जनसंख्या नीति के माध्यम से जनसंख्या का नियोजन किया जाता है। भारत में जनसंख्या नीति की शुरुआत स्वतन्त्रता के बाद से ही हो गया था लेकिन जनसंख्या को कोई समस्या नहीं मानने के कारण इस नीति पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया। तीसरी पंचवर्षीय योजना के समय जनसंख्या में तेजी से बढ़ने के कारण इस ओर अधिक ध्यान दिया गया। चौथी योजना में तो इस नीति को सबसे ज्यादा प्राथमिकता दी गई पाँचवीं योजना में आपातकाल के समय 16 अप्रैल, 1976 को राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की घोषणा की गई।
इसमें राज्य सरकारों को जनसंख्या नियन्त्रण हेतु ‘अनिवार्य बन्ध्याकरण’ का कानून बनाने का अधिकार दे दिया गया। इस अनिवार्यता के कारण सरकार का पतन हो गया तथा अगली सरकार ने 1977 में नई जनसंख्या नीति की घोषणा की जिसमें अनिवार्यता के स्थान पर स्वेच्छा के सिद्धान्त को महत्व प्रदान किया गया साथ ही ‘परिवार नियोजन कार्यक्रम’ का नाम बदलकर ‘परिवार कल्याण कार्यक्रम’ कर दिया गया।
इसके बाद जून 1981 में भी सरकार ने राष्ट्रीय जनसंख्या नीति में संशोधन किया।
सरकार ने 15 फरवरी, 2000 को नई राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की घोषणा की। इस नीति में जनसंख्या के जीवन-स्तर में गुणात्मक सुधार लाने के लिए तीन उद्देश्य निश्चित किये गये:
- तात्कालिक उद्देश्य: पर्याप्त मात्रा में गर्भ निरोधक उपायों का विस्तार करने के लिए स्वास्थ्य के बुनियादी ढ़ांचे का विकास करना।
- मध्यमकालीन उद्देश्य: कुल प्रजनन दर को सन् 2010 तक 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर तक लाना।
- दीर्घकालीन उद्देश्य: सन् 2045(अब 2070) तक जनसंख्या ऐसे स्तर पर स्थिर करना जो आर्थिक वृद्धि, सामाजिक विस्तार तथा पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से अनुकूल हो।
इस नीति में छोटे परिवार के प्रोत्साहन के विभिन्न प्रेरक उपायों की घोषणा की गई, जिनमें प्रमुख हैं: छोटे परिवार को बढ़ावा देने वाली पंचायतों एवं जिला परिषदों को केन्द्र सरकार द्वारा पुरष्कृत करना, गरीबी रेखा से नीचे के उन परिवारों को 5000 रूपये की स्वास्थ्य बीमा की सुविधा देना जिनके केवल दो बच्चे हैं और उन्होने बन्ध्याकरण करवा लिया है, बाल-विवाह निरोधक अधिनियम तथा प्रसव पूर्व लिंग परीक्षण तकनीकी निरोधक अधिनियम को कड़ाई से लागू किया जाना, गर्भपात सुविधा योजना को मजबूत करना, ग्रामीण क्षेत्रों में बन्ध्याकरण की सुविधा हेतु सहायता देना आदि।
इसके साथ ही देश में राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग, राज्य जनसंख्या आयोग एवं योजना आयोग में समन्वय प्रकोष्ठ का गठन भी किया गया है।
Jansankhya Neeti Ka Uddeshya
GkExams on 27-12-2018
फरवरी 2000 में सरकार ने राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 की घोषणा की। यह नीति डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में गठित एक विशेषज्ञ दल की रिपोर्ट पर आधारित है। सरकार ने सार्वजनिक बहस के बाद इसे अंतिम रूप दिया। प्रजनन और शिशु स्वास्थ्य की देखभाल के लिए समुचित सेवा प्रणाली की स्थापना तथा गर्भनिरोधकों एवं स्वास्थ्य सुविधाओं के बुनियादी ढांचे की आवश्यकताएं पूरी करना इसके तात्कालिक उद्देश्य हैं। इसकी दरम्यानी अवधि का उद्देश्य वर्ष 2010 तक 2.1 की कुल जनन क्षमता दर प्राप्त करना है। अगर जनन क्षमता की वर्तमान प्रवृत्ति जारी रही तो यह उद्देश्य 2026 तक ही प्राप्त हो सकेगा। दीर्घकालीन उद्देश्य 2045 तक जनसंख्या में स्थायित्व प्राप्त करना है। नीतिगत उद्देश्य हासिल करने के लिए निम्नांकित कदम उठाए जाएंगे-
- चौदह वर्ष की आयु तक स्कूली शिक्षा निशुल्क और अनिवार्य बनाना।
- स्कूलों में बीच में ही पढ़ाई छोड़ देने वाले लड़के-लड़कियों की संख्या 20 प्रतिशत से नीचे लाना
- शिशु मृत्यु दर प्रति एक हजार जीवित बच्चों में 30 से कम करना।
- जच्चा मृत्यु अनुपात प्रति एक लाख संतानों में एक सौ से कम करना।
- टीकों से रोके जाने वाले रोगों से सभी बच्चों को प्रतिरक्षित करना।
- लड़कियों के देर से विवाह को बढ़ावा देना। विवाह 18 वर्ष से पहले न हो, बेहतर होगा अगर यह 20 वर्ष की आयु के बाद हो।
- अस्सी प्रतिशत प्रसव अस्पतालों, नर्सिग होमों आदि में और 100 प्रतिशत प्रशिक्षित लोगों से कराना।
- सभी को सूचना, परामर्श तथा जनन क्षमता नियमन की सेवाएं और गर्भनिरोध के विभिन्न विकल्प उपलब्ध कराना।
- जन्म-मरण, विवाह और गर्भ का शत-प्रतिशत पंजीयन करना।
- एड्स का प्रसार रोकना तथा प्रजनन अंग रोगों के प्रबंध तथा राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन के बीच अधिक समन्वय स्थापित करना।
- संक्रामक रोगों को रोकना और उन पर काबू पाना। प्रजनन और शिशु स्वास्थ्य सुविधाओं को घर-घर तक पहुंचाने के लिए भारतीय चिकित्सा प्रणालियों की समेकित करना।
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