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रघुवीर सहाय का जीवन परिचय – Raghuveer Sahay ka Jeevan Parichayरघुवीर सहाय का जन्म 9 दिसम्बर 1929 को तथा मृत्यु 30 दिसम्बर 1990 को हुई थी l वे हिंदी के साहित्यकार वा पत्राकार थे l इनका जन्म लखनऊ में हुआ था, इन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम. ए. किया था l इन्होंने पत्रकारिता की शुरूआत दैनिक नव जीवन से की l जिसमें वे उप संपादन तथा संस्कृति संवाददाता के पद पे रहे l जिसके बाद वे दिल्ली आगए l कुछ दिन तक प्रतीक के सम्पादक रहे और फिर आकाश वाणी के समाचार विभाग में उप सम्पादक रहे l इनके साहित्य में पत्रकारिता की साफ झलक मिलती है l इनकी कविताओं में 60 के दशक के बाद के भारत की तस्वीर समग्र रूप से दिखती है l इनकी कविताओं में मुख्य रूप से सामाजिक और लोकतांत्रिक में व्याप्त असमानता, शोषण, हत्या, आत्महत्या, विषमता, दासता, राजनीतिक संप्रभुता, जाति धर्म से बंटते समाज की कोइ जगह नहीं है l इनकी मुख्य कृतियाँ, दूसरा सप्तक, सीढियों पर धूप में, आत्महत्या के विरूद्ध, हंसो जल्दी हंसो, रास्ता इधर से है l भाषा रूपांतरण, बाराह हंगरी कि कहानियां, विवेकानंद इत्यादि हैं l लोग भूल गए हैं, के लिए इनको साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला था l कैमरे में बंद अपाहिज कविता का सारांश- CAMRE ME BAND APAHIJ POEM SHORT SUMMARYकैमरे में बंद अपाहिज कविता एक ऐसी कविता है जिसमें दूरदर्शन के संचालक गण अपने आप को बहुत ही ज्यादा शक्तिशाली बताते हैं एवं औरों को वह कमजोर समझते हैं। इतना ही नहीं यह दूरदर्शन के संचालक विकलांगों से जाकर पूछते हैं कि क्या आप सचमुच अपाहिज हैं और यदि आप अपाहिज है तो क्यों है? कैमरे में बंद अपाहिज कविता “लोग भूल गए हैं” काव्य संग्रह से लिया गया है। यह एक व्यंगात्मक कविता है। दूरदर्शन के संचालक जिस तरीके से अपाहिज लोगों के समक्ष जाकर उनके दुख का मजाक उड़ाते हैं। उनके विकलांगता पर प्रश्न करते हैं, ऐसे प्रश्न विकलांग लोगों को और भी कमजोर बना देते हैं। यह कविता इन्हीं सब बातों पर आधारित है। कैमरे में बंद अपाहिज कविता- CAMRE ME BAND APAHIJ POEMहम दूरदर्शन पर बोलेंगे उससे पूछेंगे तो आप क्या अपाहिज हैं? सोचिए आप जानते हैं कि कार्यक्रम रोचक बनाने के वास्ते फिर हम परदे पर दिखलाएंगे आप और वह दोनों कैमरे में बंद अपाहिज कविता की व्याख्या- CAMRE ME BAND APAHIJ POEM LINE BY LINE EXPLANATIONहम दूरदर्शन पर बोलेंगे उससे पूछेंगे तो आप क्या अपाहिज हैं? व्याख्या- प्रस्तुत काव्य पंक्तियां रघुवीर सहाय की कविता कैमरे में बंद अपाहिज शीर्षक से
ली गई हैं। इस कविता में कवि ने संवेदनहीनता का चित्रण किया है, जो मीडिया द्वारा किया जाता है। इस कविता में कवि के अनुसार मीडिया वाले औरों के दुख को भी अपने व्यापार का माध्यम बनाने से थोड़ा सा भी नहीं हिचकते हैं, उन्हें सिर्फ पैसे कमाने से मतलब है और इसी बात पर व्यंग्य करते हुए कवि ने इस कविता को लिखा है। कवि कहते हैं कि मीडिया के लोग अपने आपको बहुत ज्यादा शक्तिशाली मानते हैं और वही वह अपने समक्ष औरों को बहुत ही कमजोर मानते हैं। यह मीडिया वाले विकलांगों के पास जाकर उनसे प्रश्न पूछते हैं कि क्या आप अपाहिज हैं? यदि हां तो क्यों अपाहिज है, क्या उनका यह अपाहिज होना उनको दुख देता है? वह अपाहिज से इतने प्रश्न पूछते हैं कि वे अपाहिज उन प्रश्नों का उत्तर बिल्कुल भी नहीं दे पाते और वह चुप हो जाते हैं और जब वह चुप हो जाते हैं तभी यह मीडिया प्रवक्ता अपने कैमरामैन को निर्देश देते हुए कहते हैं कि इन विकलांगों की तस्वीर को हमारे स्क्रीन पर बहुत बड़ा-बड़ा करके दिखाओ और ऐसा करके वह उन लोगों का अपमान करते हैं, उनको
जिल्लत देते हैं उनका मजाक उड़ाते हैं। सोचिए व्याख्या- आगे बढ़ते हुए कवि कहते हैं कि यह मीडिया के प्रवक्ता इतने क्रूर प्रकृति के होते हैं कि वह जानबूझकर अपाहिज लोगों से बेतुके सवाल पूछते हैं ताकि वे सवालों का उत्तर ना दे पाए। जब सचमुच में यह अपाहिज उन सवालों का उत्तर नहीं दे पाते हैं, तब यह मीडिया के प्रवक्ता खुद ही उन सवालों के जवाब देना आरंभ कर देते हैं। अपना नाम कमाने के लिए यह मीडिया के प्रवक्ता अपाहिज लोगों को कहते हैं कि यदि आप अपने पीड़ा को हमारे समक्ष नहीं बता पाएंगे, तो लोग कभी नहीं जान पाएंगे आपके दुख एवं दर्द को उन्हें जानबूझकर उनके कमजोरी पर चोट पहुंचाते हैं और उन्हें रोने पर मजबूर कर देते हैं। कवि ने ऐसा कहकर समाज पर भी कटाक्ष किया है कि समाज के लोग अपना मान- सम्मान पाने के लिए किसी को भी दर्द में रख सकते हैं। फिर हम परदे पर दिखलाएंगे आप और वह दोनों व्याख्या- आगे बढ़ते हुए कवि कहते हैं कि मीडिया प्रभारी प्रश्न पूछ कर अपाहिज लोगों का मानसिक शोषण करते हैं। जब यह कमजोर लोग रोते हैं, तब यह मीडिया प्रवक्ता अपने टीवी स्क्रीन के पर्दों पर दिखाने के लिए उनके तस्वीरों को खींचते हैं, ताकि पूरा समाज उनका मजाक उड़ा सके। ऐसा करके वह अपने चैनल की टीआरपी बढ़ाते हैं, समाज के लोगों की भावनाओं के साथ खेलते हैं और अंत में यह लोग अपना कैमरा बंद कर देते हैं और बंद होने से पूर्व वह यह घोषणा करते हैं कि आप सभी दर्शक समाज के जिस उद्देश्य के लिए यह कार्यक्रम देख रहे थे वह कार्यक्रम अब समाप्त हो चुका है। बस हमारे कार्यक्रम में यह एक त्रुटि रह गई है कि हम आप लोगों को अच्छे से रुला नहीं पाए फिर भी यह कार्यक्रम देखने के लिए आप सभी का धन्यवाद। Tags: कैमरे में बंद अपाहिज कविता का क्या उद्देश्य है?'कैमरे में बंद अपाहिज' कविता में शारीरिक अक्षमता की पीड़ा झेल रहे व्यक्ति की पीड़ा को जिस अमानवीय ढंग से दर्शकों तक पहुँचाया जाता है वह कार्यक्रम के निर्माता और प्रस्तोता की संवदेनहीनता की पराकाष्ठा है। वे पीड़ित व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुँचाते हुए उसे बेचने का प्रयास करते हुए दिखाई देते हैं।
कैमरे में बंद अपाहिज कविता को क्या संवेदनशील कहा जा सकता है?► 'रघुवीर सहाय' द्वारा रचित कविता “कैमरे में बंद अपाहिज” कुछ लोगों की संवेदनहीनता प्रकट करती है, क्योंकि इस कविता के माध्यम से कवि ने यह कहने का प्रयास किया है कि दूरदर्शन पर किसी अपाहिज व्यक्ति के जो साक्षात्कार लिए जाते हैं, उनका उद्देश्य केवल संवेदनशीलता का दिखावा करना है और यह साक्षात्कार दूरदर्शन के व्यवसायिक ...
कैमरे में बंद अपाहिज कविता का केंद्रीय भाव क्या है अपने शब्दों में लिखिए?इस कविता में कवि ने मीडिया को संवेदनहीनता का चित्रण किया है। उसने यह बताने का प्रयत्न किया है कि मीडिया के लोग किस प्रकार से दूसरे के दुख को भी व्यापार का माध्यम बना लेते हैं। व्याख्या-कवि कहता है कि दूरदर्शन वाले अपाहिज का मानसिक शोषण करते हैं। वे उसकी फूली हुई आँखों की तसवीर को बड़ा करके परदे पर दिखाएंगे।
कैमरे में बंद अपाहिज कविता को क्या संवेदनहीन कहा जा सकता है तर्क के आधार पर अपने मत दीजिए?यह सारा संवेदनशीलता का दिखावा केवल एक साक्षात्कार तक ही सीमित रहता है, जो टीवी के व्यवसायिक उद्देश्यों की पूर्ति करता है। इसलिए 'कैमरे में बंद अपाहिज' कविता में कवि का यही कहना है कि यह टीवी दिखाए जाने वाले असहाय प्राणियों से संबंधित कार्यक्रम केवल संवेदनशीलता का दिखावा मात्र हैं, और यह संवेदनहीनता ही दर्शाते हैं।
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