Show सैनिक और देश के प्रति सम्मान है एक दीयामुरादाबाद: शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा.. पं. जग मुरादाबाद: शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा.. पं. जगदम्बा प्रसाद मिश्र की इस कविता से हमें देश की रक्षा की खातिर अपने जान देने वाले वीर सपूतों के महत्व को महसूस करना चाहिए। आजादी के बाद से अभी तक युद्ध के दौरान या फिर सीमा पर दुश्मनों की गोलीबारी का शिकार हुए सैनिकों के बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता है। उनकी याद में एक या दो दीये नहीं, बल्कि दीपावली के पूरे त्योहार को भी समर्पित कर दें तो कम है। सीमा पर विपरीत परिस्थितियों में भी जवान इसलिए दिनरात ड्यूटी देते हैं, ताकि हमारी आरामतलब जिंदगी में कोई खलल न पड़े। सैनिक ही नहीं, देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपनी मातृभूमि के सम्मान में हमेशा तत्पर रहे। कुछ परिस्थितियों के कारण कई बार लोग इसकी पूरी जिम्मेदारी सैनिकों के ऊपर ही थोप देते हैं। वर्तमान में इंटरनेट युग है। देश के अंदरूनी मामलों को फैलते देर नहीं लगती है। दुश्मन की नजरें नाजुक हालातों पर होती हैं और वह इसी का फायदा उठाते हैं, जिसका खामियाजा हमारे सैनिकों को उठाना पड़ता है। पिछले दिनों सीमा पर हुए घटनाक्रम ने कई परिवारों को जिंदगी भर का दर्द दे दिया है। किसी मां ने अपना बेटा खोया है तो किसी पत्नी का सुहाग ही उजड़ गया। कोई बहन भाई दूज पर उसका कभी न पूरा होने वाला इंतजार करेगी तो बच्चे अपने पापा की कमी को हमेशा महसूस करेंगे। दीपावली बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है। सीमा पार दुश्मनों को निशाना बनाकर सैनिकों ने गर्व करने का मौका दिया है, लेकिन हृदय विदारक घटना ने जनमानस को झकझोर दिया है। संवेदनशील व्यक्ति पीड़ित परिजनों के अंधेरे त्योहार का दर्द महसूस कर सकता है। अब वो पल आ गया है, जब हमें अपने स्वार्थो को पीछे छोड़कर शहीद सैनिकों के परिजनों के साथ खड़ा होना चाहिए। प्रत्यक्ष तौर पर हम बहुत ज्यादा मदद भले ही न कर पाएं, लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर समाज में देशसेवा की एक मुहिम तो शुरू कर ही सकते हैं। सभी लोग अपने परिजनों के साथ दीपावली की खुशियां मनाएंगे, लेकिन पीड़ित परिवार अपनों को खोने के गम में डूबे हैं। इसलिए हम एक दीया अपने शहीद सैनिकों की याद में जलाकर पीड़ित परिजनों के साथ खड़े होने का संदेश दे सकते हैं। आज एकजुट होना समय की मांग है। अपनी भावनाओं को प्रदर्शित करने के लिए किसी समय विशेष का इंतजार नहीं करना चाहिए। सीमा पर जाकर हम उनके साथ त्योहार नहीं मना पा रहे तो क्या हुआ, यहां रहकर उनके प्रति अपनी संवेदना और प्यार से अपने कर्तव्य का निर्वहन कर सकते हैं। हमारी हिफाजत करने वालों के लिए हमारा भी फर्ज है कि उन्हें साथ होने का अहसास कराएं। एक दीया शहीदों के नाम इसी दिशा में एक छोटा सा प्रयास है, ताकि सैनिक और देश के प्रति सम्मान को महसूस किया जा सके। -रीता सिंह, अध्यक्ष, ऑल इंडिया वूमेन कांफ्रेंस। शिखर के दादाजी एक सैनिक थे और वे फौज में काम कर चुके थे। उन्हें युद्ध में ऐसी चोट लग गई, जिससे उनका हाथ काटना पड़ा। उन्होंने ठीक होने के बाद नौकरी छोड़ दी और यहां अपने गांव में दुकान खोल ली देश के लिए काम करने का मौका सबको नहीं मिलता’, दादा जी ने उससे कहा। ‘क्या दादाजी!’ शिखर ने मजाक उड़ाते हुए कहा। ‘अच्छा, आप बताइए, देश के लिए काम करना क्या होता है?’ शिखर ने उनसे पूछा। ‘तुम क्या जानते हो देश के लिए काम करने के बारे में?’ दादाजी ने शिखर से उलटा ही सवाल पूछ लिया। शिखर के दादाजी एक सैनिक थे और वे फौज में काम कर चुके थे। उन्हें युद्ध में ऐसी चोट लग गई, जिससे उनका हाथ काटना पड़ा। उन्होंने ठीक होने के बाद नौकरी छोड़ दी और यहां अपने गांव में दुकान खोल ली। दादाजी की पूरे गांव में इज्जत थी। पूरा गांव दादाजी की बात मानता था और ऐसा लगता था जैसे दादाजी ही गांव के सरपंच हैं। हालांकि शिखर के पापा इस गांव के सरपंच थे, मगर लोग सारी परेशानियांलेकर उसके दादाजी के पास ही आते थे। उसके दादाजी को लोग न जाने क्यों जादू की छड़ी समझते थे। वे सबकी बातों को तसल्लीपूर्वक सुनते। सबकी समस्याओं को ध्यान में रखकर बाद में उसका सही हल अपने बेटे के माध्यम से निकाल देते।
पढ़ें- इस खबर को पढ़ने के बाद आप भी खाएंगे रोज एक अंडा उसे याद है एक दिन गांव में कुछ डाकू आ गए थे। उस दिन कई घरों में डाके की घटना हुई, लेकिनदादाजी कैसे निडर होकर उन डाकुओं के बीच निहत्थे घुस गए। जब उन्हें ये पता चला कि दादाजी की यह बाजू देश की रक्षा करते हुए कटी थी, तो कई डाकू उनके सामने ही उनके पैरों पर लोट गए। शिखर को लगने लगा कि वह अपनी शरारतों के मोह में इतना फंस गया है कि वह दादाजी को समझ ही नहीं पा रहा है। उसके दादाजी एक फौजी हैं और एक फौजी की तरह ही जिए हैं। वे सैम बहादुर के ही दूसरे रूप हैं, जो सबसे हंसी-मजाक भी करते हैं और कोई मुश्किल आने पर उनकी मदद के लिए सबसे आगे रहते हैं। पढ़ें- उड़े हुए बाल फिर से उगाने में बेहद लाभदायक है ये फल शिखर कभी अपने दादाजी को देखता, तो कभी अपने दोस्त रवि की बात याद करता। ‘यार शिखर, तू कितना लकी है कि तेरे दादाजी ऐसे हैं। तुम्हें पता है देश के लिए काम करने वाले बहुत कम लोग होते हैं!’ रवि ने उसे यह बात क्लास में कही थी। तब शिखर को बात समझ में नहीं आई थी। पर आज जिस तरह से दादाजी का सम्मान हो रहा था, वह उसकी आंखें खोलने के लिए काफी था। वह भाग कर गया और दादाजी के पैर छू लिए।‘आप मेरे मानेक शॉ हैं।’ दादाजी ने उसे गले लगाते हुए कहा, ‘और तू मेरा और इस देश का भविष्य।’ आज दादाजी जी की यह बात उसे बुरी नहीं लग रही थी। गीताश्री अभ्यास प्रश्न पढ़ें-..तो इस कारण जींस में होती है छोटी पॉकेट और छोटे बटन Edited By: Mohit Tanwar आप देश के सैनिक के माता पिता का सम्मान क्यों करते हैं?भगवान आपको अपने माता-पिता का सम्मान करने की आज्ञा देते हैं। आप जिस भी धर्म का पालन करते हैं और जिस भी भगवान की पूजा करते हैं, वे सभी आपको अपने माता-पिता का सम्मान करना सिखाते हैं। आपके माता और पिता भगवान के समतुल्य है। इसलिए आपको उनका सम्मान और सम्मान करना चाहिए।
देश के सैनिकों के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है?सैनिक शिक्षण की सुविधाऐं जिन्हें प्राप्त हो सकें उसे सीखना चाहिए और व्यक्तिगत आवश्यक कार्यो की तरह राष्ट्र रक्षा के लिए भी तत्पर रहना चाहिए। एक जिम्मेदार और सक्षम नागरिक को रक्षा कोष में उदारता पूर्वक दान देना चाहिए। सैनिक हित में सरकारी और अर्धसरकारी प्रयत्न जहां चल रहे हैं वहां उनमें सहयोग देने हमारा कर्तव्य है।
सैनिक के माता पिता का सम्मान कैसे करें?सेना के शहीद सैनिकों के माता -पिता को मासिक पेंशन प्रदान करने.... पद्म / जीवन रक्षा अवार्ड नामांकन पोर्टल. एम आई एस पोर्टल. आपदा सुरक्षा पोर्टल. ईज ऑफ डुईंग बिजनेस (EoDB) अंतर्गत गृह विभाग की चिन्हित सेवाओं के ऑनलाइन क्रियान्वयन के संबंध में पोर्टल लिंक/निर्देश/प्रोसेस मैनुअल ।. देश की रक्षा के लिए लड़ रहे सैनिकों के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है एक स्वरचित कविता के माध्यम से बताइए?Answer: सैनिक चाहे किसी भी देश के क्यों न हों, उनकी जिंदगी हमेशा कठिनाईयों से भरी होती हैं। सैनिक हमारे देश के प्रहरी होते है, जब तक वे सीमा पर तैनात हैं, तब तक हम भी चैन की सांस ले पाते हैं। राष्ट्र की सुरक्षा, अखंडता व एकता को बनाए रखने में भारतीय सशस्त्र सेनाओं का योगदान किसी से छुपा नहीं है।
|