हनुमान से लड़ते हुए रावण का कौन सा पुत्र अपने प्राण गवा बैठा? - hanumaan se ladate hue raavan ka kaun sa putr apane praan gava baitha?

हनुमान से लड़ते हुए रावण का कौन सा पुत्र अपने प्राण गवा बैठा? - hanumaan se ladate hue raavan ka kaun sa putr apane praan gava baitha?

आप सभी लोगों ने रामायण तो अवश्य देखी होगी आप लोगों में से कई लोग होंगे जिन्होंने रामायण एक बार नहीं बल्कि कई बार देखी होगी या फिर आप लोगों ने निश्चित रूप से रामायण की कहानी अवश्य पढ़ी होगी आप सभी लोगों ने रामायण में राम लक्ष्मण हनुमान और माता सीता के बारे में तो पढ़ा या देखा ही होगा परंतु लगभग ज्यादातर व्यक्तियों को रामायण के ऐसे कुछ पात्रों को भूल गए होंगे जिन्होंने राम रावण के युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी यह सब राम की सेना के प्रमुख योद्धा थे इतना ही नहीं बल्कि इन योद्धाओं के बिना भगवान श्री राम जी रावण से युद्ध नहीं जीत सकते थे जी हां, आप लोग बिल्कुल सही सुन रहे हैं यह ऐसे योद्धा थे जिन्होंने भगवान श्री राम जी के युद्ध में इनका पूरा सहयोग दिया था और उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी आज हम आपको इस लेख के माध्यम से ऐसे पांच योद्धाओं के बारे में बताने वाले हैं जिनके बिना भगवान श्री राम जी रावण से युद्ध नहीं जीत सकते थे।

हनुमान से लड़ते हुए रावण का कौन सा पुत्र अपने प्राण गवा बैठा? - hanumaan se ladate hue raavan ka kaun sa putr apane praan gava baitha?

आइए जानते हैं किन योद्धाओं के बिना राम जी रावण से नहीं जीत सकते थे युद्ध

सुग्रीव

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सबसे पहले भगवान श्री राम जी की मदद सुग्रीव ने ही की थी सुग्रीव का रामायण युद्ध में राम की सहायता का भी बड़ा योगदान है अगर आपको याद होगा तो आपको पता होगा कि सुग्रीव की सेना ही रावण की सेना के साथ युद्ध कर रही थी आप सभी लोगों को भगवान श्री राम जी का युद्ध तो याद है परंतु लगभग सभी लोग सुग्रीव की सेना की लड़ाई भूल गए होंगे।

जाम्बवन्त

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आप लोगों ने रामायण देखी होगी तो आपको यह बात याद होगी कि जब महाबली हनुमान जी समुद्र के किनारे निराश बैठे हुए थे और वह अपने मन में यह विचार कर रहे थे कि किस प्रकार भगवान श्री राम जी के कार्य को पूरा किया जाए तो उस समय जाम्बवन्त ने हनुमान जी को उनकी शक्तियां याद दिलाई थी आप इसका अनुमान भी नहीं लगा सकते कि जाम्बवन्त ने कितना बड़ा काम किया था परंतु रामायण के इस पात्र को आज कोई भी नहीं पूजा करता और ना ही कभी इनको याद करता है।

जटायु

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अरुण देवता के पुत्र जटायु है परंतु भारत के अंदर जटायु के विषय में अधिक जानने की कोशिश नहीं की गई है आपको याद होगा तो आपने देखा होगा कि जटायु ने रावण से लड़ते हुए अपने प्राण गवा दिए थे और राम जी को मैया सीता का सही पता इसी महान योद्धा से मिला था।

नल और नील

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आप सभी लोगों ने नल और नील के बारे में तो सुना ही होगा वास्तव में देखा जाए तो नल के बिना भगवान श्री राम जी समुद्र पर सेतु बना नहीं सकते थे नल विश्वकर्मा जी के पुत्र थे और यही वह व्यक्ति थे जो अपने हाथ से कुछ भी लेकर समुंद्र में छोड़ देते थे तो वह चीज पानी में नहीं डूबती थी वह पानी के ऊपर ही तैरती रहती थी रामायण में नल ने सेतु के निर्माण में बहुत बड़ी भूमिका अदा की है।

अंगद

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रामायण के पात्र में अंगद एक ऐसा राजदूत था जिसने रावण के सामने बहुत ही वीरता और बुद्धिमानी से अपनी बात रखी थी इसके साथ ही अंगद ने अपनी वीरता का नजारा भी युद्ध में दिखा दिया था आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि अंगद कितना बलशाली था कि रावण भी उसके पैर हिलाने में असमर्थ रहा था।

प्रभु श्रीराम ने अपनी अंगुठी देकर हनुमानजी को लंका भेजा था और कहा था कि श्री सीता से कहना कि तुम्हारे राम तुम्हें जल्द ही लेने आएंगे। हनुमानजी को जब लंका जाना था तब जामवंतजी ने उन्हें उनकी शक्तियों से परिचित कराया और वे फिर वायु मार्ग से लंका के लिए निकले। लंका के मार्ग और लंका में उन्होंने कई पराक्रम भरे कार्य किए। आओ जानते हैं उन्हीं में से 10 प्रमुख कार्य।


1. समुद्र लांघना और सुरसा से सामना : हनुमानजी ही जानते थे कि समुद्र को पार करते वक्त बाधाएं आएगी। सबसे पहले समुद्र पार करते समय रास्ते में उनका सामना सुरसा नाम की नागमाता से हुआ जिसने राक्षसी का रूप धारण कर रखा था। सुरसा ने हनुमानजी को रोका और उन्हें खा जाने को कहा। समझाने पर जब वह नहीं मानी, तब हनुमान ने कहा कि अच्‍छा ठीक है मुझे खा लो। जैसे ही सुरसा उन्हें निगलने के लिए मुंह फैलाने लगी हनुमानजी भी अपने शरीर को बढ़ाने लगे। जैसे-जैसे सुरसा अपना मुंह बढ़ाती जाती, वैसे-वैसे हनुमानजी भी शरीर बढ़ाते जाते। बाद में हनुमान ने अचानक ही अपना शरीर बहुत छोटा कर लिया और सुरसा के मुंह में प्रवेश करके तुरंत ही बाहर निकल आए। हनुमानजी की बुद्धिमानी से सुरसा ने प्रसन्न होकर उनको आशीर्वाद दिया तथा उनकी सफलता की कामना की।

2. राक्षसी माया का वध : समुद्र में एक राक्षसी रहती थी। वह माया करके आकाश में उड़ते हुए पक्षियों को पकड़ लेती थी। आकाश में जो जीव-जंतु उड़ा करते थे, वह जल में उनकी परछाईं देखकर अपनी माया से उनको निगल जाती थी। हनुमानजी ने उसका छल जानकर उसका वध कर दिया।

3. विभीषण से मुलाकात : जब हनुमानजी सीता माता को ढूंढते-ढूंढते विभीषण के महल में चले जाते हैं। विभीषण के महल पर वे राम का चिह्न अंकित देखकर प्रसन्न हो जाते हैं। वहां उनकी मुलाकात विभीषण से होती है। विभीषण उनसे उनका परिचय पूछते हैं और वे खुद को रघुनाथ का भक्त बताते हैं। हनुमान और विभीषण का लंबा संवाद होता है और हनुमानजी जान जाते हैं कि यह काम का व्यक्ति है। वे वि‍भीषण को श्रीराम से मिलाने का वचन दे देते हैं।

4. सीता माता का शोक निवारण : लंका में घुसते ही उनका सामना लंकिनी और अन्य राक्षसों से हुआ जिनका वध करके वे आगे बढ़े। वे सीता माता की खोज करते हुए रावण के महल में भी घुस गए, जहां रावण सो रहा था। आगे वे खोज करते हुए अशोक वाटिका पहुंच गए। हनुमानजी के अशोक वाटिका में सीता माता से मुलाकात की और उन्हें राम की अंगूठी देकर उनके शोक का निवारण किया।

5. अशोक वाटिका को उजाड़ना : सीता माता से आज्ञा पाकर हनुमानजी बाग में घुस गए और फल खाने लगे। उन्होंने अशोक वाटिका के बहुत से फल खाए और वृक्षों को तोड़ने लगे। वहां बहुत से राक्षस रखवाले थे। उनमें से कुछ को मार डाला और कुछ ने अपनी जान बचाकर रावण के समक्ष उपस्थित होकर उत्पाती वानर की खबर दी।

6. अक्षय कुमार का वध : फिर रावण ने अपने पुत्र अक्षय कुमार को भेजा। वह असंख्य श्रेष्ठ योद्धाओं को साथ लेकर हनुमानजी को मारने चला। उसे आते देखकर हनुमानजी ने एक वृक्ष हाथ में लेकर ललकारा और उन्होंने अक्षय कुमार सहित सभी को मारकर बड़े जोर से गर्जना की।

7. मेघनाद से युद्ध : पुत्र अक्षय का वध हो गया, यह सुनकर रावण क्रोधित हो उठा और उसने अपने बलवान पुत्र मेघनाद को भेजा। उससे कहा कि उस दुष्ट को मारना नहीं, उसे बांध लाना। उस बंदर को देखा जाए कि कहां का है। हनुमानजी ने देखा कि अबकी बार भयानक योद्धा आया है। मेघनाद तुरंत ही समझ गया कि यह कोई मामूली वानर नहीं है तो उसने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया, तब हनुमानजी ने मन में विचार किया कि यदि ब्रह्मास्त्र को नहीं मानता हूं तो उसकी अपार महिमा मिट जाएगी। तब ब्रह्मबाण से मूर्छित होकर हनुमानजी वृक्ष से नीचे गिर पड़े। जब मेघनाद देखा ने देखा कि हनुमानजी मूर्छित हो गए हैं, तब वह उनको नागपाश से बांधकर ले गया। बंधक हनुमानजी ने जाकर रावण की सभा देखी और फिर उन्होंने खुद ही अपनी पूंछ से अपने लिए एक आसन बना लिया और उस पर बैठ गए। रावण क्रोधित होकर कहता है- ' तूने किस अपराध से राक्षसों को मारा? क्या तुझे मेरी शक्ति और महिमा के बारे में पता नहीं है?' तब हनुमानजी राम की महिमा का वर्णन करते हैं और उसे अपनी गलती मानकर राम की शरण में जाने की शिक्षा देते हैं।

8. लंकादहन : राम की महिमा सुनकर रावण क्रोधित होकर कहता है कि जिस पूंछ के बल पर यह बैठा है, उसकी इस पूंछ में आग लगा दी जाए। जब बिना पूंछ का यह बंदर अपने प्रभु के पास जाएगा तो प्रभु भी यहां आने की हिम्मत नहीं करेगा। पूंछ को जलते हुए देखकर हनुमानजी तुरंत ही बहुत छोटे रूप में हो गए। बंधन से निकलकर वे सोने की अटारियों पर जा चढ़े। फिर उन्होंने अपना विशालकाय रूप धारण किया और अट्टहास करते हुए रावण के महल को जलाने लगे। उनको देखकर लंकावासी भयभीत हो गए। देखते ही देखते लंका जलने लगी और लंकावासी भयाक्रांत हो गए। हनुमानजी ने एक ही क्षण में सारा नगर जला डाला। एक विभीषण का घर नहीं जलाया। सारी लंका जलाने के बाद वे समुद्र में कूद पड़े और पुन: लौट आए।

9. राम को सीता की खबर देना : पूंछ बुझाकर फिर छोटा-सा रूप धारण कर हनुमानजी श्रीजानकीजी के सामने हाथ जोड़कर जा खड़े हुए और उन्होंने उनकी चूड़ामणि निशानी ली और समुद्र लांघकर वे इस पार आए और उन्होंने वानरों को किलकिला शब्द (हर्षध्वनि) सुनाया। हनुमानजी ने राम के समक्ष उपस्थित होकर कहा- 'हे नाथ! चलते समय उन्होंने (माता सीता ने) मुझे चूड़ामणि उतारकर दी।' श्रीरघुनाथजी ने उसे लेकर हनुमानजी को हृदय से लगा लिया। हनुमानजी ने फिर कहा- 'हे नाथ! दोनों नेत्रों में जल भरकर जानकीजी ने मुझसे कुछ वचन कहे।' और हनुमानजी ने श्रीजानकी की विरह गाथा कह सुनाई जिसे सुनकर राम की आंखों में आंसू आ गए।

हनुमान से युद्ध करते समय रावण का कौन सा पुत्र मारा गया?

रावण ने अपने पराक्रमी पुत्र अक्षयकुमार को भेजा, हनुमानजी ने उसको भी मार दिया। हनुमानजी ने अपना पराक्रम दिखाते हुए लंका में आग लगा दी।

हनुमान से लड़ते हुए रावण के कौन से पुत्र ने प्राण गँवा दिए?

हनुमान से लड़ते हुए रावण का पुत्र अक्षकुमार भी प्राण गँवा बैठा।

हनुमान जी के पैर के नीचे कौन है?

हनुमानजी के पैर तले स्त्री रूप में विराजे हैं शनिदेव | हनुमानजी के पैर तले स्त्री रूप में विराजे हैं शनिदेव - Dainik Bhaskar.

हनुमान जी की पुत्री का क्या नाम था?

उन्हें परेशान देख सूर्य देव ने हनुमान जी से कहा कि तुम मेरी पुत्री सुवर्चला से विवाह कर लो।