लहसुनिया रत्न कौन सी उंगली में पहने? - lahasuniya ratn kaun see ungalee mein pahane?

हर कोई चाहता हैं कि उसके जीवन की दरिद्रता दूर हो जाये, ज्योतिष शात्रियों के अनुसार केतु रत्न लहसुनिया रत्न को धारण करने से व्यक्ति केतु ग्रह के बुरे प्रभाव से बच सकता है । यदि किसी के लिए केतु फलदायी होने के बावजूद कमजोर है, तो इस रत्न को धारण करने से उसे मजबूती मिलती है, जब किसी व्यक्ति के जीवन में केतु की महादशा चल रही हो तो उसके लिए यह लहसुनिया रत्न धारण करना लाभकारी सिद्ध होने के साथ जीवन की दरिद्रता दूर हो जाती हैं । ज्योतिष के अनुसार वृषभ, मकर, तुला, कुंभ, मिथुन राशि के जातकों के लिए केतु से संबंधित रत्न पहनना बहुत शुभ होता है, जो लोग लहसुनिया पहनते हैं उन्हें कभी किसी की बुरी नजर नहीं लगती । अगर जीवन में आर्थिक तंगी है तो लहसुनिया रत्न धारण करने से दरिद्रता से मुक्ति मिलती है ।

लहसुनिया रत्न केतु का रत्‍न होता है। यह रत्न बेहद चमकीला होता है। इसकी अपनी विशेष बनावट के कारण इसे अंग्रेजी में 'कैट्स आई (Cats Eyes) कहा जाता है। ज्योतिषों के अनुसार, जब कुंडली में मौजूद केतु आपके लिए परेशानी का कारण बने तो लहसुनिया रत्न धारण करना शुभ माना जाता है। इसे धारण करने से आपको हर तरह की समस्याओं से छुटकारा मिलने के साथ-साथ मानसिक रूप से भी शांति मिलती है। जानिए किन लोगों को लहसुनिया रत्न पहनना चाहिए और किन्हें नहीं। 

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किन लोगों को धारण करना चाहिए लहसुनिया रत्न

  1. अगर आपकी कुंडली में केतु कमजोर है तो उसे बलशाली बनाने के लिए लहसुनिया रत्न पहनना चाहिए। इससे आपको अनचाहे डर से भी मुक्ति मिलेगी। 
  2. केतु के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए लहसुनिया रत्न धारण करना चाहिए। 
  3. जिन लोगों की कुंडली में केतु प्रथम, तीसरे, चौथे, पांचवे, नवें और दसवें भाव पर हो। उन लोगों को लहसुनिया पहनना लाभकारी होगा। 
  4. अगर कुंडली में केतु सूर्य के साथ हो या फिर सूर्य से दृष्ट होतो इस रत्न को पहनना चाहिए। 
  5. अगर आपकी जन्मपत्रिका में केतु मंगल, ब्रहस्पति और शुक्र के साथ हो तो आप लहसुनिया रत्न पहन सकते हैं। 
  6. केतु की अंतरदशा और महादशा चल रही हो तो इस रत्न को धारण करना लाभकारी होगा। 
  7. अगर किसी बच्चे को बार-बार नजर लग जा रही हैं तो चांदी के लॉकेट में लहसुनिया डालकर पहना दें। इससे लाभ मिलेगा। 
  8. अगर कुंडली में केतु पांचवे भाव के स्वामी के साथ हो या फिर भाग्येश के साथ हो तो लहसुनिया पहनना शुभ होगा। 
  9. अगर किसी बिजनेसमैन को अपने अपने व्यापार पर लगातार हानि हो रही हैं तो वह ज्योतिष से सलाह लेकर लहसुनिया पहन सकता है। इससे उसके रुके हुए सभी काम भी पूरे होंगे।
  10. अगर आपको मानसिक तनाव में रहते हैं तो लहसुनिया धारण कर सकते हैं। इससे आपके मन को शांति मिलेगी।

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लहसुनिया रत्न कौन सी उंगली में पहने? - lahasuniya ratn kaun see ungalee mein pahane?

Image Source : INSTAGRAM/R.S_SILVER_HOUSE/

lahsunia stone kise pahnna chahiye or kise nahi

किन लोगों को धारण नहीं करना चाहिए लहसुनिया रत्न

  1. जिन लोगों की जन्मकुंडली में केतु द्वितीय, सप्तम, अष्टम या फिर द्वादश भाव में स्थित हो तो वह लोग इस रत्न को धारण न करें। इससे उन्हें किसी न किसी तरह की हानि का सामना करना पड़ सकता है। 
  2. लहसुनिया रत्न को कभी भी पुखराज, मोती या फिर माणिक्य के साथ नहीं पहनना चाहिए।  
  3. लहसुनिया रत्न को हीरा के साथ भी कभी भी नहीं पहनना चाहिए। इससे आपको धनहानि हो सकती है। 
  4. अगर लहसुनिया रत्न में चार या इससे अधिक धारियां हो तो इसे बिल्कुल न पहनें। इससे आपको लाभ की जगह हानि होगी।
  5. व्यक्ति को बिना ज्योतिष की सलाह के लहसुनिया नहीं धारण करना चाहिए। अगर वह ऐसा करता हैं तो उसे दिल और दिमाग से जुड़ी बीमारियां हो सकती हैं।

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डिस्क्लेमर- ये आर्टिकल जन सामान्य सूचनाओं और लोकोक्तियों पर आधारित है। इंडिया टीवी इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं करता, किसी रत्न को धारण करने से पहले संबंधित क्षेत्र से विशेषज्ञ से सलाह लें।

 

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पुखराज तर्जनी में ही क्यों पहनने की सलाह देते हैं, क्योंकि कोई भी व्यक्ति धमकी, निर्देश आदि देता है तो इसी अंगुली से देता है। यही अंगुली लड़ाई का भी कारण बनती है, तो होशियार करने के लिए भी काम आती है। इसलिए गुरु का रत्न पुखराज पहनने की सलाह दी जाती है। पुखराज पहनने से उस जातक में गंभीरता आती है। साथ ही वह अन्याय के प्रति सजग हो जाता है। यह धर्म-कर्म में भी आस्था जगाता है। गुरु का प्रभाव बढ़ाने और उसके अशुभ प्रभाव को खत्म करने के लिए पुखराज पहना जाता है।

अधिकांश व्यक्ति पुखराज पहनते हैं इनमें प्रमुख राजनेता, प्रशासनिक अधिकारी, न्यायाधीश, मंत्री, राजनायक, अभिनेता आदि की अंगुली में देखा जा सकता है। पुखराज के साथ माणिक पहना जाए तो अति शुभ फल भी मिल सकते हैं। मध्यमा में नीलम धारण करते है व इसके अलावा कोई भी रत्न नहीं पहनना चाहिए अन्यथा शुभ परिणाम नहीं मिलते। इस अंगुली पर ही आकर भाग्य रेखा खत्म होती है जिनकी भाग्य रेखा न हो वे किसी जानकार से सलाह लेकर नीलम पहन कर लाभ पा सकते हैं।

नीलम शनि के शुभ फल देने में सहायक होता है, यह अक्सर लोहे के व्यवसायी, प्रशासनिक व्यक्ति, राजनेता भी पहने देखे जा सकते है। इसके बारे में यह कहावत है कि यह रत्न तुरन्त फलदायी होता है व इसका शुभ या अशुभ परिणाम शीध्र देने में सक्षम हैं। यह रत्न बगैर किसी जानकार की सलाह के नहीं पहनना चाहिए।

माणिक अनामिका में पहना जाता है, यह सूर्य का रत्न है। बर्मा का माणिक अधिक महंगा होता है, वैसे आजकल कई नकली माणिक भी बर्मा का कहकर बेच देते हैं। बर्मा का माणिक अनार के दाने के समान होता है। इसके पहनने से प्रशासनिक, प्रभाव में वृद्धि व शत्रुओं को परास्त करने में भी सक्षम है। इसे भी नेता राजनीति से संबंध रखने वाले, उच्च पदाधिकारी, न्यायाधीश, कलेक्टर आदि की अंगुली में देखा जा सकता हैं।

कनिष्का अंगुली में पन्ना पहना जाता है। यह बौधिक गुणों को बढ़ाता है, जिसे बिजनेसमैन ज्यादा पहनते हैं। इसको पहनने से पत्रकारिता, सेल्समैन, प्रकाशन, दिमागी कार्य करने वाले, कलाकार, वाकपटु व्यक्ति भी पहनते हैं।

हीरा, मोती, मूँगा, गोमेद व लहसुनियां। मूंगा ऊर्जा बढ़ाने वाला, साहस, महत्वाकांक्षा में वृद्धि व शत्रुओं पर प्रभाव डालने वाला होता है। इसके मित्र गुरु, सूर्य हैं व मकर में उच्च का होने से इसे मध्यमा, तर्जनी व अनामिका में धारण किया जाता है। इसको अक्सर राजनीतिज्ञ, पुलिस प्रशासन से जुडे व्यक्ति व उच्च पदाधिकारी, भूमि से संबंधित व्यक्तिगण, बिल्डर, कॉलोनाइजर आदि द्वारा पहना हुआ देखा जा सकता है। इसे माणिक, पुखराज के साथ भी धारण कर सकते हैं। जिन्हें गुस्सा अधिक आता हो वे इस रत्न को ना पहने। मूंगे को मोती के साथ भी या संयुक्त रत्न की अंगूठी पहनी जा सकती है।

कनिष्का अंगुली में मोती पहनना शुभ फलदायी रहता है, क्योंकि कनिष्का अंगुली के ठीक नीचे चन्द्र पर्वत है। इस कारण चन्द्र के अशुभ परिणाम व शुभत्व के लिए शुभ रहता है। उसे अनामिका में नहीं पहनना चाहिए। गुरु की अंगुली तर्जनी में भी पहन सकते हैं। यह रत्न मन को अशान्ति से बचाता है व जिन्हें ज्यादा गुस्सा आता हो, जो जल कार्य से जुड़े व्यक्ति, दूध व्यवसायी, सफेद वस्तुओं के व्यवसाय से जुडे़ व्यक्ति भी पहन सकते हैं। इसे पुखराज के साथ व माणिक के साथ भी पहना जा सकता है।

हीरा रत्न अत्यन्त महंगा व दिखने में सुन्दर होता है। इसे गुरु की अंगुली तर्जनी में पहनते हैं, क्योंकि तर्जनी अंगुली के ठीक नीचे शुक्र पर्वत होता है। शुक्र के अशुभ प्रभाव को नष्ट कर शुभ फल हेतु हीरा पहनते हैं। इसे कलाकार, सौंदर्य प्रसाधन से जुडे़ व्यक्ति, प्रेमी, इंजीनियर, चिकित्सक, कलात्मक वस्तुओं के विक्रेता आदि पहन सकते हैं।

राहु का रत्न गोमेद कनिष्का में पहनना चाहिए क्योंकि मिथुन राशि में उच्च का होने से बुध की अंगुली कनिष्का में पहनना शुभ फलदायी रहता है। इसे राजनीति, जासूसी, जुआ-सट्टा, तंत्र-मंत्र से जुडे़ व्यक्ति आदि पहनते हैं। यह राहु के अशुभ प्रभाव को दूर करता है।

लहसुनियां रत्न तर्जनी में पहनना चाहिए क्योंकि गुरु की राशि धनु में उच्च का होता है। यह ऊंचाइयां प्रदान करता है व शत्रुहन्ता होता है। इस रत्न को हीरे के साथ कभी भी नहीं पहनना चाहिए, क्योंकि इससे बार-बार दुर्घटना के योग बनता रहेगा।

लहसुनिया कौन सी उंगली में पहनना चाहिए?

लहसुनिया धारण करने की विधि रत्न शास्त्र के अनुसार सवा रत्ती लहसुनिया, चांदी की अंगूठी या लॉकेट में शनिवार के दिन धारण किया जा सकता है. लहसुनिया को हमेशा मध्यमा उंगली में धारण करना चाहिए.

लहसुनिया कौन पहन सकता है?

किसी की जन्मपत्री में केतु मंगल, ब्रहस्पति और शुक्र के साथ हो तो वो लोग भी लहसुनिया रत्न पहन सकते हैं. कुंडली में केतु प्रथम, तीसरे, चौथे, पांचवे, नवें और दसवें भाव पर हो तो भी यह रत्न पहनना चाहिए. किसी की कुंडली में केतु सूर्य के साथ हो या फिर सूर्य से दृष्ट हो तो उसे इस रत्न को पहनना चाहिए.

लहसुनिया कितने दिनों में असर दिखाता है?

रत्नों के परिणाम कितने दिन में दिखाई पड़ते हैं इसका विवरण इस प्रकार है। मोती 3 दिन माणिक्य 30 दिन मूंगा 21 दिन पन्ना 7 दिन पुखराज 15 दिन नीलम 2 दिन हीरा 22 दिन गोमेद 30 दिन लहसुनिया 30 दिन ज्योतिष में रत्न को किन उंगलियों में धारण करना चाहिए इस पर भी विवरण मिलता है।

लहसुनिया पत्थर पहनने से क्या होता है?

लहसुनिया धारण करने से केतु शांत रहते हैं. वास्तु शास्त्र के अनुसार, रत्न पहनने से ना सिर्फ सकारात्मकता आती है, बल्कि घर में सुख-समृद्धि का वास भी होता है. साथ ही, विशेष ग्रह के सभी दोष दूर होते हैं. पंडित इंद्रमणि घनस्याल के अनुसार, अगर जन्मकुंडली में केतु की दशा हो तो लहसुनिया रत्न धारण करना शुभ होता है.