कन्या वध को गैरकानूनी घोषित करने वाली राजस्थान की पहली रियासत - kanya vadh ko gairakaanoonee ghoshit karane vaalee raajasthaan kee pahalee riyaasat

Rajasthan Me Sarwapratham Kis Riyaasat ne Sati Pratha Ko Gair Kanooni Ghosit Kiya ?


A. जयपुर
B. कोटा
C. जोधपुर
D. बूंदी

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Comments Ranveer Singh on 25-09-2022

Boondi

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सती प्रथा
राजस्थान में सर्वप्रथम 1822 ई. में बूॅंदी में सतीप्रथा को गैर कानूनी घोषित किया गया। बाद में राजा राममोहन राय के प्रयत्नों से लार्ड विलियम बैंटिक ने 1829 ई. में सरकारी अध्यादेश से इस प्रथा पर रोक लगाई।
सती प्रथा को सहमरण या अन्वारोहण भी कहा जाता है।
अधिनियम के तहत सर्वप्रथम रोक कोटा रियासत में लगाई।

दास प्रथा
1832 में विलियम बैंटिक ने दास प्रथा पर रोक लगाई। राजस्थान में भी 1832 ई. में सर्वप्रथम कोटा व बूंदी राज्यों ने दास प्रथा पर रोक लगाई।

दहेज प्रथा
1961 में भारत सरकार द्वारा दहेज विरोध अधिनियम भी पारित कर लागू कर दिया गया लेकिन इस समस्या का अभी तक कोई निराकरण नही हो पाया है।

त्याग प्रथा
राजस्थान में क्षत्रिय जाति में विवाह के अवसर पर भाट आदि लड़की वालों से मुॅंह मांगी दान-दक्षिणा के लिए हठ करते थे, जिसे त्याग कहा जाता था।
त्याग की इस कुप्रथा के कारण भी प्रायः कन्या का वध कर दिया जाता था।
सर्वप्रथम 1841 ई. में जोधपुर राज्य में ब्रिटिश अधिकारियों के सहयोग से नियम बनाकर त्याग प्रथा को सीमित करने का प्रयास किया गया।

बेगार प्रथा
सामन्तों, जागीरदारों व राजाओं द्वारा अपनी रैयत से मुफत सेवाएॅं लेना ही बेगार प्रथा कहलाती थी। ब्राहाम्ण व राजपूत के अतिरिक्त अन्य सभी जातियों को बेगार देनी पड़ती थी। बेगार प्रथा का अन्त राजस्थान के एकीकरण और उसके बाद जागीरदारी प्रथा की समाप्ति के साथ ही हुआ।

विधवा विवाह
लार्ड डलहौजी ने स्त्रियों को इस दुर्दशा से से मुक्ति प्रदान करने हेतु सन् 1856 में विधवा पुनविवाह अधिनियम बनाया। यह श्री ईश्वरचन्द्र विघासागर के प्रयत्नों का परिणाम था।

डाकन प्रथा
राजस्थान की कई जातिया विशेषकर भील और मीणा जातियों में स्त्रियों पर डाकन होने का आरोप लगा कर उन्हे मार डालने की कुप्रथा व्याप्त थी। सर्वप्रथम अप्रैल, 1853 में मेवाड़ में महाराणा स्वरूप सिंह के समय में मेवाड़ भील कोर के कमान्डेन्ट जे.सी. ब्रुक ने खैरवाड़ा उदयपुर में इस प्रथा को गैर कानूनी घोषित किया।

पर्दा प्रथा
प्राचीन भारतीय संस्कृति में हिन्दू समाज में पर्दा प्रथा का प्रचलन नही था लेकिन मध्यकाल में बाहरी आक्रमणकारियों की कुत्सित व लालुप दृष्टि से बचाने के लिए यह प्रथा चल पड़ी, जो धीरे-धीरे हिन्दू समाज की एक नैतिक प्रथा बन गई।

बंधुआ मजदूर प्रथा या सागड़ी प्रथा
महाजन अथवा उच्च कुलीन वर्गो के लोगो द्वारा साधनहीन लोगों को उधार दी गई राशि के बदले या ब्याज की राशि के बदले उस व्यक्ति या उसके परिवार के किसी सदस्य को अपने यहाॅं घरेलु नौकर के रूप मे रख लेना बंधुआ मजदूर प्रथा कही जाती थी।

समाधि प्रथा
इस प्रथा में कोई पुरूष या साधु महात्मा मृत्यु को वरण करने के उदेश्य स ेजल समाधि या भू-समाधि ले लिया करते थे।

नाता प्रथा
इस प्रथा के अनुसार पत्नी अपने पति को छोड़कर किसी अन्य पुरूष के साथ रहने लग जाती है। यह प्रथा विशेषतः आदिवासी जातियों में प्रचलित है।

बाल-विवाह
प्रतिवर्ष राजस्थान में अक्षय तृतीया पर सैकड़ों बच्चे विवाह बंधन में बाॅंध दिए जाते है। अजमेर के श्री हरविलास शारदा ने 1929 ई. में बाल विवाह निरोधक अधिनियम प्रस्ताव किया, जो शारदा एक्ट के नाम से प्रसिद्व है।

डावरिया प्रथा
इस प्रथा में राजा-महाराजा व जागीरदारों द्वारा अपनी लड़की की शादी में दहेज के साथ कुछ कुॅंवारी कन्याएॅं भी दी जाती थी, जिन्हें डावरिया कहा जाता था।

अनुमरण
पति की मृत्यु कही अन्यत्र होने व वही पर उसका दाह संस्कार कर दिए जाने पर उसके किसी चिन्ह के साथ अथवा बिना किसी चिन्ह के ही उसकी विधवा के चितारोहण को अनुमरण कहा जाता है।

कन्या वध
राजस्थान में विशेषतः राजपूतों में प्रचलित इस प्रथा में कन्या जन्म लेते ही उसे अफीम देकर या गला दबाकर मार दिया जाता था।

केसरिया करना
राजपूत योद्वाओं द्वारा पराजय कि स्थिति में केसरिया वस्त्र धारण कर शत्रु पर टूट पड़ना व उन्हे मौत के घाट उतारते हुए स्वंय भी असिधरा का आलिंगन करना केसरिया करना कहा जाता था।

जौहर प्रथा
युद्व में जीत की आशा समाप्त हो जाने पर शत्रु से अपने शील-सतीत्व की रक्षा करने हेतु वीरागंनाएॅं दुर्ग में प्रज्जवलित अग्निकुंड में कूदकर सामूहिक आत्मदहन कर लेती थी, जिसे जौहर करना कहा जाता था।
केसरिया व जौहर दोनों एक साथ होते है तो वह साका कहलाता है। अगर जौहर नही हुआ हो और केसरिया हो गया हो तो वह अद्र्वसाका कहलाता है।

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  • राजस्थान में प्रचलित विभिन्न सामाजिक कुरीतियाँ
    • सती प्रथा
    • कन्या वध
    • त्याग-प्रथा
    • डाकन-प्रथा
    • मानव-व्यापार प्रथा
    • समाधि प्रथा
  • राजस्थान में ब्रिटिश शासन के प्रभाव
  • विधवा पुनर्विवाह अधिनियम
    • देश हितेषणी सभा
  • राजस्थान जनजागृति में आर्य समाज की भूमिका
    • स्वामी दयानन्द सरस्वती
  • राजस्थान में प्रशासनिक परिवर्तन
    • न्याय प्रशासन

  • ब्रिटिश काल से पूर्व राजस्थान में जन्माधारित जाति-प्रथा के कारण सामाजिक व्यवस्था में छुआछूत, सती-प्रथा, कन्या वध, डाकन प्रथा, बाल विवाह, त्याग प्रथा एवं लड़कियों के क्रय-विक्रय जैसी अनेक कुप्रथाएँ विद्यमान थी।
  • मुगल काल एवं उससे पूर्व राजपूत काल में इन कुप्रथाओं को धर्म से जोड़कर समाज में महत्व दिया गया।
  • ब्रिटिश सरकार द्वारा समय-समय पर राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं प्रशासनिक परिवर्तन किए जाने के फलस्वरूप समाज में सुधारों का मार्ग प्रशस्त हुआ था।
  • ब्रिटिश शासन के फलस्वरूप सामाजिक गतिशीलता को बल मिला।
  • विभिन्न निम्न एवं उच्च जातियों के लोग अपने-अपने व्यवसाय को त्यागकर अन्य व्यवसाय अपनाने लगे।
  • ब्रिटिश काल में राजा राममोहन राय, स्वामी दयानन्द सरस्वती जैसे सामाजिक चिंतकों के आगमन ने सामाजिक कुरीतियों पर कड़ा प्रहार किया।

राजस्थान में प्रचलित विभिन्न सामाजिक कुरीतियाँ

  1. सती प्रथा
  2. कन्या वध
  3. त्याग प्रथा
  4. डाकन प्रथा
  5. मानव-व्यापार प्रथा
  6. समाधि प्रथा
  7. दास प्रथा
  8. अनमेल एवं बाल विवाह

सती प्रथा

  • हिन्दू (विशेषकर राजपूतों में) समुदाय में प्रचलित धार्मिक प्रथा, जिसमें किसी पुरुष की मृत्योपरांत उसकी पत्नी उसके अंतिम संस्कार के दौरान उसकी चिता में स्वयमेव प्रविष्ट होकर आत्मत्याग कर लेती थी। 
  • राजस्थान में सर्वप्रथम सती प्रथा पर रोक लगाने का प्रयास जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय के द्वारा किया गया।
  • राजस्थान में सर्वप्रथम सती प्रथा पर रोक बूँदी नरेश राव विष्णुसिंह ने 1822 ई. में लगाई तथा इसे गैर कानूनी घोषित कर दिया।
  • विभिन्न राजस्थानी रियासतों द्वारा भी समय-समय पर इस प्रथा पर रोक लगाकर गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया।
रियासत प्रथा-प्रतिबन्ध वर्ष
बीकानेर 1825 ई.
अलवर 1830 ई.
जयपुर 1844 ई.
डूंगरपुर 1844 ई.
जोधपुर 1846 ई.
कोटा 1848 ई.
मेवाड़ 1861 ई.
प्रतापगढ़ 1848 ई.
रियासतों द्वारा सती प्रथा पर रोक

कन्या वध

  • कन्या वध की कुप्रथा राजपूतों में सीमित मात्रा में प्रचलित थी।
  • राजस्थान इतिहास लेखन के पितामह कर्नल टॉड ने राजपूतों में जागीरों के छोटे-छोटे टुकड़ों में बँट जाने और अपनी पुत्रियों के लिए उचित दहेज देने में असमर्थ रहने को कन्या वध का कारण बताया। 
  • राजपूताना AGG सदरलैण्ड एवं मारवाड़ के पॉलिटिकल एजेन्ट लुडलो ने ‘त्याग-प्रथा’ को कन्या वध का प्रमुख कारण बताया। 
  • कविराजा श्यामलदास ने टीके की प्रथा को कन्या वध का कारण माना।
  • राजस्थान की राजपूती रियासतों में कन्या वध को गैरकानूनी घोषित करने वाला पहला राज्य कोटा था।
  • कोटा के महाराव रामसिंह ने हाड़ौती के पॉलिटिकल एजेन्ट विलकिन्सन के प्रयासों से कन्या वध की प्रथा को अवैध घोषित कर दिया।
    1. बूँदी रियासत ने 1834 ई. में,
    2. बीकानेर महाराजा रतनसिंह ने 1837 ई. में,
    3. मानसिंह द्वारा जोधपुर में 1839 ई. में,
    4. उदयपुर महाराणा स्वरूपसिंह ने 1844 ई.
  • कन्या-वध को गैर कानूनी घोषित कर दिया।
  • बाँकीदास की ख्यात में राणा रतनसिंह (बीकानेर) द्वारा 1836 ई. में अपने सामन्तों को कन्या वध न करने की शपथ दिलाने का उल्लेख मिलता है।

त्याग-प्रथा

  • मध्यकाल में राजपूत जाति में विवाह के अवसर पर प्रदेश के दूसरे राज्यों के चारण, भाट, ढोली आदि आकर लड़की वालों से मुंह माँगी दान-दक्षिणा प्राप्त करने का हठ करते थे।
  • इसी दान-दक्षिणा को ‘त्याग’ कहा जाता है। सर्वप्रथम जोधपुर महाराजा मानसिंह ने 1841 ई. में त्याग प्रथा को गैर-कानूनी घोषित किया। 
  • 1844 ई. में बीकानेर महाराजा रतनसिंह, जयपुर महाराजा रामसिंह द्वितीय तथा मेवाड़ महाराणा स्वरूपसिंह ने भी त्याग प्रथा को अवैध घोषित कर दिया।
  • सर्वप्रथम जोधपुर महाराजा मानसिंह ने 1841 ई. में त्याग प्रथा को गैर-कानूनी घोषित किया। 
  • 1844 ई. में बीकानेर महाराजा रतनसिंह, जयपुर महाराजा रामसिंह द्वितीय तथा मेवाड़ महाराणा स्वरूपसिंह ने भी त्याग प्रथा को अवैध घोषित कर दिया।

डाकन-प्रथा

  • राजस्थान की पिछड़ी जातियों एवं आदिवासियों में स्त्रियों पर डाकन होने का आरोप लगाकर उन्हें मार देने की कुप्रथा प्रचलित थी। 
  • सर्वप्रथम खैरवाड़ा में महाराणा स्वरूपसिंह ने मेवाड़ भील कोर के कमान्डेट जे. सी. ब्रुक के प्रयासों से अक्टूबर 1853 ई. में इस प्रथा को गैर-कानूनी घोषित कर दिया।

मानव-व्यापार प्रथा

  • 19वीं सदी के मध्य तक राजस्थान में औरतों एवं लड़के-लड़कियों का क्रय-विक्रय सामान्य रूप से प्रचलित था।
  • राज्य लड़के-लड़कियों के क्रय-विक्रय पर ‘पर्दा फरोसी’ नामक कर वसूलते थे जो लड़के-लड़की के मूल्य का एक-चौथाई होता था।
  • सम्पन्न राजपूत अपनी पुत्री के दहेज में ‘गोला-गोली’ देने के लिए खरीदते थे। सर्वप्रथम कोटा राज्य में महाराव रामसिंह ने मानव-व्यापार प्रथा को 1831 ई. में गैर-कानूनी घोषित कर दिया था।
    • 1832 ई. में बूँदी महाराव विष्णुसिंह ने,
    • 1847 ई. में जयपुर महाराजा रामसिंह द्वितीय
    • 1863 में उदयपुर महाराणा शम्भूसिंह
  • मानव-व्यापार प्रथा पर प्रतिबन्ध लगा दिया।

समाधि प्रथा

  • सर्वप्रथम जयपुर राज्य में पॉलिटिकल एजेन्ट लुडलों के प्रयासों से 1844 ई. में समाधि प्रथा को गैर-कानूनी घोषित किया गया।
  • समाधि प्रथा को पूर्णत: खत्म करने के लिए सन् 1861 ई. में एक अधिनियम पारित किया गया।
    1. राजलोक – विभिन्न राजघरानों में दासों के लिए गठित पृथक विभाग।
    2. पड़दायत – राजा द्वारा उपपत्नी के रूप में स्वीकार की जाने वाली दासी या गोली। 
  • लॉर्ड एलनबरो के समय शासन अधिनियम 1843 के द्वारा दास प्रथा को समाप्त किया गया।
  • राजस्थान में सर्वप्रथम बूँदी महाराव विष्णुसिंह एवं कोटा महाराव किशोरसिंह द्वितीय ने 1832 ई. में दास प्रथा पर रोक लगाई।
  • 1863 ई. में मेवाड़ राज्य ने बच्चों को बेचने की प्रथा को अवैध घोषित कर दिया था।

राजस्थान में ब्रिटिश शासन के प्रभाव

  • राजस्थान में ब्रिटिश शासन के प्रभाव से वाल्टर कृत ‘राजपूत हितकारिणी सभा’ के निर्णयानुसार जोधपुर महाराजा जसवन्तसिंह द्वितीय के समय उनके प्रधानमंत्री सर प्रतापसिंह ने सन् 1885 में बाल विवाह प्रतिबंधक कानून बनाया।
  • अलवर रियासत ने 10 दिसम्बर, 1903 को बाल विवाह एवं अनमेल विवाह निषेध कानून बनाया।
  • अजमेर निवासी हरविलास शारदा ने बाल विवाह रोकथाम हेतु भरसक प्रयास किये। 1929 ई. में हरविलास शारदा के प्रयासों से ही बाल-विवाह निरोधक अधिनियम पारित हुआ जो ‘शारदा एक्ट’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
  • इस एक्ट में विवाह के लिए लड़के-लड़कियों की कम से कम आयु क्रमश: 18 वर्ष एवं 14 वर्ष तय की गई।
  • यह एक्ट 1 अप्रैल, 1930 से समस्त देश में लागू हुआ था।
  • राजस्थान में जयपुर महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय प्रथम राजपूत शासक था जिसने विधवा विवाह को प्रोत्साहन दिया तथा उसकी वैधता से संबंधित नियम बनाये।

विधवा पुनर्विवाह अधिनियम

  • 1856 में- वर्ष 1933 में अजमेर में अखिल भारतीय विधवा-पुनर्विवाह कान्फ्रेंस का आयोजन किया गया था।
  • भरतपुर राज्य ने 1926 ई. में विधवा पुनर्विवाह कानून बनाया था।
  • श्री चाँदकरण शारदा एवं दयानन्द सरस्वती ने विधवा विवाह को प्रोत्साहित किया।

देश हितेषणी सभा

  • 2 जुलाई, 1877 को उदयपुर में स्थापना। 
  • उद्देश्य – उच्च कुल में हो रहे विवाह-खर्च में कमी लाना।
  • वाल्टर कृत राजपूत हितकारिणी सभा – 22 फरवरी 1889 को कार्यवाहक AGG वाल्टर के प्रयासों से इस सभा का आयोजन किया गया।
  • इसका उद्देश्य राजपूत समाज में प्रचलित कुरीतियों की तरफ स्थानीय शासकों का ध्यान आकर्षित करना था।
  • इस सभा के अध्यक्ष स्वयं एजीजी, उपाध्यक्ष अजमेर कमिश्नर तथा वेतनभोगी सचिव की व्यवस्था की गई।
  • इस सभा ने मृत्यु-भोज संबंधी खर्च को कम करने तथा लड़के-लड़कियों की विवाह आयु निश्चित करने के संबंध में प्रस्ताव पास किये।
  • जपूत हितकारिणी सभा ने विवाह की कम से कम आयु लड़की के लिए 14 वर्ष और लड़के के लिए 18 वर्ष निर्धारित की थी।

राजस्थान जनजागृति में आर्य समाज की भूमिका

  • आर्य समाज की स्थापना 10 अप्रैल, 1875 को स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा बम्बई में की गई।
  • दयानन्द सरस्वती का जन्म 1824 ई. टंकारा (गुजरात) में हुआ था। सरस्वती जी मूर्तिपूजा विरोधी थे।
  • इनके गुरु स्वामी विरजानन्द थे जिनसे इन्होंने वेदों का ज्ञान प्राप्त किया। ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के रचनाकार स्वामी दयानन्द सरस्वती का सर्वप्रथम 1865 ई. में करौली के शासक मदनपाल के आग्रह पर राजस्थान में आगमन हुआ।
  • 1866 ई. में किशनगढ़ में वैदिक धर्म का प्रचार-प्रसार किया एवं पुष्कर में मूर्तिपूजा व वैष्णव मत का खण्डन किया तथा एकेश्वरवाद पर बल दिया।
  • अजमेर में सरस्वती जी ने एजीजी कर्नल ब्रुक से भेंट कर गोवध पर प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया।
  • मार्च 1881 ई. में जयपुर में स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने ‘वैदिक धर्म सभा’ की स्थापना की।
  • 27 फरवरी, 1883 को स्वामी दयानन्द सरस्वती के सान्निध्य में उदयपुर में ‘परोपकारिणी सभा’ की स्थापना की गई। महाराणा सज्जनसिंह को सभा का सभापति बनाया गया। इस सभा का उद्देश्य धार्मिक एवं सामजिक सुधार करना था।
  • महाराजा जसवन्तसिंह द्वितीय के समय जोधपुर में भी आर्य समाज की स्थापना हुई।
  • राजस्थान के प्रमुख आर्यसमाजियों में पं. कालूराम शर्मा, जुगल किशोर चतुर्वेदी, नित्यानंद, गणपति शर्मा, हरविलास शारदा, चान्दकरण शारदा, मास्टर आदित्येन्द्र, जुगलिकशोर चतुर्वेदी आदि शामिल थे।
  • अजमेर में आर्य समाज के मंत्री पंडित कमलनयन शर्मा ने एक ईसाई महिला को वैदिक धर्म स्वीकार करवाया।
  • मार्च 1883 में जोधपुर के प्रधानमंत्री सर प्रतापसिंह के आग्रह पर जोधपुर आये एवं महाराजा जसवन्तसिंह द्वितीय को भरे दरबार में नन्हीं जान के प्रति आसक्ति पर फटकार लगाई एवं वेश्यागमन के दोष बतलाये।
  • नन्हीं जान ने अपमान का बदला लेने के लिए गौड़ मिश्र नामक रसोइये के साथ मिलकर स्वामी दयानन्द सरस्वती को विष दे दिया।

स्वामी दयानन्द सरस्वती

  • अजमेर में 30 अक्टूबर, 1883 को स्वामीजी का देहान्त हो गया।
  • स्वामीजी ने स्वधर्म, स्वभाषा एवं स्वदेशी पर बल दिया।
  • आर्य समाज ने जाति प्रथा का विरोध किया एवं वर्ण व्यवस्था को कर्म पर आधारित माना।
  • चान्दकरण शारदा ने ‘दलितोद्वार’ एवं ‘विधवा विवाह’ नामक पुस्तकों की रचना की
  • आर्य समाज ने बाल विवाह प्रथा एवं पर्दाप्रथा का विरोध किया एवं विधवा विवाह, पुनर्विवाह, स्त्री शिक्षा पर बल दिया।
  • 1900 ई. में वासुदेव खण्डेलवाल ने अलवर में आर्य समाज की स्थापना की।- 1922 ई. में ठाकुर कल्याणमल ने जयपुर में हिन्दी को राजभाषा बनाने संबंधी आन्दोलन चलाया।
  • 1911 ई. में करौली में यमुनाप्रसाद व ज्वालाप्रसाद ने आर्य समाज की स्थापना की।
  • आर्यसमाजी ज्वालाप्रसाद व जोहरीलाल इन्दु ने धौलपुर में जनजागृति की दिशा में विशेष कार्य किये। (Ex – महिला विद्यालयों की स्थापना)
    1. 1898 में अजमेर में श्री मथुराप्रसाद गुलाब देवी आर्य कन्या पाठशाला की स्थापना की गई।
    2. श्रीमती गोदावरी कन्या पाठशाला :- ब्यावर।
    3. आर्य कन्या पाठशाला :- जोधपुर।
    4. आर्य पुत्री पाठशाला :- सुजानगढ़।
    5. राजस्थान में पहला वनिता आश्रम 1925 ई. में अजमेर में खोला गया।
  • यह आश्रम निराश्रित, असहाय एवं दु:खी स्त्रियों को आश्रय देने की दृष्टि से खोला गया।

राजस्थान में प्रशासनिक परिवर्तन

  • एजेन्ट टू गवर्नर जनरल (AGG) पद का सृजन – 1832 ई. में।
  • कार्य – राजस्थानी राज्यों पर नियंत्रण रखना।
  • राजस्थान के प्रथम AGG – अब्राहम लॉकेट। 
  • 1845 ई. में AGG का मुख्यालय अजमेर से माउण्ट आबू स्थानांतरित कर दिया गया।
  • 1857 की क्रांति के समय AGG – जॉर्ज पैट्रिक लॉरेन्स।
  • 1839 ई. में जयपुर राज्य में न्याय विभाग एवं शासन विभाग को अलग-अलग किया गया एवं ब्रिटिश पॉलिटिकल एजेन्ट के नियंत्रण में रीजेन्सी काउन्सिल का गठन किया गया।
  • ब्रिटिश काल में जयपुर राज्य में न्याय प्रशासन शासन परिषद (अंतिम अदालत) अपील न्यायालय अदालत फौजदारी तथा दीवानी मुंसिफ अदालतें नाजिम अदालतें तहसीलदार का न्यायालय (न्याय प्रशासन की सबसे छोटी ईकाई)
  • महकमा खास – शासक द्वारा राज्य में गठित सर्वोच्च अदालत।
  • 1839 ई. में जोधपुर जिले की दीवानी अदालतों को ‘हाकिम अदालतें’ और फौजदारी अदालतों को ‘सदर अदालतें’ के नाम से गठित की गई।
  • जोधपुर राज्य में 29 दिसम्बर 1868 को ब्रिटिश AGG के सुझाव पर राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था को चलाने के लिए एक अलग से मंत्रालय की स्थापना की गई।
  • 1888 ई. में जोधपुर में ‘वाल्टर कृत राजपूत हितकारिणी सभा’ की स्थापना की गई।
  • आन :- स्वामी भक्ति की शपथ।
  • मेवाड़ राज्य में ‘महकमा खास’ (सर्वोच्च न्याय अदालत) की स्थापना 1869 ई. में महाराणा शम्भूसिंह द्वारा की गई।
  • मेवाड़ राज्य में 10 मार्च, 1877 को महाराणा सज्जनसिंह ने नई राज्य परिषद ‘इजलास खास’ की स्थापना की।
  • अगस्त 1880 में महाराणा सज्जनसिंह ने ‘इजलास खास’ को समाप्त करके उसके स्थान पर ‘राजश्री महान्द्राज सभा’ का गठन किया गया।
  • बीकानेर में महाराजा डूँगरसिंह के समय ब्रिटिश प्रान्तों के अनुरूप न्याय व्यवस्था की स्थापना की गई।
  • राजस्थान में पहली बार शक्ति पृथक्करण का सिद्धान्त महाराजा गंगासिंहद्वारा सन् 1910 ई. में बीकानेर में लागू किया गया।
  • मारवाड़ ग्राम पंचायत अधिनियम :- 1945-46

न्याय प्रशासन

  • 1869 ई. का वर्ष मेवाड़ के न्याय प्रशासन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ बिन्दु माना जाता है।
  • AGG कर्नल कीटिंग द्वारा संग्रहित राज्य के लिए नई कानून संहिता प्रसारित की गई।
  • ब्रिटिश काल में जोधपुर राज्य 23 हुकुमतों में बाँटा गया और प्रत्येक हुकुमत का मुख्य अधिकारी हाकिम कहलाता था।
  • राजस्थान में अंग्रेजी शिक्षा का प्रारम्भ अजमेर क्षेत्र में बैरिस्ट प्रचारक डॉ. विलियम केरी के पुत्र जेरी ने किया।
    1. शम्भूरत्न पाठशाला की स्थापना :- 1863 ई. में उदयपुर में।
    2. विद्या भवन सोसाइटी की स्थापना :- 1931 ई. में उदयपुर में ।
    3. राजस्थान विद्यापीठ की स्थापना :- 1937 ई. में।
    4. बीकानेर राज्य में पहला सरकारी स्कूल 1772 ई. में खोला गया।
    5. राजस्थानी राज्यों में अंग्रेजी शिक्षा की शुरुआत का प्रथम प्रयास अलवर के महाराजा बन्नेसिंह ने किया।
    6. मेयो कॉलेज की स्थापना अक्टूबर 1875 में। (अजमेर में)
    7. भारत में रेल मार्ग 1877 ई. में आरम्भ हुआ था।
  • भरतपुर राज्य में सर्वप्रथम हेनरी लॉरेन्स ने 1855 ई. में भूमि का संक्षिप्त सर्वेक्षण करवाया एवं अस्थायी बन्दोबस्त को लागू किया।
  • जयपुर राज्य में सर्वप्रथम 1863 ई. में भू-बन्दोबस्त का प्रयास किया गया एवं 1868 ई. में ‘चकबन्दी प्रथा’ को लागू किया गया।
  • जोधपुर राज्य में भू-बन्दोबस्त का कार्य ठमें कर्नल लोच एवं पण्डित बधवाराव की देख-रेख में किया गया।
    1. रजवाड़े ग्लास कम्पनी की स्थापना :- अलवर में (1892 में)
    2. कृष्णा कॉटन मिल :- ब्यावर में 1891 ई. में।
    3. राजस्थान में प्रथम चीनी मिल :- भूपालसागर (1942)
    4. पहली सीमेन्ट फैक्ट्री :- लाखेरी (1913 ई.)
  • मरुस्थलीय राजस्थान में सर्वप्रथम विद्युत उत्पादन बीकानेर में हुआ था।
  • राजस्थान में सर्वप्रथम 1874 में बांदीकुई से आगरा के मध्य रेल चली थी।
  • 19वीं सदी के अन्त तक जैसलमेर को छोड़कर सभी राज्यों में तारघर स्थापित हो चुके हैं।
  • 1864 में आगरा-अजमेर के मध्य तार व्यवस्था आरम्भ हो गयी।
  • बामनी डाक :- उदयपुर में संचालित डाक व्यवस्था।
    • 19वीं सदी के अन्त तक राजस्थान में तीन रेजीडेन्सियां (मेवाड़ रेजीडेन्सी, पश्चिमी राजपूताना रेजीडेन्सी और जयपुर रेजीडेन्सी) एवं पाँच एजेन्सियाँ (पूर्वी राजपूताना एजेन्सी, हाड़ौती एवं टोंक एजेन्सी, अलवर एजेन्सी, कोटा एजेन्सी एवं बीकानेर एजेन्सी) और एक कमिश्नरी (अजमेर कमिश्नरी) स्थापित हो चुकी थी।

कन्या वध को गैरकानूनी घोषित करने वाली राजस्थान की पहली रियासत कौन सी थी?

कारण – कर्नल टॉड ने राजपूतों में जागीरों के छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट जाने और अपनी पुत्रियों को उचित दहेज देने में असमर्थ रहने को कन्या वध का कारण बताया है। राजस्थान में ब्रिटिश प्रभुत्व स्थापित होने के बाद सर्वप्रथम 1833 में कन्या वध को गैर-कानूनी घोषित करने वाला शासक कोटा महाराव रामसिंह था।

राजस्थान में कन्या वध पर रोक कब लगी?

कन्या वध प्रथा- राजपूतों में प्रचलित प्रथा जिसके अन्तर्गत लड़की के जन्म लेते ही उसे अफीम देकर अथवा गला दबाकर मार दिया जाता था। इस प्रथा पर सर्वप्रथम रोक हाडौती के पोलिटिकल एजेंट विल क्विंसन के प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिक के समय 1833 ई. में कोटा में तथा 1834 ई. में बूंदी राज्य में लगाई गई।

सती प्रथा पर रोक लगाने वाली पहली रियासत कौन सी थी?

बाद में राजा राममोहन राय के प्रयत्नों से लार्ड विलियम बैंटिक ने 1829 ई. में सरकारी अध्यादेश से इस प्रथा पर रोक लगाईसती प्रथा को सहमरण या अन्वारोहण भी कहा जाता है। अधिनियम के तहत सर्वप्रथम रोक कोटा रियासत में लगाई

राजस्थान की पहली सती कौन थी?

राजस्थान में 32 साल पहले हुआ रूप कंवर सती कांड एक बार फिर से सुर्खियों में है. चार सितंबर 1987 को सीकर जिले के दिवराला गांव में अपने पति की मौत के बाद उसकी चिता पर जलकर 18 साल की रूप कंवर 'सती' हो गई थी.