संस्कार हमारे जीवन को सुसंस्कृत बनाते हैं। सुसंस्कारों के अभाव में मनुष्य जीवन पशुतुल्य हो जाता है। मनुष्य मात्र के आचारों, व्यवहारों व क्रियाओं से उसके संस्कारों का सहज ज्ञान, उसकी श्रेष्ठता या निकृष्टता का अनुमान लगाया जा सकता है। संस्कार, संस्कृति का द्योतक है। संस्कार मनुष्य की पहचान है, जो जीवन की मूल संक्रियाओं से उत्पन्न होते हैं और जीवन को संस्कारित करते हैं। संस्कार जीवन परिष्कार के आधार हैं। सौजन्य,
सौहाद्र्र और समन्वय के स्त्रोत भी। छत्तीसगढ़ के संस्कार गीत के लेखक कौन है?दीनानाथ साहनी के अनुसार,”संस्कार गीत मनुष्य की वह परछाइयां है जो मनुष्य की उत्पत्ति के समय से ही किसी ना किसी रूप में संघ चली आ रही है।”
संस्कार गीत कौन है?संस्कार गीत :- संस्कारों के अवसर पर समयानुुकूल जो गीत गाए जाते हैं, वे संस्कार गीत कहलाते हैं। जैसे जन्म के समय सोहर, जच्चा, व्याही, मृत्यु के अवसर पर साखी, विवाह के समय, बनडा, बधाई, बरनी, कोरिया, नकटा, गारी, समधन, ज्योनार, देवी आदि। ये हमारी भारतीय संस्कृति में सोलह प्रकार की होती है मुख्य रूप से।
मंगरोहन क्या है?बांसों के ऊपर, पूरे आंगन में पत्तियों का झालर लटकाया जाता है। उस मानवाकृति वाली लकड़ी को ही मंगरोहन कहा जाता है। इसके बिना विवाह संस्कार संपन्न नहीं होता। 'मंगरोहन' की भूमिका विवाह के साक्षी के रुप में होती है।
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