Updated: | Tue, 31 Mar 2020 12:30 PM (IST) Show महाभारत का प्रसारण फिर से शुरू होने के बाद इससे जुड़े पात्रों की कहानी भी चर्चित हो गई हैं। एक ही एक कहानी है कुंती की। यदुवंश के प्रसिद्ध राजा शूरसेन भगवान श्रीकृष्ण के पितामह थे। इनकी एक कन्या थी जिसका नाम था पृथा। उसके रूप और सौंदर्य की कीर्ति दूर-दूर तक फैली हुई थी। शूरसेन के फूफा के भाई कुंतिभोज के कोई संतान नहीं थी। शूरसेन ने कुंतीभोज को वचन दिया था कि उनके जो पहली संतान होगी, उसे कुंतिभोज को गोद दे देंगे।उसी के अनुसार राजा शूरसेन ने पृथा को, कुंतीभोज के लिए गोद दे दिया। कुंतीभोज के यहां आने पर पृथा का नाम कुंती रखा गया। कुंती जब बहुत छोटी थीं उन दिनों में ऋर्षि दुर्वासा राजा कुंतिभोज के यहां आए। कुंती ने एक वर्ष तक बड़ी सावधानी औऱ सहनशीलता के साथ ऋषि की सेवा की। कुंती की सेवा से प्रसन्न होकर ऋषि दुर्वासा ने उन्हें एक दिव्य मंत्र दिया। उन्होंने कहा कि इस मंत्र को पढ़कर तुम जिस किसी भी देवता का ध्यान करोगी वह तुम्हारे सामने प्रकट हो जाएंगे, और वह तुम्हें अपने जैसा ही तेजस्वी पुत्र तुम्हें प्रदान करेंगे। कुंती ने दिव्य ज्ञान से यह जान लिया था कि वह किसी संतान को जन्म नहीं दे सकेगी। इसी कारण ऋषि ने उसे ऐसा वर दिया है। उत्सुकतावश उसे यह जानने की इच्छा हुई कि जो मंत्र मिला है, उसका प्रयोग करके देखा जाए। तब उसने आकाश में भगवान सूर्य को देखा। कुंती ने मंत्र पढ़कर सूर्यदेव का स्मरण किया। भगवान सूर्य, कुंती के सामने आ गए। उनके सुंदर रूप को देखकर, कुंती आकर्षित हो गईं। सूर्य ने कहा, कुंती में तुम्हें पुत्र देने आया हूं। कुंती घबरा गईं, उन्होंने कहा कि मैं अभी कुंआरी हूं, ऐसे में मैं पुत्रवती नहीं होना चाहती। सूर्य ने कहा कि में मंत्र के वरदान स्वरूप तुम्हें पुत्र जरूर देकर जाउंगा। इसके साथ ही मैं तुम्हें वर देता हूं तुम्हें किसी भी तरह का कलंक नहीं लगेगा। मुझसे पुत्र, पाने के बाद भी तुम कुंआरी रहोगी। इस तरह कुंती ने एक सुंदर से बालक को जन्म दिया। वह बालक जन्म के समय से ही तेजस्वी और सुंदर था। पुत्र होने के बाद उसे लोकनिंदा का डर लगने लगा। इसलिए कुंती ने उस पुत्र को एक संदूक में रखकर गंगा नदी में बहा दिया। वह संदूक तैरता हुआ, अधिरथ नाम के एक सारथी की नजर में पड़ा। सारथी की कोई संतान नहीं थी, उसने जब संदूक खोला तो उसे पुत्र मिल गया। सारथी उस पुत्र को अपने घर ले गया, जहां उसने महाभारत के एक मुख्य किरदार कर्ण की भूमिका निभाई। इधर कुंती के विवाह योग्य हो जाने पर कुंतीभोज ने एक स्वयंवर आयोजित किया इसमें कई राजाओं ने हिस्सा लिया, कुंती ने इस स्वयंवर में भरतश्रेष्ठ राजा पाण्डू को वरमाला पहना दी। इस तरह कुंती हस्तिनापुर आ गईं। उन दिनों एक से अधिक विवाह करने की प्रथा प्रचलित थी। इसी रिवाज के अनुसार पितामह भीष्म की सलाह से महाराज पाण्डू ने मद्रराज की कन्या माद्री से भी विवाह किया। Posted By: Amit
पांडव की मां महारानी कुंती के बारें में जानें ऐसी बातें जो आपको शायद ही पता होगीकुन्ती के वन जाते समय भीमसेन ने कहा कि 'यदि आपको अन्त में जाकर वन में तपस्या ही करनी थी तो आपने हमलोगों को युद्ध के लिये प्रेरित करके इतना बड़ा नरसंहार क्यों करवाया?' महारानी कुन्ती जन्म से लोग इन्हें पृथा के नाम से पुकारते थे| ये महाराज कुन्तीभोज को गोद दे दी गयी थीं तथा वहीं इनका लालन-पालन हुआ| अत: कुन्ती के नामसे विख्यात हुईं| हमारे यहाँ शास्त्रों में अहल्या, मन्दोदरी, तारा, कुन्ती और द्रौपदी - ये पाँचों देवियाँ नित्य कन्याएँ कही गयी हैं| इनका नित्य स्मरण करनेसे मनुष्य पापमुक्त हो जाता है| महारानी कुन्ती वसुदेवजीकी बहन और भगवान् श्रीकृष्णकी बुआ थीं| कुन्तीबाल्यकाल से ही अतिथिसेवी तथा साधु-महात्माओंमें अत्यन्त आस्था रखनेवाली थीं| एक बार महर्षि दुर्वासा महाराज कुन्ती भोज के यहाँ आये और बरसात के चार महीनों तक वहीं ठहर गये| उनकी सेवा का कार्य कुन्ती ने सँभाला| महर्षि कुन्ती की अनन्य निष्ठा और सेवासे परम प्रसन्न हुए और जाते समय कुन्ती को देवताओं के आवाहन का मन्त्र दे गये| उन्होंने कहा कि 'संतान-कामना से तुम जिस देवता का आवाहन करोगी, वह अपने दिव्य तेज से तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जायगा और उससे तुम्हारा कन्या भाव भी नष्ट नहीं होगा|' दुर्वासा के चले जाने के बाद इन्होंने कुतूहलवश भगवान् सूर्य का आवाहन किया| फलस्वरूप सूर्यदेव के द्वारा कर्ण की उत्पत्ति हुई| लोकापवाद के भय के कारण इन्होंने नवजात कर्ण को पेटिका में बन्द करके नदी में डाल दिया| वह पेटिका नदी में स्नान करते समय अधिरथ नामके सारथिको मिली| उसने कर्णका लालन-पालन किया| कुन्ती का विवाह महाराज पाण्डु से हुआ था| एक बार महाराज पाण्डु के द्वारा मृगरूपधारी किन्दम मुनि की हिंसा हो गयी| मुनि ने मरते समय उन्हें शाप दे दिया| इस घटना के बाद महाराज पाण्डु ने सब कुछ त्यागकर वन में रहने का निश्चय किया| महारानी कुन्ती भी पतिसेवा के लिये वन में चली गयीं| पति के आदेश से कुन्ती ने धर्म, पवन और इन्द्र का आवाहन किया, जिससे युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन की उत्पत्ति हुई| अपनी सौत माद्री को भी इन्होंने अश्विनी कुमारों के आवाहनका मन्त्र बतलाकर उन्हें नकुल और सहदेव की माता बनने का सौभाग्य प्रदान किया| महाराज पाण्डु के शरीरान्त होने के बाद माद्री तो उनके साथ सती हो गयी, किंतु कुन्ती बच्चों के पालन-पोषणके लिये जीवित रह गयीं| जब दुर्योधन ने पाँचों पाण्डवों को लाक्षागृह में भस्म कराने का कुचक्र रचा, तब माता कुन्ती भी उनके साथ थीं| पाण्डवों पर यह अत्यन्त विपत्ति का काल था| माता कुन्ती सब प्रकार से उनकी रक्षा करती थीं| दयावती तो वे इतनी थीं कि अपने शरण देनेवाले ब्राह्मण-परिवार की रक्षाके लिये उन्होंने अपने प्रिय पुत्र भीम को राक्षस का भोजन लेकर भेज दिया और भीम ने राक्षस को यमलोक भेजकर पुरवासियों को सुखी कर दिया| पाण्डवोंका वनवास काल बीत जाने के बाद जब दुर्योधन ने उन्हें सूई के अग्रभाग के बराबर भी भूमि देना स्वीकार नहीं किया तो माता कुन्ती ने भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा अपने पुत्रों को आदेश दिया - क्षत्राणी जिस समयके लिये अपने पुत्रों को जन्म देती है, वह समय अब आ गया है| पाण्डवों को युद्ध के द्वारा अपना अधिकार प्राप्त करना चाहिये|' पाण्डवों की विजय हुई, किंतु वीरमाता कुन्ती ने राज्यभोग में सम्मिलित न होकर धृतराष्ट्र और गान्धारी के साथ वन में तपस्वी-जीवन बिताना स्वीकार किया| कुन्ती के वन जाते समय भीमसेन ने कहा कि 'यदि आपको अन्त में जाकर वन में तपस्या ही करनी थी तो आपने हमलोगों को युद्ध के लिये प्रेरित करके इतना बड़ा नरसंहार क्यों करवाया?' इस पर कुन्तीदेवीने कहा - 'तुम लोग क्षत्रिय धर्म का त्याग करके अपमानपूर्ण जीवन न व्यतीत करो, इसलिये हमने तुम्हें युद्ध के लिये उकसाया था; अपने सुख के लिये नहीं|' भगवान् के निरन्तर स्मरणके लिये उनसे विपत्तिपूर्ण जीवन की याचना करनेवाली माता कुन्ती धन्य हैं| read; जानें, महाभारत की ऐसी घटनाएं जो दिलचस्प से ज्यादा रहस्य से परिपूर्ण हैं Edited By: Preeti jha कुंती के मां का नाम क्या है?सहदेव और नकुल अश्विनीकुमार और माद्री के पुत्र थे। कुन्ती एक तपस्वी स्त्री थी, ये हस्तिनापुर राज्य की महारानी और इन्द्रप्रस्थ साम्राज्य की राजमाता थीं । युध्द के बाद गांधारी और धृतराष्ट्र के साथ ये कुंती भी उनकी सेवा के लिए वन में चली गयी क्योंकि वे दोनों नेत्रहीन थे।
कुंती के माता पिता का नाम क्या था?आओ जानते हैं कुंती के बारे में 10 रहस्य जिन्हें आप शायद ही जानते होंगे। 1. नहीं मिला माता पिता का प्यार- यदुवंशी राजा शूरसेन की पृथा नामक कन्या और वसुदेव नामक एक पुत्र था। पृथा नामक कन्या को राजा शूरसेन ने अपनी बुआ के संतानहीन लड़के कुंतीभोज को गोद दे दिया।
माता कुंती के कितने पुत्र थे?कुंती महाराज पांडु की पत्नी थी। कुंती के विवाह के पश्चात 3 पुत्र हुए जिन्हें सारा संसार पांडव के नाम से जानता है, परंतु कुंती के विवाह के पूर्व सूर्य देव की आशीर्वाद से कर्ण नामक पुत्र भी हुआ जिसे संसार सूत पुत्र के नाम से जानता है।
माता कुंती की मृत्यु कैसे हुई?एक दिन जब वे गंगा स्नान कर आश्रम आ रहे थे, तभी वन में भयंकर आग लग गई। दुर्बलता के कारण धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती आग से बचने के लिए भाग नहीं सके। तब उन्होंने उसी आग में प्राण त्यागने का विचार किया और वहीं एकाग्रचित्त होकर बैठ गए। इस तरह धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती की मृत्यु हुई।
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