Show
''भगत सिंह की फांसी रुकवाने के लिए महात्मा गांधी ने नहीं की कोशिश''-झूठा है दावामहात्मा गांधी ने वाइसरॉय लॉर्ड इरविन से एक नहीं कई बार Bhagat Singh की फांसी पर पुनिर्विचार करने का आग्रह कियाPublished: 23 Mar 2022, 6:25 PM IST i 91 साल पहले 23 मार्च 1931 को शहीद-ए-आजम भगत सिंह (Bhagat Singh) को फांसी दी गई थी. भगत सिंह की फांसी को लेकर एक दावा हमेशा से किया जाता रहा है कि महात्मा गांधी ने उनकी फांसी रोकने के लिए कोई प्रयास नहीं किया. हालांकि, ये दावा सच नहीं है, ऐसे कई दस्तावेज सार्वजनिक हो चुके हैं जिनसे पुष्टि होती है कि महात्मा गांधी ने ब्रिटिश हुकूमत से एक नहीं कई बार भगत सिंह की फांसी रुकवाने का आग्रह किया था. ऐतिहासिक दस्तावेजों से पता चलता है कि गांधी ने वाइसरॉय लॉर्ड इरविन से न सिर्फ दो बार भगत सिंह की फांसी स्थगित करने का आग्रह किया. बल्कि 23 मार्च, 1931 को एक पत्र लिखकर फांसी पर एक बार फिर विचार करने को भी कहा था. दावाआए दिन सोशल मीडिया पर एक खास नैरेटिव फैलाने के लिए ये दावा किया जाता है.
पोस्ट का अर्काइव यहां देखें फोटो : स्क्रीनशॉट/फेसबुक भगत सिंह की फांसी रोकने के लिए महात्मा गांधी ने कुछ नहीं किया?ये दावा बिल्कुल निराधार है कि महात्मा गांधी ने भगत सिंह की फांसी रुकवाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया. mkgandhi.org पर महात्मा गांधी की लॉर्ड इरविन से कई चरणों में हुई उस बातचीत का जिक्र है, जिसमें उन्होंने भगत सिंह की फांसी को लेकर लॉर्ड इरविन से चर्चा की थी. इतिहास के स्कॉलर चंदरपाल सिंह ने किताब Gandhi Marg, Vol. 32 के हवाले से बताया है कि गांधी और इरविन के बीच 17 फरवरी से 5 मार्च, 1931 के बीच दिल्ली /इरविन पैक्ट को लेकर बातचीत हुई. बातचीत से पहले महात्मा गांधी ने ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं दिया था कि वो भगत सिंह की फांसी को लेकर बात करेंगे. महात्मा गांधी ने 18 फरवरी को वाइसरॉय इरविन के सामने भगत सिंह का मुद्दा उठाया. महात्मा गांधी यंग इंडिया में लिखते हैं भगत सिंह के बारे में बात करते हुए मैंने उनसे (लॉर्ड इरविन से) कहा 'इसका हमारी वर्तमान बातचीत से कोई संबंध नहीं, हो सकता है ये मेरी तरफ से थोड़ी अनुपयुक्त बातचीत लगे. पर अगर आप इस माहौल को उचित समझें तो भगत सिंह की फांसी आपको स्थगित कर देनी चाहिए.' वाइसरॉय को ये बात बहुत अच्छी लगी. उन्होंने कहा 'मुझे अच्छा लगा कि आपने ये बात मेरे सामने इस तरह से रखी. सजा का वापस लेना एक मुश्किल बात हो सकती है, लेकिन फांसी स्थगित करने पर विचार किया जा सकता है हालांकि, अब यहां ये सवाल उठ सकता है कि क्या गांधी सिर्फ भगत सिंह की फांसी स्थगित करने को लेकर प्रयास कर रहे थे? फांसी रुकवाने के लिए नहीं? इसका जवाब भी चंदरपाल सिंह के इस रिसर्च पेपर में मिलता है. कानूनी तौर पर पीवी काउंसिल के फैसले के बाद वाइसरॉय की तरफ से फांसी रोका जाना संभव नहीं था. कांग्रेस पहले ही इसकी कानूनी संभावना तलाश चुकी थी. 29 अप्रैल, 1931 को विजय राघवचारी को लिखे पत्र में महात्मा गांधी ने स्वीकारा कि ''कानूनविद तेज बहादुर ने वाइसरॉय से इस बात पर चर्चा की है कि फांसी रोके जाने की कोई कानूनी संभावना है या नहीं, पर ऐसी कोई संभावना नहीं है.'' इन तथ्यों से यही समझ आता है कि गांधी ये जान चुके थे कि कानूनी तौर पर पीवी काउंसिल के फैसले के बाद वाइसरॉय फांसी की सजा को पूरी तरह रोक नहीं सकते. इसलिए गांधी ने फांसी रोकने की जगह फांसी को स्थगित (पोस्टपोन) करने पर जोर दिया. महात्मा गांधी ने भगत सिंह की फांसी का मुद्दा दूसरी बार तब उठाया जब उनकी 19 मार्च को इरविन से पैक्ट के नोटिफिकेशन को लेकर मुलाकात हुई. इरविन ने इस बातचीत को नोट भी किया था और बाद में वो कारण गिनाए कि गांधी के आग्रह के बाद भी उन्होंने भगत सिंह की फांसी स्थगित करने का फैसला क्यों नहीं लिया. 23 मार्च को भी गांधी ने इरविन को लिखा था पत्रवैसे तो भगत सिंह को फांसी 24 मार्च, 1931 को होनी थी. लेकिन, ब्रिटिश हुकूमत ने एक दिन पहले ही 23 मार्च को उन्हें फांसी दे दी थी. महात्मा गांधी ने फांसी की निर्धारित तारीख 24 मार्च से ठीक एक दिन पहले यानी 23 मार्च, 1931 को लॉर्ड इरविन को पत्र लिखकर भगत सिंह की फांसी रोकने की दरख्वास्त की थी. इस पत्र में गांधी लिखते हैं कि
कांग्रेस ने की थी भगत सिंह की फांसी के बाद निंदाकांग्रेस नेता, सेना अधिकारी और राजनीतिक विश्लेषक प्रवीण दवर का लेख हमें मिला, जिसमें उन्होंने तथ्यों के जरिए स्पष्ट किया है कि किस तरह कांग्रेस में भी भगत सिंह की फांसी को लेकर नाराजगी थी. प्रवीण के मुताबिक, कांग्रेस के अधिवेषण में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक प्रस्ताव पास किया गया, जिसका मदन मोहन मालवीय ने भी समर्थन किया था. कुलदीप नैयर की किताब The Life and Trial of Bhagat Singh के मुताबिक महात्मा गांधी ने इस प्रस्ताव के लिए नेहरू को चुना, क्योंकि गांधी का मानना था कि युवाओं में वो ज्यादा लोकप्रिय हैं. भगत सिंह की फांसी के बाद कांग्रेस अधिवेषण में पेश किया गया प्रस्ताव कुछ यूं था. ''कांग्रेस किसी भी रूप में राजनीतिक हिंसा से खुद को अलग और अस्वीकार करते हुए, स्वर्गीय सरदार भगत सिंह और उनके साथियों, सुखदेव और राजगुरु की बहादुरी और बलिदान के साथ है, साथ ही उनके परिवारों के साथ शोक व्यक्त करती है. कांग्रेस की राय है कि ये तीन फांसियां राष्ट्र की मांग का जानबूझकर किया गया उल्लंघन हैं.'' साफ है - सोशल मीडिया पर फैलाया जा रहा ये नैरेटिव सही नहीं है कि महात्मा गांधी ने भगत सिंह की फोंसी को रोकने के लिए कोई प्रयास नहीं किया. (हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां) गांधी जी ने भगत सिंह को फांसी से क्यों नहीं बचाया?महात्मा गांधी ने कहा- चाहे वो कोई भी हो, उसे सजा देना मेरे अहिंसा धर्म के खिलाफ है, तो मैं भगत सिंह को बचाना नहीं चाहता था, ऐसा शक करने की कोई वजह नहीं हो सकती है. महात्मा गांधी ने कहा- 'मैंने फांसी को रोकने की हर मुमकिन कोशिश की, कई मुलाकातें कीं, 23 मार्च को चिट्ठी भी लिखी, लेकिन मेरी हर कोशिश बेकार हुई.
क्या महात्मा गांधी भगत सिंह की फांसी रुकवा सकते थे?शहीद भगत सिंह उग्र विचारधारा के क्रांतिकारी थे और महात्मा गांधी शांति और अहिंसा के पक्षधर। शहीद भगत सिंह की फांसी को लेकर देश में अलग-अलग मत है। कुछ लोगों का मानना है कि अगर गांधी जी चाहते तो भगत सिंह की फांसी रुकवा सकते थे। लेकिन उन्होंने फांसी रुकवाने के लिए कोई प्रयास ही नहीं किए।
गांधी ने भगत सिंह की मौत को क्यों नहीं रोका?भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी की सजा को रुकवाने को पूर्व शर्त बना देनी चाहिए थी, लेकिन यह स्पष्ट रूप से गांधी-इरविन समझौते में था कि हिंसक क्रांतिकारी गतिविधियों में जो लोग शामिल हैं, उन्हें नहीं छोड़ा जाएगा। जो अहिंसक सत्याग्रही थे, गांधी-इरविन समझौते के तहत ऐसे करीब 90 हज़ार राजनीतिक कैदियों की रिहाई हुई।
भगत सिंह को 1 दिन पहले फांसी क्यों दी गई?उन्हें लाहौर षड़यंत्र के आरोप में फांसी की सजा सुनाई गई थी। लेकिन क्या आपको पता है कि इन तीनों शहीदों की मौत भी अंग्रेजी हुकूमत का षड़यंत्र था? भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी 24 मार्च को देना तय था लेकिन अंग्रेजों ने एक दिन पहले ही यानी 23 मार्च को भारत के तीनों सपूतों को फांसी पर लटका दिया।
|