ईश्वर का नाम लेने से क्या होता है? - eeshvar ka naam lene se kya hota hai?

ईश्वर का नाम लेने से क्या होता है? - eeshvar ka naam lene se kya hota hai?

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सभी शास्त्र हमें ईश्वर की आराधना करने के लिए प्रेरित करते हैं। उनके अनुसार ईश्वर का नाम जपने के लिए कोई आयु नहीं होती। कुछ लोग कहते हैं बचपन हरि का नाम लेने के लिए नहीं होता। जब आयु आएगी, तब देखा जाएगा। वे भूल जाते हैं कि जब माता के गर्भ में जीव अन्धकार और अकेलेपन से घबराता है, तो वह ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वह उसे इस कष्ट से मुक्त कर दे। दुनिया में जाने के बाद वह उसे सदा स्मरण करेगा। दूसरी ओर जब बच्चे को कोई कष्ट होता है तो उसे अपने इष्ट के स्थान पर माथा टेकने के लिए ले जाते हैं। जब बच्चे को डर लगता है तो उसे प्रभु का नाम स्मरण करने के लिए कहते हैं।
उसी बच्चे को यदि प्रभु से प्यार हो जाता है अर्थात् बालक भक्त प्रह्लाद या ध्रुव भक्त की तरह वह ईश्वर की उपासना में अपना मन लगाना चाहता है या बालक की तरह ज्ञान की खोज करना चाहता है तो भगवान बुद्ध यानी बालक सिद्धार्थ के पिता शुद्बोधन की तरह उसे प्रभु से विमुख करने के उपाय किए जाते हैं, सांसारिक बन्धनों की ओर उन्मुख कर दिया जाता है अथवा भक्त प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप की तरह उसे कठोर यातनाएँ दी जाती हैं। कहने का तात्पर्य है कि हम दोहरा चरित्र जीते हैं।
युवावस्था में मनुष्य सोचता है अभी काम-धन्धा कर लूँ, परिवार की आवश्यकताएँ पूर्ण कर लूँ, बच्चे सेटल हो जाएँ तब ईश्वर का ध्यान भी कर लेंगे। अभी उम्र नहीं हुई ईश्वर का भजन करने की। यहाँ फिर मनुष्य के चेहरे  पर लगाए मुखौटे को देख सकते हैं। जब सन्तान चाहिए, तरक्की चाहिए या कोई अन्य माँग रखनी हो तो उस मालिक की चौखट पर नाक रगड़ता है। अपने धन-वैभव को पाने के लिए वह मालिक की उपासना कर सकता है यानी स्वार्थपूर्ति का साधन उसके लिए वह मालिक बन जाता है। बहुत बार वह दुनिया में स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए उसका सर्वोत्तम भक्त होने का आडम्बर भी करता है।
सारी आयु ईश्वर का नाम न जपने वाले ईश्वर की उपासना वृद्धावस्था में आकर भी नहीं कर सकते। सारी आयु उसका ध्यान नहीं किया तो बुढ़ापे में उसमें मन नहीं रम सकता। उस समय शरीर अशक्त हो जाता है, इन्द्रियाँ साथ छोडऩे लगती हैं। मन उदास, हताश व निराश रहने लगता है। इसलिए प्रभु भजन के लिए कोई भी आयु नहीं होती। अत: सोते-जागते, उठते-बैठते, चलते-फिरते यानी चौबीसों घण्टे जब चाहे उसको अपने सच्चे मन से पुकार सकते हैं। वह जगज्जननी अपनी बाँहें पसारे हमारी प्रतीक्षा कर रही है।
वास्तव में ईश्वर की आराधना बहुत ही चमत्कृत करने वाली है। सच्चे मन से उसका स्मरण करने पर इन्सान का मन हल्का हो जाता है। मनुष्य के मन से नकारात्मक विचार दूर हो जाते हैं, उसके स्थान पर सकारात्मक विचारों का उदय होता है। मनुष्य के पूर्वजन्म कृत दुख-कष्ट दूर तो नहीं हो सकते पर उन्हें सहन करने की शक्ति मिलती है। मन शान्त होने लगता है, एक विशेष प्रकार का आनन्द-सा छाया रहता है। ऐसा लगता है मानो सारे गम कोसों दूर चले गए हैं। मनुष्य का मान-सम्मान घर-परिवार व समाज में बढ़ जाता है।
उसके मन में नई स्फूर्ति एवं ताजगी का अहसास होता है। ईश्वर की ऐसी कृपा होती है कि धीरे-धीरे उसके बिगड़े हुए सारे काम बनने लगते हैं। ईश स्मरण से मनुष्य को मानसिक बल मिलता है। उसके सारे सपने समयनुसार साकार होने लगते हैं। अन्तत: वह मोक्ष के मार्ग की ओर प्रशस्त होने लगता है। फिर जन्म-मरण के इन बन्धनों से मुक्त होकर मनुष्य को प्रभु की शरणस्थली मिलती है।
-चन्द्र प्रभा सूद

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Answer:

पाठ संख्या-2  (ओ३म् की महिमा )

प्रश्न -1  भगवान् का सर्वश्रेष्ठ नाम क्या है ?

उत्तर- भगवान् का सर्वश्रेष्ठ नाम  ओ३म् है |     

”है यही अनादी नाद निर्विकल्प निर्विवाद “ (पंक्तियाँ पूरी कीजिए )

प्रश्न-2    वाणी में पवित्रता किसके जाप से आती है ?

उत्तर-  वाणी में पवित्रता ओ३म्  नाम के जाप से आती है |

प्रश्न-3    जगत का अनुपम आधार कौन है ?

उत्तर-   जगत का अनुपम आधार ओ३म् है |

प्रश्न-4 मन मन्दिर की ज्योति का प्रकाश पुंज कौन है ?

उत्तर- मन मन्दिर की ज्योति का प्रकाश पुंज ओ३म् है |

प्रश्न-5   ओ३म् नाम को प्राप्त कर लेने पर मनुष्य की कैसी निष्ठा बन जाती है ?

उत्तर- ओ३म् नाम को प्राप्त कर लेने पर मनुष्य की ऐसी निष्ठा बन जाती है कि- वह लाख   

 को छोड़ कर ओ३म् नाम के जाप में मगन  हो जाता है |

प्रश्न -6          ओ३म् शब्द की व्याख्या कीजिए

उत्तर-                    ओ३म् नाम सबसे बड़ा इससे बड़ा ना कोय  |

                              जो इसका सुमिरन करे शुद्ध आत्मा होय || 

 ईश्वर नें सारी सृष्टि को बनाया है | वही इसका पालन करता है और अन्त  में समेट लेता है |  ओ३म् शब्द में तीन अक्षर है अ उ और म | ये तीन अक्षर ही तो सृष्टि के आदि मध्य और अन्त  के द्योतक हैं | यही ओम् सबका प्राण है | सृष्टि का सबसे पहला नाद ओ३म् था | मानव का यही आदि  मध्य अन्त है | यही  परमेश्वर का उसका अपना निज नाम और सर्वोत्तम नाम है |

प्रश्न -7 गुरु नानकदेव जी नें ओम् के विषय में क्या कहा है ?

उत्तर-  श्री गुरू नानक देव नें ओम् के विषय में कहा है कि-  “ एक ओंकार सत् नाम कर्ता पुरख “ = अर्थात् ओम् और ओंकार दोनों का तात्पर्य एक ही  है |

प्रश्न-8 ओ३म् नाम का महत्व स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर-  ओ३म् नाम सबसे बड़ा -----------आत्मा होय | (पंक्तियाँ पूरी लिखिए )

1.ओ३म् नाम के जाप से मनुष्य धर्म अर्थ काम और मोक्ष का स्वामी बन जाता है |

2.वाणी में पवित्रता आती है ओम् के जाप से मनुष्य की सभी कामनाएँ पूर्ण हो जाती है |

3.ओ3म् ही तो सारे जगत का आधार है |

4.ओम् नाम के जाप से रसना रसीली हो जाती है |

5. ओम् नाम का जाप करने वाला मनुष्य जीवन में कभी भी निराश नहीं होता है | निश्चित रूप से ओ३म् का मानसिक जाप हृदय में ज्योति प्रकट करता है | कहा भी गया है –

        “ जबहिं नाम ------------------------ पुरानी घास ” (पंक्तियाँ पूरी लिखिए )  |

भगवान का नाम लेने से क्या फायदा होता है?

कलयुग में भगवान का नाम जपने से ही मनुष्य को राहत मिलती है और वह प्रसन्न रह सकता है। इसलिए जब भी समय मिले मनुष्य को भगवान का सिमरन करना चाहिए। यह बात सोमवार को सेठ गोपीराम गोयल की बगीची में चल रही श्रीमदभागवत कथा के दौरान कथाव्यास पंडित जय प्रकाश शास्त्री ने कही।

भगवान का नाम कितनी बार लेना चाहिए?

क्या है 108 का महत्व शास्त्रों के अनुसार एक मनुष्य को दिन में 10800 ईश्वर का स्मरण करना चाहिए

दुनिया में सच्चा भगवान कौन है?

सत्य यह है कि एक ही सच्चा ईश्वर है जिसने आकाश और पृथ्वी को बनाया और केवल मनुष्य को अपने स्वरूप में बनाया। जी हां! ईश्वर हम से प्रेम करते हैं और केवल मनुष्य को ही उसने अपने स्वरूप में रचा है। इसलिए हमारा स्वभाव जानवरों, पक्षियों, पेड़ पौधों जैसा नहीं है क्योंकि हम परमेश्वर के स्वरूप में रचे गए हैं।

भगवान का नाम कब लेना चाहिए?

भगवान का नाम हमेशा जपना चाहिए। यह जरूरी नहीं कि मुख से जोर-जोर से भगवान का नाम बोला जाये, अपने मन में भी ध्यान करके भी भगवान राम, श्रीकृष्ण या जगत गुरू भगवान शिव आदि का नाम जपा जा सकता है। किसी भी परिस्थिति में ईश्वर का नाम लेने से सभी मुश्किलें का हल पाया जा सकता है।