5- कविता की अंतिम 12 पंक्तियों को पढ़कर कल्पना कीजिए कि कवि अपनी किस स्थिति व मनःस्थिति को अपने परिजनों से छिपाना चाहता है?उत्तर- कवि सावन के माध्यम से संदेश भेजकर अपनी मनःस्थिति को अपने परिजनों से छिपाना चाहता है। वह सावन से कहता है कि कारावास की वास्तविक स्थिति का घर जाकर वर्णन मत करना। उन्हें यह मत बताना कि मैं सारी सारी रात जागता रहता हूँ। यहाँ के प्रत्येक व्यक्ति अलगरहता हूँ। यह भी मत कह देना कि मैं एकदम चुप रहता हूँ, किसी से बात तक नहीं करता हूँ। मेरी मानसिक स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि मैंअपने आपको भी नहीं पहचान पा रहा हूँ। अंत में कहता है कि कोई ऐसी बात मत बोल देना जिनसे परिवार के सदस्यों को कोई संदेह हो जाए। भवानी प्रसाद मिश्र हिन्दी के बहुत ही प्रसिद्ध कवियों में से एक थे। वो दूसरे तार – सप्तक के एक प्रमुख कवि हैं।उनका जन्म 29 मार्च 1913 ई को होशंगाबाद, मध्य प्रदेश के टिगरिया गाँव में हुआ था। Show
उनकी प्रारम्भिक शिक्षा सोहागपुर, होशंगाबाद , नरसिंहपुर एवं जबलपुर में हुई। आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने हिन्दी, अँग्रेजी एवं संस्कृत चुना और बी.ए. की पढ़ाई पूरी की । बाद में उन्होंने एक स्कूल खोल लिया। वो एक गांधीवादी विचारक थे इसलिए उनके संस्कार, विचार, कार्य सब गांधीवादी थे। उनके गांधीवाद की झलक उनकी कविताओं में स्वच्छंदता और नैतिकता के रूप में देखी जा सकती है। 1942 में उनको गिरफ्तार कर लिया गया उन्होंने सात वर्ष जेल में बिताए और 1949 में जेल से बाहर आए। उसके बाद चार-पाँच साल उन्होंने महिलाश्रम वर्धा में शिक्षक के तौर पर बिताए। नियमित रूप से उन्होंने कविताएं लिखना लगभग 1930 ई से प्रारम्भ किया। ‘कर्मवीर’ , ‘हंस’, ‘दूसरा सप्तक ‘ में उनकी कवितायें प्रकाशित होने लगीं। उनका प्रथम संग्रह था ‘ गीत फ़रोश ‘ जो कि अत्यन्त लोकप्रिय रहा और उस लोकप्रियता का कारण रहा उसकी नयी शैली और नया पाठ-प्रवाह। ‘चकित है दुःख’ ‘गांधी पंचशती’ ‘बुनी हुई रस्सी’ ‘तुम आते हो’ ‘त्रिकाल संध्या’ आदि उनकी प्रमुख रचनाएँ थीं। 1972 में उन्हें ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ दिया गया। 1981 में उन्हें उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का ‘साहित्यकार सम्मान’ दिया गया। 1983 में उन्हें ‘शिखर सम्मान’ दिया गया। उन्होंने चित्रपट के लिए संवाद लेखन एवं संवाद निर्देशन का काम भी किया। वे आकाशवाणी के प्रोड्यूसर भी हुए। बाद में वे दिल्ली भी गए और उन्होंने आकाशवाणी में काम किया । 1985 ई में परिवारजनों के बीच मध्य प्रदेश में उनकी मृत्यु हो गयी। ‘घर की याद’ कविता का सारांश– Ghar Ki Yaad Poem Summaryप्रस्तुत कविता कवि भवानी प्रसाद मिश्र द्वारा लिखी गयी है। यह कविता उन्होंने अपने जेल प्रवास के दौरान लिखी थी। सन 1942 में जब वो ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में शामिल हुए थे तब उन्हें गिरफ्तार कर के तीन साल के लिए जेल में डाल दिया गया था। इसी दौरान सावन के मौसम में एक रात बहुत तेज़ बारिश होती है और कवि को अपने घर और परिवार की बहुत याद आती है। वो अपने घर से दूर हैं और उसे याद कर रहे हैं। उन्हें अपनी माता-पिता की चिंता सता रही है कि वो पुत्र वियोग में तड़प रहे होंगे और किसी अनहोनी की आशंका से दुःखी हो रहे होंगे। भवानी जी उनको सांत्वना देने के लिए बारिश के माध्यम से उनको झूठा संदेश भेजते हैं। वे कहते हैं कि वे कुशल हैं ताकि यह सुनकर उनके माता-पिता को सांत्वना मिल सके। कवि अपनी बहन को याद करता है कि वो मायके आयी होगी। अपनी अनपढ़ माँ को याद कर के सोचता है कि वो तो पत्र भी नहीं लिख सकती। कवि अपने पिता को याद करता है कि वो बुढ़ापे से बिलकुल दूर हैं। न शेर से डरते हैं न मौत से। दौड़ते हैं खिलखिलाते हैं और उनकी आवाज़ आज भी बहुत ही रौबदार है। कवि बारिश से कहता है कि तुम खूब बरसो और बरस बरस के मेरे माता-पिता को मेरी कुशलता का संदेश दो , उनसे कहो कि मैं स्वस्थ हूँ खुश हूँ। उन्हें मेरे दुःख और निराशा का आभास न होने देना। इस प्रकार इस कविता में घर से जुड़ी यादों और भावनाओं का वर्णन किया गया है। घर की याद कविता- Ghar Ki Yaad Poemआज पानी गिर रहा है, ‘घर की याद’ कविता की व्याख्या– Ghar Ki Yaad Poem Line by Line Explanationआज पानी गिर रहा है, बहुत पानी गिर रहा है, घर कि घर में चार भाई, घर कि घर में सब जुड़े है, कवि कहता है कि आज बहुत बारिश हो रही है। रात भर बहुत बारिश हुई है। और उसे देख कर मेरा मन घर की यादों से घिर गया है। मेरी नज़रों के सामने घर की यादें तैर रही हैं। घर मुझसे बहुत दूर है पर वह घर खुशियों से भरा हुआ है। घर में चार भाई हैं , बहन भी मायके आयी होगी और आकर दुखी हुई होगी क्योंकि उसका एक भाई जेल में कैद है। घर में सब कितने प्यार से जुड़े होंगे। चार भाई और चार बहनें कितने प्यार से होंगे। चार भाई बालिष्ट भुजाओं के समान हैं और चारों बहनें प्यार का प्रतीक हैं। और माँ बिन-पढ़ी मेरी, माँ कि जिसकी स्नेह-धारा, पिताजी जिनको बुढ़ापा, मौत के आगे न हिचकें, घर की याद व्याख्या: कवि अपनी माँ को याद कर रहा है । वो कहता है कि मेरी माँ अनपढ़ है, दुःखों में ही उसका जीवन बीता है। उस माँ के गोद में सर रख के संसार के सारे दुःख समाप्त हो जाते हैं। उसकी माँ का स्नेह इतना व्यापक है कि इतना दूर होते हुए भी वह माँ की ममता को महसूस कर सकता है। अगर उसे लिखना आता तो वह अपने पुत्र के लिए पत्र अवश्य लिखती । पर उसे लिखना पढ़ना नहीं आता इसलिए कवि माँ के पत्र से वंचित रहता है। कवि अपने पिता को याद कर रहा है । वो कहता है कि उसके पिता बुढ़ापे से बिलकुल दूर हैं। उनको एक पल को बुढ़ापा नहीं आया। वो अभी भी बिलकुल स्वस्थ हैं और दौड़ लगाने में सक्षम हैं और खिलखिलाते रहते हैं। कवि के पिता बहुत साहसी हैं, वो न तो मौत से डरते हैं न ही शेर से , उनके स्वर में बादलों जैसी गर्जना है और उनके काम तूफान से भी तेज़ हैं। आज गीता पाठ करके, जब कि नीचे आए होंगे, चार भाई चार बहिनें, पिताजी जिनको बुढ़ापा, चारों भाई और चारों बहनों को साथ देखा होगा उन्होंने , जिस पिताजी को एक पल भी बुढ़ापा नहीं आया वो अपने पांचवे पुत्र को याद कर के रो पड़े होंगे। पाँचवाँ हूँ मैं अभागा, आज उनके स्वर्ण बेटे, और माँ ने कहा होगा, वह तुम्हारा मन समझकर, पाँव जो पीछे हटाता, तुम्हारा ही तो बेटा है तुमपर ही गया है। तुम्हारी ईक्षाओं का सम्मान करता है , तुम्हारे ही तो संस्कार हैं उसमें। गया है तो अच्छा ही है , अगर पीछे मुड़ जाता तो मेरी कोख का अपमान करता । ऐसे आँसू मत बहाओ , अगर तुम ऐसे कमजोर पड़ जाओगे तो बच्चों को कौन संभालेगा , वे भी रो पड़ेंगे। पिताजी ने कहा होगा, हे सजीले हरे सावन, मैं मज़े में हूँ सही है, घर की याद व्याख्या: इन पंक्तियों में कवि कहता है कि पिताजी ने सारे आंसुओं में समेट कर कहा होगा कि मैं कहाँ रो रहा हूँ मैं तो बिलकुल ठीक हूँ । कवि सावन को संबोधित करते हुए कहता है कि तुम स्वयं चाहे जितना बरस लो पर उनकी आँखों में आँसू न आने देना और ध्यान रखना कि वो अपने पांचवे पुत्र को याद कर के दुःखी न हों । उनको बताना कि मैं घर से दूर हूँ पर सुख से हूँ मजे में हूँ। वैसे यह दुःख छोटा दिखता है पर असल में ये तो बहुत ही बड़ा दुख है इसके कारण सब नीरस लगता है। किन्तु उनसे यह न कहना, काम करता हूँ कि कहना, घर की याद व्याख्या: प्रस्तुत काव्यान्श हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग-1’ में संकलित कविता ‘घर की याद’ से उद्धृत है। इसके रचयिता हैं भवानी प्रसाद मिश्र । यह कविता जेल प्रवास के दौरान लिखी गयी। सावन की एक रात तेज़ बारिश हो रही है और कवि को अपने परिजनों की बहुत याद आ रही है। इन पंक्तियों में कवि सावन को संबोधित करते हुए कहता है कि तुम उनको मेरे दुःख के बारे मे कुछ मत बताना । सच तो यह है कि मैं यहाँ अत्यंत दुःखी हूँ पर तुम उनसे यह बात मत कहना बल्कि उनको धीरज धराते रहना। उनसे कहना कि मैं यहाँ लिखता हूँ , पढ़ता हूँ , काम भी करता हूँ और यहाँ तो मेरा बहुत नाम है लोग मुझे यहाँ बहुत चाहते हैं। उनसे कहना कि वो खुश रहें और मुझे याद कर के दुःखी न हो। और कहना मस्त हूँ मैं, कूदता हूँ, खेलता हूँ, घर की याद व्याख्या: कवि इन पंक्तियों में सावन को संबोधित करते हुए अपने माता – पिता को संदेश देने के लिए कह रहा है। वो कहता है कि तुम उनसे कहना कि मैं यहाँ बिलकुल मजे में हूँ। यहाँ मैं सूत कातने का काम करता हूँ। मैं पेट भर के खूब सारा खाना खाता हूँ और मेरा वजन भी बढ़ के सत्तर किलो हो गया है। खेलता कूदता रहता हूँ और दुःखों का सामना डट कर करता हूँ। उनसे कहना कि मैं बिलकुल मस्त हूँ और मेरे निराशा के बारे में उनको कुछ भी न बताना। हाय रे, ऐसा न कहना, कह न देना मौन हूँ मैं, हे सजीले हरे सावन, घर की याद व्याख्या: कवि ने इन पंक्तियों में सावन को संबोधित करते हुए अपने माता पिता को संदेश पहुंचाने की बात कही है। कवि सावन से कहता है कि जो मैंने तुझे उनसे कहने के लिए कहा है तुम उनसे बस वही कहना, उनको सच्चाई नहीं बता देना। उनसे मेरे रातभर जागने की बातें मत बताना। अकेला रहता हूँ लोगों से दूर भागता हूँ यह भी मत बताना। उनसे यह मत कह देना कि अब मैं पहले की तरह बातूनी नहीं रहा चुप सा हो गया हूँ और अब खुद को भी पहचान नहीं पाता हूँ। देखो सावन तुम यह सब मत बोल बैठना उनके पास वरना उनको शक हो जाएगा और वो दुःखी होते रहेंगे। हे सावन तुम चाहे जितना भी बरस लो पर उनकी आँखों से आँसू न बहने देना और उन्हें अपने पांचवे लाडले के लिए तरसने न देना।
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