“बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय । जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय । “कबीरदास का जन्म 15वीं शताब्दी सावंत 1455 राम तारा काशी में हुआ था। उनके गुरु का नाम संत आचार्य रामानंद जी था। कबीरदास की पत्नी का नाम ‘लोई’ था। कबीर दास जी हिंदी साहित्य की निर्गुण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि थे। के पुत्र का नाम कमाल ओर पुत्री का नाम कमाली था। कबीर दास की वाणी को साखी, संबंध, ओर रमैनी तीनों रूपों में लिखा गया है। कबीर ईश्वर को मानते थे और किसी भी प्रकार के कर्मकांड का विरोध करते थे। कबीर दास बेहद यानी थे और स्कूली शिक्षा ना प्राप्त करते हुए भी उनके पास भोजपुरी, हिंदी, अवधी जैसे अलग-अलग भाषाओं में उनकी अच्छी पकड़ थी। आइए इस ब्लॉग में Kabir Ke Dohe in Hindi के बारे में विस्तार से जानते हैं। चलो शुरू करते हैं कबीर दास के दोहे (Kabir ke dohe in Hindi) Source: Bloggerकबीर के दोहे की लिस्टकबीर के दोहे की लिस्ट इस प्रकार है:
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान । इससे यह भावार्थ है कि कबीरदास जी कहते हैं कि यह जो शरीर है वह विष से भरा हुआ है और गुरु है वह अमृत के समान है । अगर आपको शीश सर देने के बदले आपको अच्छी गुण मिल रहे हैं तो यह सबसे आसान सा सौदा है। माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे । इसका यह भावार्थ है कि कुमार जो बर्तन बनाता है तब मिट्टी को रोद करता है उस समय मिट्टी कुमार से बोलती है कि अभी आप मुझे रोद रहे हैं, 1 दिन ऐसा आएगा जब आप इसी मिट्टी में विलीन हो जाओगे और मैं आपको रो दूंगी। काल करे सो आज कर, आज करे सो अब । इसका भावार्थ है कि कबीर दास जी हमें यह समझाते हैं कि हम सब के पास समय बहुत ही कम है इसलिए जो काम हम काम कल करने वाले थे उसे आज करो और जो काम आज करने वाले हैं उसे अभी करो क्योंकि पल भर में प्रलय आ जाएगा तो आप अपना काम कब करोगे , इसमें हमें समय के महत्व के बारे में बताते हैं। ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग । इसका भावार्थ है कि कबीर दास जी हमें यह समझाते हैं जैसे तेल के अंदर तेल होता है, आग के अंदर रोशनी होती है ठीक उसी प्रकार ईश्वर हमारी अंदर है , उसे ढूंढ सको तो ढूंढ लो। जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होए । इसका यह भावार्थ है कि आपका मन हमेशा शीतल होना चाहिए अगर आपका मन शीतल है तो इस दुनिया में आपका कोई भी दुश्मन नहीं बन सकता। हमें उम्मीद है कि आपको ये kabir ke dohe in hindi पसंद आ रहे होंगे Source: Kavya rangगुरु गोविंद दोऊ खड़े ,काके लागू पाय । इसका यह भावार्थ है कि कबीर दास जी इस दोहे में हमें समझाते हैं अगर उनके सामने गुरु और भगवान को साथ में खड़े करते हैं तो आप किस के चरण स्पर्श करेंगे? वो कहते हैं गुरु ने अपने ज्ञान से उन्हें भगवान से मिलने का रास्ता बताया है तो उनके अनुसार गुरु की महिमा भगवान से भी ऊपर है इसलिए वह गुरु के चरण स्पर्श करना चाहेंगे। सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज । इसका भावार्थ है कि कबीर दास जी यह कहते हैं अगर वह पूरी धरती के बराबर इतना बड़ा कागज बना दे और दुनिया की सभी वृक्षों से कलम बना ले और सातों समुद्रों के बराबर सही बना ले तो भी वह गुरु के गुणों को लिखना असंभव है। कबीर दास और उनके दोहे (Kabir Das Ke Dohe) बहुत दिलचस्प हैं… ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये । इसका यह भावार्थ है कि कबीर दास जी हमें यह समझाते हैं कि हमेशा ऐसी भाषा बोलने चाहिए जो सामने वाले को सुनने से अच्छा लगे और उन्हें सुख की अनुभूति हो और साथ ही खुद को भी आनंद का अनुभव हो। बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर । इसका यह भावार्थ है कि कबीर दास जी कहते हैं की खजूर का पेड़ बहुत ही बड़ा होता है और वह किसी को छाया भी नहीं देता और साथ में उसके फल भी ऊंचाई पर लगते हैं, ठीक उसी तरह अगर आप किसी का भी भला नहीं कर पा रहे तो ऐसे बड़े होने का कोई भी फायदा नहीं है। बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय । इसका यह भावार्थ है कि कबीर दास जी यह कहते हैं की वह सारा जीवन दूसरों की बुराइयां देखने में लगे रहे थे लेकिन जब उन्होंने अपने खुद में जाकर देखा तो उन्हें लगा कि उनसे बुरा इंसान कोई भी नहीं है। वह सबसे स्वार्थी और बुरे हैं , ठीक उसी तरह दूसरे लोग भी दूसरे के अंदर बुराइयां देखते हैं परंतु खुद के अंदर कभी जाकर नहीं देखते अगर वह खुद के अंदर झांक कर देखे तो उन्हें भी पता चलेगा कि उनसे बुरा इंसान कोई भी नहीं है। दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय । Kabir Ke Dohe in Hindi में इसका यह भावार्थ है कि कबीर दास जी हमें यह कहते हैं कि इंसान हमेशा दुख में ही भगवान को याद करता है परंतु सुख आने पर भगवान को भूल जाते हैं। परंतु अगर हम ईश्वर को सुख में भी याद करेंगे तो हमें दुख कभी नहीं आएगा। चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये । इसका भावार्थ है कि कबीर दास जी जब चलती चक्की को देखता है तब उनकी आंखों में से आंसू निकल आते हैं और कहते हैं कि चक्की के पाटों के बीच कुछ साबुत नहीं बचता। मलिन
आवत देख के, कलियन कहे पुकार । इसका भावार्थ है कि कबीरदास जी कहते हैं बगीचे में जब कलियां माली को आकर देखती है तब आपस में बातचीत करती है कि माली आज फूल को तोड़ कर ले कर गया फिर कल हमारी भी बारी आएगी।कबीर दास जी यह समझाना चाहते हैं कि आज आप जवान हैं तो कल आप भी बुड्ढे हो जाओगे , और मिट्टी में भी मिल जाओगे। हमें उम्मीद है कि आपको ये कबीर दास के दोहे (Kabir ke dohe in hindi) पसंद आ रहे होंगे https://youtu.be/BRoUYFC2Ek8 Source: 7 educatorsजाती न पूछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान । इसका यह भावार्थ है कबीर दास जी यह कहते हैं साधु से हमें कभी भी उसकी जाति नहीं पूछनी चाहिए परंतु उनके साथ ज्ञान की बातें करनी चाहिए और उनसे ज्ञान लेना चाहिए। अगर मूल करना है तो तलवार से करो मैं उनको पड़े रहने दो। तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार । इसका भावार्थ है कि कबीरदास जी कहते हैं कि तीर्थ करने से हमें एक पुण्य मिलता है परंतु संतों की संगति से हमें पूर्णिया मिलते हैं और अगर हमें सच्चे गुरु पाले तो जीवन में अनेक पुण्य मिलते है। नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए । इसका यहां भावार्थ है कि कबीर के दोहे में कबीर दास जी हमें हमें यह कहते हैं कि हम कितना भी ना भूले लेकिन अगर मन साफ नहीं हुआ तो नहाने का कोई भी फायदा नहीं है जैसे मछली हमेशा पानी में ही रहती है परंतु वह साफ नहीं होती हमेशा मछली में से तेज बदबू आती ही रहती है। कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी । इसका भावार्थ है कि कबीर दास जी हमें या कहते हैं तो हमेशा सोया क्यों रहता है उठकर भगवान को याद कर ईश्वर की भक्ति कर 1 दिन ऐसा आएगा जब तू लंबे समय तक सोया ही रह जाएगा। कबीर के चेतावनी दोहेKabir Ke Dohe in Hindi इस प्रकार हैं: जिनके नौबति बाजती, मैंगल बंधते बारि । मैं-मैं बड़ी
बलाइ है, सकै तो निकसो भाजि । उजला कपड़ा पहरि करि, पान सुपारी खाहिं । कहा कियौ हम आइ करि, कहा कहैंगे जाइ । `कबीर’ नौबत आपणी, दिन दस लेहु बजाइ । पाहन पूजे हरि मिलें, तो मैं पूजौं पहार। पाखंड पर कबीर के दोहेकबीर के दोहे नीचे दिए गए हैं- “लाडू लावन लापसी ,पूजा चढ़े अपार “पाथर पूजे हरी मिले, “जो तूं ब्राह्मण ,
ब्राह्मणी का जाया ! “माटी का एक नाग बनाके, कबीर की उलटवासियाँकबीर की उलटबांसी रचनाओं से तात्पर्य कबीर की उन रचनाओं से है, जिनके माध्यम से कबीर ने अपनी बात को घुमा-फिरा कर और प्रचलित अर्थ से एकदम विपरीत अर्थ में अपनी बात कही है। कबीर की उलटबांसी को समझ हर किसी के लिये आसान नही होता क्योंकि इन रचनाओं के माध्यम से कबीर ने अपनी बात को काफी घुमा-फिरा कर कहा है, जिससे पाठक इसके प्रचलित अर्थ में ही उलझा रह जाता है, जबकि कबीर का कहने का तात्पर्य इसका विपरीट यानि उलटा कहने का रहा है। इसलिए इन रचनाओं को ‘उलटबांसी’ कहा जाता है। उदाहरण
अर्थात धरती उलटकर आकाश को ओर चल दी, हाथी चींटी के मुँह में समा गया, पहाड़ बिना हवा के ही उड़ने लगा, सारे जीव जन्तु सब वृक्ष पर चढ़ने लगे। सूखे सरोवर में हिलोरें उठने लगीं और चकवा बिना पानी के ही कलोल करने लगा। कबीर ने इस उलटबांसी के माध्यम से किसी योगी की आंतरिक और बाह्य स्थिति का वर्णन किया है। यानि जब संत-योगी जागता है तो संसार सोता है, जब संत-योगी सोता है, तो संसार जागता है। कबीर का कहने का तात्पर्य ये है कि इस भौतिक जगत के जो कर्म-व्यवहार है, वो आध्यात्मिक जीवन में एकदम उलटे हो जाते हैं। यानि धरती आकाश बन जाती है, हाथी के मुँह में चींटी की जगह चींटी के मुँह में हाथी चला जाता है, जो पहाड़ हवा से उड़ता है वो बिन हवा के ही उड़ने लगता है, जीव-जन्तु जो भूमि पर विचरण करते हैं, वो वृक्षों पर चढने लगते हैं, पानी से भले सरोवर में ही हिलोरे उठती है, लेकिन यहाँ सूखे सरोवर में उठने लगती हैं और चकवा जो जल को देखकर कलोल करता है, वो बिना जल के ही कलोल करने लगता है, यानि सब काम उल्टे होने लगते हैं। FAQsकबीर के कुछ लोकप्रिय दोहे कौन से हैं? कबीर के कुछ लोकप्रिय दोहे इस प्रकार हैं: कबीर का बीज मंत्र? मसि कागद छुयो नहीं, कलम गहो नहीं हाथ. वाले कबीर ने यहां भगवान गोस्वामी को जो बीज मंत्र दिया वही बीजक कहलाया है। कबीर दास जी के गुरु मंत्र क्या है? कबीर दास जी का गुरु मंत्र ‘राम राम’ ही मेरा गुरुमंत्र है और आप मेरे गुरु हैं। हमें उम्मीद है कि आपको Kabir Ke Dohe In Hindi का यह ब्लॉग पसंद आया होगा। अगर आप विदेश में पढ़ाई करना चाहते हैं! तुरंत हमारे Leverage Edu एक्सपर्ट्स से 1800 57 2000 पर कॉल करके 30 मिनट का फ्री सेशन बुक करें। |