चोरह की बान में हौ र्ूप्रवीने यह पंक्ति कौन ककससे कह रहा है? - chorah kee baan mein hau roopraveene yah pankti kaun kakasase kah raha hai?

(क) यह पंक्ति श्रीकृष्ण ने सुदामा से कही।
(ख) जब श्रीकृष्ण कौ सुदामा अपनी पत्नी द्वारा भेजी गई चावलों की पोटली नहीं देते तै। उन्होंने कहा कि तुम चोरी करने में कुशल हो।
(ग) बचपन में जब कृष्ण और सुदामा साथ-साथ संदीपन ऋषि के आश्रम में पढ़ते थे तो एक बार गुरुमाता ने इन दोनों को चने देकर लकड़ी तोड़ने भेजा। कृष्ण पेड़ पर चढ़कर लकड़ियाँ तोड़ रहे थे तो नीचे खड़े सुदामा चने खाते जा रहे थे। कृष्ण को जब चने चबाने की आवाज आई तो उन्होंने सुदामा से पूछा कि क्या चने खा रहे हो? सुदामा ने झूठ बोलते हुए कहा, नही चने नहीं खा रहा यह तो ठंड के कारण मेरे दाँत बज रहे हैं। लेकिन जब श्रीकृष्ण नीचे उतरे तो सुदामा के पास चने न पाकर क्रोधित हो उठे। तब उन्होंने सुदामा को कहा कि सुदामा तुमने मेरे चनों की चोरी की है।

NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 12 सुदामा चरित

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सुदामा चरित NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 12

Class 8 Hindi Chapter 12 सुदामा चरित Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
सुदामा की दीनदशा देखकर श्रीकृष्ण की क्या मनोदशा हुई? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
सुदामा की दीनदशा देखकर श्रीकृष्ण का हृदय द्रवित हो गया और उनकी आँखों से आँसुओं की धारा बहने लगी।

प्रश्न 2.
“पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सों पग धोए।” पंक्ति में वर्णित भाव का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
सुदामा के धूल-भरे पैरों को धोने के लिए परात में पानी मँगवाया गया। पैरों में बिवाइयाँ पड़ी थीं। पैरों में काँटे गड़े हुए थे। कृष्ण जी, सुदामा का ऐसा हाल देखकर द्रवित हो गए। पैरों को धोने के लिए मँगाया परात का पानी रखा ही रह गया। उनकी आँखों से आँसुओं की धारा वहने लगी। उन्हीं आँसुओं से सुदामा के पैर धुल गए।

प्रश्न 3.
“चोरी की बान में हौ जू प्रवीने’
(क) उपर्युक्त पंक्ति कौन, किससे कह रहा है?
(ख) इस कथन की पृष्ठभूमि स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस उपालंभ (शिकायत) के पीछे कौन-सी पौराणिक कथा है?
उत्तर:
(क) कृष्ण जी सुदामा से कह रहे हैं।

(ख) सुदामा की पत्नी ने पोटली में बाँधकर चावल दिये थे। सुदामा संकोचवश उस पोटली को बगल में दबाए हुए हैं। कृष्ण जी ने इसे चोरी की आदत वताया और कहा कि इस आदत में तुम आज तक प्रवीण हो।

(ग) एक बार कृष्ण और सुदामा जंगल से लकड़ियाँ लाने के लिए गए थे। गुरुमाता ने उन्हें खाने के लिए चने दिये थे। चने सुदामा के पास थे। सुदामा अकेले ही चने चबाते रहे। कृष्ण के पूछने पर बता दिया कि मेरे दाँत ठण्ड से किटकिटा रहे हैं। इसी ओर कृष्ण जी ने संकेत किया कि तुमने पहले भी चोरी की थी और आज भी उसी आदत को बनाए हुए हो। लगता है कि तुम चोरी की आदत में बहुत निपुण हो।

प्रश्न 4.
द्वारका से खाली हाथ लौटते समय सुदामा मार्ग में क्या-क्या सोचते जा रहे थे? वह कृष्ण के व्यवहार से क्यों खीझ रहे थे? सुदामा के मन की दुविधा को अपने शब्दों में प्रकट कीजिए।
उत्तर:
द्वारका से खाली हाथ लौटते समय सुदामा रास्ते में सोचते जा रहे हैं। उनका सोचना है कि कृष्ण जी मुझे देखकर बहुत खुश हुए थे। उठकर प्रेमपूर्वक मिले थे। बहुत आदरपूर्वक बातें की थीं। जब भेजने का समय आया तो मुझे खाली हाथ भेज दिया। ये सारी बातें मेरी समझ में नहीं आ रही हैं कि उनका प्रेम सच्चा था या दिखावटी। अब राजा हो गए हैं। आसपास बहुत-से लोगों की भीड़ जुटी रहती है। एक वह भी वक्त था जब थोड़ी-सी दही के लिए हाथ फैलाना पड़ता था। मैं पहले ही यहाँ आने का इच्छुक न था। पत्नी मुझे टेलकर न भेजती तो मैं क्यों इधर आता? कृष्ण जी ने मुझे कुछ भी नहीं दिया। पत्नी पड़ोस से माँगकर जो चावल लाई थी, वे भी चले गए।

प्रश्न 5.
अपने गाँव लौटकर जब सुदामा अपनी झोंपड़ी नहीं खोज पाए तब उनके मन में क्या-क्या विचार आए? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अपने गाँव लौटकर जब सुदामा अपनी झोंपड़ी नहीं खोज पाए तब उनके मन में विचार आया कि कहीं मैं रास्ता भूलकर फिर से द्वारकापुरी में तो नहीं आ गया हूँ। उन्हें उनकी झोंपड़ी कहीं भी नज़र नहीं आ रही थी। चारों तरफ आलीशन भवन बन गए थे।

प्रश्न 6.
निर्धनता के बाद मिलने वाली सम्पन्नता का चित्रण कविता की अन्तिम पंक्तियों में वर्णित है। उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
कविता की अन्तिम पंक्तियों में निर्धनता के बाद मिलने वाली सम्पन्नता का चित्रण इस प्रकार किया गया है-

  • पहले टूटा-सा छप्पर होता था, अब उसके स्थान पर कंचन के महल सुशोभित हो रहे हैं।
  • कहाँ तो पैरों में जूती तक नहीं होती थी, कहाँ आज दरवाजे पर हाथी को लेकर महावत खड़े हैं।
  • पहले कठोर भूमि पर रात कटती थी, अब कोमल सेज पर भी नींद नहीं आती है।
  • कहाँ तो पहले खाने के लिए साधारण साँवक के चावल भी मुश्किल से जुट पाते थे और अब अंगूर खाना भी अच्छा नहीं लगता।

कविता से आगे

प्रश्न 1.
द्रुपद और द्रोणाचार्य भी सहपाठी थे, इनकी मित्रता और शुत्रता की कथा महाभारत से खोजकर सुदामा के कथानक से तुलना कीजिए।
उत्तर:
द्रुपद और द्रोणाचार्य भी साथी थे। द्रपद राजा बन गए द्रोणाचार्य की स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ। वे निर्धन ही बने रहे।

प्रश्न 2.
उच्च पद पर पहुँचकर या अधिक समृद्ध होकर व्यक्ति अपने निर्धन माता-पिता-भाई-बंधुओं से नजर फेरने लग जाता है, ऐसे लोगों के लिए सुदामा चरित कैसी चुनौती खड़ी करता है? लिखिए।
उत्तर:
उच्च पद पर पहुँचकर या अधिक समृद्ध होकर जो व्यक्ति अपने निर्धन माता-पिता-भाई-बंधुओं से नज़र फेर लेते हैं; उनके लिए चुनौती दी गई है कि हमें अपने आत्मीय जनों को समृद्ध होकर भी नहीं भूलना चाहिए। हमें समृद्ध होकर और अधिक विनम्र और उदार होना चाहिए।

अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1.
(क) अनुमान कीजिए यदि आपका कोई अभिन्न मित्र आपसे बहुत वर्षों बाद मिलने आए तो आप को कैसा अनुभव होगा?
(ख) कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति।
विपति कसौटी जे कसे तेई साँचे मीत ॥
इस दोहे में रहीम ने सच्चे मित्र की पहचान बताई है। इस दोहे से सुदामा चरित की समानता किस प्रकार दिखती है? लिखिए।
उत्तर:
(क) यदि हमारा कोई मित्र बहुत वर्षों बाद मिलने के लिए आए तो हमें अपार प्रसन्नता होगी। हम अपने मित्र का जी भर आदर-सम्मान करेंगे और उसकी हर सुविधा का विशेष ध्यान रखेंगे।

(ख) सच्चा मित्र वही होता है जो विपत्ति के समय काम आए। सुदामा चरित के कृष्ण भी उसी प्रकार के हैं। जब सुदामा गरीबी के कारण दुर्दशाग्रस्त हो चुके थे, उस समय कृष्ण जी ने उसको अपनाकर सच्चे मित्र का कर्तव्य पूरा किया।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
“पानी परात को हाथ छयो नहिं, नैनन के जल सो पग धोए”
ऊपर लिखी गई पंक्ति को ध्यान से पढ़िए। इसमें बात को बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर चित्रित किया गया है। जब किसी बात को इतना बढ़ा चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है तो वहाँ पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है। आप भी कविता में से एक अतिशयोक्ति अलंकार का उदाहरण छाँटिए।
उत्तर:
इत आवत चलि जाति उत, चली छह सातेक हाय।
चढ़ि हिंडोरे सी रहें, लगि उसासन साथ”। -बिहारी
इन पंक्तियों में अतिशयोक्ति अलंकार है।”

प्रश्न 2.
कुछ करने को
1. इस कविता को एकांकी में बदलिए और उसका अभिनय कीजिए।
2. कविता के उचित सस्वर वाचन का अभ्यास कीजिए।
3. ‘मित्रता’ संबंधी दोहों का संकलन कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न संख्या 1-3 छात्र स्वयं करें। मित्रता सम्बन्धी तीन दोहे दिये जा रहे हैं-
1. मित्र-बिछोहा अति कठिन, मति दीजै करतार।
बाके गुण जब चित्त चढ़े, वर्षत नयन अपार ।।

2. साईं, सब संसार में, मतलब का व्यवहार ।
जब लगि पैसा गाँट में, तब लगि ताको यार।

3. जे गरीव को हित करें, ते रहीम बड़ लोग।
कहाँ सुदामा वापुरो, कृष्ण मिताई जोग।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
द्वारपाल ने सदामा के बारे में कृष्ण जी को कौन-सी पहचान नहीं बताई?
(क) सिर पर पगड़ी नहीं है
(ख) धोती फटी हुई है
(ग) जूते टूटे हुए हैं
(घ) दुर्बल ब्राह्मण हैं
उत्तर:
(ग) जूते टूटे हुए हैं।

प्रश्न 2.
सुदामा के पाँवों की स्थिति का वर्णन किस वाक्य में सही नहीं बताया गया है?
(क) बिवाइयों से बेहाल है
(ख) पैरों में काँटे चुभे हैं
(ग) काँटे जगह-जगह चुभे हुए हैं और पूरा जाल बनाए हुए हैं
(घ) दुर्बल ब्राह्मण हैं
उत्तर:
(घ) दुर्बल ब्राह्मण हैं।

प्रश्न 3.
सुदामा बगल में क्या छुपा रहे थे?
(क) पोटली
(ख) रुपये
(ग) पुस्तक
(घ) बटुआ
उत्तर:
(क) पोटली।

प्रश्न 4.
सुदामा की पुरानी आदत क्या थी; जो कृष्ण जी ने हँसकर बताई?
(क) चना चुराने की
(ख) अकेले खाने की
(ग) किसी को कुछ न बताने की
(घ) मिल-बाँटकर चना चबाने की
उत्तर:
(ख) अकेले खाने की।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कृष्ण के बारे में कौन-सी बात सुदामा ने मन में नहीं सोची?
(क) आदर की बात करना
(ख) कृष्ण द्वारा सुदामा की गरीबी का उपहास करना
(ग) देखकर पुलकित होना
(घ) दही के लिए घर-घर जाकर हाथ फैलाना
उत्तर:
(ख)कृष्ण द्वारा सुदामा की गरीबी का उपहास करना।

प्रश्न 6.
सुदामा अपने गाँव में जाकर क्यों परेशान हुए?
(क) वे खाली हाथ आए थे
(ख) पत्नी ने उनको खाली हाथ जाने पर टोका था
(ग) सुदामा को अपनी झोंपड़ी ढूँढे नहीं मिल पा रही थी
(घ) वे दुबारा द्वारका जाना चाहते थे
उत्तर:
(ग) सुदामा को अपनी झोंपड़ी ढूँढे नहीं मिल पा रही थी।

प्रश्न 7.
अब सुदामा के यहाँ कौन-सी सुविधा उपलब्ध नहीं थी?
(क) सोने के महल
(ख) महावत के साथ गजराज
(ग) कोमल सेज
(घ) पुरानी झोंपड़ी वाला घर
उत्तर:
(ख) पुरानी झोंपड़ी वाला घर।

प्रश्न 8.
‘अभिरामा’ का अर्थ है-
(क) सुन्दर
(ख) लगातार
(ग) पहचान
(घ) अभी
उत्तर:
(क) सुन्दर।

प्रश्न 9.
नीचे कुछ शब्दों के अर्थ दिये गए हैं? किस वर्ग में सही अर्थ नहीं दिया गया है?
(क) द्वि ज-ब्राह्मण
(ख) उपानह-जूता
(ग) दाख-आटा
(घ) तंदुल-चावल
उत्तर:
(ग) दाख-आटा।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित शब्दों में किस वर्ग में उपसर्ग गलत बनाए गए हैं?
(क) अभिरामा-अभि
(ख) प्रवीने-प्र
(ग) संभ्रम-सम्
(घ) बसुधा-ब
उत्तर:
(घ) बसुधा-ब।

प्रश्न 11.
‘सुदामा चरित’ पाठ में कौन-सा वर्णन नहीं आया है?’
(क) परात में भरा पानी
(ख) पोटली को बगल में छुपाना।
(ग) धन देकर विदा करना
(घ) अपनी झोंपड़ी के बारे में सुदामा को दूसरे लोगों से पूछना।
उत्तर:
(ग) धन देकर विदा करना।

सप्रसंग व्याख्या

(क) सीस पगा न सँगा तन में, प्रभु! जाने को आहि बसे केहि ग्रामा॥
धोती फटी-सी लटी दुपटी, अरु पाँय उपानह को नहिं सामा॥
द्वार खड़ो द्विज दुर्बल एक, रह्यो चकिसों बसुधा अभिरामा॥
पूछत दीनदयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा॥

प्रसंग- यह सवैया ‘सुदामा चरित’ पाठ से लिया गया है। इसके कवि श्री नरोत्तम दास जी हैं। जब सुदामा द्वारकापुरी में पहुँचते हैं तो द्वारपाल उन्हें द्वार पर रोककर, श्रीकृष्ण जी को उनके बारे में सूचना देने के लिए चला जाता है। द्वारपाल कृष्ण जी को सुदामा के बारे में जानकारी दे रहा है।

व्याख्या- कवि नरोत्तम दास सुदामा की दीन-हीन दशा का वर्णन करते हैं। द्वारपाल कृष्ण जी को बता रहा है कि हे प्रभु! शीश पर पगड़ी नहीं है, शरीर पर कुर्ता तक नहीं है। पता नहीं कौन है और किस गाँव का रहने वाला है। फटी हुई धोती पहने है, दुपट्टा भी जीर्ण-शीर्ण हो चुका है। उसके पाँव में तो जूते तक नहीं हैं। वह इतना निर्धन है कि जूते पहनना उसकी सामर्थ्य से परे है। द्वार पर एक दुर्बल ब्राह्मण खड़ा हुआ है। वह अचरज भरी दृष्टि से सुन्दर धरती को, आसपास की चीज़ों को देख रहा है। वह आपके महल के बारे में पूछ रहा था। वह अपना नाम सुदामा बता रहा है।

विशेष-

  1. द्विज दुर्बल में अनुप्रास अलंकार है।
  2. सुदामा की दीन दशा का चित्रात्मक वर्णन प्रस्तुत किया गया है।
  3. सवैया छन्द और ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है।
  4. द्वारपाल को विश्वास ही नहीं हुआ था कि ऐसा दीन-हीन व्यक्ति द्वारकाधीश का मित्र हो सकता है।

(ख) ऐसे बेहाल बिवाइन सों, पग कंटक जाल लगे पुनि जोए।
हाय! महादुख पायो सखा, तुम आए इतै न कितै दिन खोए॥
देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिकै करुनानिधि रोए।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सों पग धोए॥

प्रसंग- यह सवैया ‘सुदामा चरित’ से गया गया है। इसके कवि श्री नरोत्तम दास हैं। कृष्ण जी सुदामा जी के पैर धोना चाहते हैं। सुदामा के पैरों की हालत बहुत बुरी हो चुकी है। उसे देखकर श्रीकृष्ण जी अपनी पीड़ा प्रकट करते हैं।

व्याख्या- श्रीकृष्ण जी सुदामा जी से कहते हैं कि बिवाइयों के कारण तुम्हारे पैरों का हाल बहुत बुरा हो चुका है। पैरों में जगह-जगह काँटे चुभे हुए हैं। कोई भी जगह काँटों से खाली नहीं है। हे मित्र! तुमने बहुत दुख झेला है। तुम इधर चले आते। तुमने दुखों में अपना समय काट दिया पर तुम इधर क्यों नहीं आए? सुदामा की दीनदशा देखकर सब पर करुणा करने वाले श्रीकृष्ण जी की आँखों से आँसू बहने लगे। सुदामा के पैर धोने के लिए कृष्ण जी ने परात में पानी रखा था। परात के उस पानी को छूने का भी अवसर नहीं मिला। उनकी आँखों से आँसुओं की धारा वह रही थी। उसी से उन्होंने सुदामा के पैर धो दिये।

विशेष-

  1. बेहाल बिवाइन, दीन दसा, करुना करिकै करुनानिधि, पानी परात-में अनुप्रास अंलकार है।
  2. ‘पानी परात को ……… पग धोए’ पंक्ति में अतिशयोक्ति अलंकार है।
  3. सुदामा की दीन दशा का हृदयस्पर्शी वर्णन है।
  4. कृष्ण के करुणानिधि रूप का प्रभावशाली चित्रण है।

(ग) कछ भाभी हमको दियो, सो तुम काहे न देत।
चाँपि पोटरी काँख में, रहे कहो केहि हेतु ।।
आगे चना गुरुमातु दए ते, लए तुम चाबि हमें नहिं दीने।
स्याम कयो मुसकाय सुदामा सों, “चोरी की बान में हौ जू प्रवीने।।
पोटरि काँख में चाँपि रहे तुम, खोलत नाहि सुधा रस भीने।
पाछिलि बानि अजौ न तजो तुम, तैसई भाभी के तदुल कीन्हे ।।”

प्रसंग- ‘सुदामा चरित’ की ये पंक्तियाँ कवि नरोत्तम दास द्वारा रची गई हैं। इन पंक्तियों में कवि श्रीकृष्ण द्वारा स्मरण की गई अपने छात्र जीवन की घटनाओं का वर्णन करते हैं।

व्याख्या- श्रीकृष्ण जी उलाहना देते हुए सुदामा को टोकते हैं कि भाभी ने हमारे लिए कुछ दिया है। लगता है उसे ही तुम बगल में दबाकर छुपाने में लगे हो। तुम हमें क्यों नहीं दे रहे हो? जो चीज़ भाभी ने हमारे लिए भेजी है, कम से कम वह तो हमें दे दिये होते।

पहले भी तुम ऐसा ही कर चुके हो। तुम्हें अच्छी तरह याद होगा- एक बार गुरुमाता ने हम दोनों के लिए भुने हुए चने दिए थे। तुम चुपचाप उन चनों को अकेले ही चबा गए थे। मुझे बिल्कुल नहीं दिए थे। श्रीकृष्ण जी ने सुदामा जी से मुस्कराकर कहा-लगता है चोरी करने की आदत में तुम आज तक पहले जितने ही कुशल हो। तुम पोटली को बगल में छिपा रहे हो। कोई बढ़िया अमृतमयी वस्तु तुम्हारी पोटली में बँधी है। तुम उसे अकेले ही निपटाना चाह रहे हो, इसीलिए पोटली नहीं खोल रहे हो। तुमने चोरी की अपनी पिछली आदत को अभी तक नहीं छोड़ा। तुम वैसा ही भाभी द्वारा दिए गए चावलों के लिए कर रहे हो।

विशेष-

  1. कृष्ण जी पहले ‘कछु भाभी हमको दियो’ कहते हैं और अन्त में ‘तैसई भाभी के तुदंल कीन्हें-कहकर सुदामा को बता देते हैं कि तुम्हारी पोटली में चावल हैं।’
  2. प्रथम दो पंक्तियों में दोहा तथा अन्य चार पंक्तियों में सवैया छन्द है।
  3. कृष्ण जी सुदामा को पुरानी बातें याद दिलाकर छेड़ते हैं।

(घ) वह पुलकनि, वह उठि मिलनि, वह आदर की बात।
वह पठवनि गोपाल की, कछू न जानी जात।।
कहा भयो जो अब भयो हरि को राज-समाज।
घर-घर कर ओड़त फिरे, तनक दही के काज।
हौं आवत नहीं हुतौ, वाही पठयो टेलि।।
अब कहिहौं समुझाय कै, बहु धन धरौ सकेलि।।

प्रसंग- उपर्युक्त दोहा एवं सवैया ‘सुदामा चरित’ से उद्धृत है। इसके रचयिता कवि नरोत्तम दास जी हैं। सुदामा जी द्वारका जी से विदा होते समय खाली हाथ हैं। उन्हें कृष्ण जी पर क्रोध आ रहा है और पत्नी के प्रति भी उनके मन में खीझ है। वे कृष्ण के उस प्रेमपूर्वक मिलन पर शंका भी कर रहे हैं।

व्याख्या- सुदामा सोच रहे हैं कि कृष्ण का मुझे देखकर खुश होना, उठकर प्रेमपूर्वक मिलना, आदर की बातें करना; फिर मुझे विदा कर देना। कोई भी बात ठीक से समझ में नहीं आ रही है। वह मिलना-जुलना क्या दिखावा था? यदि दिखावा नहीं था तो मुझे खाली हाथ क्यों विदा कर दिया?

अब कृष्ण जी के पास बहुत बड़ा राज्य हो गया। यह कौन बड़ी बात है। एक वह भी दिन था जब थोड़ी-सी दही के लिए इन्हें घर-घर जाकर हाथ फैलाना पड़ता था। मैंने यहाँ आकर अच्छा नहीं किया। यदि ज़िद करके पत्नी मुझे यहाँ आने के लिए बाध्य न करती तो मैं यहाँ आता भी नहीं। ठीक है, अव समझाकर कहूँगा कि मित्र कृष्ण जी ने ढेर सारा धन दे दिया है। इसे संभालकर रखो।

विशेष-

  1. ‘धन धरौ’ में अनुप्रास अलंकार है।
  2. इन पंक्तियों में सुदामा का अविश्वास एवं खीझ प्रकट हुए हैं।
  3. सुदामा खाली हाथ लौटने के कारण अपनी खीझ प्रकट कर रहे हैं। महाराज श्रीकृष्ण ने चावलों की पोटली ले ली और बदले में कुछ भी नहीं दिया।

(ङ) वैसोई राज-समाज बने, गज, बाजि घने मन संभ्रम छायो।
कैधों पर्यो कहुँ मारग भूलि, कि फैरि कै मैं अब द्वारका आयो।।
भौन बिलोकिबे को मन लोचत, अब सोचत ही सब गाँव मझायो।
पूँछत पाड़े फिरे सब सों पर, झोपरी को कहुँ खोज न पायो।।

प्रसंग- यह सवैया ‘सुदामा चरित’ से लिया गया है। इसके रचयिता कवि नरोत्तम दास जी हैं। जब सुदामा अपने गाँव लौटते हैं तो चकित हो उठते हैं। वे तो द्वारका से खाली हाथ लौटने पर खीझ रहे थे। गाँव में पहुँचकर वे ठगे-से रह जाते हैं।

व्याख्या- सुदामा आश्चर्य-चकित होकर सोच रहे हैं कि ठीक वैसा ही राज-समाज, ठाठ-बाट यहाँ दिखाई दे रहा है, जैसा द्वारका पुरी में था। वैसे ही हाथी-घोड़े यहाँ भी दिखाई दे रहे हैं। इससे सुदामा का मन भ्रमित हो गया। वे सोचने लगे-मैं कहीं रास्ता तो नहीं भूल गया हूँ और रास्ता भटककर फिर द्वारका में ही लौट आया हूँ। वे अपना घर देखने को बेचैन हो उठे। उन्हें कहीं भी अपना घर ढूँढ़े नहीं मिला। पूरे गाँव में उन्हें पता ही नहीं चल पाया। परेशान होकर सुदामा सबसे पूछते फिरते हैं पर पूछने पर भी वे अपनी झोपड़ी को नहीं ढूँढ़ पाए।

विशेष- कृष्ण जी सच्चे मित्र थे। वे मित्रता का दिखावा नहीं करते थे। उन्होंने दीन-हीन सुदामा को सुख-समृद्धि देकर सच्चे मित्र के धर्म का निर्वाह किया है।

(च) कै वह टूटी-सी छानी हती, कहँ कंचन के अब धाम सुहावत।
कै पग में पनही न हती, कहँ लै गजराजहु ठाढ़े महावत ।।
भूमि कठोर पै रात कटै, कहँ कोमल सेज पै नींद न आवत।
के जुरतो नहिं कोदो सवाँ, प्रभु के परताप ते दाख न भावत।

प्रसंग- यह सवैया नरोत्तम दास द्वारा रचित ‘सुदामा चरित’ से उद्धृत है। इस सवैये में सुदामा को अनुभव होता है कि भगवान कृष्ण ने सच्चे मित्र का कर्तव्य निभाया है और उनकी सारी निर्धनता दूर कर दी है।

व्याख्या- सुदामा अपने बीते दिनों की तुलना वर्तमान दशा से करते हुए कहते हैं कि एक तो वे दिन थे जब सिर छुपाने के लिए एक टूटा-सा छप्पर था, कहाँ अब सोने के महल शोभा बढ़ा रहे हैं। कहाँ तो पहले पाँव में पहनने के लिए जूता तक नहीं होता था, नंगे पैर ही घूमना पड़ता था। अब दरवाजे पर हाथी लिये हुए महावत खड़े हैं। वह भी क्या समय था जब कठोर भूमि पर ही लेटना पड़ता था। सोने के लिए चारपाई तक नहीं थी। कहाँ अब कोमल सेज है परन्तु उस पर सोने की आदत न होने से नींद नहीं आती है। कहाँ तो कभी साँवक का मोटा चावल भी खाने के लिए बहुत मुश्किल से मिल पाता था अब हालत यह है कि प्रभु-कृष्ण की कृपा से अंगूर भी अच्छे नहीं लगते।

भाव यह है कि प्रभु की कृपा असीम है। उसकी कृपा से सारी दरिद्रता दूर हो गई है।

विशेष-

  1. सुदामा श्रीकृष्ण की परम कृपा का अनुभव करते हैं। इस अनुभव को तुलनात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
  2. ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है।

सुदामा चरित Summary

पाठ का सार

‘सदामा चरित’ कवि नरोत्तम दास द्वारा रचित है। सुदामा अपने सहपाठी एवं द्वारका के राजा श्रीकृष्ण के पास जाते हैं। उनकी दशा बहत दयनीय है। सिर पर न पगड़ी है, न तन पर कुर्ता है। फटी धोती और जर्जर सी पुरानी पगड़ी, पैर में जूते भी नहीं, ऐसी हालत में वह द्वार पर पहुंचते हैं। द्वारपाल को अपना नाम और परिचय बताते हैं। कृष्ण मिलने पर देखते हैं कि सुदामा के पैरों में बिवाइयाँ हैं, काँटे चुभे हुए हैं। उनकी आँखों में आँसू आ जाते हैं। परात के पानी से नहीं वरन अपने आँसुओं से सुदामा के पैर धो देते हैं।

सुदामा ने बगल में एक गठरी दबा रखी है। कृष्ण उन्हें टोकते हैं कि भाभी ने हमारे लिए कुछ दिया है पर तुम दे नहीं रहे हों। पहले भी तुम ऐसा कर चुके हो। हमारे गुरु संदीपनि की पत्नी ने चने दिये थे, जिसे तुम अकेले ही चबा गए थे। तुमने अपनी चोरी की आदत अभी तक नहीं छोड़ी है।

सुदामा लौटते समय खाली हाथ हैं। और सोचते हैं कि पत्नी के कहने से मैं यहाँ आया। मैं स्वयं कभी नहीं आता। आज कृष्ण राजा हो गए, कल तक दही के लिए हाथ पसारे घूमते थे। यही सोचते दुखी मन से जब घर पहुँचते हैं तो सब कुछ बदला हुआ गया। सुदामा की झोंपड़ी वहाँ है ही नहीं। उसकी जगह महल खड़े हैं। राजसी ठाटबाट हैं। सुदामा की समझ में यह सब देखकर कृष्ण की महिमा का पता चलता है।

शब्दार्थ : सीस-सिर; झगा-कुर्ता; पाँय-पाँव; चकिसों-चकित-सा; बेहाल-परेशान; इतै-इधर; करिकै-करके चाँपि-दबाए हुए; गुरुमातु-गुरु की पत्नी; पोटरि-पोटली; पाछिलि-पिछली; तैसई-वैसे ही; पुलकनि-प्रसन्न होना; कहा भयो-क्या हुआ; सकेलि-इकट्ठा करके; बाजि-घोड़ा; परयो भूलि-भूल गया; भौन-भवन, घर; मझायो-में, बीच में; कै-अथवा; कंचन-सोना; पनही-जूते; कहँ-कहाँ; जुरतो-जुड़ना, मिलना; परताप-कृपा।

पगा-पगड़ी; के हि-किस; उपानह-जूता; वसुधा-धरती; बिवाइन सों-बिवाइयों से; कितै-कितने; करुनानिधि-करुणा के समुद्र अर्थात् कृष्ण जी; काँख-बगल; बान-आदत; सुधा-अमृत; अजौ-आज तक; तंदुल-चावल; पठवनि-भेजना; ओड़त-हाथ पसारना; वैसोई-वैसा ही; संभ्रम-आश्चर्य; कि-अथवा; बिलोकिबै-देखने को; पाड़े-पांडे, सुदामा; छानी-छप्पर; धाम-महल; ठाढे-खड़े; सेज-शव्या; कोदो-चावल; दाख-अंगूर, मुनक्का।

को आहि-कौन है; लटी-कमजोर; द्विज-ब्राह्मण; अभिरामा-सुन्दर; कंटक-कांटे; दसा-दशा, हालत; आगे-पहले; प्रवीने-चतुर; भीने-पगे हुए; तजो-छोड़ा; कीन्हें-किये हैं; काज-काम; गज-हाथी; कैंधों-क्या तो; फैरि-लौटकर; लोचत-तरसना; झोपरी-झोपड़ी; हती-थी; महावत-हाथी हाँकने वाला, हाथीवान; के-क्या तो; सवाँ-साँवक; भावत-अच्छा लगना।

चोरी की बान में हो जू प्रवीने पंक्ति कौन किससे कह रहा है और क्यों सुदामा चरित पाठ के आधार पर लिखिए?

संकोचवश सुदामा श्रीकृष्ण को यह भेंट नहीं दे पा रहे हैं। परन्तु श्रीकृष्ण सुदामा पर दोषारोपण करते हुए इसे चोरी कहते हैं और कहते हैं कि चोरी में तो तुम पहले से ही निपुण हो। (ग) इस उपालंभ के पीछे एक पौरोणिक कथा है। जब श्रीकृष्ण और सुदामा आश्रम में अपनी-अपनी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे।

चोरी की बान में हौ जू प्रवीने

(क) 'चोरी की बात में हौ जू प्रवीने' - यह श्री कृष्ण अपने बालसखा सुदामा से कह रहे हैं।

चोरी की बान में हौ जू प्रवीने श्रीकृष्ण ने ऐसा क्यों कहा?

(क) यह पंक्ति श्रीकृष्ण ने सुदामा से कही। (ख) जब श्रीकृष्ण कौ सुदामा अपनी पत्नी द्वारा भेजी गई चावलों की पोटली नहीं देते तै। उन्होंने कहा कि तुम चोरी करने में कुशल हो। (ग) बचपन में जब कृष्ण और सुदामा साथ-साथ संदीपन ऋषि के आश्रम में पढ़ते थे तो एक बार गुरुमाता ने इन दोनों को चने देकर लकड़ी तोड़ने भेजा।

इस उपालंभ शिकायत के पीछे कौन सी पौराणिक कथा है class 8?

(c) इस उपालंभ (शिकायत) के पीछे कौन-सी पौराणिक कथा है? उत्तर: बचपन में जब कृष्ण और सुदामा की गुरुमाता उन्हें खाने के लिए चने दिया करती थीं तो सुदामा छुपाकर सारे के सारे चने चट कर जाते थे। इसलिए कृष्ण उनसे कहते हैं कि वे चोरी की कला में तो बचपन से माहिर हैं।