कविता पर आधारित लघु उत्तरीय प्रश्न Show
प्रश्न 1. बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए ललद्यद ने क्या उपाय सुझाया है? [C.B.S.E. 2013, 12, 10 Term I, Set AGRO 92, 44 A1, C.B.S.E.’s Sample Paper, 2010] उत्तर: कवयित्री ने कहा कि ईश्वर की प्राप्ति का या मोक्ष प्राप्ति का द्वार बंद है। इस द्वार को खोलने के लिए अर्थात् ईश्वर प्राप्ति के लिए अहंकार का त्याग करना होगा। सांसारिक विषय-वासनाओं से दूर रहना होगा और इन्द्रियों को वश में करना पड़ेगा। तभी मनुष्य को सांसारिक बंधनों से मुक्ति प्राप्त हो सकती है। प्रश्न 2. कवयित्री ललद्यद किस रस्सी से कौन-सी नाव खींच रही हैं ? उनके इस कथन का भाव क्या है? [C.B.S.E. 2013 Term I, Set 8ATH36H] उत्तर: कवयित्री साँसों की (कच्चे धागे की) रस्सी से जीवन रूपी नौका को खींच रही है। संसार उतार-चढ़ाव भरा सागर है और साँसों की निश्चितता संदिग्ध है। जीवन में अगले पल या साँस पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। अतः जो लक्ष्य है उसके लिए तुरन्त तत्पर हो जाना चाहिए। प्रश्न 3. ‘जेब टटोली कौड़ी न पाई’ से कवयित्री का क्या आशय है? [C.B.S.E. 2010 Term I, Set F2] उत्तर: कवयित्री कह रही है कि वह आजीवन हठयोग की साधना करती रही और अज्ञान के कारण संसार में ही फँसी रही, अतः ईश्वर की प्राप्ति का रास्ता न खोज पाई। जब इस संसार से जाने का समय आया तो उन्हें अनुभव हुआ कि माँझी रूपी ईश्वर को देने के लिए उनके पास कुछ भी नहीं है अर्थात् उसने सत्कर्म रूपी धन नहीं कमाया। प्रश्न 4. न खाकर बनेगा अहंकारी, कहकर किस तथ्य की ओर संकेत किया है ? [C.B.S.E. 2016 Term I, X2U 37E7] उत्तर: मानव ब्रह्म की प्राप्ति के लिए बाह्याडंबर रचते हैं। इन्द्रिय निग्रह, व्रत, संयम आदि से मन में व्रत करने का अहंकार आ जाता है। प्रश्न 5. कवयित्री के मन में कहाँ जाने की ललक है ? इस चाह में उसकी कैसी दशा हो रही है ? स्पष्ट कीजिए। [C.B.S.E. 2016 Term I, 4M7 TP8N] उत्तरः कवयित्री के मन में घर, अर्थात् ईश्वर के पास स्वर्ग जहाँ से वापस न आना पड़े, वहाँ जाने की ललक है। आत्मा का परमात्मा में लीन होने की हृदय में हूक उठ-सी रही है। आत्म निवेदन, सच्ची भगवद् भक्ति, आत्म समर्पण की भावना दृष्टिगोचर होती है। प्रश्न 6. साहब को पहचानने का क्या साधन है? कवयित्री ललद्यद किसे साहब मानती हैं और व्यक्ति को क्या निर्देश देती हैं? [C.B.S.E. 2014, Term I, Set 3W4CERE] उत्तरः साहब (परमात्मा) को पहचानने का साधन भक्ति मार्ग है योग का टेढ़ा मार्ग नहीं। कवयित्री ललद्यद, साहब कहती हैं-परमात्मा (ईश्वर) को। व्यक्ति को वे यही निर्देश देती हैं कि सीधी राह ;भक्ति मार्गद्ध से परमात्मा को प्राप्त करें, टेढ़ी राह से (त्याग मार्ग) से वह प्राप्त नहीं होता। प्रश्न 7. ‘सुषुम-सेतु’ किसे कहा गया है ? यह सेतु ईश्वर प्राप्ति में बाधक है या सहायक ? समझाइए। [C.B.S.E. 2013 Term I, Set 8ATH36H] उत्तर: ‘सुषुम-सेतु’ से तात्पर्य है-हठयोग में सुषुम्ना नाड़ी की साधना। इस कठिन साधना के बाद भी ईश्वर प्राप्ति की निश्चितता नहीं होती। संसार से उदासीनता व इन्द्रिय निग्रह भी आवश्यक है, अतः यह ईश्वर प्राप्ति में सहायक बन सकती है, क्योंकि चेतना का मार्ग सुषुम्ना मार्ग से ही शिव तत्व का साहचर्य प्राप्त कर सकता है और चेतना का शिवत्व में विलीन होना ही परम गति है। यह पल दो पल का नहीं वरन् कठिन व वास्तविक साधना सेतु है। प्रश्न 8. ईश्वर प्राप्ति के लिए बहुत से साधक हठयोग जैसी कठिन साधना भी करते हैं, लेकिन उससे भी लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती। यह भाव किन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है? [C.B.S.E. 2010 Term I, Set C1] उत्तरः यह भाव निम्नलिखित पंक्तियों में व्यक्त हुआ है- आई सीधी राह से गई न सीधी राह। सुषुम सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह। प्रश्न 9. कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं? [C.B.S.E. 2010 Term I, Set F3] उत्तरः क्योंकि कवयित्री का जीवन घटता जा रहा है। लेकिन परमात्मा ने उनकी पुकार अब तक नहीं सुनी है। परमात्मा से मिलन की कोई आस उसे नजर नहीं आ रही है, अतः उसे लगता है कि उसकी सारी भक्ति का कोई फल उसे प्राप्त नहीं हो पाया और मुक्ति वेळ लिए किए जाने वाले सारे प्रयास व्यर्थ हो रहे हैं। Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 वाख Textbook Exercise Questions and Answers. वाख के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class Hindi प्रश्न
1. वाख In Hindi HBSE 9th Class प्रश्न 2. HBSE 9th Class Chapter 10 वाख प्रश्न 3. प्रश्न 4. (ख) प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवयित्री ने बताया है कि सांसारिक सुखों का भोग करने से तुझे कुछ नहीं मिलेगा। इससे जीवन व्यर्थ ही व्यतीत हो जाएगा। दूसरी ओर, यदि कुछ खाएगा नहीं, और केवल धन-दौलत को एकत्रित करेगा तो तुझे धन-दौलत का अहंकार हो जाएगा। अतः सांसारिक साधन या धन-दौलत का भोग करना या उनको जोड़ना, दोनों ही मानव-मुक्ति के मार्ग की बाधाएँ हैं। प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. रचना और अभिव्यक्ति प्रश्न 8. (ख) (1) हमें सबको समान समझने की भावना को धारण करना चाहिए। पाठेतर सक्रियता भक्तिकाल में ललयद के अतिरिक्त तमिलनाडु की आंदाल, कर्नाटक की अक्क महादेवी और राजस्थान की मीरा जैसी
भक्त-कवयित्रियों के बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए एवं उस समय की सामाजिक परिस्थितियों के बारे में कक्षा में चर्चा कीजिए। HBSE 9th Class Hindi वाख Important Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न
7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न
14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. प्रश्न 25. प्रश्न 26. वाख अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर 1. रस्सी कच्चे धागे की, खींच रही मैं नाव। शब्दार्थ-रस्सी कच्चे धागे = कमजोर व नाशवान सहारे। नाव = जीवन रूपी नाव । भवसागर = संसार रूपी सागर । सकोरा = मिट्टी का बना छोटा कटोरा । हूक = पीड़ा। प्रश्न (2)
व्याख्या कवयित्री का कथन है कि मैं अपनी जीवन रूपी नाव को कच्चे धागों के समान अत्यंत क्षीण एवं कमजोर साधनों से खींच रही हूँ अर्थात संसार रूपी सागर से जीवन रूपी नाव को सांसारिक एवं नश्वर उपायों द्वारा पार ले जाने का प्रयास कर रही हूँ। न जाने ईश्वर कब मेरी प्रार्थना सुनकर मेरी जीवन रूपी नाव को संसार रूपी सागर से पार करेंगे। मेरा यह जीवन मिट्टी के सकोरे के समान नाशवान एवं क्षणभंगुर है। जैसे कच्ची मिट्टी का सकोरा पानी लगने से गलकर टूट जाता है; ऐसा ही मेरा जीवन नश्वर है। इसलिए जीवन की इस नाव को खींचने
के मेरे सारे प्रयास व्यर्थ प्रतीत होते हैं। संसार एवं जीवन की नश्वरता को देखकर मेरे हृदय में एक तीव्र पीड़ा उठती रहती है और अपने घर अर्थात ईश्वर के पास जाने की इच्छा सदैव घेरे रहती है। (3) प्रस्तुत काव्यांश में कवयित्री ने मानव-जीवन की तुलना कच्चे धागे एवं कच्ची मिट्टी के सकोरे से करके उसकी नश्वरता एवं क्षणभंगुरता को व्यक्त किया है। साथ ही कवयित्री ने प्रभु से अपनी मुक्ति हेतु प्रार्थना की है। प्रभु-मिलन की आत्मा की व्याकुलता को भी उद्घाटित किया गया है। (4) (क) प्रस्तुत पद्य ‘वाख’ शैली में रचित है। (5) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है। कवयित्री ने अपने काव्य की भाषा को जहाँ संगीतमय बनाया है, वहीं अलंकारों का उचित प्रयोग भी दृष्टिगोचर होता है। ‘वाख’ शैली का सफल प्रयोग किया गया है। (6) प्रस्तुत काव्यांश में कवयित्री ने आत्मा के वास्तविक घर परमात्मा के पास जाने का संकेत किया है। 2. खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं, शब्दार्थ-अहंकारी = घमंडी। सम (शम) = अंतःकरण एवं बाह्य-इंद्रियों का निग्रह (इंद्रियों को उनके विषयों से विमुख करके ईश्वर में लगाना)। समभावी = समानता की भावना। खुलेगी साँकल बंद द्वार की = चेतना व्यापक होगी, मन मुक्त होना। प्रश्न (2) व्याख्या प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने मनुष्य को चेतावनी
देते हुए कहा है कि इस जीवन में सांसारिक सुखों को भोगने पर कुछ भी प्राप्त नहीं होगा और यदि तू सांसारिक वस्तुओं अर्थात धन-दौलत को जोड़ेगा तो तेरे मन में धन-दौलत का अहंकार उत्पन्न हो जाएगा। कहने का अभिप्राय है कि सांसारिक सुखों को भोगना व धन-दौलत को एकत्रित करना, दोनों ही मनुष्य की मुक्ति के मार्ग में बाधक हैं। कवयित्री ने इनसे बचने के उपाय की ओर संकेत करते हुए कहा है कि मनुष्य को अंतःकरण एवं बाह्य-इंद्रियों का निग्रह करना चाहिए। सांसारिक साधनों के प्रति समभाव बनाए रखना चाहिए, तभी मनुष्य समभावी बन
सकता है। ऐसा करने पर उसकी चेतना का विकास होगा और उसे मुक्ति प्राप्त होगी अर्थात मनुष्य को सांसारिक मोह-माया के बंधनों से मुक्ति मिल सकेगी। (3) मनुष्य को समभाव रखते हुए जीवन व्यतीत करना चाहिए। अपनी इंद्रियों को वश में करके उन्हें ईश्वर की भक्ति में लगाने का प्रयास करना चाहिए, तभी वह मोक्ष को प्राप्त कर सकेगा। (4) (क) ‘वाख ‘शैली का सुंदर एवं सफल प्रयोग किया गया है। (5) कवयित्री के अनुसार सम खाने से अर्थात अंतःकरण एवं बाह्य-इंद्रियों का निग्रह करने पर ही व्यक्ति समभावी बन सकता है। (6) प्रस्तुत पंक्ति में बताया गया है कि समभाव अपनाने से मनुष्य की चेतना का विकास होगा और सांसारिक मोह-माया के बंधन से मुक्ति या मोक्ष प्राप्त होगा। 3. आई सीधी राह से, गई न सीधी राह। शब्दार्थ-सुषुम-सेतु = सुषुम्ना नाड़ी रूपी पुल (हठयोग में शरीर की तीन प्रधान नाड़ियों में से एक नाड़ी सुषुम्ना है, जो नासिका के मध्य भाग ब्रह्मरंध्र में स्थित है)। जेब टटोली = आत्मालोचन किया। कौड़ी न पाई = कुछ भी प्राप्त न हुआ। माझी = नाविक, ईश्वर, गुरु। उतराई = सत्कर्म रूपी मेहनताना। प्रश्न (2) व्याख्या प्रस्तुत पद में कवयित्री ने बताया है कि प्राणी इस संसार में सीधे मार्ग से आता है। उस समय उसके मन में किसी प्रकार की कोई
बुराई नहीं होती, किन्तु संसार में आकर वह ईश्वर-विमुख मार्ग पर चलने लगता है और अंत तक उसी मार्ग पर चलता रहता है। कवयित्री पुनः कहती है कि मैं हठयोग आदि विभिन्न उपायों के माध्यम से ईश्वर-प्राप्ति का प्रयास करती रही, किन्तु संपूर्ण जीवन बीत गया, पर ईश्वर की प्राप्ति नहीं हुई। तत्पश्चात उसने अपनी जेब टटोली अर्थात आत्मालोचन किया तो पता चला कि मेरे पास तो अपने माझी (गुरु, ईश्वर व नाविक) को देने के लिए कुछ भी नहीं है। (3) प्रस्तुत पद में कवयित्री ने मानव को सीधे मार्ग अर्थात ईश्वर-भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी है। मानव को ईश्वर-प्राप्ति का सहज मार्ग अपनाना चाहिए। आत्मालोचन भी अनिवार्य है, क्योंकि इससे अपने हृदय में विद्यमान गुण-दोषों का बोध हो जाता है। (4) (क) प्रस्तुत पद ‘वाख’ शैली में रचित है। (ख) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है। (ग) ‘जेब टटोली’ एवं ‘कौड़ी न पाई’ पदों का लाक्षणिक प्रयोग देखते ही बनता है। (घ) स्वर-मैत्री का प्रयोग है। (5) ‘जेब टटोलना’ का तात्पर्य आत्मालोचन करना है, क्योंकि आत्मालोचन से ही मनुष्य अपने गुण-दोषों को पहचान सकता है। (6) इस पद में कवयित्री ने हठयोग-पद्धति का विरोध किया है। 4. थल-थल में बसता है शिव ही, शब्दार्थ-थल-थल = सब जगह। शिव = ईश्वर। साहिब = ईश्वर, स्वामी। प्रश्न (2) प्रस्तुत पद में कवयित्री ने ईश्वर के सर्वव्यापक रूप को पहचानने का उपदेश दिया है। (3) व्याख्या कवयित्री का कथन है कि ईश्वर (शिव) हर स्थान में विद्यमान है। प्रत्येक प्राणी के हृदय में उसका निवास है। इसलिए हिंदुओं व मुसलमानों के ईश्वर अलग-अलग नहीं हैं। ईश्वर को लेकर हमें ऐसा भेदभाव नहीं करना चाहिए। जो आत्मालोचन द्वारा स्वयं को जान लेता है, वही सच्चा ज्ञानी होता है। अपने-आपको
अर्थात आत्मा को पहचानना ही ईश्वर को पहचानना है। (4) (क) प्रस्तुत पद ‘वाख’ शैली में रचित है। (5) कवयित्री के अनुसार ईश्वर प्रत्येक स्थान पर बसता है। उसे प्रत्येक प्राणी के हृदय में अनुभव किया जा सकता है। (6) जिसे आत्मज्ञान हो, उसे ही कवयित्री ने ज्ञानी कहा है। आत्मज्ञानी ही ईश्वर को पहचान सकता है। (7) कवयित्री ने ईश्वर की सर्वव्यापकता को स्पष्ट किया है। उनके अनुसार ईश्वर जल-थल और हर तीर्थ स्थान में भी रहता है। आत्मज्ञान के द्वारा ईश्वर को जानने वाला व्यक्ति ही ज्ञानी है। अतः हमें ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। यही मानव-जीवन का परम लक्ष्य है। वाख Summary in Hindiवाख कवयित्री-परिचय प्रश्न- 2. प्रमुख रचनाएँ-ललद्यद की सभी काव्य-रचनाएँ ‘वाख’ शीर्षक के अंतर्गत उपलब्ध हैं। वस्तुतः ‘वाख’ उनकी काव्य-शैली है। जिस प्रकार हिंदी में कबीर के दोहे, मीरा के पद, तुलसी की चौपाइयाँ तथा रसखान के सवैये प्रसिद्ध हैं; उसी प्रकार ललद्यद के ‘वाख’ प्रसिद्ध हैं। 3. काव्यगत विशेषताएँ-ललद्यद के काव्य की सबसे बड़ी विशेषता है कि वह तत्कालीन जीवन से जुड़ा हुआ है। उन्होंने अपने वाखों के माध्यम से जाति एवं धर्म की संकीर्णताओं से ऊपर उठकर भक्ति के मार्ग को अपनाने की प्रेरणा दी है। उनके काव्य में समाज में एकता स्थापित करने की भावना पर बल दिया गया है- “थल-थल में बसता है शिव ही, उनकी प्रवृत्ति खंडनात्मक न होकर मंडनात्मक थी। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि उन्होंने लोकमंगल की भावना को अभिव्यक्त किया है। उन्होंने धार्मिक आडंबरों का सर्वत्र विरोध किया है और प्रेम को सबसे बड़ा जीवन-मूल्य घोषित किया है। “ज्ञानी है तो स्वयं को जान, 4. भाषा-शैली-संत-कवयित्री ललद्यद की रचनाएँ लोकजीवन से संबंधित हैं। इसलिए उन्होंने अपनी रचनाओं में तत्कालीन पंडिताऊ भाषा संस्कृत और दरबार के बोझ से दबी फारसी के स्थान पर लोकभाषा का सफलतापूर्वक प्रयोग किया है। उनके काव्य की भाषा में लोकजीवन से संबंधित लोकभाषा के अनेक शब्दों का सार्थक प्रयोग किया गया है। उन्होंने अपने काव्य की भाषा को जहाँ संगीतमय बनाया है, वहाँ लोकप्रचलित मुहावरों एवं लोकोक्तियों का प्रयोग करके उसे सारग्राही एवं रोचक भी बनाया है। सदियों से कश्मीरी जनता की स्मृति और वाणी में ललद्यद की रचनाएँ जीवित हैं। विद्वान आधुनिक कश्मीरी भाषा के उद्भव एवं विकास का आधार-स्तंभ उनकी वाणी को मानते हैं। वाख कविता का सार/काव्य-परिचय वाख प्रश्न- कवित्री के अनुसार ईश्वर को कैसे प्राप्त किया जा सकता है?कवयित्री के अनुसार ईश्वर सर्वव्यापक है। वह किसी सीमा में नहीं बंधा हुआ है | उसका वास तो स्वयं मनुष्य के हृदय में है। अतः यदि मनुष्य स्वयं को जान लेगा तो वह ईश्वर को पा लेगा।
कवयित्री ने परमात्मा की प्राप्ति के लिए क्या उपाय बताया है?Explanation: कवयित्री ललद्यद ने परमात्मा प्राप्ति के उपायों में दिल में 'हूक' उठना आवश्यक बताया है। तत्पश्चात् त्याग और भोग के बीच सहज जीवन जीना आवश्यक है। भोग में आसक्ति, त्याग की अतिशयता और हठयोग जैसे उपायों से कुछ भी प्राप्त नहीं होता है।
कवयित्री के ईश्वर को पाने के प्रयास व्यर्थ हो रहे हैं क्योंकि उसके प्रयास?प्रश्न: कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं? उत्तर: कवयित्री के कच्चेपन के कारण उसके मुक्ति के सारे प्रयास विफल हो रहे हैं अर्थात् उसमें अभी पूर्ण रुप से प्रौढ़ता नहीं आई है जिसकी वजह से उसके प्रभु से मिलने के सारे प्रयास व्यर्थ हैं।
कवयित्री ललद्यद के अनुसार ईश्वर प्राप्ति के मार्ग में कौन कौन सी बाधाएं हमारे समक्ष आती हैं?परमात्मा को पाने के प्रति मन का शंकाग्रस्त रहना। अत्यधिक भोग में लिप्त रहना या भोग से पूरी तरह दूर होकर वैरागी बन जाना।
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