इतिहास लेखन क्या है इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए? - itihaas lekhan kya hai isakee visheshataon ka ullekh keejie?

इतिहास लेखन क्या है इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए? - itihaas lekhan kya hai isakee visheshataon ka ullekh keejie?

इतिहास-लेख या इतिहास-शास्त्र (Historiography) से दो चीजों का बोध होता है- (१) इतिहास के विकास एवं क्रियापद्धति का अध्यन तथा (२) किसी विषय के इतिहास से सम्बन्धित एकत्रित सामग्री। इतिहासकार इतिहासशास्त्र का अध्ययन विषयवार करते हैं, जैसे- भारत का इतिहास, जापानी साम्राज्य का इतिहास आदि।

परिचय[संपादित करें]

इतिहास के मुख्य आधार युगविशेष और घटनास्थल के वे अवशेष हैं जो किसी न किसी रूप में प्राप्त होते हैं। जीवन की बहुमुखी व्यापकता के कारण स्वल्प सामग्री के सहारे विगत युग अथवा समाज का चित्रनिर्माण करना दु:साध्य है। सामग्री जितनी ही अधिक होती जाती है उसी अनुपात से बीते युग तथा समाज की रूपरेखा प्रस्तुत करना साध्य होता जाता है। पर्याप्त साधनों के होते हुए भी यह नहीं कहा जा सकता कि कल्पनामिश्रित चित्र निश्चित रूप से शुद्ध या सत्य ही होगा। इसलिए उपयुक्त कमी का ध्यान रखकर कुछ विद्वान् कहते हैं कि इतिहास की संपूर्णता असाध्य सी है, फिर भी यदि हमारा अनुभव और ज्ञान प्रचुर हो, ऐतिहासिक सामग्री की जाँच-पड़ताल को हमारी कला तर्कप्रतिष्ठत हो तथा कल्पना संयत और विकसित हो तो अतीत का हमारा चित्र अधिक मानवीय और प्रामाणिक हो सकता है। सारांश यह है कि इतिहास की रचना में पर्याप्त सामग्री, वैज्ञानिक ढंग से उसकी जाँच, उससे प्राप्त ज्ञान का महत्व समझने के विवेक के साथ ही साथ ऐतिहासक कल्पना की शक्ति तथा सजीव चित्रण की क्षमता की आवश्यकता है। स्मरण रखना चाहिए कि इतिहास न तो साधारण परिभाषा के अनुसार विज्ञान है और न केवल काल्पनिक दर्शन अथवा साहित्यिक रचना है। इन सबके यथोचित संमिश्रण से इतिहास का स्वरूप रचा जाता है।

इतिहास न्यूनाधिक उसी प्रकार का सत्य है जैसा विज्ञान और दर्शनों का होता है। जिस प्रकार विज्ञान और दर्शनों में हेरफेर होते हैं उसी प्रकार इतिहास के चित्रण में भी होते रहते हैं। मनुष्य के बढ़ते हुए ज्ञान और साधनों की सहायता से इतिहास के चित्रों का संस्कार, उनकी पुरावृत्ति और संस्कृति होती रहती है। प्रत्येक युग अपने-अपने प्रश्न उठाता है और इतिहास से उनका समाधान ढूंढ़ता रहता है। इसीलिए प्रत्येक युग, समाज अथवा व्यक्ति इतिहास का दर्शन अपने प्रश्नों के दृष्टिबिंदुओं से करता रहता है। यह सब होते हुए भी साधनों का वैज्ञानिक अन्वेषण तथा निरीक्षण, कालक्रम का विचार, परिस्थिति की आवश्यकताओं तथा घटनाओं के प्रवाह की बारीकी से छानबीन और उनसे परिणाम निकालने में सर्तकता और संयम की अनिवार्यता अत्यंत आवश्यक है। उनके बिना ऐतिहासिक कल्पना और कपोलकल्पना में कोई भेद नहीं रहेगा।

इतिहास की रचना में यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि उससे जो चित्र बनाया जाए वह निश्चित घटनाओं और परिस्थितियों पर दृढ़ता से आधारित हो। मानसिक, काल्पनिक अथवा मनमाने स्वरूप को खड़ा कर ऐतिहासिक घटनाओं द्वारा उसके समर्थन का प्रयत्न करना अक्षम्य दोष होने के कारण सर्वथा वर्जित है। यह भी स्मरण रखना आवश्यक है कि इतिहास का निर्माण बौद्धिक रचनात्मक कार्य है अतएव अस्वाभाविक और असंभाव्य को प्रमाणकोटि में स्थान नहीं दिया जा सकता। इसके सिवा इतिहास का ध्येयविशेष यथावत् ज्ञान प्राप्त करना है। किसी विशेष सिद्धांत या मत की प्रतिष्ठा, प्रचार या निराकरण अथवा उसे किसी प्रकार का आंदोलन चलाने का साधन बनाना इतिहास का दुरुपयोग करना है। ऐसा करने से इतिहास का महत्व ही नहीं नष्ट हो जाता, वरन् उपकार के बदले उससे अपकार होने लगता है जिसका परिणाम अंततोगत्वा भयावह होता है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • इतिहास
  • प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी के साधन

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • भारतीय इतिहास के स्रोत - civilservicesstrategist.com पर (हिन्दी में)।
  • मध्यकालीन भारतीय इतिहास के स्रोत - www.vivacepanorama.com पर (हिन्दी में)।

यह विषय निम्न पर आधारित एक श्रृंखला का हिस्सा हैं:

भारत का इतिहास

प्राचीन

  • निओलिथिक, c. 7600 – c. 3300 BCE
  • सिन्धु घाटी सभ्यता, c. 3300 – c. 1700 BCE
  • उत्तर-सिन्धु घाटी काल, c. 1700 – c. 1500 BCE
  • वैदिक सभ्यता, c. 1500 – c. 500 BCE
    • प्रारम्भिक वैदिक काल
      • श्रमण आन्दोलन का उदय
    • पश्चात वैदिक काल
      • जैन धर्म का प्रसार - पार्श्वनाथ
      • जैन धर्म का प्रसार - महावीर
      • बौद्ध धर्म का उदय
  • महाजनपद, c. 500 – c. 345 BCE
  • नंद वंश, c. 345 – c. 322 BCE
  • मौर्या वंश, c. 322 – c. 185 BCE
  • शुंग वंश, c. 185 – c. 75 BCE
  • कण्व वंश, c. 75 – c. 30 BCE
  • कुषाण वंश, c. 30 - c. 230 CE
  • सातवाहन वंश, c. 30 BCE - c. 220 CE

शास्त्रीय

  • गुप्त वंश, c. 200 - c. 550 CE
  • चालुक्य वंश, c. 543 - c. 753 CE
  • हर्षवर्धन वंश, c. 606 CE - c. 647 CE
  • कार्कोट वंश, c. 724 - c. 760 CE
  • अरब अतिक्रमण, c. 738 CE
  • त्रिपक्षीय संघर्ष, c. 760 - c. 973 CE
    • गुर्जर-प्रतिहार, पाल और राष्ट्रकूट साम्राज्य
  • चोल वंश, c. 848 - c. 1251 CE
  • द्वितीय चालुक्य वंश(पश्चिमी चालुक्य), c. 973 - c. 1187 CE

मध्ययुगीन

  • दिल्ली सल्तनत, c. 1206 - c. 1526 CE
    • ग़ुलाम वंश
    • ख़िलजी वंश
    • तुग़लक़ वंश
    • सैयद वंश
    • लोदी वंश
  • पाण्ड्य वंश, c. 1251 - c. 1323 CE
  • विजयनगर साम्राज्य, c. 1336 - c. 1646 CE
  • बंगाल सल्तनत, c. 1342 - c. 1576 CE
  • मुग़ल वंश, c. 1526 - c. 1540 CE
  • सूरी वंश, c. 1540 - c. 1556 CE
  • मुग़ल वंश, c. 1556 - c. 1707 CE
  • मराठा साम्राज्य, c. 1674 - c. 1818 CE

आधुनिक

  • मैसूर की राजशाही, c. 1760 - c. 1799 CE
  • कम्पनी राज, c. 1757 - c. 1858 CE
  • सिख साम्राज्य, c. 1799 - c. 1849 CE
  • प्रथम स्वतंत्रता संग्राम, c. 1857 - c. 1858 CE
  • ब्रिटिश राज, c. 1858 - c. 1947 CE
    • स्वतन्त्रता आन्दोलन
  • स्वतन्त्र भारत, c. 1947 CE - वर्तमान

सम्बन्धित लेख

  • भारतीय इतिहास की समयरेखा
  • भारतीय इतिहास में वंश
  • आर्थिक इतिहास
  • भाषाई इतिहास
  • वास्तुशास्त्रीय इतिहास
  • कला का इतिहास
  • साहित्यिक इतिहास
  • दार्शनिक इतिहास
  • धर्म का इतिहास
  • संगीतमय इतिहास
  • शिक्षा का इतिहास
  • मुद्रांकन इतिहास
  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी का इतिहास
  • आविष्कारों और खोजों की सूची
  • सैन्य इतिहास
  • नौसैन्य इतिहास

  • दे
  • वा
  • सं

भारत के इतिहास लेखन में भारत के इतिहास को विकसित करने के लिए विद्वानों द्वारा अध्ययन, स्रोतों, महत्वपूर्ण विधियों और व्याख्याओं का उल्लेख किया जाता है।

हाल के दशकों में इतिहास लेखन के चार मुख्य स्कूलों दर्ज किए गए हैं- कैम्ब्रिज, राष्ट्रवादी, मार्क्सवादी, और सबॉल्टर्न। इससे यह समझने की कोशिश की जाती है कि फ़लाँ इतिहासकार भारत का अध्ययन करते समय कौनसी बातों को अहमियत देता है। "ओरिएंटलिस्ट" दृष्टिकोण, जो एक समय पर काफ़ी अधिक प्रचलित था, भारत को एक अबूझ और पूर्ण रूप से आध्यात्मिक देश के तौर पर देखा करता था। आज के समय में इस दृष्टिकोण को इतिहासकार गम्भीरता से नहीं लेते हैं।[1]

" कैम्ब्रिज स्कूल", जिसका नेतृत्व अनिल सील,[2] गॉर्डन जॉनसन,[3] रिचर्ड गॉर्डन[4], और डेविड ए॰ वाशब्रुक[5] करते हैं विचारधारा पर काम ज़ोर डालता है। यह अंग्रेज़ शासकों के नज़रिए से इतिहास बताता है। इसमें अक्सर भारतीयों के भ्रष्टाचार और अंग्रेज़ों के आधुनिकीकरण संबंधी कार्यों को बढ़ा-चढ़ा कर बताया जाता है। इसलिए, इतिहास लेखन के इस स्कूल की पश्चिमी पूर्वाग्रह या यूरोसेंट्रिज़्म के लिए आलोचना की जाती है।[6]

राष्ट्रवादी स्कूल कांग्रेस, गांधी, नेहरू और उच्च स्तरीय राजनीति पर ध्यान केंद्रित करता है। इसने १८५७ के विद्रोह को मुक्ति के युद्ध के रूप में देखा, और गांधी की 'भारत छोड़ो आन्दोलन' 1942 में ऐतिहासिक घटनाओं को परिभाषित करने के रूप में इसकी शुरूआत हुई। इतिहास लेखन के इस स्कूल को एलिटिज़्म के लिए आलोचना मिली है। [7]

मार्क्सवादियों ने आर्थिक विकास, भूस्वामित्व और औपनिवेशिक काल में भारत के वर्ग संघर्ष और औपनिवेशिक काल के दौरान विखंडन पर ध्यान केंद्रित किया है। मार्क्सवादियों ने गांधी के आंदोलन को बूर्जुआ अभिजात्य वर्ग के एक उपकरण के रूप में देखा, जिससे उसने (संभावित रूप से) क्रांतिकारी ताकतों का अपने स्वयं के हित के लिए प्रयोग किया। मार्क्सवादियों पर अपनी विचारधारा से बहुत अधिक "प्रभावित" होने का आरोप लगाया जाता है।[8]

"सबॉल्टर्न स्कूल", 1980 में रणजीत गुहा और ज्ञान प्रकाश द्वारा शुरू किया गया था।[9] यह लोककथाओं, कविता, पहेलियों, कहावतों, गीतों, मौखिक इतिहास और मानवशास्त्र से प्रेरित तरीकों का उपयोग करते हुए किसानों और राजनेताओं से "नीचे से" इतिहास दिखाने पर ध्यान केंद्रित करता है। यह 1947 से पहले औपनिवेशिक युग पर केंद्रित है और आम तौर पर वर्ग से अधिक जाति पर ज़ोर देता है, जिससे मार्क्सवादी स्कूल को झुंझलाहट होती है।[10]

अभी हाल ही में, हिंदू राष्ट्रवादियों ने भारतीय समाज में "हिंदुत्व" का समर्थन करने के लिए इतिहास का एक संस्करण बनाया है। यह विचारधारा अभी भी विकास की प्रक्रिया में है।[11] मार्च 2012 में, हार्वर्ड विश्वविद्यालय में तुलनात्मक धर्म और भारतीय अध्ययन के प्रोफेसर डायना एल॰ एक ने अपनी पुस्तक "इंडिया: ए सैक्रेड जियोग्राफी" में लिखा है, कि "भारत" का विचार अंग्रेजों या मुगलों और इससे बहुत पहले का है। यह सिर्फ क्षेत्रीय चिन्हों और पहचानों का एक समूह नहीं था और न ही यह जातीय या नस्लीय था।[12][13][14][15]

यह सभी देखें[संपादित करें]

  • भारत का इतिहास

आगे की पढ़ाई[संपादित करें]

  • बालगंगाधर, एसएन (2012)। भारत के अध्ययनों को फिर से समझना। नई दिल्ली: ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस।
  • भट्टाचार्जी, जेबी हिस्टोरियंस एंड हिस्टोरियोग्राफी ऑफ़ नॉर्थ ईस्ट इंडिया (2012)
  • Bannerjee, Dr. Gauranganath (1921). India as known to the ancient world. Humphrey Milford, Oxford University Press, London. मूल से 29 दिसंबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 फ़रवरी 2020.
  • बोस, मिहिर। "इंडियाज़ मिसिंग हिस्टोरियंस: मिहिर बोस ने पैराडॉक्स दैट इंडिया, ए लैंड ऑफ़ हिस्ट्री, हिस्ट्री ऑफ़ अ सप्रिनिंगली वीक ट्रेडिशन ऑफ हिस्टोरियोग्राफी", हिस्ट्री टुडे 57 # 9 (2007) पीपी 34+। ऑनलाइन
  • चक्रवर्ती, दिलीप के।: औपनिवेशिक विज्ञान, 1997, मुंशीराम मनोहरलाल: नई दिल्ली।
  • पालित, चित्ताब्रत, इंडियन हिस्टोरियोग्राफी (2008)।
  • इंडियन हिस्ट्री एंड कल्चर सोसायटी, देवहुति, डी। (2012)। भारतीय इतिहासलेखन में पूर्वाग्रह।
  • इलियट, हेनरी मियर्स; जॉन डॉसन (1867-77)। भारत का इतिहास, जैसा कि उसके अपने इतिहासकारों ने बताया है। मुहम्मदन काल । लंदन: ट्रबनर एंड कंपनी
  • इंडेन, आरबी (2010)। भारत की कल्पना करना। ब्लूमिंगटन, इंडस्ट्रीज़: इंडियाना यूनिवर्सिटी प्रेस।
  • जैन, एम। द इंडिया वे सॉ  : विदेशी खाते (4 खंड) दिल्ली: महासागर पुस्तकें, 2011।
  • कहन, यास्मीन। "याद करना और भूल जाना: मार्टिन गेगनर और बार्ट ज़िनो, एड्स। दक्षिण एशिया और द्वितीय विश्व युद्ध ', द हेरिटेज ऑफ़ वार (रूटलेज, 2011) पीपी 177-193।
  • मंटेना, आर। (2016)। भारत में आधुनिक इतिहासलेखन की उत्पत्ति: पुरातनपंथीवाद और दार्शनिक 1780-1880। पालग्रेव मैकमिलन।
  • मित्तल, एस। सी। इंडिया विकृत: 19 वीं शताब्दी के लेखकों पर ब्रिटिश इतिहासकारों का एक अध्ययन (1995)
  • आरसी मजूमदार, मॉडेम इंडिया में इतिहास (बॉम्बे, 1970)  
  • Rosser, Yvette Claire (2003). Curriculum as Destiny: Forging National Identity in India, Pakistan, and Bangladesh (PDF) (Dissertation). University of Texas at Austin. मूल (PDF) से 2008-09-11 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2018-09-17.
  • अरविंद शर्मा, हिंदू धर्म और इतिहास की अपनी भावना (ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 2003)  
  • ई। श्रीधरन, ए टेक्स्टबुक ऑफ हिस्टोरियोग्राफी, 500 ई.पू. से 2000 ई। (2004)
  • शौरी, अरुण (2014)। प्रख्यात इतिहासकार: उनकी तकनीक, उनकी लाइन, उनकी धोखाधड़ी। नोएडा, उत्तर प्रदेश, भारत  : हार्पर कॉलिन्स पब्लिशर्स।   आईएसबीएन   9789351365914
  • Trautmann, Thomas R. (1997). Aryans and British India. Berkeley: University of California Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-585-10445-4. मूल से 1 अप्रैल 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 फ़रवरी 2020. Trautmann, Thomas R. (1997). Aryans and British India. Berkeley: University of California Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-585-10445-4. मूल से 1 अप्रैल 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 फ़रवरी 2020. Trautmann, Thomas R. (1997). Aryans and British India. Berkeley: University of California Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-585-10445-4. मूल से 1 अप्रैल 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 फ़रवरी 2020.
  • विश्वनाथन, जी। (2015)। विजय के मुखौटे: भारत में साहित्य अध्ययन और ब्रिटिश शासन।
  • एंटोनियो डी निकोलस, कृष्णन रामास्वामी, और अदिति बनर्जी (सं।) (2007), द सेकेंडिंग द सेक्रेड: एन एनालिसिस ऑफ़ हिंदूइज़ स्टडीज़ इन अमेरिका (प्रकाशक: रूपा एंड कंपनी) )
  • विश्व अद्लूरी, जॉयदीप बागचे: द नय साइंस: ए हिस्ट्री ऑफ़ जर्मन इंडोलॉजी । ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, न्यूयॉर्क 2014,   ( परिचय, पी।   1-29)।
  • वार्डर, एके, भारतीय इतिहासलेखन (1972) से परिचय ।
  • विंक्स, रॉबिन, एड। द ऑक्सफ़ोर्ड हिस्ट्री ऑफ़ द ब्रिटिश एम्पायर: वॉल्यूम V: हिस्टोरियोग्राफी (2001)
  • वीकेजेनट, टीएन (2009)। सलमान रुश्दी और भारतीय इतिहास लेखन: देश को अस्तित्व में लिखना। बेसिंगस्टोक: पालग्रेव मैकमिलन।

संदर्भ[संपादित करें]

  1. Prakash, Gyan (April 1990). "Writing Post-Orientalist Histories of the Third World: Perspectives from Indian Historiography". Comparative Studies in Society and History. 32 (2): 383–408. JSTOR 178920. डीओआइ:10.1017/s0010417500016534.
  2. Anil Seal, The Emergence of Indian Nationalism: Competition and Collaboration in the Later Nineteenth Century (1971)
  3. Gordon Johnson, Provincial Politics and Indian Nationalism: Bombay and the Indian National Congress 1880–1915 (2005)
  4. Aravind Ganachari, "Studies in Indian Historiography: 'The Cambridge School'", Indica, March 2010, 47#1, pp 70–93
  5. Rosalind O'Hanlon and David Washbrook, eds. Religious Cultures in Early Modern India: New Perspectives (2011)
  6. Hostettler, N. (2013). Eurocentrism: a marxian critical realist critique. Taylor & Francis. पृ॰ 33. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-135-18131-4. मूल से 4 मई 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 January 2017.
  7. "Ranjit Guha, "On Some Aspects of Historiography of Colonial India"" (PDF). मूल (PDF) से 11 अप्रैल 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 फ़रवरी 2020.
  8. Bagchi, Amiya Kumar (January 1993). "Writing Indian History in the Marxist Mode in a Post-Soviet World". Indian Historical Review. 20 (1/2): 229–244.
  9. Prakash, Gyan (December 1994). "Subaltern studies as postcolonial criticism". American Historical Review. 99 (5): 1475–1500. JSTOR 2168385. डीओआइ:10.2307/2168385.
  10. Roosa, John (2006). "When the Subaltern Took the Postcolonial Turn". Journal of the Canadian Historical Association. 17 (2): 130–147. डीओआइ:10.7202/016593ar.
  11. Menon, Latha (August 2004). "Coming to Terms with the Past: India". History Today. खण्ड 54 अंक. 8. पपृ॰ 28–30.
  12. "Harvard scholar says the idea of India dates to a much earlier time than the British or the Mughals". मूल से 2 अप्रैल 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 फ़रवरी 2020.
  13. "In The Footsteps of Pilgrims". मूल से 7 अक्तूबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 फ़रवरी 2020.
  14. "India's spiritual landscape: The heavens and the earth". The Economist. 24 March 2012. मूल से 10 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 फ़रवरी 2020.
  15. Dalrymple, William (27 July 2012). "India: A Sacred Geography by Diana L Eck – review". The Guardian. मूल से 8 दिसंबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 फ़रवरी 2020.

इतिहास लेखन क्या है समझाइए?

इतिहास-लेख या इतिहास-शास्त्र (Historiography) से दो चीजों का बोध होता है- (१) इतिहास के विकास एवं क्रियापद्धति का अध्यन तथा (२) किसी विषय के इतिहास से सम्बन्धित एकत्रित सामग्री। इतिहासकार इतिहासशास्त्र का अध्ययन विषयवार करते हैं, जैसे- भारत का इतिहास, जापानी साम्राज्य का इतिहास आदि।

इतिहास से क्या समझते हैं इतिहास की प्रकृति और महत्व का वर्णन करें?

इतिहास मानव जीवन की समस्त क्रियाओं पर प्रकाश डालने वाला एक कथ्य या कहानी है जिसमें मानव जीवन की समस्त क्रियाओं तथा उत्थान पतन की झाँकी हमें देखने को मिलती है। इसमें समस्त कृत्यों को क्रमवार - ढंग से निष्पक्ष रुप से प्रस्तुत करने की क्षमता है। इतिहास नामक शिक्षा - शाखा की उत्पति सर्वप्रथम यूनान में मिलती है।

भारतीय इतिहास लेखन क्या है?

भारत के इतिहास लेखन में भारत के इतिहास को विकसित करने के लिए विद्वानों द्वारा अध्ययन, स्रोतों, महत्वपूर्ण विधियों और व्याख्याओं का उल्लेख किया जाता है। हाल के दशकों में इतिहास लेखन के चार मुख्य स्कूलों दर्ज किए गए हैं- कैम्ब्रिज, राष्ट्रवादी, मार्क्सवादी, और सबॉल्टर्न।

इतिहास लेखन का मुख्य उद्देश्य क्या है?

विशेष रूप से, एक इतिहासलेखन प्रभावशाली विचारकों की पहचान करता है और किसी विशेष विषय पर विद्वानों की बहस के आकार को प्रकट करता है। इतिहासलेखन पत्र लिखने का मुख्य उद्देश्य किसी विशेष विषय पर अन्य इतिहासकारों की विद्वता को व्यक्त करना है, न कि विषय का विश्लेषण करना