हस्व स्वर की कितनी मात्रा होती है? - hasv svar kee kitanee maatra hotee hai?

Harsv Swar: स्वर वर्ण वो होते हैं, जिनके उच्चारण करते वक़्त किसी अन्य दूसरे वर्ण की मदद की आवश्यक नही ली जाती हैं, उनको कहा जाता हैं, जबकि व्यंजन वर्ण के उच्चारण करते समय में स्वर वर्ण की मदद ली जाती हैं।

और हम इस पोस्ट में आपको ह्रस्व स्वर कितने होते हैं? हर्ष स्वर किसे कहते हैं, के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं। हर्ष स्वर का एक भेद होता हैं, अगर इसकी व्याख्या करें तो, वो सभी स्वरों जिनके उच्चारण करते वक़्त में कम से कम समय लगता हैं, उनको Hasv Swar कहा जाता हैं। हृस्व स्वर कुल चार प्रकार होते हैं, जो की निम्न हैं — अ, इ, उ, ऋ

अगर आप क्या Hasv Swar का परिभाषा जानना चाहते हैं, एवं कुल संख्या एवं उनके उदाहरण जानना चाहते हैं? तो आप एकदम सही पोस्ट पढ़ने जा रहे हैं। कृपया आप Harsh Swar पोस्ट को अंत तक ध्यानपूर्वक अवश्य ही पढ़े, हम इस पोस्ट में harsh swar kitne prkar ke hote hain के बारे में विस्तारपूर्वक चर्चा करने जा रहे हैं।

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What's In This Post?

  • 1 ह्रस्व स्वर किसे कहते हैं
    • 1.1 Harsv Swar कितने होते हैं
    • 1.2 Hasv Swar के कितने भेद होते हैं
  • 2 हर्ष स्वर के उदाहरण
  • 3 Last Word:

ह्रस्व स्वर किसे कहते हैं

हर्ष स्वर (Hasv Swar) को एक दूसरे नाम से भी जाना जाता है, हर्ष स्वर का दूसरा नाम मात्रिक स्वर भी है। और इसकी व्याख्या करें तो, वो सभी स्वर जिनके स्वरों के उच्चारण करते वक़्त काफी कम समय लगता हैं, यानि की एक मात्रा भर का समय लगता हैं, उन सभी स्वरों को हृस्व स्वर कहा जाता हैं।

Harsv Swar कितने होते हैं

जैसा के हमने आपको ऊपर में ही बताया की, हिंदी व्याकरण के पुस्तकों के आधार पर, हृस्व स्वरों की कुल संख्या चार की होती हैं। साथ ही हम आपको बता दें की, हिंदी वर्णमाला में टोटल 11 स्वर होते हैं, और उनमें से अ, इ, उ, ऋ, यानि की कुल चार (4) हर्ष स्वर शामिल होते हैं।

Hasv Swar के कितने भेद होते हैं

यहां हम आपको बताना चाहेंगे की, दो हर्ष स्वरों में संधि करके ही दीर्घ स्वर को उच्चारित किया जा सकता है। इसके साथ ही आपको ये भी पता होना चाहिए की, उच्चारण के अनुसार स्वर के कुल तीन प्रकार होते हैं. जिनमें हर्ष स्वर, दीर्घ स्वरऔर प्लुत स्वरशामिल हैं।

इतना ही नहीं, मूल और मात्रा स्वर के अन्य दो प्रकार से विभाजित किया गया हैं जो प्रयोग के आधार पर विभाजित किया गया है।

हर्ष स्वर के उदाहरण

जैसे की, आपको पता ही है की, कोई मात्रा नहीं है, जैसे की अमल। वहीं का मात्रा ि होता हैं इसका एक उदाहरण किसान हो सकता हैं। और वहीं का मात्राहोता है जैसे इसका एक उदाहरण गुलाब हो सकता हैं। और वहीं का मात्राहोता है, इसका एक उदाहरण तृण हैं।

आप इसका ध्यान अवश्य रखें कि, इन शब्दों को उच्चारित करते वक़्त आप कम से कम समय में शब्द को अपने मुख/मुँह से बाहर निकाले, तभी इनका उच्चारण सही माना जायेगा।

Last Word:

तो दोस्तों, अब आप अच्छे से समझ गए होंगे के ह्रस्व स्वर उस स्वर को बोला जाता हैं, जिनको बोलते वक़्त कम से कम समय दिया जाता हो। और साथ ही इसके कुल संख्या 4 की होती हैं जो निम्नलिखित — अ, इ, उ, ऋ। इसके शाब्दिक उदाहरण अमल, किसान, गुलाब और तृण होते हैं।

हमें पूर्ण उम्मीद हैं कि, हमारा ये आर्टिकल आपको अवश्य ही पसंद आया होगा और साथ ही आपको लाभदायक भी लगा होगा।

अगर ह्रस्व स्वर से जुडी आपके पास कोई प्रश्न हो, या इस पोस्ट में कुछ और जानकारी की कमी लग रही हो, तो आप निचे कमेंटबॉक्स में बेझिझक कमेंट के माध्यम से अपना महत्पूर्ण टिप्पणी अवश्य ही करें। हमारी टीम सदैव ही आपके द्वारा कमेंट पाने के लिए उत्साहित रहती हैं, हम जल्द से जल्द आपकी कमेंट्स का रिप्लाई करने में हर सम्भव कोशिस करेंगे।

वर्ण परिचय

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१. वर्णविचार

स्थान स्वराः व्यंजनानि (३३)Consonants
स्पर्श अन्तःस्थ उष्म
खर मृदु अनुनासिकाः
ह्रस्व दीर्घ अल्पप्राण महाप्राण अल्पप्राण महाप्राण
कण्ठ्य (Gutturals) क् ख् ग् घ् ङ् य् ह्
तालव्य (Palatals) च् छ् ज् झ् ञ् र् श्
मूर्धन्य (Cerebrals) ट् ठ् ड् ढ् ण् ल्  ष्
दन्त्य (Dentals) त् थ् द् ध् न् स्
ओष्ठय (Labials) प् फ् ब् भ् म् व्
कण्ठतालु ए , ऐ संयुक्त व्यंजन:-क्ष (क् + ष् +अ) ,

त्र (त् + र् + अ), ज्ञ (ज् + ञ् + अ)

कण्ठोष्ठ ओ , औ
अयोगवाह:-

अं(अनुस्वार) , अः(विसर्ग)

Dependent - ा, ि, ी, ु, ू, ृ, ॄ, े, ै, ो, ौ

व्याख्या – सम्यक् कृतम् इति संस्कृतम्।

भाषा – संस्कृत  और लिपि देवनागरी।

उच्चार स्थान ह्रस्व – दीर्घ – प्लुत – (स्वर) विचार
कण्ठः – (अ‚ क्‚ ख्‚ ग्‚ घ्‚ ं‚ ह्‚ : = विसर्गः )

तालुः – (इ‚ च्‚ छ्‚ ज्‚ झ्‚ ं‚ य्‚ श् )

मूर्धा – (ऋ‚ ट्‚ ठ्‚ ड्‚ ढ्‚ ण्‚ र्‚ ष्)

दन्तः (लृ‚ त्‚ थ्‚ द्‚ ध्‚ न्‚ ल्‚ स्)

ओष्ठः – (उ‚ प्‚ फ्‚ ब्‚ भ्‚ म्‚ उपध्मानीय प्‚ फ्)

नासिका  – (ं‚ म्‚ ं ‚ण्‚ न्)

कण्ठतालुः – (ए‚ ऐ )

कण्ठोष्ठम् – (ओ‚ औ)

दन्तोष्ठम् – (व)

जिह्वामूलम् – (जिह्वामूलीय क् ख्)

नासिका –  (ं = अनुस्वारः)

संस्कृत की अधिकतर सुप्रसिद्ध रचनाएँ पद्यमय है अर्थात् छंदबद्ध और गेय हैं। इस लिए यह समझ लेना आवश्यक है कि इन रचनाओं को पढ़ते या बोलते वक्त किन अक्षरों या वर्णों पर ज़्यादा भार देना और किन पर कम। उच्चारण की इस न्यूनाधिकता को ‘मात्रा’ द्वारा दर्शाया जाता है।

*   जिन वर्णों पर कम भार दिया जाता है, वे हृस्व कहलाते हैं, और उनकी मात्रा १ होती है। अ, इ, उ, लृ, और ऋ ये ह्रस्व स्वर हैं।

*   जिन वर्णों पर अधिक जोर दिया जाता है, वे दीर्घ कहलाते हैं, और उनकी मात्रा २ होती है। आ, ई, ऊ, ॡ, ॠ ये दीर्घ स्वर हैं।

*   प्लुत वर्णों का उच्चार अतिदीर्घ होता है, और उनकी मात्रा ३ होती है जैसे कि, “नाऽस्ति” इस शब्द में ‘नाऽस्’ की ३ मात्रा होगी। वैसे हि ‘वाक्पटु’ इस शब्द में ‘वाक्’ की ३ मात्रा होती है। वेदों में जहाँ 3संख्या लिखी होती है , उसके पूर्व का स्वर प्लुत बोला जाता है।

*   संयुक्त वर्णों का उच्चार उसके पूर्व आये हुए स्वर के साथ करना चाहिए। पूर्व आया हुआ स्वर यदि ह्रस्व हो, तो आगे संयुक्त वर्ण होने से उसकी २ मात्रा हो जाती है; और पूर्व अगर दीर्घ वर्ण हो, तो उसकी ३ मात्रा हो जाती है और वह प्लुत कहलाता है।

*   अनुस्वार और विसर्ग – ये स्वराश्रित होने से, जिन स्वरों से वे जुडते हैं उनकी २ मात्रा होती है। परंतु, ये अगर दीर्घ स्वरों से जुडे, तो उनकी मात्रा में कोई फर्क नहीं पडता।

*   ह्रस्व मात्रा का चिह्न ‘।‘ है, और दीर्घ मात्रा का ‘ऽ‘।

*   पद्य रचनाओं में, छंदों के पाद का अन्तिम ह्रस्व स्वर आवश्यकता पडने पर गुरु मान लिया जाता है।

समझने के लिए कहा जाय तो, जितना समय ह्रस्व के लिए लगता है, उससे दुगुना दीर्घ के लिए तथा तीन गुना प्लुत के लिए लगता है।  नीचे दिये गये उदाहरण देखिए :

राम = रा (२) + म (१) = ३   याने “राम” शब्द की मात्रा ३ हुई।

वनम् = व (१) + न (१) + म् (०) = २

वर्ण विन्यास –  १. राम = र् +आ + म् + अ , २.  सीता = स् + ई +त् +आ, ३. कृष्ण = क् +ऋ + ष् + ण् +अ

प्रस्ताविक जानकारी

भाषा मे  " कर्ता Subject", "कर्म Object"  और  " क्रिया Verb" इन को लेके वाक्य बनता है। कभी कर्म रहेगा कभी नहीं रहेगा।   एक वाक्य लेते है।

 बालक पुस्तक पढ़ता है। इस वाक्य में  बालक " कर्ता Subject" है, पुस्तक "कर्म Object" है और पढ़ता है  " क्रिया Verb" है।

बालक पुस्तक पढ़ता है। (सकर्मक Transitive Verb  )
कर्ता Subject" "कर्म Object" " क्रिया Verb"
जब प्रश्न पूछते है कौन पढ़ता है? तो उत्तर मिलता है। बालक तो यहा बालक (नाम) कर्ता है। जब  प्रश्न पूछते है “बालक क्या पढ़ता है?” तो उत्तर मिलता है। पुस्तक पढ़ता है, तो यहा पुस्तक कर्म है। जब प्रश्न पूछते है बालक क्या करता है? तो उत्तर मिलता है। पढ़ता है तो यहा ‘पढ़ता है’ यह क्रिया है।

दूसरा एक वाक्य देखते है। = बालक हसता है। इस वाक्य में बालक “कर्ता Subject" है और "हसता है “क्रिया Verb" है  परन्तु "कर्म Object" नहीं है।

बालक ----- हसता है। (अकर्मक Intransitive Verb)
कर्ता Subject" "कर्म Object" " क्रिया Verb"
 प्रश्न पूछते हैं कौन हँसता है? तो उत्तर मिलता है। बालक तो यहा बालक (नाम) कर्ता है। यदि प्रश्न पूछते है ”बालक क्या हसता है?” तो कोई  उत्तर नहीं मिलता।  तो यहा कर्म नहीं  है। जब प्रश्न पूछते हैं बालक क्या करता है? तो उत्तर मिलता है। हँसता है तो यहाँ हँसता है यह क्रिया है।

तो हमने दो प्रकार की क्रियाएं देखीं ( १. ) ( सकर्मक) बालक पुस्तक पढ़ता है।   और ( २. )  (अकर्मक) बालक  हँसता है।

कोई भी भाषा का अर्थ पूर्ण वाक्य बनने के लिए वाक्य में एक या एक से अधिक शब्द होते है। और इन शब्दों को तीन प्रकार से विभाजित किया है। वह – नाम, क्रिया और अव्यय  है। इसमें से नाम और क्रिया सर्वनाम, विशेषण और क्रियाविशेषण में भी विभाजित हो सकते है यह उपयोग कर्ता के उपर निर्भर है।

शब्द Noun Root↓
सुबन्तपद↓ तद्धितपद
पुलिंग स्त्रीलिंग नपुंसकलिंग
पद Word  >→ धातु Verb Root↓
तिङन्तपद

कृदन्तपद णिजन्त सन्नन्त यंन्त नामाधातु
परस्मैपदी आत्मनेपदी उभयपदी
>→ अव्यय Indeclinable↓
अव्यय उपसर्ग निपात

शब्द Nouns -  वाक्य में आया हुआ नाम व्यक्ति, स्थान, वस्तु, राष्ट्र, या गुणधर्म  को  सूचित कर्ता है।. नाम noun ही ऐसा शब्द है जो कर्ता, क्रिया और कर्म के रूप में उपयोग किया जाता है।  इसी को  संस्कृत में कर्तृपद, शब्द या नाम कहते है। नाम या शब्द सुबन्तपद  और तद्धितपद में भी वर्गीकृत हो सकता है।

सुबन्तपद लिंग वचन और विभक्ति को लेके इसका वर्गीकरण किया जाता है। यह शब्दरूप का उपयोग कुछ किसी को व्यक्त करने के लिए होता है।  सुवन्तपद का अर्थ है जिसके अंत में सूप् प्रत्येय हो। प्रत्ययोंका संच है।

नाम Nouns  के तिन लिंग – पुंलिंग, स्त्रीलिंग, और  नपुंसकलिंग तथा वचन-  एकवचन, द्विवचन और बहुवचन साथ ही सात  विभक्तियाँ भी होती है।

 हर शब्द या नाम  अपना एक रूप होता है यह रूप लिंग, वचन और विभक्ति के अनुसार बनता है। जैसे बालक शब्द का रूप बालकः )     पुलिंग एकवचन प्रथमा विभक्ति)

 तद्धितपद  =  नाम को विशेष प्रत्यय बनता है इसका उपयोग कर्ता, विशेषण तथा अव्यय के जैसा होता है।

 का ण  होना

संस्कृत में जो शब्द नकारान्त  है उस  नकार का किसी कारणसे  णकार होता है।  जैसे की तृतीया और षष्ठी  विभक्ति में देवेन वैसा ही रहता है परन्तु रामेन का ‘रामेण’  होता है  ।    बाजू  के उदाहरण देखे।

शब्द  निमितम्  वर्णविभाग  न्  का  ण्  होने या नहीं होने का कारण
करेण र  क अ र् ए + न  नकार  के पूर्व यह    रेफ् ,  षकार, ऋकार ,  अनुस्वार आनेपर  नकार  का   णकार होगा
वृक्षाणां  ऋ  व् ऋ क्ष् आ + नाम्
चतुर्णाम्  र्  च् अ त् उ र् + नाम् 
कृष्णः  ष्  क् ऋ ष् + नः 
नृणाम्  ऋ  न् ऋ + नाम् 
गर्वेण  ग र् व् ए + न  
रविणा  र  र् अ व् इ + ना  नकार का  णकार होना   निमित्त  -    स्वरवर्ण, कवर्ग, पवर्ग, ह, य, व,  अनुस्वार .
इन्द्रेण  र  इ न् द् र् ए + न     
हरीणाम्   र  ह् अ र् ई + नाम्   
पुरुषेण  र  प् उ र् उ ष् ए + न   
दीर्घेण  र्  द् ई र् घ् ए + न  
प्रभुणा  र  प् र् अ भ् उ + ना 
दुर्गमेण  र्  द् उ र् ग् अ  म् ए + न 
वदरीवणम्  व् अ द् अ र् ई व् अ + नम्      
नरेशेन न् अ र् ए श् ए + न
कर्णेन  र्  क् अ र् ण् ए + न    
महाराजेन  र  म् अ ह् आ र् आ ज् ए + न    नकार  और र के  बिचमे  र्  श, ण, ज, ल, च.आने के कारण न का ‘ण’ नहीं हुआ।
वार्तालापेन  र्  व् आ र् त् आ ल् आ प् ए + न       
मारीचेन  म् आ र् ई च् ए + न 
हलेन  - ह् अ ल् ए न् अ    
देवानां  - द् ए व् आ न् आं   
भोजनेन  - भ् ओ ज् अ न् ए न् अ     नकार  के पूर्व     रेफ्  , षकार, ऋकार ,  अनुस्वार नहीं आया इसलिए   नकार  का   णकार नहीं हुआ।
पाण्डवानाम् - प् आ ण् ड् अ व् आ न् आ म्
बालेन  - ब्  आ ल् ए न् अ    

हस्व स्वर कितने होते हैं?

ह्रस्व स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में कम-से-कम समय लगता हैं उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं। ये चार हैं- अ, इ, उ, ऋ।

हिंदी में हास्य स्वर कितने हैं?

ये हिन्दी में सात हैं- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।

ह्रस्व स्वर को और क्या कहते हैं?

सबसे कम समय (एक मात्रा का समय) में बोले जाने वाले स्वर को ह्रस्व स्वर कहते हैं। अर्थात जिन स्वर वर्णों के उच्चारण में कम समय (एक मात्रा का समय) लगता है-उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैंह्रस्व स्वर को एकमात्रिक और मूल स्वर के नाम से भी जाना जाता है।

हर्ष व स्वर कितने होते हैं?

हिंदी व्याकरण के पुस्तकों के अनुसार, हृस्व स्वरों की कुल संख्या चार होता है. जैसा कि आप जानते हैं हिंदी वर्णमाला में कुल 11 स्वर होता है उनमें से अ, इ, उ, ऋ (4) ह्रस्व स्वर हैं.