परिचय[संपादित करें]भारत में स्वतंत्रता उपरांत केंद्र-राज्य संबंध का मसला अत्याधिक संवेदनशील मामला रहा है।[1] विषय चाहे अलग भाषाओं की पहचान, असमान विकास, राज्यों के गठन का हो, पुनर्गठन का हो या फिर विशेष राज्य का दर्जा देने से जुड़ा हो। ये सब केंद्र-राज्य संबंधों की सीमा में आते हैं। इनके अलावा देश में शिक्षा, व्यापार जैसे विषयों पर नीति निर्माण के सवाल उठने पर भी उसके केन्द्र में है केंद्र और राज्य के बीच में इनको लेकर क्या आपसी समझ है, यही महत्त्वपूर्ण होता है। भारतीय संविधान में भारत को 'राज्यों का संघ' कहा गया है न
कि संघवादी राज्य। भारतीय संविधान में विधायी, प्रशासिनिक और वित्तीय शक्तियों का सुस्पष्ट बंटवारा केंद्र और राज्यों के बीच किया
है।[1]
विधायिका स्तर पर केन्द्र-राज्य सम्बन्ध[संपादित करें]संविधान की सातंवी अनुसूची विधायिका के विषय़ केन्द्र राज्य के मध्य विभाजित करती है संघ सूची में महत्वपूर्ण
तथा सर्वाधिक विषय़ है
केन्द्र-राज्य प्रशासनिक संबंध[संपादित करें]अनु 256 के अनुसार राज्य की कार्यपालिका शक्तियाँ इस तरह प्रयोग लायी जाये कि संसद द्वारा पारित विधियों का पालन हो सके। इस तरह संसद की विधि के अधीन विधिंयों का पालन हो सके। इस तरह संसद की विधि के अधीन राज्य कार्यपालिका शक्ति आ गयी है। केन्द्र राज्य को ऐसे निर्देश दे सकता है जो इस संबंध में आवश्यक हो। अनु 257 कुछ मामलों में राज्य पर केन्द्र नियंत्रण की बात करता है। राज्य कार्यपालिका शक्ति इस तरह प्रयोग ली जाये कि वह संघ कार्यपालिका से संघर्ष न करे। केन्द्र अनेक क्षेत्रों में राज्य को उसकी कार्यपालिका शक्ति कैसे प्रयोग करे इस पर निर्देश दे सकता है। यदि राज्य निर्देश पालन में असफल रहा तो राज्य में राष्ट्रपति शासन तक लाया जा सकता है। अनु 258[2] के अनुसार संसद को राज्य प्रशासनिक तंत्र को उस तरह प्रयोग लेने की शक्ति देता है जिनसे संघीय विधि पालित हो केन्द्र को अधिकार है कि वह राज्य में बिना उसकी मर्जी के सेना, केन्द्रीय सुरक्षा बल तैनात कर सकता है अखिल भारतीय सेवाएँ भी केन्द्र को राज्य प्रशासन पे नियंत्रण प्राप्त करने में सहायता देती हैं। अनु 262 संसद को अधिकार देता है कि वह अंतराज्य जल विवाद को सुलझाने हेतु विधि का निर्माण करे संसद ने अंतराज्य जल विवाद तथा बोर्ड एक्ट पारित किये थे। अनु 263 राष्ट्राप्ति को शक्ति देता है कि वह अंतराज्य परिषद स्थापित करे ताकि राज्यों के मध्य उत्पन्न मत विभिन्ंता सुलझा सके। सन्दर्भ[संपादित करें]
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
केंद्र और राज्य के बीच क्या संबंध है?केन्द्र-राज्य प्रशासनिक संबंध
इस तरह संसद की विधि के अधीन राज्य कार्यपालिका शक्ति आ गयी है। केन्द्र राज्य को ऐसे निर्देश दे सकता है जो इस संबंध में आवश्यक हो। अनु 257 कुछ मामलों में राज्य पर केन्द्र नियंत्रण की बात करता है। राज्य कार्यपालिका शक्ति इस तरह प्रयोग ली जाये कि वह संघ कार्यपालिका से संघर्ष न करे।
भारतीय संविधान में केंद्र एवं राज्यों के बीच विधायी अधिकारों को कितने भागों में बांटा गया है?केंद्र और राज्यों के बीच सभी शक्तियों को विधायी, कार्यकारी और वित्तीय तीन भागों में बांटा गया है लेकिन प्रणाली एकीकृत है। इसलिए केंद्र-राज्य संबंधों का अध्ययन 3 भागों विधायी संबंधों, प्रशासनिक संबंधों और वित्तीय संबंधों में भी किया जा सकता है।
प्रशासनिक सम्बन्ध क्या है?(II) प्रशासनिक सम्बन्ध :-
(2) संविधान के अनुच्छेद 257 में कहा गया है कि प्रत्येक राज्य की कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग इस प्रकार होना चाहिए कि संघ की कार्यपालिका शक्ति के प्रयोग में बाधा या प्रतिकूल प्रभाव न पड़े तथा इस सम्बन्ध में संघ की कार्यपालिका द्वारा राज्य को निर्देश दिए जा सकेंगे।
भारतीय संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का वितरण कैसे किया गया?एक संघात्मक संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन देता है तथा प्रत्येक सरकार संविधान द्वारा सीमा में ही कार्य करती है पर इसका यह अर्थ नहीं है कि उनका एक दूसरे से कोई संबंध नहीं होता है क्योंकि दोनों सरकारें एक ही नागरिक पर प्रशासन करती है और उनके कल्याण के लिए कार्यों को संपादित करती है, इसलिए इनमें ...
|