Show कबीर के काव्य की भाव पक्षीय एवं कला पक्षीय विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।सन्त कबीर एक कवि एवं समाज सुधारक थे। उनकी भाषा सरल और कटु है। उनकी वाणी में कटुता लिए हुए सत्यता भी है, जिसमें तीखे व्यंग्य है। कबीर के काव्य की भाव पक्षीय एवं कला पक्षीय विशेषतायें इस प्रकार हैं- भाव पक्षीय विशेषताएँ1. निर्गुण ब्रह्म की उपासना- कबीर भक्ति के कवि हैं। भक्ति की दो धारायें थी— एक सगुण और दूसरी निर्गुण कबीर निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे। निर्गुण को कबीर आत्मा के नेत्रों से देखते थे कबीर के शब्दों में- दशरथ सुत तिंहु लोक बखाना। राम नाम का भरम है आना ॥ 2. ज्ञान का उपदेश- कबरी निराकार ब्रह्म के साधक थे, इसका कारण उनका काव्य ज्ञानोपदेश पर आधारित था। उन्होंने ज्ञान का उपदेश देकर जनता को जागृत किया। कबीर ने ज्ञान के सम्बन्ध में कहा है- संतो भाई आई गियान की आँधी । भ्रम की टाटी सबै उठानी, गाया रहें न बांधी। 3. नाम की महत्ता- कवीर ने ईश्वर के नाम स्मरण को सर्वाधिक महत्व दिया है, उसी ब्रह्म के स्मरण में वे अपनी जीवन लीला समाप्त कर देना चाहते हैं। वह मृत्यु के फन्दे के समान कष्टकारक है चिन्ता तो हरि नांव की, और न चिन्ता दास। कुछ चिंतवै राम बिनु, सोइ काल की पास ॥ 4. गुरु का सम्मान – कबीर ज्ञानोपासक कवि थे, ज्ञान बिना गुरु का सम्मान नहीं। अतः कबीर ने अपने काव्य में गुरु को सर्वोच्च स्थान दिया है क्योंकि गुरु के बताये मार्ग में ही जीव उस परमपिता परमात्मा को प्राप्त करता है। कबीर गुरु की वन्दना दिन में अनेक बार करने की बात कहते हैं- बलिहारी गुरु आपण, घोहाड़ी के बार। जिनि मानिष तै देवता, करत न लागी बार ॥ 5. प्रेम की महत्ता- कवीर ने ज्ञान के माध्यम से जाने गये परमात्माके नाम स्मरण करने का आधार ईश्वर प्रेम ही माना है। ईश्वर के प्रति प्रेमानुरक्ति कबीर की भक्ति पद्धति का प्राण तत्व है, प्रेम की तीव्रता के स्थान पर दर्शन होता है। 6. भक्ति एवं नीति- कबीर के काव्य में ईश्वर की भक्ति के साथ-साथ नीतिगत तथ्यों का उद्घाटन भी हुआ है। कबीर ने सत्य और अहिंसा को जीवन का आधार तत्व हुए सत्य को सबसे बड़ा तप माना है— साँच बराबर पत नहीं, झूठ बराबर पाप। जाके हिरदय आप हैं, ताके हिरदय आप ॥ कलापक्षीय विशेषतायें-1. भाषा- कबीर की भाषा सत्संग से आई टूटी-फूटी तथा संधुक्कड़ी थी। कहा जाता है कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे, सत्संग से उन्होंने सब कुछ सीखा था। इस कारण उनकी भाषा में साहित्यिक का अभाव प्रतीत होता है। 2. शैली — कबीर कवि से अधिक समाज सुधाकर उपदेशात्मक होने के साथ-साथ सरल, और सहेज है। थे। इसलिए उनके काव्य की शैली 3. अलंकार- कबीर के काव्य में अलंकार का प्रयोग प्रयत्न से नहीं हुआ है। उ काव्य में अलंकार अनायास ही आकर काव्य को चमत्कृत करते हैं। कबीर ने अपने काव्य में अलंकारों को थोपा नहीं, फिर भी उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, दृष्टांत, भ्रान्तिमान, अतिशयोक्ति, यमक, अनुप्रास, श्लेष, सन्देह विभावना, वक्रोक्ति, अनयोक्ति, दीपक, परिकरांकुर, पथासंख्य आदि अलंकार उनके काव्य में बहुतायत रूप में प्राप्त होते है। 4. प्रतीकात्मकता- कबीर ने अपने काव्य में प्रतीकों का सहारा अधिक लिया है। इनके साधनात्मक रहस्यवाद में तो प्रतीकों का प्रयोग हुआ है। सामान्यतया इन्होंने दीपक हृदय तथा शरीर ज्ञान का तेल को प्रभुभक्ति और अघटट बानी को सन्तों की संगत का प्रतीक माना है। इस प्रकार कबीर के काव्य में प्रतीकात्मकता अधिक है। IMPORTANT LINK
Disclaimer Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: You may also likeAbout the authorइस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद.. कबीर की काव्यकला?इनके साधनात्मक रहस्यवाद में तो प्रतीकों का प्रयोग हुआ है। सामान्यतया इन्होंने दीपक हृदय तथा शरीर ज्ञान का तेल को प्रभुभक्ति और अघटट बानी को सन्तों की संगत का प्रतीक माना है। इस प्रकार कबीर के काव्य में प्रतीकात्मकता अधिक है।
कबीर की काव्य कला की विशेषताएं?कबीरदास के काव्य की विशेषता गुरु-भक्ति, ईश्वर के प्रति अथाह प्रेम, वैराग्य सत्संग, साधु महिमा, आत्म-बोध तथा जगत-बोध की अभिव्यक्ति है। उन्होंने समाज में फैले हुए सभी प्रकार के भेदभाव को दूर करने का प्रयास किया।
कबीर के काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए?अपने अनूठे काव्य सौष्ठव के कारण कबीर हिन्दी साहित्य में तुलसीदासदास और सूरदास के बाद सर्वाधिक प्रतिभाशाली कवि है। कबीर आज भी सामयिक है। समस्त मानवों की बराबरी का सिद्धान्त और सभी सम्प्रदायों के आडम्बरों से ऊपर उठ कर एक ईश्वर की सत्ता मे विश्वास कबीर का मौलिक योगदान है।
कबीर की काव्य भाषा पर प्रकाश डालिए PDF?गोविन्द त्रिगुणायत के शब्दों में "उनकी रचनाओं से स्पष्ट है कि उन्हें साहित्य शास्त्र और काव्य का थोड़ा-सा भी ज्ञान ना था। हाँ, जहाँ तक धार्मिक साहित्य का संबंध है, कबीर ने उसका मनन किया था स्वयं पढ़कर नहीं, दूसरों से सुनकर।" से संकलित किया जिसमें तीन भाग हैं- साखी, सबद, रमैनी । 'सधुक्कड़ी भाषा' कहा जाता है।
|