झांसी की रानी में कौन कौन से पुरुष पात्रों के नाम आए हैं? - jhaansee kee raanee mein kaun kaun se purush paatron ke naam aae hain?

प्रसंग-यहाँ पर कवयित्री ने झाँसी की रानी की वीरता का उल्लेख किया है। जब रानी झाँसी के सिंहासन पर बैठी तो उन्होंने अंग्रेजों से अपने देश को आजाद कराने के लिए उनसे युद्ध किया।

प्रथम पद में कवयित्री ने झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के साहस और बलिदान का वर्णन करते हुए कहा है कि किस तरह उन्होंने गुलाम भारत को आज़ाद करवाने के लिए हर भारतीय के मन में चिंगारी लगा दी थी। रानी लक्ष्मी बाई के साहस से हर भारतवासी जोश से भर उठा और सबके मन में अंग्रेजों को दूर भगाने की भावना पैदा होने लगी। 1857 में उन्होंने जो तलवार उठाई थी यानी अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ी थी, उससे सभी ने अपनी आज़ादी की कीमत पहचानी थी।

झाँसी की रानी कविता के इस पद में कवयित्री  ने कहा है कि कानपुर के नाना साहब ने बचपन में ही रानी लक्ष्मीबाई की अद्भुत प्रतिभा से प्रभावित होकर, उन्हें अपनी मुंह-बोली बहन बना लिया था। नाना साहब उन्हें युद्ध विद्या की शिक्षा भी दिया करते थे। लक्ष्मीबाई बचपन से ही बाकी लड़कियों से अलग थीं। उन्हें गुड्डे-गुड़ियों के बजाय तलवार, कृपाण, तीर और बरछी चलाना अच्छा लगता था।

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,

देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,

नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,

सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना, ये थे उसके प्रिय खिलवार।

महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या :  

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झांसी की रानी कविता के इस पद में कवयित्री ने बताया है कि लक्ष्मीबाई व्यूह-रचना, तलवारबाज़ी, लड़ाई का अभ्यास तथा दुर्ग तोड़ना इन सब खेलों में माहिर थीं। मराठाओं की कुलदेवी भवानी उनकी भी पूजनीय थीं। वे वीर होने के साथ-साथ धार्मिक भी थीं।

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,

ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,

राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,

सुभट बुंदेलों की विरुदावलि सी वह आयी झांसी में,

चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 

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प्रसंग-इन पंक्तियों में लक्ष्मीबाई के विवाह का वर्णन किया गया है।

झाँसी की रानी कविता के इस पद में कवयित्री ने लक्ष्मीबाई के झांसी के राजा श्री गंगाधर राव के साथ विवाह का उल्लेख किया है। उनकी जोड़ी को शिव-पार्वती और अर्जुन-चित्रा की उपमा दी गई है। उनके आने से झांसी में ख़ुशियाँ और सौभाग्य आ गया था। 

व्याख्या-लक्ष्मीबाई वीरता की साकार मूर्ति थी। उनकी सगाई झाँसी के राजा के साथ हो गई और वे विवाह करके झाँसी की रानी बन गई। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वीरता का विवाह सम्पन्नता के साथ हुआ हो। राजभवन में बधाइयाँ बर्जी, खूब खुशियाँ मनाई गई। भाट लोग उनकी प्रशंसा के गीत गाते थे। उन्होंने झाँसी के राजा को उसी प्रकार प्राप्त किया था जैसे चित्रा ने अर्जुन को और पार्वती ने शंकर जी को प्राप्त किया था। यह कहानी बुन्देलखण्ड के हरबोले गाते हैं। झाँसी की रानी पुरुषों के समान बड़ी वीरता से लड़ी थी।

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,

किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,

तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,

रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।

निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।

झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 

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प्रसंग-इन पंक्तियों में लक्ष्मीबाई के जीवन में आये दुःखों का वर्णन किया गया है।

इस पद में लक्ष्मीबाई के जीवन के कठिन समय का वर्णन किया गया है, जिसमें उनके पति की असमय मृत्यु के बाद रानी अत्यंत दुखी थीं। उनके कोई संतान भी नहीं थी। वे झांसी को संभालने के लिए बिल्कुल अकेली रह गई थीं।

व्याख्या-रानी जब विवाह करके झाँसी आई तो ऐसा लग रहा था मानो सौभाग्य उदय हो गया है। महल में प्रसन्नता का वातावरण था किन्तु काल की गति को कोई नहीं जान सकता। वहाँ दु:ख के बादल कब छा गए किसी को कुछ भी पता न चला। विधाता को भी रानी के तीर चलाने वाले हाथों में चूड़ियाँ नहीं सुहाई। राजा की असमय मृत्यु से रानी विधवा हो गई। उनके कोई सन्तान भी नहीं थी। अब रानी के शोक का ठिकाना नहीं था। ऐसा बुन्देलखण्ड हरबोले गाते हैं। झाँसी की रानी ने अंग्रेजों से पुरुषों की भाँति वीरता से युद्ध किया।  

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,

राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,

फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,

लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।

अश्रुपूर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 

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झाँसी की रानी कविता के इस पद में यह बताया गया है कि झांसी के राजा की असमय मृत्यु के बाद उस समय के अंग्रेज़ अधिकारी डलहौजी को झांसी को हड़पने का अच्छा अवसर मिल गया था। उसने अपनी सेना को अनाथ हो चुकी झांसी पर कब्ज़ा जमाने के लिए भेज दिया था।

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में अंग्रेजों द्वारा झाँसी हड़प लेने का वर्णन किया गया है।

व्याख्या-जब राजा की मृत्यु हो गई तो अंग्रेज गवर्नर डलहौजी बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने सोचा कि अब झाँसी का राज्य हड़पने का अच्छा मौका है। उसने अपनी फौजें झाँसी की ओर भेज दर्दी और किले पर अपना झण्डा फहरा दिया। वह लावारिस झाँसी का वारिस (मालिक) बन बैठा। रानी को इससे बड़ी भारी पीड़ा हुई। आँखों में आँसू भर कर उसने देखा कि झाँसी परायी हुई जा रही है। बुन्देलखण्ड के हरबोले गाते हैं कि झाँसी वाली रानी ने मर्दो की भाँति अंग्रेजों से वीरतापूर्वक युद्ध किया।

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,

व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,

डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,

राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।

रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 

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झाँसी की रानी कविता के इस पद में कवयित्री बता रही हैं कि अंग्रेज़ लोग भारत में व्यापारी बनकर आए थे और फिर धीरे-धीरे उन्होने यहाँ के सभी बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं और रानियों से दया और सहायता की भीख मांगकर, उनका ही राज्य हड़प लिया था। परंतु लक्ष्मीबाई अन्य राजा-रानियों से विपरीत थीं और उन्होंने विषम परिस्थितियों में भी एक महारानी की तरह झांसी को संभाला।

छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,

कैद पेशवा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घात,

उदैपुर, तंजौर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात?

जबकि सिंध, पंजाब, ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।

बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 

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प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में अंग्रेजों द्वारा भारत में अपने शासन को किस तरह स्थापित किया गया। इसका वर्णन किया गया है।

इस पद में उन सभी राज्यों की चर्चा की गई है, जिन्हें अंग्रेज़ों द्वारा हड़प लिया गया था, जो कि निम्न हैं – दिल्ली, लखनऊ, बिठुर, नागपुर, उदयपुर, तंजौर, सतारा, कर्नाटक, सिंध प्रांत, पंजाब, बंगाल और मद्रास। अर्थात् ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा था, जहां बेईमान अंग्रेज़ों ने अपना अधिकार नहीं जमाया हो।

व्याख्या-अंग्रेजों ने दिल्ली, लखनऊ को बड़ी आसानी से अपने कब्जे में कर लिया, उन्होंने पेशवा को बिठूर में कैद कर लिया। नागपुर, उदयपुर, तंजौर, सतारा, कर्नाटक आदि का तो कहना ही क्या उन्होंने सिंध, पंजाब, ब्रह्मपुत्र, बंगाल, मद्रास आदि नगरों समेत पूरे भारत को अपने अधीन कर लिया। बुन्देलखण्ड के हरबोले इसी कहानी को गाते हैं कि झाँसी वाली रानी ने मर्दो की तरह साहस से अंग्रेजों से खूब डटकर युद्ध किया था। 

रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,

उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,

सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,

‘नागपुर के ज़ेवर ले लो’ ‘लखनऊ के लो नौलख हार’।

यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 

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इस पद में क्रूर अंग्रेज़ों की निर्लज्जता का वर्णन है कि कैसे वे लोग सभी राजाओं तथा नवाबों की हत्या के बाद, वहां के राज्य तो हड़पते ही थे, साथ ही साथ वे उनकी रानियों और बेगमों की इज़्ज़त से भी खिलवाड़ करते थे। चाहे वह लखनऊ की बेगम हों, या कलकत्ता और नागपुर की रानियां। उनके कपड़े और ज़ेवर तक छीन कर नीलाम कर दिए जाते थे और अब उनका अगला कदम झांसी की ओर था।

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,

वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,

नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,

बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।

हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 

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इस पद में बताया गया है कि चाहे वो गरीब हो या अमीर, सभी के मन में अंग्रेज़ों के लिए विद्रोह की चिंगारी धधक रही थी। सभी सैनिक नाना साहब, पेशवा जी के नेतृत्व में युद्ध करने को तैयार थे। साथ में उनकी मुंहबोली बहन लक्ष्मीबाई ने भी हार ना मानकर, उनके साथ अंग्रेज़ों से लड़ने का निर्णय कर लिया था।

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,

यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,

झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,

मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,

जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 

jhansi ki rani class 6 vyakhya

झाँसी की रानी कविता के इस पद में यह बताया गया है कि विद्रोह की चिंगारी देश के हर राज्य से सुलग रही थी, चाहे वो झांसी हो या लखनऊ। दिल्ली, मेरठ, कानपुर तथा पटना राज्यों के राजाओं ने भी इसमें अपना पूरा साथ दिया। साथ ही साथ जबलपुर और कोल्हापुर जैसे बड़े शासकों ने भी सन 1857 की क्रांति में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था।

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,

नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,

अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,

भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।

लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 

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इस पद में हमारे स्वतंत्रता संग्राम में लड़ने और शहीद होने वाले कई बड़े वीरों का उल्लेख किया गया है। नाना धुंधूपंत, तांतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम, अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुंवर सिंह, तथा सैनिक अभिराम आदि ऐसे ही वीर और साहसी क्रांतिकारी थे, जिन्होंने युद्ध में दुश्मनों से जमकर संघर्ष किया था।

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,

जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,

लेफ्टिनेंट वॉकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,

रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वन्द्ध असमानों में।

ज़ख्मी होकर वॉकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 

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प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में रानी लक्ष्मीबाई के युद्ध कौशल का सजीव वर्णन किया गया है।

यहाँ इन सभी वीरों के अलावा वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की वीरता का परिचय है। झांसी में हुए युद्ध में जब लेफ्टिनेंट वॉकर अंग्रेज़ों की तरफ से युद्ध करने आए, तो उनसे लड़ने के लिए अकेली झांसी की रानी ही काफी थीं। उन्होंने दोनों हाथों में तलवारें लेकर रण-चंडी की तरह वॉकर पर प्रहार किया। इस प्रहार से वो बुरी तरह ज़ख़्मी हो गया तथा रानी के शौर्य बल से वह भी अचंभित रह गया।

व्याख्या-रानी लक्ष्मीबाई की वीरता और उनके अद्भुत युद्ध कौशल की कहानियाँ झाँसी के मैदानों में बिखरी पड़ी हैं। युद्ध के दौरान वे पुरुष रूप धारण कर कहर बरपाती थी। अंग्रेजों से छिड़े भीषण युद्ध में अंग्रेजों की सेना का लेफ्टिनेंट वॉकर रानी से युद्ध करने के लिए आगे आया। रानी ने अपनी चमचमाती तलवार खींच ली और इसके साथ ही दो बिना बराबरी के योद्धाओं (एक पुरुष व एक महिला) में युद्ध प्रारम्भ हो गया किन्तु रानी लक्ष्मीबाई के रण-कौशल के आगे उसकी एक न चली और वह शीघ्र ही घायल होकर मैदान से भाग गया। उसे एक महिला के यूँ वीरता-प्रदर्शन पर काफी आश्चर्य था। बुन्देलखण्ड के हरबोले इसी कहानी को गाते हैं कि झाँसी वाली रानी ने मदों की तरह साहस से अंग्रेजों से खूब डटकर युद्ध किया था।

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,

घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,

यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,

विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।

अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 

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प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने रानी लक्ष्मीबाई के अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष की अमर गाथा का सुन्दर वर्णन किया है।

झाँसी की रानी कविता के इस पद में रानी की वीरता का अद्भुत वर्णन है। कवयित्री ने बताया है कि वे सौ मील घोड़े पर बैठकर अंग्रेज़ों को खदेड़ती हुईं यमुना तट तक ले आईं और अंग्रेज़ वहां रानी से पराजित हुए। परंतु यहाँ पर उनके घोड़े ने वीरगति प्राप्त कर ली अर्थात वो मर गया। उसके बाद उन्होंने ग्वालियर पर भी अपना अधिकार जमाया, जहां के राजा सिंधिया ने अंग्रेज़ों डर से उनसे मित्रता कर ली थी और अपनी राजधानी को छोड़कर वहां से चले गए थे।

व्याख्या-झाँसी पर जब अंग्रेजों ने अपना शासन स्थापित कर लिया तो रानी लक्ष्मीबाई ने उनके विरुद्ध युद्ध का बिगुल बजा दिया। इसी क्रम में वह अपनी एक छोटी-सी टुकड़ी के साथ लगभग सौ मील का लम्बा सफर तय करके कालपी आ पहुँची। इतनी लम्बी दूरी और वह भी लगातार, अत्यधिक थकान के कारण रानी का प्रिय घोड़ा बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा और अगले ही पल उसकी मृत्यु हो चुकी थी। घोड़े की मृत्यु से रानी को झटका लगा किन्तु उसने हिम्मत नहीं हारी। इस बीच अंग्रेजों को रानी के कालपी पहुँचने की सूचना मिल चुकी थी।

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,

अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,

काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,

युद्ध क्षेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।

पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 

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प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में रानी और उसकी सहेलियों द्वारा अंग्रेजों के दाँत खट्टे करने व रानी के दुश्मनों के मध्य घिर जाने का वर्णन किया गया है।

यहाँ बताया गया है कि अब जनरल स्मिथ ने सेना की कमान संभाल ली थी। रानी लक्ष्मीबाई का साथ देने के लिए उनकी दो सहेलियाँ काना और मंदरा युद्ध मैदान में उतर गई थीं। इन तीनों ने अपनी वीरता और साहस के दम पर कई अंग्रेज़ सैनिकों की लाशें बिछा दी थी। परंतु तभी पीछे से जनरल ह्यूरोज ने आकर रानी को घेर लिया था और यहीं रानी उसके शिकंजे में फँस गई थीं।

व्याख्या-रानी लक्ष्मीबाई से मिली करारी हार से बौखलाकर अंग्रेजों ने अब बहुत बड़ी सेना लड़ने के लिए भेजी। इस बार अंग्रेजी सेना का प्रमुख जनरल स्मिथ था, किन्तु उसकी एक न चली और रानी लक्ष्मीबाई और उनकी दो सहेलियों काना और मुन्दरा ने युद्ध के मैदान में अंग्रेजी सेना पर कहर बरपाते हुए जनरल स्मिथ को पराजित कर दिया। पर देखते ही देखते एक नये दल-बल के साथ पीछे से यूरोज लड़ने के लिए युद्ध-मैदान पर आ पहुँचा। रानी और उसकी छोटी-सी सेना अब बुरी तरह घिर चुकी थी। बुन्देलखण्ड के हरबोले इसी कहानी को गाते हैं कि झाँसी वाली रानी ने मदों की तरह साहस से अंग्रेजों से खूब डटकर युद्ध किया।

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,

किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,

घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,

रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।

घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 

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प्रसंग-झाँसी पर जब अंग्रेजों ने आक्रमण किया तो रानी | लक्ष्मीबाई ने उनका बड़ी बहादुरी से मुकाबला किया। रानी का घोड़ा कालपी में आकर मर गया तब उन्होंने नया घोड़ा लिया और अंग्रेजों की सेना में मार-काट मचा दी।

झाँसी की रानी कविता के इस पद में बताया गया है कि रानी जैसे-तैसे बचते हुए दुश्मनों के बीच से निकल कर बाहर आ ही गई थीं, लेकिन अचानक उनके सामने एक चौड़ा नाला आ गया। उनका घोड़ा नया होने के कारण उसे पार नहीं कर पाया और वहीं अड गया। बस यहीं शत्रुओं ने मौका देखकर अकेली रानी पर कई वार पर वार किए और झांसी की रानी ने यहीं अपनी अंतिम सांस तक लड़ते हुए वीर-गति प्राप्त की।

व्याख्या-रानी शत्रुओं से घिरी हुई थी किन्तु वह बड़ी वीरता से उन्हें मारकर अपने लिये रास्ता निकाल लेती थी किन्तु, एक नाले के पास घोड़े के अड़ जाने से शत्रुओं ने उसे फिर से घेरने का मौका पा लिया। युद्ध में रानी बुरी तरह घायल हो गई। इस प्रकार वह बहादुर सिंहनी लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गई। बुन्देले हरबोले आज भी उसकी गौरव गाथा गाकर बताते हैं कि रानी लक्ष्मीबाई ने बड़ी बहादुरी से युद्ध किया था।

रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,

मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,

अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,

हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,

दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 

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प्रसंग-इन पंक्तियों में कवयित्री ने झाँसी की रानी की वीरता का वर्णन बड़ी भावपूर्ण शैली में किया है।

यहाँ रानी की दिव्यता का वर्णन है कि रानी अब परलोक सिधार चुकी थीं, परन्तु उनके चेहरे पर सूरज के जैसी चमक छाई हुई थी। उनकी उम्र केवल तेईस साल थी, इतनी छोटी-सी उम्र में वह एक अवतारी-नारी की तरह आकर हम सभी देशवासियों को जीवन का सही मार्ग दिखा गई थीं। क्रांति की चिंगारी का बीज सही मायनों में उन्होंने ही देशवासियों के मन में बोया था।

व्याख्या-झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई स्वर्ग सिधार गई। अब उसकी अलौकिक सवारी स्वर्ग का विमान था। उसकी आत्मा का तेज परमात्मा के तेज से मिल गया। रानी ने मोक्ष प्राप्त किया। वह इसकी सच्ची अधिकारिणी भी थीं। तेईस साल की उम्र में उसकी वीरता को देखकर ऐसा लगता था कि वह कोई मनुष्य नहीं थी बल्कि अवतार लेकर कोई देवी आई थी। वह स्वतन्त्रता की देवी हमें एक नया जीवन देने आई थीं। वह हमें स्वतन्त्रता का रास्ता दिखा गई और अपने देश को स्वतन्त्र कराने का पाठ पढ़ा गई। बुन्देलखण्ड के हरबोले इस कहानी को गाते हैं कि वह मर्दो जैसे युद्ध करने वाली रानी जो बड़ी वीरता से लड़ी थी, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ही थी।

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,

यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,

होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,

हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।

तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

झाँसी की रानी  कविता की व्याख्या : 

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यहाँ कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान कहती हैं कि रानी का यह बलिदान सभी देशवासी हमेशा याद रखेंगे। चाहे दुश्मन अपनी वीरता का परचम लहरा रहा हो या फिर वो अपनी तोप के गोलों से झांसी को ही मिटा दे, लेकिन झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई हमारे मन में हमेशा बसी रहेंगी। चाहे उनका कोई स्मारक ना बने, लेकिन वो वीरता और साहस का एक उदाहरण बनकर हमारे इतिहास में हमेशा-हमेशा के लिए अमर रहेंगी।

झांसी की रानी में कौन कौन से पुरुष पात्रों के नाम आए हैं class 6?

उत्तर:- इस कहानी में वीर शिवाजी, नाना धुंधूपंत, पेशवा, तातियाँ, अजीमुल्ला, अहमद शाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह, सैनिक अभिराम आदि अनेक वीर पुरुषों के नाम आए हैं

झाँसी की रानी पाठ में कौन कौन से वीर पुरुषों के नाम आए हैं?

इस स्वतंत्रता-महायज्ञ में कई वीरवर आए काम, नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम, अहमद शाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम, भारत के इतिहास - गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम, लेकिन आज जुर्म कहलाती, उनकी जो कुरबानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसीवाली रानी थी।।

झांसी की रानी के कितने लड़के थे?

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के 2 पुत्र थे दामोदर राव और आनंद राव। रानी लक्ष्मीबाई का अपना एक पुत्र था जिसका नाम दामोदर राव था परंतु जन्म के 4 महीने के बाद दामोदर राव की मृत्यु हो गई। इसके बाद रानी ने एक पुत्र गोद लिया जिसका नाम आनंद राव था और आनंद राव का नाम बदलकर दामोदर राव (Damodar Rao) कर दिया।

सभु द्रा कुमारी चौहान लक्ष्मीबाई को मर्दा नी क्यों कहती हैं?

Solution : रानी लक्ष्मीबाई ने वीर मर्दों अर्थात योद्धाओं की तरह अंग्रेजों के युद्ध किया, अत्यधिक वीरता दिखाकर झांसी की रक्षा करने का प्रयास किया। इसीलिए कवयित्री ने उसे मर्दानी कहा है।