कालिदास! सच-सच बतलाना Show
शिवजी की तीसरी आँख से वर्षा ऋतु की स्निग्ध भूमिका कालिदास! सच-सच बतलाना! विषयसूची कवि नागार्जुन कालिदास से क्या बताने के लिए कह रहे है *?इसे सुनेंरोकेंयहाँ कवि संस्कृत के महाकवि कालिदास के माध्यम से कविता की रचना प्रक्रिया की बात करते है कि कवि जब अपने काव्य में किसी की विरह व्यथा का चित्रण करता है तब उसे उस कविता की विरह व्यथा को आत्मसात करना पड़ता है। विलाप करते है या यह विलाप राजा अज का है या यह तुम्हारा है। नागार्जुन का जन्म कहाँ हुआ?मधुबनीयात्री (वैद्यनाथ मिश्र नागार्जुन) / जन्म की जगहमधुबनी ज़िला भारत के बिहार राज्य का एक ज़िला है। ज़िले का मुख्यालय मधुबनी है। विकिपीडिया वैद्यनाथ मिश्रा नागार्जुन ने कौन सी कविता लिखी है? इसे सुनेंरोकेंसन् 1998 में उनका देहांत हो गया। नागार्जुन की प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं- युगधारा, सतरंगे पंखों वाली, हज़ार – हज़ार बाँहों वाली, तुमने कहा था, पुरानी जूतियों का कोरस, आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने, मैं मिलटरी का बूढ़ा घोड़ा । नागार्जुन ने कविता के साथ-साथ उपन्यास और अन्य गद्य विधाओं में भी लेखन किया है। कालिदास कविता मे चित्रित शिवजी की तीसरी आँख से निकली महाज्वाला मे कौन भस्म हो गया? इसे सुनेंरोकेंशिवजी की तीसरी आँख से निकली हुई महाज्वाला में । घृतमिश्रित सूखी समिधा-सम कामदेव जब भस्म हो गया रति का क्रन्दन सुन ऑसू से तुमने ही तो दृग धोये थे? कालिदास कविता में कामदेव के भस्म होने पर कौन क्रंदन करता है?इसे सुनेंरोकेंचार कालिदास कालिदास सच-सच बतलाना ! इंदुमती के मृत्युशोक से अज रोया या तुम रोए थे कालिदास सच-सच बतलाना! घृतमिश्रित सूखी समिधा-सम कामदेव जब भस्म हो गया रति का क्रंदन सुन आँसू से तुमने ही तो दृग धोए थे? नागार्जुन कौन से युग के कवि हैं?इसे सुनेंरोकेंनागार्जुन (अंग्रेज़ी: Nagarjuna, जन्म: 30 जून, 1911; मृत्यु: 5 नवंबर, 1998) प्रगतिवादी विचारधारा के लेखक और कवि थे। नागार्जुन ने 1945 ई. के आसपास साहित्य सेवा के क्षेत्र में क़दम रखा। शून्यवाद के रूप में नागार्जुन का नाम विशेष उल्लेखनीय है। नागार्जुन की एक प्रसिद्ध कृति क्या है? इसे सुनेंरोकेंबलचनमा, रतिनाथ की चाची, कुंभी पाक, उग्रतारा, जमनिया का बाबा, वरुण के बेटे जैसे उपन्यास भी विशेष महत्त्व के हैं। आपकी समस्त रचनाएँ नागार्जुन रचनावली (सात खंड) में संकलित हैं। हरिजन कैसे बने? इसे सुनेंरोकेंहरि का अर्थ है “ईश्वर या भगवान” और जन का अर्थ है “लोग” महात्मा गाँधी ने “हरिजन” शब्द का प्रयोग हिन्दू समाज के उन समुदायों के लिये करना शुरु किया था जो सामाजिक रूप से बहिष्कृत माने जाते थे। इनके साथ ऊँची जाति के लोग छुआछूत का व्यवहार करते थे अर्थात उन्हेंll अछूत समझा जाता था। प्रेत का बयान कविता पुस्तक किसकी है?इसे सुनेंरोकेंप्रेत का बयान / नागार्जुन (जन्म 30 जून, 1911 – मृत्यु 05 नवंबर, 1998) नागार्जुन का जन्म वर्तमान मधुबनी जिले के ‘सतलखा’ गाँव में हुआ था। यहाँ उनका ननिहाल था। नागार्जुन का पैतृक गाँव वर्तमान दरभंगा जिले का तरौनी ग्राम है। पिता का नाम: गोकुल मिश्रा और माता उमा देवी थी। नगार्जुन के बचपन का नाम ‘ठक्कन मिसिर’ था। नागार्जुन का वास्तविक नाम ‘वैद्यनाथ मिश्र’ था। हिन्दी में वे ‘नागार्जुन’, मैथिली में ‘यात्री’ तथा संस्कृत में ‘चाणक्य’ उपनाम से रचनाएँ लिखते थे। भाषा: प्राचीन पद्धति से संस्कृत की शिक्षा प्राप्त करने वाले बाबा नागार्जुन हिन्दी, मैथिली, संस्कृत और बांग्ला में अपनी कविताएँ लिखते थे। नागार्जुन की पहली कविता ‘राम के प्रति’ 1935 में ‘विश्वबंधु’ पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। उनकी प्रथम मैथिली कविता ‘बुकलेट’ है। उपन्यास: रतिनाथ की चाची, बाबा बटेसर नाथ, दु:खमोचन, बलचमना, वरुण के बेटे, नई पौध। कविता संग्रह: युगधारा (1953), सतरंगे पंखोंवाली (1959), प्यासी पथराई आँखें (1962), तालाब की मछलियाँ (1974), खिचड़ी विप्लव देखा हमने (1980), तुमने कहा था (1953), हजार-हजार बाँहोंवाली (1981), आखिर ऐसा क्या कह दिया मैने (1982), पुरानी जूतियों का कोरस (1983), रत्नगर्भ (1984), ऐसे भी हम क्या! ऐसे भी तुम क्या! (1985), इस गुब्बारे के छाया में (1990), भूल जाओ पुराने सपने (1994), पका है यह कटहल, अपने खेत में (1997), मैं मिलिट्री का बूढ़ा घोड़ा खंडकाव्य: भस्मासुर, भूमिज्ञा (1994) सम्मान: मैथिली काव्य संग्रह, ‘पत्रहीन नग्न गाछ’(1967), के लिए साहित्य अकादमी से सम्मानित नागार्जुन प्रगतिवादी काव्यधारा के प्रतिनिधि कवियों में से एक हैं। शैलेन्द्र चौहान के अनुसार- “नागार्जुन सही अर्थों में भारतीय मिट्टी से बने आधुनिकतम कवि हैं।” प्रो० मैनेजर पांडेय ने उन्हें ‘जनकवि’ कहा है। कालिदास (कविता) नागार्जुन की ‘कालिदास’ कविता ‘सतरंगें पंखोंवाली’ कविता संग्रह में संकलित है। ‘कालिदास’ कविता का सार: इस कविता में नागार्जुन संस्कृत के महाकवि कलिदास के माध्यम से कविता की रचना की बात करते हैं। कालिदास जी ने अपने काव्यों में जिन पात्रों की पीड़ा को अपने हृदय में अनुभव किया उन्हीं पात्रों का उदाहरण नागार्जुन ने दिया है। कालिदास कविता का प्रथम अनुच्छेद ‘रघुवंश’ महाकाव्य के प्रसंग पर आधारित है। पहला प्रसंग: ‘रघुवंश’ महाकाव्य के प्रसंग पर आधारित है। “कालिदास यह सच सच बतलाना इंदुमती के मृत्यु शोक से अज रोया या तुम रोए थे।” महाराज अज की पत्नी इंदुमति के मृत्यशोक में जिस तरह से आपने विलाप का चित्रण किया है, वास्तव में वह अज का विलाप था या उनका दुःख तुमने (कालिदास) अपने भीतर धारण किया था। तुम्हारा यह विरह-वर्णन देखकर तो यही महसूस होता है कि मानो महाराज अज के आँसू नहीं होकर तुमने ही उसके जगह आँसू बहाएँ हों। दूसरा प्रसंग: ‘कुमारसंभव’ महाकाव्य से है। “घृतमिश्रित सुखी समिधा-सम कामदेव जब भष्म हो गया……रति रोई या तुम रोए थे। इस प्रसंग में असुरों के वध हेतु शिवजी के पुत्र की आवश्यकता थी। सती के दाह के पश्चात शिवजी वैरागी होकर समाधि में लीन हो गये थे। इसलिए सभी देवताओं ने शिवजी की समाधि तोड़ने और उनके काम भावना को जगाने के लिए, प्रेम के देवता कामदेव को शिवजी के पास भेजा। कामदेव ने शिवजी की तपस्या तो भंग कर दी। परन्तु स्वयं उनके क्रोध के पात्र बन गए। शिवजी की तीसरी आँख से निकली ज्वाला में कामदेव के जलकर भस्म होने पर उनकी पत्नी का रुदन क्रंदन सुनकर, क्या तुमने अपने आँसुओं से अपनी आँखें नहीं धोई थी? अथार्त रति के दुःख का जो वर्णन तुमने काव्य में किया है। उसे पढ़कर तो यही कहा जा सकता है कि रति की पीड़ा को तुमने हृदय की गहराइयों तक अनुभव किया था। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि वह आँसू रति के नहीं होकर तुम्हारे ही थे। तीसरा प्रसंग: ‘मेघदूत’ महाकाव्य पर आधारित है। “उन पुष्करावर्त मेघों का साथी बनकर….रोया यक्ष कि तू रोए थे?” कहने का तात्पर्य यह है कि यक्ष की तरह पीड़ा को कालिदास ने भोगा था तभी तो विरह काव्य लिख पाए थे। इस प्रकार नागार्जुन इस कविता के माध्यम से यह बताना चाहते हैं कि कोई भी कवि जब तक दूसरे के भावों को अपने में धारण नहीं कर लेता तब तक वह किसी दूसरे की व्यथा और पीड़ा के विषय में नहीं लिख पाता है। नागार्जुन की यह कविता सुमित्रानंदन पन्त की सार्थकता सिद्ध करती है: “वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान उमड़कर आँखों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान।” कालिदास (कविता) कालिदास! सच-सच बतलाना घृतमिश्रित सूखी समिधा-सम वर्षा ऋतु की स्निग्ध भूमिका उन पुष्करावर्त मेघों का बादल को घिरते देखा है (कविता) यह कविता नागार्जुन के कविता संग्रह ‘युगधारा’ में संकलित है। इस कविता में कवि ने बादल और प्रकृति के विभन्न स्वरूपों का वर्णन किया है। नागार्जुन घुमक्कड़ प्रवृति के कवि थे। उन्होंने ‘बादल को घिरते देखा है’ कविता में अपने मासरोवर यात्रा के स्मृतियों का वर्णन किया है। उन्होंने वहाँ छोटे-छोटे ओस के समान बादलों, मानसरोवर पर अनेकों स्वच्छ और कल-कल बहती हुई नदी, झरनों को देखा। वहाँ पर आये हंस के झुण्ड को देखा जो उमस और गर्मी से परेशान होकर आये थे। वे सब वहाँ पर खेलते हुए जीने का आनंद ले रहे थे। नागार्जुन ने वहाँ के सुन्दरता का वर्णन करते हुए लिखा है कि सूर्योदय होने के उपरान्त वहाँ दृश्य कैसे परिवर्तित हो जाता है। सभी पर्वत पहाड़ स्वर्ण कलश की आभा सा दिखाई पड़ते हैं। किस प्रकार चकवा-चकवी रात में बिछड़ जाते हैं और दिन में वे दोनों मिलकर अपना प्रणय कलह छेड़ते हैं। उस सूक्ष्म और अनूठे अनुभव को कवि ने अपनी कविता में समाहित किया है। कवि ने उस हजारों फीट की ऊचाई पर भी मृग को उस दिव्य सुगंध की खोज में भागते हुए देखा है जिस कस्तूरी की सुगंध उसके नाभि में ही होता है। इस दृश्य को कवि ने साक्षात देखा है। कवि कहते हैं कि मैं मानसरोवर आया। किन्तु यहाँ पर न अलकापुरी राज्य मिला ना वह धनपति कुबेर का राजा जो कालिदास ने अपनी विद्योत्मा को संदेश बादलों के द्वारा भेजा था। वह बादल कहाँ है? शायद वह यहीं बरस गए होंगे। कवि यह भी कहते हैं कि हो सकता है कि यह बात उस कवि की कल्पना हो। जाने दो वह कभी कवि के कल्पित होगी या था मगर मैंने तो जो अपनी आँखों से देखा और महसूस किया है। वह वास्तविक है आपस में लड़ते भिड़ते गरजते और बरसते देखा है। यह मेरी कल्पना नहीं साक्षात वर्णन है। कवि ने वहाँ के निवासियों और वहाँ के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कहा है कि यहाँ पर नदियाँ झर-झर, कल-कल बहती रहती हैं। भोज पत्रों की कुटिया बनी हुई है। यहाँ पर रहने वाले सभी लोग सुगन्धित फूलों से सिंगार किये हुए इन्द्रनील की माला पहने, शंख जैसे सुंदर गालों पर कुंडल लटकाए, बालों का जुड़ा बनाए, रजत मणि जैसे सुगन्धित मदिरा का पान किए लोग घूमते रहते हैं। लोहित चन्दन की तिलपट्टी पर निर्विरोध बाल कस्तूरी आसन मुद्रा में बैठे हुए प्रतीत होते हैं जो मृग के छालों पर आसन लगाकर बैठे हैं। यहाँ किन्नर-किन्नरियों मदिरा के नशे में उन्माद होकर घूमते देखा है। मैने स्वयं बादलों को घिरते देखा है। महसूस किया है।
अमल धवल गिरि के शिखरों
पर, छोटे-छोटे मोती जैसे तुंग हिमालय के कंधों पर ऋतु वसंत का सुप्रभात था शत-सहस्र फुट ऊँचाई पर कहाँ गया धनपति
कुबेर वह शत-शत निर्झर-निर्झरणी कल
आकाल और उसके बाद (कविता) कवि नागार्जुन ने कविता की इन पंक्तियों में अकाल की भीषण स्थिति का चित्रण किया है। अकाल की स्थिति में अनाज के अभाव में मानव के साथ अन्य चीजों और जीवों की दयनीय दशा का वर्णन है। वे कहते हैं कि अकाल के कारण घर में अनाज नहीं रहने के पर कई दिनों तक चूल्हा नहीं जला और ना ही चक्की चली जिससे लोगों की दशा बहुत पतली हो गई थी। भूख-प्प्यास के कारण कानी कुतिया यानी पालतू जानवर भी खाना नहीं मिलने के उम्मीद में वही पड़ी रही। दीवारों पर छिपकिलियाँ भी कीड़े-मकौड़े की उम्मीद पर पहरा देती रही थी। उनकी हालत भी भूख से बहुत ख़राब हो गई थी। चूहा भी खाना नहीं मिलने के कारण पस्त हो रहे थे। अकाल के जाने के बाद घर में जब अन्न के दाने आये तब घर में खुशी का माहौल शुरू हो गया। ऐसा लगने लगा मानो मृत इंसान वापस जिन्दा हो गए हों। घर में कई दिनों के बाद चूल्हा जला, चक्की चली, आँगन के ऊपर से धुआं दिखाई देने लगा। अन्न की प्राप्ति होने से सभी के आँखों में चमक दिखाई देने लगा। कौवे भी भोजन मिलने की आशा में अपनी पंख खुजलाने लगे। इस तरह से वातावरण में खुशियाँ आ गई। कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद। विशेष: कविता की शैली वर्णात्मक है। यह एक गेय काव्य है। खुरदरे पैर (कविता-1961) इस कविता में कवि ने किसान-मजदूर और जनता के पैरों में फटे हुए बेवाइयों का वर्णन किया है। कविता को पढ़ने से यह प्रतीत होता है कि कवि को समाज के निम्न वर्ग से अत्यंत लगाव था। यह कविता एक रिक्शेवाले की है जो अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए बाहर चला जाता है। खुब गए धँस गए दे रहे थे गति देर तक टकराए शासन की बन्दूक (कविता) रचनाकाल: 1966 नागार्जुन की यह कविता आपातकाल के दिनों की है। आपातकाल, इतिहास का केवल कालखंड ही नहीं है बल्कि यह बेहया और खुदगर्जी वाले लोकतंत्र सत्ता का अधोपतन का एक दस्तावेज भी था। खड़ी हो गई चाँपकर कंकालों की
हूक उस हिटलरी गुमान पर सभी रहें है थूक बढ़ी बधिरता दस गुनी, बने विनोबा मूक सत्य स्वयं घायल हुआ, गई अहिंसा चूक जली ठूँठ पर बैठकर गई कोकिला कूक मनुष्य हूँ (कविता) मनुष्य हूँ कविता का मूल विषय एक कवि द्वारा समाज की स्थितियों का चित्रण है। इस कविता में कवि ने अपने आपको मानव के रूप में प्रस्तुत किया है। मानव होने के कारण उनकी कल्पना भी कुंठित होती है। वह सर्जनात्मक से भी चुकता है। कवि होने के कारण शेष सृष्टि के साथ वह आत्मीय संबंध का भी अनुभव करता है। कवि भी मनुष्य होता है। इसलिए वह भी भौतिक इच्छाओं की चाह करता है। वह अपने भौतिक जरूरतों के लिए संघर्षरत रहता है और संघर्ष से कविता का रूपान्तर करता है। वह लौकिकता के माध्यम से लोकोत्तर को पाने का प्रयास करता है। मैं मनुष्य हूँ (कविता) नहीं कभी
क्या मैं थकता हूँ ? उरूरहित सारथि है जिसका शत-सहस्र संख्या में बिखरे तारे भी हैं कालिदास कविता में कामदेव के भस्म होने पर कौन क्रंदन करता है?कामदेव ने शिवजी की तपस्या तो भंग कर दी। परन्तु स्वयं उनके क्रोध के पात्र बन गए। शिवजी की तीसरी आँख से निकली ज्वाला में कामदेव के जलकर भस्म होने पर उनकी पत्नी का रुदन क्रंदन सुनकर, क्या तुमने अपने आँसुओं से अपनी आँखें नहीं धोई थी?
अमल धवल गिरि के शिखरों पर प्रियवर तुम कब तक सोये थे यह किस कविता की पंक्तियाँ हैं?कालिदास - कविता | हिन्दवी
नागार्जुन की कविता कौन कौन सी है?कविता-संग्रह. हज़ार-हज़ार बाहों वाली / नागार्जुन. सतरंगे पंखोवाली / नागार्जुन. खिचड़ी विप्लव देखा हमने / नागार्जुन. युगधारा / नागार्जुन. इस गुब्बारे की छाया में / नागार्जुन. मैं मिलिट्री का बूढ़ा घोड़ा / नागार्जुन. अपने खेत में / नागार्जुन. भूल जाओ पुराने सपने / नागार्जुन. |