गीता में मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है? - geeta mein mrtyu ke baad aatma ka kya hota hai?

मौत के बाद आत्मा को इतने दिनों में मिलता है नया शरीर

‘भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है ‘आत्मा अजर-अमर है जो केवल शरीर बदलती है. आत्मा को मारा नहीं जा सकता. जिस प्रकार पुराने कपड़ों को उतारकर मनुष्य नए कपड़ों को धारण करता है उसी तरह आत्मा भी एक समयावधि के बाद एक नया शरीर धारण करती है.’ लेकिन नए शरीर को धारण करने का अर्थ हमेशा इंसान के शरीर से नहीं है. बल्कि कर्मों और प्रकृति के अनुसार आत्मा को किसी भी योनि का शरीर प्राप्त हो सकता है.

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जीवन के बाद आत्मा खुद शरीर नहीं चुन सकती बल्कि नियति उसे किसी भी जीव के शरीर में प्रवेश करने का आदेश देती है. आत्मा का खुद को मिलने वाले नए शरीर पर बेशक वश न चलता हो लेकिन किसी इंसान की मौत हो जाने पर उसकी आत्मा कितने दिनों में दूसरा शरीर ग्रहण करेगी, ये सब बातें हिन्दू धर्म के कई वेद और पुराणों में वर्णित की गई है. आइए हम आपको बताते है आत्मा को दूसरा शरीर मिलने की अवधि से जुड़ा हुआ राज. वेदों के तत्वज्ञान को वेदांत कहते हैं. गीता उपनिषदों का सारतत्व है. इसमें वर्णित कथा के अनुसार किसी व्यक्ति की मौत होने पर आमतौर पर आत्मा तत्काल ही दूसरा शरीर धारण कर लेती है. लेकिन मनुष्य रूप में जीवन में किए गए विभिन्न कार्यों के आधार पर कभी-कभी आत्मा को दूसरा शरीर लेने के लिए लम्बी यात्रा करनी पड़ती है.

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जिनमें कुछ आत्माएं 3 दिनों के भीतर दूसरा शरीर धारण करती है इसलिए कई लोगों द्वारा इस मान्यता को मानते हुए ‘तीजा’ किया जाता है. कुछ आत्माएं 10 दिनों या 13 दिनों में दूसरा शरीर धारण करती है इसलिए 10वां और 13वीं मनाई जाती है. वहीं कुछ इंसान ऐसे भी होते हैं जिनकी मृत्यु दर्दनाक, समय से पूर्व या किसी इच्छा के अधूरे रह जाने के कारण से उनकी आत्माएं दूसरे शरीर में न जाने का हठ करने लगती है. इसलिए उन्हें दूसरा शरीर प्राप्त करने के लिए 37 या 40 दिन लगते हैं. वहीं अधिकतर लोग अपने किसी प्रियजन की मौत के एक साल बाद उनकी बरसी भी करते हैं. इसका अर्थ यह होता है कि अगर किसी कारणवश उनकी आत्मा प्रेत योनि में चली गई हो, तो उनकी आत्मा को उसी योनि में शांति मिले और वापस से उनकी आत्मा को यह कष्ट न उठाना पड़े…Next

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“ जातस्य ही ध्रुवो मृत्यु, ध्रुवम् जन्म मृतस्य च,
तस्माद् अपरिहार्येर्थे, न त्वम् शोचितुमर्हसि….. ” ( गीता 2-27 )


अगर आप भगवद्गीता पढ़े हो , तोह उसमे कई ऐसे बाते बताई गयी है जिसका सायंस के साथ भी कुछ सम्बन्ध बताता है , गीता में कलयुग कैसा रहेगा , कैसा होने वाला है ये हज़ारो सालो पहले बताया गया है , वैसे ही मृतयु के बारे में भी कई ऐसे चीजे है जिसका आज भी मानव के लिए रहस्य है।
गीता में लिखा गया है के ‘ आत्मा अविनाशी है । जिससे यह सर्व व्याप्त है, ईसे तू अविनाशी समझ । आत्मा कभी भी किसीकी हत्या नहीं करता और कोई आत्मा की हत्या नहीं कर सकता । जो यह आत्मा को हत्या करनेवाला, या कोई ईसकी हत्या कर सकता है, ऐसा माननेवाला अज्ञानी है । यह आत्मा की कभी जन्म नहीं होती और न ही उसकी मौत होती है । जन्म के पहेले आत्मा नहीं थी और मृत्यु के बाद आत्मा नहीं होगी ऐसा नहीं है । आत्मा अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है ।

मृत्यु क्या है ?

”आत्मा और शरीर का संबंध खत्म हो जाय, माने कि वे अलग हो जाय, तब शरीर की मृत्यु होती है । आत्मा अमर है, अर्थात् ईसकी मृत्यु तो होती ही नहीं, तो उसका शोक करना व्यर्थ है । शरीर की मृत्यु होती है, लेकिन वह तो नाशवंत है ही । उसका नाश कभी भी हो सकता है, वह निश्चित है, तो उसका शोक करना भी व्यर्थ है । ईसी लिए पंडित लोग मरे हुए या जिन्दा का शोक नहीं करते ।”

मृत्यु हमारे जीवन का अटल सत्य है यानि जिसने इस पृथ्वी लोक पर जन्म लिया है उसे एक ना एक दिन अवश्य ही इस लोक को छोड़ना पड़ेगा। भगवत गीता में श्री कृष्ण ने भी कहा है की आत्मा एक निश्चित समय के बाद एक शरीर को त्यागकर दूसरा शरीर धारण करती है। अर्थात शरीर तो नश्वर होता है जबकि आत्मा अमर होती है।


मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है ?

मित्रों अब आप ये सोच रहे होंगे की अगर आत्मा अमर है तो किसी की मृत्यु या फिर शरीर के नष्ट हो जाने के बाद आत्मा का क्या होता है? तो दोस्तों मैं आपको बता दूँ की मरने के बाद आत्मा के साथ क्या होता है इसका वर्णन हिन्दुओं के पवित्र पुराणों में एक गरुड़ पुराण में मिलता है जिसमे ये भी बताया गया है की मृत्यु के कितने दिनों बाद, आत्मा यमलोक पहुंचती है? और रास्ते में उसे किस तरह की यातनाओं का सामना करना पड़ता है।इस पूरी यात्रा में 47 दिन लगते हैं,तो क्या होता है इन 47 दिनों के लिए जीवात्मा के साथ।

गरुड़ पुराण में वर्णित कथा के अनुसार एक दिन भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ उनसे पूछते है की हे नारायण मैं ये जानना चाहता हूँ की मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है और वह जीवात्मा कितने दिनों के बाद यमलोक पहुंचती है। तब श्री हरि गरुड़ से कहते हैं की हे गरुड़ जब किसी जिव की मृत्यु होती है तब उसकी आत्मा 47 दिनों तक इधर उधर भटकने और कई यातनाओ को सहने के बाद यमलोक पहुंचती है। आगे वो कहते हैं की जब भी किसी जीव की मृत्यु नजदीक होती है तो सबसे पहले उसकी आवाज जाती है और जब अंतिम समय आता है, तो मरने वाले व्यक्ति को कुछ समय के लिए दिव्य दृष्टि मिलती है। इस दिव्य दृष्टि के मिलने के बाद, मनुष्य, सारे संसार को, एक रूप में देखने लगता है। उसकी सारी इंद्रियां शिथिल हो जाती हैं।

जिसके बाद मृत्यु के समय यमलोक से 2 यमदूत आते हैं। यमदूतों को देखते ही आत्मा डर से हा हा करने लगती है और शरीर से बाहर निकल जाती है। जैसे ही आत्मा शरीर को त्यागती है वैसे ही यमराज के दूत, जीवात्मा के गले में पाश बांध देते हैं और फिर वो उस जीवात्मा को लेकर यमलोक चले जाते हैं।

गरुड़ पुराण की माने तो अगर मरने वाली जीवात्मा पवित्र हो तो उसे परमात्मा खुद उसे अपने वाहन से लेने आते है। लेकिन अगर आत्मा पापी हो तो उसे गर्म वायु और अँधेरे के रास्ते से गुजरना पड़ता है। पापी आत्मा को यमलोक पहुँचने पर कई प्रकार की यातनाएं दी जाती है। फिर उसी दिन उस आत्मा को आकाश मार्ग से वापस उसी घर में छोड़ दिया जाता है जिस घर मे उसने अपना शरीर त्यागा था।

घर आकर वह जीवात्मा, अपने शरीर में, फिर से घुसने का प्रयास करती है लेकिन यमदूत के पाश से बंधे होने के कारण ऐसा नहीं कर पाती। आत्मा ना चाहते हुए भी अपनी अंतिम रस्मो को होते हुए अपनी आँखों से देखती है। यानि की बारह दिनों तक आत्मा अपनों के बिच ही रहती है। तेरहवें दिन जब आत्मा का पिंडदान किया जाता है तब उसे यमदूत एक बार फिर से लेने आ जाते हैं। इसीलिये दोस्तों हिन्दू धर्म में ऐसा माना जाता है की मनुष्य की मृत्यु के 10 दिन तक, पिंडदान ज़रुर करना चाहिए।

पिंडदान से, सूक्ष्म शरीर को चलने की शक्ति मिलती है। फिर भी इसके बाद आत्मा का यमलोक तक का सफर कठिन होता है। उसके बाद शुरू होती है वैतरणी नदी को पार करने की यात्रा। अगर मनुष्य जीते जी गौदान किया होगा तो उसी गाय की पूँछ पकड़कर वह वैतरणी नदी पार करता है। अन्यथा इस नदी को पार करते समय भी पापी जीवात्मा को कई यातनाओं से होकर गुजरना पड़ता है। गरुड़ पुराण में वैतरणी नदी को गंगा नदी का रौद्र रूप कहा गया है।

इस नदी से हमेशा आग की लपटें निकलती रहती है जिस कारणवश ये देखने में लाल दिखती है। इस नदी से गुजरते समय जीवात्मा को कई खतरनाक जीवों का दंश सहना पड़ता है। इस नदी से गुजरते समय आत्मा को ऐसा महसूस हो रहा होता है माना जैसे की कोई उसे इसमें डुबोना चाह रहे हो।

वैतरणी नदी पार करते समय उसे पीव से भी होकर गुजरना पड़ता है। इस तरह पापी जीवात्मा को इस नदी को पार करने में 47 दिन का समय लगता है उसके बाद जीवात्मा यमदूतों के साथ यमलोक पहुंच जाती है जहाँ उसे उसके करमों के अनुसार सजा भुगतने के लिए नर्क में भेज दिया जाता है।

इसलिए दोस्तों अगर आप मृत्यु के पश्चात् इस तरह के कष्टों को नहीं भोगना चाहते तो अपने जीवन काल में अच्छे कर्म करें क्यूंकि चाहे आप जिसके लिए भी जीवन भर बुरे कर्म करते हैं ये याद रखिये की मरने के बाद कष्टों को भोगने के लिए आपक के साथ वहां कोई नहीं होगा ।

गीता में मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है? - geeta mein mrtyu ke baad aatma ka kya hota hai?

ये तो हुआ गरुड़ पुराण के अनुसार अब देखते है भगवद्गीता के अनुसार मृत्यु बाद आत्मा का प्रवास –

मौत के बाद धरती से यमलोक कैसे पहुंचता है मनुष्य ?

जन्म लेना, जीवन व्यतीत करना और फिर अंत में मृत्यु, यह तो पृथ्वी लोक में बस रहे हर एक मनुष्य की कहानी है। जिसने जन्म लिया है उसने किसी ना किसी कारणवश वापस यमलोक जाना ही है। लेकिन कब और कैसे इस जानकारी से वंचित होता है मनुष्य। हर कोई जानना चाहता है कि आखिरकार वो कब और कैसे मरेगा। लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी है यह जानना कि मरने के बाद इंसान के साथ क्या होता है तथा उसकी आत्मा कहां जाती है?
विभिन्न धर्म ग्रंथों के अनुसार इंसान की मृत्यु के बाद यमराज उसकी आत्मा को यम लोक ले जाते हैं। लेकिन क्या सच में ऐसी कोई दुनिया अस्तित्व में मौजूद है या फिर यह महज मानवीय कहानियां है जिसे इंसान ने अपने मनोरंजन के लिए बनाया है। खैर यह तो आज तक विज्ञान भी पता नहीं कर पाया है कि आखिर मरने के बाद मनुष्य कहां जाता है


बेशक विज्ञान द्वारा जन्म तथा मृत्यु के बीच मानव शरीर की हर एक गतिविधि पर नियंत्रण पाने की क्षमता है, लेकिन मनुष्य के इस दुनिया से जाने के बाद वह कहां जाता है इसकी जानकारी विज्ञान भी नहीं ले पाया है।

परंतु ऐसे कई सवालों का जवाब धर्म ग्रंथों ने जरूर दिया है। यह जानकर आश्चर्य होता है कि कई हजार वर्षों पहले ही हिन्दू धर्म में सौरमण्डल की खोज कर ली गई थी।
जिस ब्रह्मांड को हजारों वर्षों बाद विज्ञान ने खोज निकाला उसे बहुत पहले ही हिन्दू धर्म में पा लिया गया था। दुनिया में पृथ्वी के अलावा अन्य काफी सारे ग्रह हैं इसकी खोज विज्ञान से काफी पहले धर्म ग्रंथों में कर दी गई थी। विभिन्न ग्रह, सूर्य, चंद्रमा, आदि का वर्णन संक्षेप रूप में हिन्दू धर्म ग्रंथों में किया गया है।
इन्हीं धर्म ग्रंथों के अनुसार इंसानी शरीर को विभिन्न तत्वों के रूप में विभाजित किया गया है। कहा जाता है कि पृथ्वी पर रह रहे जीवों का शरीर पंच महाभूतों से बना है, जिसमें पृथ्वी यानी कि भूमि, जल, वायु, अग्नि तथा आकाश शामिल हैं। मानव के शरीर में कुल 24 तत्वों का वास है जिनमें पंच महाभूत, पंच तन्मात्र, पंच ज्ञानेन्द्रियां, पंच कर्मेन्द्रियां तथा मन, बुद्धि, चित्त एवं अहंकार का मिश्रण होता है।
इसी तरह से धरती पर रह रहे मनुष्य के अलावा अन्य जीव जैसे कि पशु, पक्षी इत्यादि के भीतर मानव शरीर की तरह ही तत्व उपस्थित होते हैं। परन्तु इन जीवों में मनुष्य की तरह पंचमहाभूत नहीं होते हैं।
मानव शरीर से संबंधित एक और बात काफी आश्चर्यजनक है कि मानवीय शरीर चार प्रकार का होता है – पार्थिव शरीर, सूक्ष्म शरीर, लिंगम शरीर तथा कारण शरीर। इनमें पार्थिव शरीर प्रथम स्थान पर होता है, जिसे स्थूल शरीर भी कहा जाता है। स्थूल शरीर प्राणी की जीवित अवस्था है यानी कि जब तक मनुष्य के शरीर में आत्मा का वास है और उसकी श्वास चल रही हैं, उसका शरीर स्थूल शरीर कहलाता है
इसके बाद सूक्ष्म शरीर में पंच महाभूत नहीं होते हैं। यह शरीर पारदर्शी होता है यानी कि एक ऐसा शरीर जिसकी छाया नहीं पड़ती है। इस शरीर की आकृति तो स्थूल शरीर जैसी ही होती है लेकिन पंच महाभूतों की अनुपस्थिति के कारण यह शरीर हल्का होता है। परंतु इसमें शक्ति बहुत अधिक होती है
सूक्ष्म शरीर भूत-प्रेत आदि की देह होती है। सूक्ष्म शरीर वालों के लिए पृथ्वी जैसे ठोस ग्रहों पर निवास आवश्यक नहीं है। इस तरह का शरीर तो अंतरिक्ष में भी रह सकता है। केवल वही सूक्ष्मधारी पृथ्वी के आसपास रह सकते हैं, जिन्हें पुनर्जन्म लेना हो। यहां पुनर्जन्म से तात्पर्य केवल उसी मनुष्य के रूप में जन्म लेना नहीं है, बल्कि किसी भी मानवीय शरीर में जब दोबारा से पृथ्वी पर आना हो तो सूक्ष्म धारी पृथ्वी के निकट विचरण करते हैं।
परंतु वे अंतरिक्ष में एक निश्चित सीमा से आगे नहीं जा सकते हैं। कई बार सूक्ष्म धारक शरीर पृथ्वी पर स्थूल शरीर वाले मनुष्य से सम्पर्क भी करते हैं। अकसर हम ऐसे कहानियां सुनते हैं कि जब किसी मनुष्य ने किसी आत्मा या भूत-प्रेत से बात की हो या उसे देखा हो। इतना ही नहीं यह सूक्ष्मधारी शरीर किसी अन्य काया में प्रवेश करने की क्षमता भी रखते हैं
अब बारी है तीसरे प्रकार के शरीर की जो है लिंगम शरीर। लिंगम शरीर एक ऐसा शरीर है जिसमें मानव जाति के 24 तत्वों में से केवल 13 तत्व शामिल होते हैं। इस शरीर में पंच कर्मेन्द्रियाँ, पंच ज्ञानेन्द्रियां तथा मन, बुद्धि एवं अंहकार होता है। मान्यता है कि लिंगम शरीर का निवास चंद्रलोक में होता है।
हैरानी की बात तो यह है कि हमारा विज्ञान चंद्रमा ग्रह तक पहुंच तो गया है लेकिन अब तक वैज्ञानिकों को वहां मानव जीवन के चिन्ह नहीं मिले हैं। इसका कारण है लिंगम शरीर में स्थूल शरीर के तत्वों की अनुपस्थिति, जिस वजह से चाह कर भी वैज्ञानिक इस शरीर के चिन्हों को खोज नहीं पा रहे है
चौथे प्रकार का शरीर कारण शरीर कहलाता है। हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार इस प्रकार के शरीर का आकार मानव शरीर में मौजूद अंगूठे के समान होता है। मानव शरीर के इस पड़ाव तक आकर शरीर की अपनी अस्मिता खो जाती है और वह आत्मा में परिवर्तित हो जाता है। इसीलिए कारण शरीर का आकार केवल एक अंगूठे के समान बताया गया है
कारण शरीर का अपना कोई स्वरूप नहीं होता तो फिर उसकी आकृति का व्याख्यान करना असंभव है। इस शरीर में आने के बाद ही आत्मा दूरस्थ लोक-लोकान्तरों का परिभ्रमण करते हुए अंत में परमधाम ‘सूर्यलोक’ की ओर प्रस्थान करती है। इसके बाद आत्मा का परमात्मा में विलय हो जाता है।
जन्म तथा मरण की परिभाषाओं को लेकर ज्योतिष विज्ञान में भी कुछ आलेख किया गया है। यह बातें जीवन के चक्र को सौरमण्डल के ग्रहों से जोड़ती हैं। इस विज्ञान के अनुसार सूर्य को आत्मकारक कहा गया है और चंद्रमा को मन का कारक अमृतमय ग्रह कहा गया है। इसके अलावा बृहस्पति ग्रह को ज्ञान एवं जीवकारक कहा गया है और शनि को न्यायकर्ता, मृत्यु एवं आयु का कारक ग्रह कहा गया है
सनातन धर्म में एक प्रमुख पुराण की रचना की गयी है। यह है गरुड़ पुराण जिसमें प्रेत कर्म एवं मृत्यु का विवरण मिलता है। इस पुराण के अधिष्ठातृ देव भगवान विष्णु हैं। इस पुराण के अनुसार देहावसान के बाद स्थूल शरीर छूट जाने पर जीव कुछ क्षण के लिये कारण शरीर में निवास करता है। कारण शरीर में जाने के बाद एक से लेकर दो क्षण तक (जहां एक क्षण चार मिनट के बराबर होता है), मृत्यु के पूर्व प्रत्येक प्राणी को सर्वात्म दृष्टि प्राप्त हो जाती है। यह सर्वात्म दृष्टि सभी माया-मोह से मुक्त होती है परंतु स्थूल शरीर से कारण शरीर में जाने का यह परिर्वतन कुछ ही समय के लिए होता है। कारण शरीर की गति प्रकाश की गति की तरह होती है जिस कारण प्राणी की आत्मा शरीर से छूटते ही दो मुहूर्त में यमलोक पहुंच जाती है। यानी कि केवल दो मुहूर्त में ही जीव यमराज के पास पहुंच जाता है। यम लोक में पहुंचने के बाद प्राणी के कर्म-अकर्म की छानबीन होती है। आत्मा के मुक्त होने की कार्यविधि यहीं समाप्त नहीं होती है।
सूक्ष्म शरीर में प्रवेश करने के ठीक छह माह बाद जीव को लिंगम शरीर की प्राप्ति होती है। प्रत्येक शरीर के मिलने का गरुड़ पुराण में दिनों के हिसाब से वर्णन किया गया है जिसके अनुसार जीव की मृत्यु के 10 दिन में सूक्ष्म शरीर बनता है। जिसके पश्चात् 11वें दिन से जीव पुनः सूक्ष्म शरीर धारण कर पृथ्वी से बृहस्पति ग्रह तक यात्रा आरम्भ करता है। अर्थात् सूक्ष्म शरीर प्राप्त कर जीव दूसरी बार फिर से यमपुरी के लिये रवाना होता हैउस प्राणी के पाप तथा पुण्य का हिसाब लगाने के बाद अगले दो मुहूर्त में उसे यम लोक से अपने मृत-शरीर के पास वापस भेज दिया जाता है। परंतु उसे स्थूल शरीर में प्रवेश करने की आज्ञा नहीं होती है। इसके बाद वह सूक्ष्म शरीर में प्रवेश करता है। एक ऐसा शरीर जिसका वास्तव में कोई स्थान नहीं है लेकिन कुछ शक्तियां जरूर हैं जिसकी सहायता से वह मानव जाति से सम्पर्क साध सकता है सूक्ष्म शरीर में प्रवेश करने के ठीक छह माह बाद जीव को लिंगम शरीर की प्राप्ति होती है। प्रत्येक शरीर के मिलने का गरुड़ पुराण में दिनों के हिसाब से वर्णन किया गया है जिसके अनुसार जीव की मृत्यु के 10 दिन में सूक्ष्म शरीर बनता है। जिसके पश्चात् 11वें दिन से जीव पुनः सूक्ष्म शरीर धारण कर पृथ्वी से बृहस्पति ग्रह तक यात्रा आरम्भ करता है। अर्थात् सूक्ष्म शरीर प्राप्त कर जीव दूसरी बार फिर से यमपुरी के लिये रवाना होता है
इस बार उसे वहां तक जाने में एक वर्ष लग जाता है। पहली बार जीव कारण शरीर में प्रकाश की गति से गया था, दूसरी बार वह सूक्ष्म शरीर में चलता है और मार्ग में उसे अंतरिक्ष की अठारह सूक्ष्म पुरियों में विश्राम लेना पड़ता है। इस यात्रा के एक वर्ष में छः माह तक जीव सूक्ष्म शरीर में रहता है जिस कारण उसकी गति धीमी पड़ जाती है

सारांश


जीव के लिए रास्ते में कुल छह ठहराव निश्चित किए गए हैं जहां वह अपने पूर्वार्जित पुण्य कर्म का भोग करता है। इस बीच जीव को एक वैतरणी नदी पार करनी होती है जिसे लांघने के बाद ही उसे लिंगम् शरीर की प्राप्ति होती है। इस शरीर में वह बृहस्पति ग्रह तक जाता है। बृहस्पति ग्रह से आगे बढ़ते हुए जीव को दोबारा से कारण शरीर मिलता है गरुड़ पुराण में यमलोक की तस्वीर भी जाहिर की गई है। बताया गया है कि यमपुरी के बाहर एक विशाल घेरा बना हुआ है। यह घेरा शनि ग्रह के चारों ओर कोहरे के रूप में दिखाई पड़ता है। इस स्थान पर रहने वाले जीव कारण शरीर धारक हैं। कारण शरीर की अवस्था प्रकाश-पुंज है इसीलिए यह प्रकाश किरणों के रूप में हमें दृष्टिगत हो सकती है आज के समय में जिस प्रकार से विज्ञान भी इन ग्रहों की तस्वीर हमें प्रदान कर रहा है वह बेशक सही है लेकिन वहां मौजूद मानव शरीर के अस्तित्व का पता लगाने में आज भी असमर्थ है विज्ञान। इसमें विज्ञान की कोई गलती नहीं है क्योंकि जिस अवस्था में जीव वहां मौजूद हैं उस शक्ति को साधारण मनुष्य द्वारा पहचान किया जा पाना कठिन है क्योंकि इन्हें पहचानने के लिए एक खास तरह की शक्ति की अवश्यकता है.

गीता के अनुसार मरने के बाद क्या होता है?

गीता 8/16।। अर्थ : हे अर्जुन! ब्रह्म लोक सहित सभी लोक पुनरावृति हैं, परंतु हे कौन्तेय, मुझे प्राप्त होने वाले का पुनर्जन्म नहीं होता। व्याख्या : मृत्यु के बाद जीवात्मा कुछ काल के लिए अपने शुभ-अशुभ कर्मों के आधार पर किसी न किसी लोक में वास करती है, यदि पाप ज्यादा हैं तो नरक लोक और यदि पुण्य ज्यादा हैं तो स्वर्ग लोक।

गीता के अनुसार मृत्यु क्या है?

ठीक इसके विपरीत अपनी आयु पूर्ण कर लेने के उपरांत आत्मा का जीर्ण-शीर्ण मरणधर्मा शरीर के त्याग को ही मृत्यु कहते हैं। वेद भगवान ने भी 'मृत्युरीशे' कहकर स्पष्ट कर दिया कि मृत्यु अवश्यंभावी है तो मृत्यु पर विजय कैसे प्राप्त की जा सकती है।

मरते समय गीता का कौनसा अध्याय सुनाया जाता है?

जैसे गीता के आठवें अध्याय के छठे श्लोक का अर्थ किया जाता है कि 'यह मनुष्य अंतकाल में जिस-जिस भी भाव का स्मरण करता हुआ शरीर त्याग करता है, वह उस उसको ही प्राप्त होता है क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित है।

भगवत गीता में आत्मा को क्या बताया गया है?

गीता में श्रीकृष्ण ने आत्मा को अमर और अविनाशी बताया है जिसे न शस्त्र कट सकता है, पानी इसे गला नहीं सकता, अग्नि इसे जल नहीं सकती, वायु इसे सोख नहीं सकती। यह तो ऐसा जीव है जो व्यक्ति के कर्मफल के अनुसार एक शरीर से दूसरे शरीर में भटकता रहता है।