हमारे देश में सामाजिक असमानता किस रूप में है - hamaare desh mein saamaajik asamaanata kis roop mein hai

असमानता ही देश में सबसे बड़ी समस्या है.

आइये, मिलकर अभियान चलायें,
असमानता को दूर भगाएँ.

वर्त्तमान में असमानता ही देश में सबसे बड़ी समस्या है. हमें इसे ख़त्म करना होगा. सामाजिक असमानता, आर्थिक असमानता, शैक्षिक असमानता, क्षेत्रीय असमानता और औद्योगिक असमानता ही देश को विकसित बनाने में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है.
सामाजिक असमानता के कारण ही आज समाज में आपसी प्रेम, भाईचारा, मानवता, इंसानियत और नैतिकता ख़त्म होता जा रहा है. व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए समाज को जाति और धर्म में बाँटना जायज नहीं.
आर्थिक असमानता के कारण ही आज समाज में अमीरों और अरबपतियों की संख्याँ तो बढ़ रही है परन्तु समाज के गरीब लोग या तो जिस हाल में थे आज भी वही पे खड़े हैं या नहीं तो और गरीब ही होते जा रहे हैं. आर्थिक न्याय ही सामाजिक न्याय का नींव है. आर्थिक न्याय के बिना हम सामाजिक न्याय का कल्पना भी नहीं कर सकते. यदि वास्तव में हम सामाजिक न्याय के पक्षधर हैं तो हमें आर्थिक न्याय को मजबूत बनाना ही होगा.
शैक्षिक असमानता के कारण ही हम समाज में वंचित वर्गों को अच्छी शिक्षा दे पाने में असफल साबित हो रहे हैं. हम जानते हैं कि शिक्षा के बिना किसी व्यक्ति, समाज या राष्ट्र का विकास हो ही नहीं सकता. शिक्षा ऐसी हो जो हमें सोचना सिखाये, कर्त्तव्य और अधिकार का बोध कराये, हमें हमारा हक़ दिलाये और हमें समाज और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदार बनाये. क्या हम ऐसी शिक्षा समाज के सभी वर्गों को दे पाने में सफल साबित हो रहे हैं?
क्षेत्रीय असमानता के कारण ही आज हम देश के सभी भागों खासकर ग्रामीण क्षेत्रों को विकास के मुख्य धारा से जोड़ने में विफल साबित हो रहे हैं. भारत को विकसित देशों के श्रेणी में लाने के लिए हमें सुदूरवर्ती गाँवों में विकास के किरणों को पहुँचाना होगा. आखिर हम दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, बंगलुरु, अहमदाबाद, पुणे और हैदराबाद के अनुपात में ही अन्य शहरों और गाँवों का विकास करने में असफल क्यों साबित हो रहे हैं? हमें इस पर गम्भीरतापूर्वक विचार करना होगा. यदि हम इन्ही शहरों जैसे और शहर बनाने में कामयाब होते हैं तो न सिर्फ इन शहरों पर से लोगों का दवाब कम करने में कामयाब होंगे बल्कि हमें इस तरह के और कई अन्य शहर भी विकसित करने में सफलता मिलेगी जो क्षेत्रीय असफलता को ख़त्म करने में मील का पत्थर साबित होगा.
औद्योगिक असमानता के कारण ही आज हमें कई गंभीर समस्याओं का सामना करना पर रहा है. ऐसा देखा जा रहा है कि जिस शहर में पहले से ही बहुत सारे उद्योग-धंधे लगे हुए हैं आज भी उन्ही जगहों पर नए-नए उद्योग और कल-कारखाने लगते जा रहे हैं. हमें नए-नए औद्योगिक शहर बसाने की जरुरत है. इसके दो फायदे होंगे. एक तो पुराने औद्योगिक शहरों पर जो लोगों का बोझ बढ़ता जा रहा है वह कम होगा और दूसरा हम नए औद्योगिक शहर बसाने में भी कामयाब होंगे.
इसी तरह बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य, रेल और कृषि आदि अनेक क्षेत्रों में असमानताओं से आम जनों को जूझना पर रहा है. कहीं चौबीसों घंटे बिजली तो कहीं आज भी लोग लालटेन और ढिबरी युग में जीने को विवश हैं. कहीं पानी ही पानी तो कहीं पानी के लिए हाहाकार. कहीं पक्की सड़कों की भरमार तो कहीं कच्ची सड़क भी नहीं. कहीं बड़े-बड़े अस्पताल तो कहीं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी नहीं. कहीं रेलवे लाइनों की जाल तो कहीं रेलवे का घोर अभाव. कहीं किसानों के लिए आधुनिक संसाधनों की भरमार तो कहीं किसान बेहाल. यह असमानता उस घुन की तरह है जो अंदर ही अंदर समाज को खोखला बनाता जा रहा है. हमें हर हाल में इस असमानता को मिटाना ही होगा.

आमजनों को जगाना होगा
असमानता को मिटाना होगा.

सरोज चौधरी
राष्ट्रीय अध्यक्ष
मिथिलांचल मुक्ति मोर्चा

सामाजिक असमानता के रूप क्या हैं?

सामाजिक असमानता की पाँच प्रणालियाँ या प्रकार हैं: धन असमानता, उपचार और जिम्मेदारी असमानता, राजनीतिक असमानता, जीवन असमानता और सदस्यता असमानता

भारत में सामाजिक असमानता क्या है?

भारत में, सामाजिक असमानताएं आय, शिक्षा, लिंग, जाति और वर्ग में असमानताओं के परिणाम हैं।

भारत में सामाजिक असमानता का मुख्य कारण क्या है?

भारत में सामाजिक असमानता के स्तर के बारे में सब जानते है, और स्कूल एवं कक्षा में भी यह असमानता अध्यापकों तथा विद्यार्थियों द्वारा लाई जाती है। भाषा, जाति, धर्म, लिंग, स्थान, संस्कृति और रिवाज़ जैसे सामाजिक अंतर के पक्षपात पीढ़ी दर पीढ़ी अपनाए जाते हैं।

सामाजिक असमानता का वह रूप कौनसा है जो प्रत्येक स्थान पर दिखाई देता है?

कई बार तो यह अभिव्यक्ति लोकतंत्र के लिए लाभकर भी होती है। इस अध्याय में हम इस विचार को भारत में लोकतंत्र के कामकाज के संदर्भ में परखने की कोशिश करेंगे। हम यहाँ सामाजिक विभाजन और भेदभाव वाली तीन सामाजिक असमानताओं पर गौर करेंगे। ये हैं लिंग, धर्म और जाति पर आधारित सामाजिक विषमताएँ।