जल प्रदूषण (Water Pollution)वस्तुत: जल प्रदुषण का अर्थ है- हानिकारक अनुपात में विजातीय सामग्री का जल में प्रवेश। Show
जल प्रदूषण का चित्र जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 में जल प्रदूषण की व्याख्या निम्नलिखित प्रकार से दी गयी है- "जल प्रदूषण से तात्पर्य जल के ऐसे संदूषण या जल के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में ऐसे परिवर्तन या जल में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मल-मूत्र या व्यावसायिक निःस्त्राव या किसी अन्य द्रव या ठोस पदार्थ के उत्सर्जन से है, जो लोक संकट उत्पन्न करे या कर सके या जो ऐसे जल का सार्वजनिक स्वास्थ्य या सुरक्षा के लिए या जलीय जीवों के जीवन या स्वास्थ्य के लिए हानिकारक या क्षतिकर हों। jal pradushan kya hai जल प्रदूषण इन हिंदी जल प्रदूषण के स्त्रोत (Sources of Water Pollution)सामान्य जल प्रदूषण के दो स्त्रोत हैं। jal pradushan ke karan
1. प्राकृतिक स्त्रोत (Natural Sources) प्राकृतिक रूप से प्राप्त जल में भी अशुद्धि होती है। प्राकृतिक रूप से जल में प्रदूषण धीमी गति से होता रहता है। प्राकृतिक स्त्रोतों का जल जहां बहकर आता है या जहां एकत्रित होता है, वहां यदि खनिजों की मात्रा अधिक होती है तो वे खनिज पानी में मिल जाते हैं। इनकी मात्रा में वृद्धि हो जाने से जल प्रदूषित हो जाता है। भूमि की सतह से बहकर गया हुआ जलः सतह से बहकर गए हुए प्रदूषक (चक्रवाती जल) भूमि की प्रकृति पर निर्भर करते है जिससे बहकर यह आया है। कृषि भूमि से बहकर आए जल कीटनाशक अवशेषों तथा क्षेत्र से बहकर आए जल का जैविक अपघटन हो जाता है क्योंकि ये कार्बनिक प्रदूषक को उत्पन्न करते है। औद्योगिक स्थलों से विभिन्न प्रकार के प्रदूषक जैसे भारी धातु होता है। ये सभी प्रदूषक बहकर हमारे सतह जल तथा जल स्रोत को भारी मात्रा में संक्रमित करते है। 2. मानवीय स्त्रोत (Human Sources) जल प्रदूषण के महत्वपूर्ण कारक मानवीय स्त्रोत हैं। इन स्त्रोतों में प्रमुख निम्न है-
जल प्रदूषक हो सकते है
जल प्रदूषण के प्रभाव (Effects of Water Pollution)जलीय पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव (Effects on Aquatic Ecosystem) जल प्रदूषण से जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक अभिलक्षणों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमाण्ड (Biological Oxygen Demand) जल प्रदूषण को रोकने के लिए BOD परीक्षण किया जाता हैं। जैसे-जैसे जल में प्रदूषण की मात्रा बढ़ती हैं, जल में सूक्ष्म जीवोंकी संख्या में वृद्धि होती हैं, फलस्वरूप ऑक्सीजन की खपत अधिक होने लगती हैं, अर्थात BOD बढ़ जाती हैं, और जल में ऑक्सीजन की कमी हो जाती हैं। यह जलीय जीवों, मछली आदि के लिए जीवन का संकट उत्पन्न करता हैं। ऑक्सीजन की कमी के कारण CH4, H2S, NH3, जैसे प्रदूषण तत्व उत्पन्न हो जाते हैं, जिससे जल में दुर्गन्ध उत्पन्न हो जाती हैं। जैविक ऑक्सीजन मांग ऑक्सीजन की वह मात्रा है, जो सामान्य ताप पर किसी जल के 1 लीटर भाग को 5 दिन में सूक्ष्म जीवों में उपापचयी क्रिया के लिए आवश्यक होती है। यह परीक्षण जल में उपस्थित जैव ऑक्सीकरणीय कार्बनिक पदार्थो की मात्रा का आकलन करता है। जल जितना ही अधिक प्रदूषित होगा, प्रदूषित पदार्थो के विघटन के लिए उसी अनुपात में अधिक ऑक्सीजन की मांग होगी। स्पष्ट है कि BOD जल प्रदूषण के मानक निर्धारण का महत्वपूर्ण घटक है। सामान्यतः नदियों में BOD का स्तर 10 मिलीग्राम लीटर होना चाहिए। जलीय जीवों के लिए घुलित ऑक्सीजन (Dissolved Oxygen) अर्थात D.0. की निर्धारित मात्रा का बहुत महत्व है। घुलित ऑक्सीजन से ही जलीय जीव जीवित रहते हैं। जल में घुलित ऑक्सीजन की कमी होने से जलचरों के जीवन को खतरा उत्पन्न हो जाता है। जल जल में प्रदूषण बढ़ता है तो प्रदूषक पदार्थो में फास्फोरस आदि कुछ ऐसे पोषक पदार्थ होते हैं, जिनकी उपस्थिति के कारण पादप सुपोषण (Eutrophication) बढ़ता है और पादपों तथा कुछ सूक्ष्म जीवों की संख्या में वृद्धि हो जाती है, परिणामस्वरूप BOD बढ़ जाती है और जल में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, जिसके कारण मछली जैसे अन्य जलचर मरने लगते है। ऑक्सीजन की कमी से होने वाले अनाक्सी श्वसन के चलते द्वितीयक प्रदूषक जैसे- मीथेन, अमोनिया तथा हाइड्रोजन सल्फाइड आदि बनने लगते हैं जिससे जल में दुर्गन्ध आने लगती है। विदित है कि पेयजल में घुलित ऑक्सीजन 5 मिग्रा/लीटर एवं स्नान के लिए जल में 4 मिग्रा/लीटर निर्धारित की गयी है, कि यदि जल में घुलित ऑक्सीजन का मात्रा 4 मिलीग्राम/लीटर से कम होने पर जल को प्रदूषित कहा जाता है। मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव (Effects on Human Health) घरेलू मल जल वायरस, बैक्टीरिया, परजीवी प्रोटोजोआ तथा अन्य कृमियों जैसे जीवाणुओं को ढोता है। इसलिए संक्रमित जल से होने वाली बीमारियों जैसे पीलिया, हैजा, टाइफाइड, अमीबी अतिसार के जीवाणु होते हैं। इस तरह का संक्रमित जल पीने, नहाने, तैरने एवं खेती योग्य नहीं होता है। भारी धातु संक्रमित जल से गंभीर स्वास्थ्य समस्या हो सकती है। पारा द्वारा जहरीलेपन का शिकार (मिनामाटा बीमारी) जापान की मिनामाटा खाड़ी से Hg संक्रमित मछलियों खाने के कारण हुआ। इसकी जांच 1952 में हुई। पारा मिश्रण में अवशिष्ट जल बैक्टिरिया क्रियाओं द्वारा अत्यधिक जहरीले मिथाइल पारा में बदल जाते है, जिससे अंग होंठ तथा जीभ काम करना बंद कर देते है, इसके अलावा बहरापन, आंखों का धुंधलापन तथा मानसिक असंतुलन हो जाता है। कैडमियम, प्रदूषण से इटाई-इटाई बीमारी (आउच-आउच बीमारी हड्डियों तथा जोड़ों की दर्दनाक बीमारी) एवं लीवर तथा फेफड़े का कैंसर हो जाता है। प्रदूषित जल में उपस्थित वायरस, जीवाणुओं, परजीवियों एवं कृमियों के कारण संक्रमण जन्य रोगों, जैसे- पीलिया, हैजा, टाइफाइड, अतिसार, हेपेटाइटिस, किडनी खराब आदि का खतरा रहता है। यह संक्रमित जल पीने, नहाने, खाना बनाने आदि के लिये अनुपयुक्त होता है। भारी धातुओं से युक्त जल के प्रयोग से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं। पारायुक्त जल से प्रभावित मछलियों के सेवन से 1956 में जापान में मिनामाटा बीमारी से अनेक लोगों की मौत हो गई थी। अपशिष्ट जल में उपस्थित पारा मिश्रण सूक्ष्म जैविक क्रियाओं द्वारा अत्यधिक विषैले पदार्थ मिथाइल पारा (Methyl Mercury) में बदल जाता है जिससे अंगों, होंठ, जीभ आदि में संवेदनशून्यता; बहरापन, आँखों का धुंधलापन एवं मानसिक असंतुलन हो जाता है। कैडमियम प्रदूषण से 'इटाई-इटाई' रोग हो जाता है जिससे हड्डियों एवं जोड़ों में तीव्र दर्द होता है तथा यकृत एवं फेफड़े का कैंसर हो जाता है। सीसा युक्त जल से एनीमिया, सिर दर्द, मांसपेशियों की कमजोरी एवं मसूड़ों में नीलापन आदि प्रभाव दिखाई देते हैं। एस्बेस्टस के रेशों से युक्त जल द्वारा एस्बेस्टोसिस (फेफड़े के कैंसर का एक रूप) रोग हो जाता है। आर्थिक प्रभाव जल प्रदूषण का आर्थिक प्रभाव बहुत अधिक दृष्टिगोचर होता है। स्वच्छ पानी (Mineral Water) के मूल्य की तुलना में प्रदूषित पानी को स्वच्छ करना महँगा पड़ता है। जल प्रदूषण से मछलियों व अन्य जलीय जीवों पर प्रभाव पड़ता है। इसका नकारात्मक प्रभाव पर्यटन पर भी पड़ता के है। एक अनुमान अनुसार, जल प्रदूषण के कारण प्रतिवर्ष $50 बिलियन का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष नुकसान होता है। जल प्रदूषण का नियंत्रण (Control of Water Pollution)जल प्रदूषण को निम्नलिखित उपायों द्वारा प्रभावशाली तरीके से अपनाकर नियंत्रित किया जा सकता है
भूमिगत जल प्रदूषण (Ground Water Pollution)औद्योगिक, नगरीय एवं कृषि अपशिष्टों से युक्त जल के रिसकर भूमिगत जल से मिल जाने से भूमिगत जल संक्रमित हो जाता है। स्वच्छ पानी की कुल मात्रा में भूमिगत जल लगभग 30 प्रतिशत है। भूमिगत जल 1.5 बिलियन लोगों के लिये जल का प्राथमिक स्रोत है। भूमिगत जल में कमी मानव के लिये कृषि समेत अन्य गतिविधियों के लिये विकट समस्या पैदा करती है। भारत में कई जगहों पर भूमिगत जल को औद्योगिक तथा नगरीय अपशिष्टों उत्सर्जन सीवेज चैनलों तथा कृषि से बहकर आए जलों से होने वाले क्षरण के कारण संक्रमण का खतरा है। उदाहरण के लिए पेयजल में नाइट्रेट की अत्यधिक मात्रा मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है तथा नवजात शिशुओं की मृत्यु भी हो सकती है। यह हीमोग्लोबिन के साथ प्रतिक्रिया कर असक्रिय मिथेमोग्लोबीन बनाता है जो कि ऑक्सीजन यातायात को विकृत बना देता है। इसे मिथेमोग्लोबीनेमिया या ब्लू बेबी सिंड्रोम कहते है। पेयजल में फ्लूराइड की अत्यधिक मात्रा दांतों की विषमताओं को जन्म देती है हड्डी में कड़ापन तथा अकड़न आ जाती है तथा जोड़ों का दर्द होता है (कंकाल फ्लूरोसिस)। भारत में कई जगहों पर भूमिगत जल आर्सेनिक से संक्रमित होते हैं खासकर प्रकृति में पाए जाने वाले बेडरॉक के आर्सेनिक से। भूमिगत जल के अत्यधिक उपयोग से भूमि तथ चट्टानों के स्रोतों से आर्सेनिक का निक्षालन शुरू हो सकता मत हो सकता है। आर्सेनिक के लगातार संपर्क से ब्लैक फुट बीमारी हो जाती है। आर्सेनिक से डायरिया, पेरिफेरल न्यूरीटिस तथा हाइपरकेराटोसिस तथा फेफड़े एवं त्वचा का कैंसर हो सकता है। भूमिगत जल प्रदूषण का प्रभाव (Effects of Ground Water Pollution) पेयजल में नाइट्रेट की अधिक मात्रा से यह नवजात शिशुओं के हीमोग्लोबिन के साथ मिलकर मिथेमोग्लोबिन बनाता है जो ऑक्सीजन परिवहन में बाधा उत्पन्न करता है। इससे नवजात शिशुओं की मृत्यु हो जाती है। इस रोग को मिथेमोग्लोबीनेमिया या ब्लू बेबी सिंड्रोम कहा जाता है। पेयजल में फ्लोराइड की अधिकता से फ्लोरोसिस नामक रोग हो जाता है जिससे दाँत एवं हड्डियाँ कमज़ोर हो जाती हैं। आर्सेनिक युक्त जल के प्रयोग से ब्लैक फुट नामक चर्म रोग हो जाता है। इसके अलावा आर्सेनिक से डायरिया, हाइपरकिरेटोसिस, पेरिफेरल न्यूरीटिस तथा फेफड़े एवं त्वचा का कैंसर हो जाता है। जल गुणवत्ता को सुधारना (Improving Water Quality)औद्योगिक तथा नगरीय अपशिष्ट जल को उत्सर्जन उपचार संयंत्र (ETP) में शुद्ध किया जाता है तब इसे जलाशयों में डाला जाता है। साधारणत: निम्नलिखित उपचार किए जाते है।
जल प्रदूषण पर नियंत्रण के लिये सरकारी प्रयास
जल निकायों का संरक्षण (Conservation of Water Bodies) भारत की अधिकतर नदियाँ इस समय प्रदूषित नालों के समान बन गई हैं। भारत के आधे तालाब, झील प्रदूषण के शिकार हैं तथा इनका जल पीने योग्य नहीं रह गया है। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन कार्यरत 'राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय' का कार्य केन्द्र प्रायोजित स्कीमों 'राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (NRCP)' एवं 'जलीय पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण हेतु राष्ट्रीय योजना' (NPCA) के तहत नदियों, झीलों एवं नम भूमियों के संरक्षण के लिये राज्य सरकारों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है। गंगा एक्शन प्लान (GAP) देश की प्रमुख नदियों में से एक तथा स्वयं का निर्मलीकरण (गंगा में पाए जाने वाले वाइरस जैसे Bacteriophage वगैरह जीवाणु आदि को खा जाते हैं।) करने वाली गंगा आज लगभग अपने अपवाह के आधे भाग में प्रदूषित हो गई है। वर्तमान में 50,000 से अधिक आबादी वाले 100 से अधिक शहरों का असंसाधित मल-अपशिष्ट गंगा में अपवाहित किया जाता है तथा हज़ारों की संख्या में लाशों व जले हुए अवशेषों को इसमें प्रवाहित किया जाता है। गंगा बेसिन में भारत की लगभग 35 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा 'केन्द्रीय गंगा प्राधिकरण' (CGA) का गठन कर 1985 में गंगा एक्शन प्लान (GAP) की शुरुआत की गई। GAP-I सन् 1986 से 1993 तक चला। राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (National River Conservation Plan) 1995 में केन्द्रीय गंगा प्राधिकरण (CGA) का नाम बदलकर 'राष्ट्रीय नदी संरक्षण प्राधिकरण' (NRCA) कर दिया गया था। गंगा कार्ययोजना का विलय NRCP के साथ कर दिया गया। वर्तमान में इसमें 19 राज्यों में फैले 121 शहरों की 40 नदियों के प्रदूषित भाग को शामिल किया गया है।
भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (CAG) के आदेश पर पर्यावरण शोध प्रयोगशाला (ERL) लखनऊ ने जल की गुणवत्ता के परीक्षणोपरांत जल को पांच श्रेणियों में विभक्त किया है-
जलीय पारिस्थितिकी प्रणाली के संरक्षण के लिये राष्ट्रीय योजना (National Plan for Conservation of Aquatic Ecosystem : NPCA) झीलों एवं नम भूमियों के संरक्षण के लिये पूर्व में पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय द्वारा केन्द्र प्रायोजित योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा था-
दोहराव से बचने एवं बेहतर समन्वय के लिये इन दोनों योजनाओं को एकीकृत कर NPCA आरंभ की गई। योजना की लागत को केन्द्र व राज्य सरकारों में क्रमश: 70:30 के अनुपात में तथा विशेष राज्यों के मामले में 90:10 में बाँटा गया। इस योजना का लक्ष्य जल की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिये झीलों एवं नम भूमियों का संरक्षण एवं पुनरुद्धार तथा एक सामान्य विनियामक संरचना के माध्यम से जैव विविधता एवं पारिस्थितिकी में सुधार लाना है। यह योजना झीलों के प्रदूषण में कमी लाएगी एवं नम भूमि संसाधनों के तर्कसंगत इस्तेमाल में सहायता प्रदान करेगी। विश्व में लगभग 15 करोड़ लोग आर्सेनिक युक्त जल पीने को मजबूर हैं। भारत में 10 राज्यों में आर्सेनिक प्रदूषण से लोगों के स्वास्थ्य को गंभीर खतरा है। आर्सेनिक की 0.5 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक मात्रा स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। जल (प्रदूषण नियंत्रण एवं रोकथाम) अधिनियम 1974यह अधिनियम जल प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिये बनाया गया है। इसके माध्यम से विभिन्न बोर्डों का गठन किया गया है, जो जल प्रदूषण की रोकथाम व नियंत्रण करते हैं। अधिनियम द्वारा बोर्डों को अधिकार एवं कर्त्तव्य प्रदत्त किये गए हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कार्य निम्नलिखित हैं-
नमामि गंगे कार्यक्रमकेंद्र सरकार द्वारा जून 2014 में नमामि गंगे नामक फ्लैगशिप कार्यक्रम के लिये 20,000 करोड़ आवंटित किये गए। इस कार्यक्रम का उद्देश्य गंगा नदी का संरक्षण जीर्णोद्धार एवं प्रदूषण को खत्म करना है। नमामि गंगे कार्यक्रम के निम्नलिखित मुख्य स्तंभ हैं-
जल प्रदूषण क्या है इसके बचाव के उपाय लिखिए?जल प्रदूषण, जानकारी ही बचाव है. औद्योगिक और शहरी कचरे का निपटारा ... . नियम हों सख्ती से लागू ... . जल पुनर्चक्रण ... . मिट्टी के कटाव की रोकथाम ... . स्वच्छ भारत अभियान हो सकता है एक जरिया ... . जलस्रोतों एवं समुद्र तटों की सफाई ... . जैविक खेती को अपनाने की है आवश्यकता ... . जल प्रदूषण नियंत्रण के अन्य तरीकों पर एक नजर. जल प्रदूषण क्या है जल प्रदूषण के कारण बताइए?जल प्रदूषण का मुख्य कारण मानव या जानवरों की जैविक या फिर औद्योगिक क्रियाओं के फलस्वरूप पैदा हुये प्रदूषकों को बिना किसी समुचित उपचार के सीधे जल धारायों में विसर्जित कर दिया जाना है। जल में विभिन्न प्रकार के हानिकारक पदार्थों के मिलने से जल प्रदूषण होता है।
जल प्रदूषण क्या है जल प्रदूषण के कारण एवं रोकथाम के उपायों का विवेचन करें?जल प्रदूषण के कारण
नगरों में पर्याप्त मात्रा में जल का उपयोग किया जाता है और सीवरों तथा नालियों द्वारा अपशिष्ट जल को जलस्रोेतों में गिराया जाता है। जल स्रोतों में मिलने वाला यह अपशिष्ट जल अनेक विषैले रासायनों एवं कार्बनिक पदार्थों से युक्त होता है जिससे जल स्रोतों का स्वच्छ जल भी प्रदूषित हो जाता है।
जल प्रदूषण क्या है निबंध?मानव गतिविधियों के द्वारा उत्पन्न जहरीले प्रदूषकों के द्वारा पीने के पानी का मैलापन ही जल प्रदूषण है। जल कई स्रोतों के माध्यम से पूरा पानी प्रदूषित हो रहा है जैसे शहरी अपवाह, कृषि, औद्योगिक, तलछटी, अपशिष्ट भरावक्षेत्र से निक्षालन, पशु अपशिष्ट और दूसरी मानव गतिविधियाँ। सभी प्रदूषक पर्यावरण के लिये बहुत हानिकारक हैं।
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