गरीबी का मुख्य कारण क्या होता है? - gareebee ka mukhy kaaran kya hota hai?

गरीबी विश्व के हर देश की एक विशिष्ट समस्या रही है, तथा विश्व के लगभग सभी देशों में गरीबी देखी जा सकता है। गरीबी की परिभाषा विश्व के सभी देशों के लिए एक समान नहीं होती।

सरल भाषा में हम कह सकते है की “गरीबी  से अभिप्राय उस स्थिति से होता है, जिसमें एक व्यक्ति जीवन की आधारभूत आवश्यकतयों को पूरा करने में असमर्थ रहता है।” आधारभूत आवश्यकतयों में भोजन, कपड़ा, आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं सम्मिलित होती है।

# गरीबी के मुख्य कारण निम्नलिखित है :-

1) जनसंख्या विस्फोट:-                  जनसंख्या की तीव्र वृद्धि विशेषकर गरीबी में, देश की गरीबी की समस्या के लिए उत्तरदायी है। यह जनसंख्या विस्फोट देश की कुल राष्ट्रीय आय का बड़ी संख्या में लोगों के बीच हल्का सा फेलाव होता है तो प्रति व्यक्ति आय नीचे होती है जिससे देश की गरीबी का सब कुछ होता रहता है।

2) आर्थिक विकास के निम्न स्तर:-                   कृषि और औद्योगिक क्षेत्र में विकास की धीमी रफ्तार के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत धीमी रफ्तार से विकसित हो रही है। आधारभूत सुविधाओं का अभाव तथा आर्थिक विकास के निम्न स्तर के कारण जनसंख्या का लगभग 25% अभी भी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहा है।

3) कृषि की दयनीय स्थिति:-                  भारत एक कृषि प्रधान देश है, तथा वर्तमान समय में जनसंख्या का लगभग 40% से लेकर 50% लोग अभी भी कृषि करते हैं। भारत में कृषि उत्पादन की आदिम पद्धति के प्रयोग और छोटे छोटे भू-जोतो के कारण कैसी पिछड़ी हुई है। परिणाम स्वरूप भारत में श्रमिक और भूमि की उत्पादकता नीची बनी हुई है। फल स्वरुप अधिकांश भारतीय किसान गरीबी की स्थिति में रहते हैं।

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4) निम्न साक्षरता दर:-                            भारत जैसे विशाल देश वाली जनसंख्या में बहुत कम लोगों को ही शिक्षा प्राप्त हो पाती है। समाज के पिछड़े वर्ग को ज्ञान के अभाव के कारण कम आय देने वाले कार्य करने पड़ते हैं। अनुसूचित जाति और जनजाति शहरी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में रोजगार के अवसरों में योगदान नहीं दे पाते क्योंकि उनके पास ऐसा करने के लिए आवश्यकता ज्ञान नहीं तथा कौशल का अभाव होता है।

5) बेरोजगारी का उच्च स्थान:-                भारत में दो प्रकार की गरीबी है पहली शहरी गरीबी और दूसरी ग्रामीण गरीबी भारत में ग्रामीण लोगों शहर में आकर रोजगार की तलाश में लग जाते हैं जिससे की शहरी लोगों के रोजगार अवसर कम हो जाते हैं तब लोग बेरोजगार हो जाते हैं और बेरोजगारी का स्तर बढ़ता जाता है जिससे कुछ स्थान बेरोजगारी को प्राप्त होता है।

6) ऋणगरस्तता का उच्च स्तर:-                 शहरी गरीबी या ग्रामीण गरीबी के ग्रस्त लोगों को अपनी आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ऋण लेने की जरूरत पड़ती है। यह ऋण उचित दर पर उधार लेने के लिए बाध्य होते हैं, इसलिए यह ऋण जाल में फस जाते हैं। ऐसी ऋणगरस्ता गरीबी का एक महत्वपूर्ण कारण है।

7) आय व संपत्ति में असमानता:-              भारत जैसे देश में अमीर और गरीब लोगों के बीच आय व संपत्ति में असमानता पाई जाती है, जोकि अमीर तथा गरीब के बीच की खाई को बढ़ा देती है, अमीरों के मुकाबले गरीबों की आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब होती है। जिसे अमीर से ऋण लेते हैं अपने जीवन की आर्थिक स्थिति को सुधारने की कोशिश करते हैं।

8) वस्तुओं व सेवाओं की बढ़ती कीमतें:-                   वस्तु व सेवाओं में बढ़ती कीमत विशेषकर खाधान्नों जैसे आवश्यकता है वस्तुओं की कीमत में होने वाली वृद्धि गरीब लोगों की आधारभूत आवश्यकता को पूरा करने में समस्या बन जाती है। निम्न स्तर के लोगों के रहन-सहन के स्तर में बहुत ही ज्यादा परिवर्तन आता है।

# निष्कर्ष

ऊपर दिए गए कारणों से यह स्पष्ट होता है कि समाज में दो दिनभर उत्पन्न होते हैं।वह जो उत्पादन के साधनों का स्वामित्व रखते हैं बहुत अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं अर्थात  अमीर वर्ग तथा दूसरी और वह जो अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए तथा अपनी आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कार्य करते हैं अर्थात गरीब वर्ग।

गरीबी की जो समस्या है हर किसी देश की अपनी-अपनी अलग-अलग रही है। भारतीय देश कीअगर हम बात करें तो यहां गरीबी का मुख्य कारण अशिक्षा रही है, लोगों की बढ़ती जनसंख्या, आपसी मतभेद, अमीर गरीब में असंतोष काफी सारे मुख्य कारण रहे। 

भारत जैसे विशाल देश में काफी सारी जनजातीय ,जातियां ,अनुसूचित जनजाति , है।  गरीबी को पूर्ण रूप में पूरा पूरा मौका मिला है, भारत जैसे देश में अपने पैर फैलाने का। 

भारत एक विकासशील देश है अपने लक्ष्य को पूरा करने में लगा हुआ है जोकि है विकसित होना आज नहीं तो कल भारत जैसा देश अपनी गरीबी रेखा से ऊपर उठकर विकसित देशों की गिनती में जरूर होगा, और हम भारत के नागरिक होने के नाते हमारा भी यह फर्ज होना चाहिए कि हम भारत देश को कैसे जल्दी से जल्दी विकसित देश में गिनती में लेकर आएं और अपनी गरीबी को दूर करें इसलिए हमें ज्यादा- ज्यादा जानकारी प्राप्त तथा कौशल पूर्ण नागरिक बनने की जरूरत है। 

भारत देश में गरीबी होने के मुख्य कारण और इसका समाधान (निबंध रूप में) | Reasons and Solutions of Poverty in India in Hindi (Essay)

सरलतम अवधि में गरीबी को एक सामाजिक स्थिति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जहां व्यक्तियों के पास जीवन के सबसे बुनियादी मानकों को पूरा करने के लिए वित्तीय साधन नहीं हैं जो समाज द्वारा स्वीकार्य हैं. गरीबी का अनुभव करने वाले व्यक्तियों के पास दैनिक जीवन की बुनियादी जरूरतों जैसे भोजन, कपड़े और आश्रय के लिए भुगतान करने का साधन नहीं है.

गरीबी लोगों को शिक्षा और स्वास्थ्य आवश्यकताओं जैसे कल्याण के बहुत जरूरी सामाजिक साधनों तक पहुंचने से रोकती है. इस समस्या से उपजी प्रत्यक्ष परिणाम भूख, कुपोषण और उन बीमारियों के प्रति संवेदनशीलता है जिनकी पहचान दुनिया भर में प्रमुख समस्याओं के रूप में की गई है. यह व्यक्तियों को सामाजिक-मनोवैज्ञानिक तरीके से प्रभावित करता है, क्योंकि वे सरल मनोरंजक गतिविधियों को वहन करने में सक्षम नहीं होते हैं और समाज में उत्तरोत्तर हाशिए पर पहुंच जाते हैं.

गरीबी शब्द का संबंध गरीबी रेखा / दहलीज की धारणा से है, जिसे आमदनी के उस न्यूनतम आंकड़े के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो किसी विशेष देश में पोषण, कपड़े और आश्रय की जरूरतों के मामले में सामाजिक रूप से स्वीकार्य गुणवत्ता बनाए रखने के लिए आवश्यक है. विश्व बैंक ने अपने अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा के आंकड़ों को अक्टूबर 2015 (प्रति वर्ष 2011-2012 में वस्तुओं की कीमतों के आधार पर) पर 1.90 अमरीकी डॉलर (123.5 रु) प्रति दिन, 1.5 अमरीकी डॉलर (81 रु.) से अद्यतन किया है. वर्तमान अर्थव्यवस्था के अनुसार दुनियाभर में रहने की लागत में संगठन का अनुमान है कि – “2012 में विश्व स्तर पर केवल 900 मिलियन से अधिक लोग इस लाइन के तहत रहते थे (नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर) और हम यह अनुमान लगाते हैं कि 2015 में 700 मिलियन से अधिक लोग अत्यधिक गरीबी में जी रहे हैं.”

संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे आर्थिक रूप से स्थिर देशों में भी गरीबी की चिंता के कारण यह एक विश्वव्यापी समस्या है. वर्तमान आंकड़े बताते हैं कि दुनिया में आधी आबादी लगभग 3 बिलियन लोग, प्रति दिन 2.5 डॉलर से कम पर जीने के लिए मजबूर हैं. भारत में 2014 की सरकारी रिपोर्टों के अनुसार मासिक प्रति व्यक्ति खपत/व्यय ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति 972 रु और शहरी क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति 1407 हैं. यह डेटा वर्तमान में देश की गरीबी सीमा के रूप में स्वीकार किया जा रहा है. 2015 तक एशियाई विकास बैंक के आंकड़ों के अनुसार, कुल आबादी का 21.9% राष्ट्रीय गरीबी सीमा से नीचे रहता है जो कि 269.7 मिलियन व्यक्तियों के पास पर्याप्त धन नहीं है.

भारत में गरीबी के कारण (Reasons of Poverty in India)

देश में गरीबी की लगातार समस्या में योगदान करने वाले कारक कई हैं और उन्हें ठीक से संबोधित करने के लिए पहचान की आवश्यकता है. उन्हें निम्नलिखित प्रमुखों के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है.

जनसंख्या

जनसंख्या की समस्या मुख्य कारक वह जो देश को गरीबी (Poverty in India) से ग्रस्त करने में योगदान देता है. देश में जनसंख्या की वृद्धि अब तक की अर्थव्यवस्था में वृद्धि से अधिक है और सकल परिणाम यह है कि गरीबी के आंकड़े कम या ज्यादा लगातार बने हुए हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में परिवारों का आकार बड़ा होता है और जो प्रति व्यक्ति आय मूल्यों को कम करने और अंततः जीवन स्तर को कम करने में तब्दील होता है. जनसंख्या वृद्धि के कारण भी बेरोजगारी पैदा होती है और इसका मतलब है कि रोजगार के लिए मजदूरी से बाहर निकलना आय को कम करता है.

गरीब कृषि अवसंरचना

कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है लेकिन पुरानी कृषि पद्धतियों, सिंचाई के बुनियादी ढांचे की कमी और यहां तक ​​कि फसल की देखभाल के औपचारिक ज्ञान की कमी ने इस क्षेत्र में उत्पादकता को काफी प्रभावित किया है. एक परिणाम के रूप में अतिरेक है और कभी-कभी काम की कमी के कारण मजदूरी में कमी आती है जो कि एक मजदूर के परिवार की दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए अपर्याप्त है जो उन्हें गरीबी में डुबो देता है.

परिसंपत्तियों का असमान वितरण

अर्थव्यवस्था तेजी से दिशा बदल रही है, विभिन्न आर्थिक आय समूहों में आय संरचना अलग-अलग रूप से विकसित होती है. ऊपरी और मध्यम आय वर्ग कम आय वर्ग की तुलना में आय में तेजी से वृद्धि देखते हैं. साथ ही जमीन, मवेशी के साथ-साथ रियल्टी जैसी संपत्तियों को आबादी के बीच असमान रूप से वितरित किया जाता है, जो समाज के अन्य क्षेत्रों की तुलना में बहुसंख्यक शेयरों के मालिक हैं और इन परिसंपत्तियों से उनका मुनाफा भी असमान रूप से वितरित किया जाता है. भारत में यह कहा जाता है कि देश में 80% धन केवल 20% जनसंख्या द्वारा नियंत्रित किया जाता है.

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बेरोजगारी

एक और प्रमुख आर्थिक कारक जो देश में गरीबी का कारण है, बढ़ती बेरोजगारी दर है. भारत में बेरोजगारी दर अधिक है और 2015 के सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार अखिल भारतीय स्तर पर, 77% परिवारों के पास आय का एक नियमित स्रोत नहीं है.

मुद्रास्फीति और मूल्य वृद्धि

मुद्रा शब्द की खरीद के मूल्य में गिरावट के साथ आने वाली वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि के रूप में परिभाषित किया जा सकता है. मुद्रास्फीति के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में, भोजन की प्रभावी कीमत, कपड़ों की वस्तुओं के साथ-साथ अचल संपत्ति बढ़ती है. प्रति व्यक्ति आय के प्रभावी घटने के लिए जिंसों की बढ़ी हुई कीमतों को ध्यान में रखते हुए वेतन और मजदूरी में वृद्धि नहीं होती है.

दोषपूर्ण आर्थिक उदारीकरण

1991 में भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए एलपीजी (उदारीकरण-निजीकरण-वैश्वीकरण) के प्रयासों को विदेशी निवेशों को आमंत्रित करने के लिए अर्थव्यवस्था को अंतर्राष्ट्रीय बाजार-रुझानों के अधिक अनुकूल बनाने की दिशा में निर्देशित किया गया था. अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में कुछ हद तक सफल, आर्थिक सुधारों का धन वितरण परिदृश्य को बढ़ाने पर हानिकारक प्रभाव पड़ा. अमीर अमीर हो गया जबकि गरीब, गरीब बना रहा.

शिक्षा और अशिक्षा

शिक्षा, बल्कि इसकी कमी और गरीबी एक दुष्चक्र है जो देश को त्रस्त करती है. अपने बच्चों को खिलाने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं होने के कारण, गरीब शिक्षा को तुच्छ मानते हैं, बच्चों को तरजीह देने के बजाय परिवार की आय में योगदान देना शुरू करते हैं. दूसरी ओर, शिक्षा की कमी और अशिक्षा व्यक्तियों को बेहतर भुगतान वाली नौकरियों को प्राप्त करने से रोकती है और वे न्यूनतम मजदूरी की पेशकश करने वाले नौकरियों में फंस जाते हैं. जीवन की गुणवत्ता में सुधार बाधा बन जाता है और चक्र एक बार फिर से क्रिया में आ जाता है.

बहिष्कृत सामाजिक रीति-रिवाज

जातिप्रथा जैसे सामाजिक रीति-रिवाज समाज के कुछ वर्गों के अलगाव और हाशिए का कारण बनते हैं. कुछ जातियों को अभी भी अछूत माना जाता है और उच्च जाति द्वारा नियोजित नहीं किया जाता है, जिससे बहुत विशिष्ट और निम्न भुगतान वाली नौकरियों को छोड़ दिया जाता है ताकि वे जीवित रह सकें. अर्थशास्त्री के. वी. वर्गीस ने बहुत ही स्पष्ट भाषा में इस समस्या को सामने रखा, “जाति व्यवस्था ने वर्गीय शोषण के लिए एक स्प्रिंगबोर्ड के रूप में काम किया, जिसके परिणामस्वरूप बहुतों की गरीबी का प्रतिकार कुछ लोगों की पसंद है.

कुशल श्रम की कमी

पर्याप्त व्यावसायिक प्रशिक्षण की कमी भारत में उपलब्ध विशाल श्रम शक्ति को काफी हद तक अकुशल बनाती है, जो अधिकतम आर्थिक मूल्य की पेशकश के लिए अनुपयुक्त है. शिक्षा का अभाव, बहुत कम उच्च शिक्षा, भी इसके प्रति योगदान कारक है.

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लैंगिक असमानता

महिलाओं के साथ कमजोर स्थिति गहरी जड़ें वाले सामाजिक हाशिए और घरेलूता की लंबे समय से अंतर्निहित धारणाएं काम करने में असमर्थ देश की आबादी का लगभग 50% प्रदान करती हैं. परिणामस्वरूप परिवार की महिलाएं उन आश्रितों की संख्या में इजाफा करती हैं, जिन्हें परिवार की आय में कमी के कारण पारिवारिक आय में काफी योगदान देने में सक्षम होने के बजाय खिलाया जाना चाहिए.

भ्रष्टाचार

गरीबी की स्थिति को शांत करने के लिए विभिन्न योजनाओं के रूप में सरकार के काफी प्रयासों के बावजूद देश में भ्रष्टाचार की व्यापक प्रथाओं के कारण, वास्तव में केवल 30-35% लाभार्थियों तक पहुंचता है. विशेषाधिकार प्राप्त कनेक्शन वाले अमीर लोग सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देकर अधिक से अधिक संपत्ति हासिल करने में सक्षम होते हैं, ताकि वे ऐसी योजनाओं से अपना मुनाफा बढ़ा सकें, जबकि गरीब ऐसे कनेक्शनों का दावा करने में सक्षम नहीं होने के कारण उपेक्षा की स्थिति में रहते हैं.

व्यक्तिगत

प्रयासों की व्यक्तिगत कमी भी गरीबी पैदा करने में योगदान करती है. कुछ लोग कड़ी मेहनत करने के लिए तैयार नहीं हैं या यहां तक ​​कि पूरी तरह से काम करने के लिए तैयार नहीं हैं, अपने परिवारों को गरीबी के अंधेरे में छोड़कर. पीने और जुए जैसे व्यक्तिगत राक्षसों से भी गरीबी को उकसाने वाली पारिवारिक आय की निकासी होती है.

राजनीतिक

भारत में सामाजिक-आर्थिक सुधार रणनीतियों को काफी हद तक राजनीतिक हित के द्वारा निर्देशित किया गया है और इसे समाज के एक ऐसे वर्ग की सेवा के लिए लागू किया गया है जो चुनावों में संभावित निर्णायक कारक है. नतीजतन इस मुद्दे को पूरी तरह से सुधार की बहुत गुंजाइश छोड़ कर संबोधित नहीं किया गया है.

जलवायु

भारत का अधिकतम भाग पूरे वर्ष एक उष्णकटिबंधीय जलवायु का अनुभव करता है जो उत्पादकता को कम करने के लिए अग्रणी कठिन श्रम श्रम के अनुकूल नहीं है और इसके परिणामस्वरूप मजदूरी भुगतनी पड़ती है.

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समाधान (Solution for Poverty in India)

भारत में गरीबी (Poverty in India) के दानव से लड़ने के लिए जो उपाय किए जाने चाहिए, वे नीचे दिए गए हैं: –

गरीबी का मुख्य कारण क्या है?

(उत्तर 100-125 शब्दों में दीजिए) Solution : भारत में गरीबी के मुख्य चार कारण है <br> (1) अत्यधिक जनसंख्या-भारत में विशाल जनसंख्या का होना गरीबी का सबसे मुख्य कारण है। देश में गरीबों की अधिक जनसंख्या है। <br> (ii) लचर शिक्षा व्यवस्था-शिक्षा के अभाव में विशाल जन-समूह को कार्य तथा रोजी की प्राप्ति नहीं होती।

गरीबी की समस्या क्या है?

भारत में गरीबी बहुत व्यापक है किन्तु बहुत तेजी से कम हो रही है। अनुमान है कि विश्व की सम्पूर्ण गरीब आबादी का तीसरा हिस्सा भारत में है। 2010 में विश्व बैंक ने सूचना दी कि भारत के 32.7% लोग रोज़ना की US$ 1.25 की अंतर्राष्ट्रीय ग़रीबी रेखा के नीचे रहते हैं और 68.7% लोग रोज़ना की US$ 2 से कम में गुज़ारा करते हैं।