One Line Answer Show गोपियों ने अपने लिए कृष्ण को हारिल की लकड़ी के समान क्यों बताया है? Advertisement Remove all ads Solutionगोपियों ने अपने लिए कृष्ण को हारिल की लकड़ी के समान इसलिए बताया है क्योंकि जिस प्रकार हारिल पक्षी अपने पंजे में दबी लकड़ी को आधार मानकर उड़ता है उसी प्रकार गोपियों ने अपने जीवन का आधार कृष्ण को मान रखा है। Concept: पद्य (Poetry) (Class 10 A) Is there an error in this question or solution? Advertisement Remove all ads Chapter 1: सूरदास - पद - अतिरिक्त प्रश्न Q 3Q 2Q 4 APPEARS INNCERT Class 10 Hindi - Kshitij Part 2 Chapter 1 सूरदास - पद Advertisement Remove all ads निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये गोपियों ने कृष्ण को हारिल पक्षी के समान माना था। हारिल पक्षी सदा अपने पंजों में कोई-न-कोई लकड़ी का टुकड़ा या तिनका पकड़े रहता है और गोपियों के हृदय में भी सदा श्रीकृष्ण बसते थे। 191 Views गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं? गोपियों ने उद्धव को अनेक उदाहरणों के माध्यम से उलाहने दिए थे। उन्होंने उसे ‘बड़भागी’ कह कर प्रेम से रहित माना था जो श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी प्रेम का अर्थ नहीं समझ पाया था। उद्धव के द्वारा दिए जाने वाले योग के संदेशों के कारण वे वियोग में जलने लगी थीं। विरह के सागर में डूबती गोपियो को पहले तो आशा थी कि वे कभी-न-कभी तो श्रीकृष्ण से मिल ही जाएंगी पर उद्धव के द्वारा दिए जाने वाले योग साधना के संदेश के बाद तो प्राण त्यागना ही शेष रह गया था। उद्धव का योग तो कड़वी ककड़ी के समान व्यर्थ था। वह तो योग रूपी बीमारी उन्हें देने वाला था। गोपियों ने उद्धव को वह गुरु माना था जिसने श्रीकृष्ण को भी राजनीति की शिक्षा दे दी थी। गोपियों ने वास्तव में जिन उदाहरणों के माध्यम से वाक्चातुरी का परिचय दिया है और उद्धव धव को उलाहने दिए हैं। वह उनके प्रेम का आंदोलन है। उनसे गोपियों के पक्ष की श्रेष्ठता और उद्धव के निर्गुण की हीनता का प्ररतिपादन हुआ है। 998 Views उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेशों ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया? गोपियों को श्रीकृष्ण के वियोग की अग्नि सदा जलाती रहती थी। वे हर समय उन्हें याद करती थीं; तड़पती थीं पर फिर भी उनके मन में एक आशा थी। उन्हें पूरी तरह से यह उम्मीद थी कि श्रीकृष्ण जब मथुरा से वापिस ब्रज क्षेत्र में आएंगे तब उन्हें उनका खोया हुआ प्रेम वापिस मिल जाएगा। वे अपने हृदय की पीड़ा उनके सामने प्रकट कर सकेंगी पर जब श्रीकृष्ण की जगह उद्धव उनकी योग-साधना का संदेश लेकर गोपियों के पास आ पहुँचा तो गोपियों की सहनशक्ति जवाब दे गई। उन्होंने श्रीकृष्ण के द्वारा भेजे जाने वाले ऐसे योग संदेश की कभी कल्पना भी नहीं की थी। इससे उन का विशवास टूट गया था। विरह-अग्नि में जलता हुआ उनका हृदय योग के वचनों से दहक उठा था। योग के संदेशों ने गोपियों की विरह अग्नि में घी का काम किया था। इसीलिए उन्होंने उद्धव को सामने और श्रीकृष्ण की पीठ पर मनचाही जली-कटी सुनाई थी। 794 Views ‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है? गोपियों ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम के कारण अपना सब सुख-चैन खो दिया था। उन्होंने घर-बाहर का विरोध करते हुए अपनी मान-मर्यादा की परवाह भी नहीं की थी जिस कारण उन्हें सबसे भला-बुरा भी सुनना पड़ा था। पर जब श्रीकृष्ण ने ही उन्हें उद्धव के माध्यम से योग-साधना का संदेश भिजवा दिया था तब उन्हें ऐसा लगा था कि कृष्ण के द्वारा उन्हें त्याग देने से तो उनकी पूरी मर्यादा ही नष्ट हो गई थी। उनकी प्रतिष्ठा तो पूरी तरह से मिट ही गई थी। 711 Views गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?
गोपियों के द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में व्यंग्य का भाव छिपा हुआ है। उद्धव तो मथुरा में श्रीकृष्ण के साथ ही रहते थे पर फिर भी उन के हृदय में पूरी तरह से प्रेमहीनता थी। वे प्रेम के बंधन से पूरी तरह मुक्त थे। उनका मन किसी के प्रेम में डूबता ही नहीं था। श्रीकृष्ण के निकट रह कर भी वे प्रेमभाव से वंचित थे। 1378 Views उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है? उद्धव के व्यवहार की तुलना कमल के पत्ते और तेल की मटकी से की गई है। कमल का पला पानी में डूबा रहता है पर उस पर पानी की एक बूंद भी दाग नहीं लगा पाती, उस पर पानी की एक बूंद भी नहीं टिकती। तेल की मटकी को जल में डुबोने से उस पर एक बूंद भी नहीं ठहरती। उद्धव भी पूरी तरह से अनासक्त था। वह श्रीकृष्ण के निकट रह कर भी प्रेम के बंधन से पूरी तरह मुक्त था। 848 Views गोपियों ने स्वयं को हारिल के समान क्यों माना है?गोपियों ने अपने प्रेम को कभी किसी के सम्मुख प्रकट नहीं किया था। वह शांत भाव से श्री कृष्ण के लौटने की प्रतीक्षा कर रही थीं। कोई भी उनके दु:ख को समझ नहीं पा रहा था। वह चुप्पी लगाए अपनी मर्यादाओं में लिपटी हुई इस वियोग को सहन कर रही थीं कि वे श्री कृष्ण से प्रेम करती हैं।
गोपियों ने श्री कृष्ण को हारिलपक्षी क्यों बताया है?गोपियों ने श्रीकृष्ण को 'हरिल की लकड़ी' इसलिए कहा है क्योंकि जिस प्रकार हरिल पक्षी सदैव अपने पंजों में हमेशा कोई न कोई लकड़ी या तिनका पकड़े रहता है, उसी प्रकार गोपियां भी श्रीकृष्ण को अपने हृदय में दृढ़तापूर्वक धारण किया हैं और उन्हें छोड़ने को तैयार नहीं हैं।
गोपियां कृष्ण को हारिल की लकड़ी क्यों करती है?Solution : गोपियाँ अपने को हारिल पक्षी के समान मानती हैं। हारिल अपने पंजों में कोई एक छोटी-सी लकड़ी या तिनका पकड़े रहता है। वही उसके जीवन का सहारा है। गोपियों कृष्ण को हारिल की लकड़ी इसलिए मानती हैं कि कृष्ण ही उनके जीवन का एकमात्र सहारा है।
गोपियों ने हारिल की लकड़ी किसे और क्यों कहा है?गोपियाँ कहती हैं हे उद्धव, हमारे लिए तो श्रीकृष्ण हारिल पक्षी की लकड़ी के समान हैं।
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