजन बनाए रखने के लिए मौखिक रूप से तरल ग्रहण करना, गैर-एस्टरॉएड सूजन रोधी दवाएं (NSAID), सिट्ज़ स्नान तथा आराम शामिल हैं। रेशेदार आहार की बढ़ी मात्रा ने बेहतर परिणाम दर्शाए हैं,[13] तथा इसे आहारीय परिवर्तनों द्वारा या रेशेदार पूरकोंकी खपत से हासिल किया जा सकता है।[13] सिट्ज़ स्नान के माध्यम से उपचार के किसी भी बिंदु पर साक्ष्य उपलब्ध नहीं है।[14] यदि इनको उपयोग किया जाता है तो इनको एक बार में 15 मिनट तक सीमित रखना चाहिए।[15] हालांकि बवासीर के उपचार के लिए बहुत सारे स्थानीय एजेंट तथा वर्तियां (सपोसिटरीज़) उपलब्ध हैं, लेकिन इनके समर्थन में साक्ष्य बेहद कम उपलब्ध हैं। स्टेरॉएड समाहित एजेंटों को 14 दिन से अधिक की अवधि तक उपयोग नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वे त्वचा को पतला करते हैं। अधिकांश एजेंटों में सक्रिय तत्वों के संयोजन शामिल होते हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं: एक बाधा क्रीम जैसे पेट्रोलियम जेली या ज़िंक ऑक्साइड, एक दर्दहारी एजेंट जैसे कि लिडोकेन और एक वैसोकॉन्सट्रिक्टर (रक्त शिराओं के मुहाने को संकीर्ण करने वाला) जैसे कि एपीनेफ्राइन। फ्लैवोनॉएड के लाभों पर प्रश्नचिह्न लगता है जिसके कि संभावित पश्च-प्रभाव होते हैं।[16] लक्षण गर्भवस्था के कारण असमान्य रूप से दिखने हैं; इस कारण से उपचार अक्सर प्रसव के बाद तक टल जाते हैं।[17] प्रक्रियाएं[संपादित करें]कार्यालय आधारित कई सारी प्रक्रियाएं निष्पादित की जा सकती हैं। ये आम तौर पर सुरक्षित होती हैं, जबकि बेहद कम पश्च प्रभाव जैसे कि पेरिएलन सेप्सिस हो सकते हैं।[10]
शल्य-क्रिया[संपादित करें]यदि परम्परागत तथा सरल प्रक्रियाएं विफल हो जाएं तो कई सारी शल्यक्रिया तकनीकें उपयोग की जा सकती हैं।[10] सभी शल्यक्रिया उपचारों में कुछ जटिलताएं होती है जिनमें रक्त स्राव, संक्रमण, गुदा की सिकुड़न तथा मूत्र प्रतिधारण शामिल हैं, ऐसा मूत्राशय को आपूर्ति करने वाली नसों की मलाशय के साथ अति निकटता के कारण होता है मल असंयम विशेष रूप से तरल का भी छोटा सा जोखिम शामिल हो सकता है[19] जिसकी दरें 0% से 28% तक रिपोर्ट की गयी हैं।[20] श्लेष्मीय बहिर्वर्त्मता भी एक स्थिति है जो शल्यक्रिया द्वारा बवासीर को निकाले जाने से उत्पन्न हो सकती है (अक्सर गुदा संकीर्णता के साथ-साथ)।[21] इसमें श्लेष्म झिल्ली गुदा से पलट जाती है, जो कि गुदीय भ्रंश के एक हल्के स्वरूप के समान होता है।[21]
महामारी विज्ञान[संपादित करें]यह निर्धारित करना कठिन है कि बवासीर कितना आम है क्योंकि बहुत सारे लोग स्वास्थ्य प्रदाताओं से इस स्थिति में संपर्क नहीं करते हैं।[4][7] हालांकि, यह विश्वास किया जाता है कि लाक्षणिक बवासीर लगभग 50% अमरीकी जनसंख्या को उनके जीवन के किसी न किसी समय पर प्रभावित करती है तथा किसी भी खास समय पर लगभग 5% जनसंख्या इससे प्रभावित रहती है। दोनों लिंगों में लगभग समान रोग संभावनाएं होती हैं[25] जिसकी होने की दर 45 से 65 वर्ष की उम्र में अधिकतम होती है।[3] यह कॉकेशियन[26] तथा उच्च सामाजिक आर्थिक स्थिति वाले लोगों में उच्च दर से होता है।दीर्घावधि परिणाम सामान्यतया अच्छे होते हैं, हालांकि कुछ लोगों को लाक्षणिक बवासीर बार-बार हो सकता है।[4] बेहद छोटे अनुपात में लोगों को शल्यक्रिया की जरूरत होती है। इतिहास[संपादित करें]11वीं सदी का अंग्रेजी लघुचित्र। दाहिनी ओर बवासीर को हटाने की शल्यक्रिया की जा रही है। इस कष्ट का पहला ज्ञात वर्णन 1700 ईसा पूर्व के मिस्री पेपाइरस पर मिलता है जिसके अनुसार: “… उनको एक नुस्खा दिया जाना चाहिए, बेहतरीन रक्षण के लिए एक मरहम; अकासिया की पत्तियां, कूंचकर, पीस कर पकाकर बना हुआ। महीन कपड़े की एक पट्टी पर लगाकर उसे गुदा पर लगाना चाहिए, इससे उसको तत्काल आराम मिलता है।"[27] 460 ईसापूर्व, हिप्पोक्रेटिक कोष आधुनिक रबर बैंड बंधन जैसे उपचार का वर्णन करता है: “और बवासीर में इसी तरह आप उनको सुई से मोटे तथा ऊनी धागे से बांध सकते हैं और उनको तब तक न हटाएं जब तक कि वे गिर न जाएं और हमेशा एक को छोड़ दें; जब रोगी ठीक हो जाए तो उसको हेलिबो का पथ्य दें।”[27] बवासीर का वर्णन संभवतः बाइबिल में भी है।[3][28] सेल्सस (25 ईसापूर्व –14 ईस्वी) ने बंधन तथा निष्कासन प्रक्रियाओं का वर्णन किया है और संभावित जटिलताओं की चर्चा की है।[29] गैलन ने धमनियों से नसों के कनेक्शन के विच्छेद की वकालत की है तथा दावा किया है कि यह दर्द कम करता है गैंगरीन के विस्तार को रोकता है।[29] The सुश्रुत संहिता, (4थी – 5वीं सदी ईस्वी), में हिप्पोक्रेटस जैसे शब्दों का उपयोग किया है, लेकिन घावों का सफाई पर विशेष जोर दिया है।[27] 13वीं सदी में, यूरोपीय शल्य चिकित्सक जैसे लैनफ्रैंक ऑफ मिलान, गाए दे चॉलिआक, हेनरी दे मोन्डेविले और जॉन ऑफ एडरीन ने काफी प्रगति की और शल्य तकनीकों का विकास किया।[29] अंग्रेजी में शब्द "हेमरॉएड" का सबसे पहला प्रयोग 1398 में हुआ, जो पुरानी फ्रेच भाषा "एमरॉएड्स", लैटिन "हाएमोरिडा -आए",[30] से लिया गया, जो कि ग्रीक "αἱμορροΐς" (हाएमोरोइस), "रक्त का निर्वहन करने के लिए उत्तरदायी" से बना है जो कि "αἷμα" (हाएमा), "रक्त"[31] + "ῥόος" (रोस), "धारा, प्रवाह "से बना है,[32] जो कि "ῥέω" (रेओ), "बहना, प्रवाह बनाना" से निर्मित है।[33] महत्वपूर्ण मामले[संपादित करें]महान बेसबॉल खिलाड़ी जॉर्ज ब्रेट को
1980 विश्व श्रंखला से बवासीर के दर्द के कारण खेल से बाहर निकाल दिया गया था। छोटी सी शल्य क्रिया के पश्चात ब्रेट अगले खेल में वापस लौटे और बोले "...मेरी सारी समस्याएं अब मेरे पीछे रह गयी
हैं।"[34] अगले वसंत में ब्रेट ने फिर से बवासीर शल्यक्रिया कराई।[35]कंज़रवेटिव राजनीतिज्ञ
ग्लेन बेक ने भी बवासीर की शल्यक्रिया कराई थी, जिसके बारे में उन्होने अपने बुरे अनुभव को साझा किया जिसे 2008 के यू-ट्यूब वीडियों में साझा किया
गया।[36] सन्दर्भ[संपादित करें]
वाह्य कड़ियां[संपादित करें]
बवासीर के मस्सों को जड़ से खत्म कैसे करें?बवासीर के मस्सों को हटाने के उपाय में आक के पत्ते और सहजन के पत्ते का मलहम बना कर लगाने से मस्सों से छुटकारा मिलता है। नीम का तेल और हल्दी कड़वी तोरई के रस में मिला कर मस्सों पर लगाये। नियमित रूप से इश रामबाण उपाय को करने पर मलद्वार के मस्से जड़ से खत्म हो जाते है।
बवासीर में तुरंत आराम के लिए क्या करें?बवासीर में एलोवेरा फायदेमंद. सेब का सिरका सेब का सिरका भी बवासीर में आराम दिलाता है। ... . जैतून का तेल भी कारगर बवासीर की समस्या से परेशान लोगों के लिए जैतून का तेल भी बहुत उपयोगी है। ... . जीरे से होगा फायदा जीरे भी बवासीर में राहत देगा। ... . नींबू भी असरदार ... . मट्ठा और अजवायन भी फायदेमंद. क्या Piles हमेशा के लिए ठीक हो सकता है?अगर पाइल्स ग्रेड 1 या ग्रेड 2 के हैं यानी आकार में छोटे हैं तो दवाओं से उन्हें ठीक किया जा सकता है। खाने और लगाने दोनों की ही दवाएं दी जाती हैं। पाइल्स की शुरुआती स्टेज में इसी तरीके से इलाज हो जाता है।
बवासीर के लिए सबसे अच्छी टेबलेट कौन सी है?बवासीर में रोगी गुदा में जलन और दर्द का अनुभव कर सकता है। रोगी के गुदा की नस सूज जाती है जिससे स्टूल पास करने में तेज दर्द होता है।. बवासीर की आयुर्वेदिक दवा. अर्शकल्प वटी (Arshkalp Vati). इसबगोल भूसी (Isabgol husk). |