लेखक को गिलानी क्यों हो रही थी? - lekhak ko gilaanee kyon ho rahee thee?

विषयसूची

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  • 1 बस पर सवारी करना क्यों उचित नहीं था?
  • 2 लोगों ने बस को डाकिन क्यों कहा?
  • 3 ऊंट कितने दिन तक बिना पानी पिए रह सकता है?
  • 4 धूप न हो तो क्या होगा?
  • 5 बस की यात्रा पाठ के अनुसार एक पुलिया के ऊपर बस के पहुँचते ही क्या हुआ?
  • 6 लेखक को गिलानी क्यों हो रही थी?
  • 7 लोगों ने सलाह दी कि समझदार आदमी इस शाम वाली बस से सफर नहीं करते लोगों ने यह सलाह क्यों दी?
  • 8 उत्सर्ग की भावना दुर्लभ है इस से क्या आशय है *?

बस पर सवारी करना क्यों उचित नहीं था?

इसे सुनेंरोकेंइंजन और बस की बॉडी का तो कोई तालमेल नहीं था। उसको देखकर स्वयं ही अंदाज़ा लग जाता था कि वो अंधेरे में कहीं साथ न छोड़ दे या कोई दुर्घटना न हो जाए। कई लोग पहले भी उस बस से सफ़र कर चुके थे। वो अपने अनुभवों के आधार पर ही लेखक व उसके मित्र को बस में न बैठने की सलाह दे रहे थे।

लोगों ने बस को डाकिन क्यों कहा?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर – लोगों ने बस को ‘डाकिन’ कहा क्योंकि इस बस से यात्रा करने वाले लोगों का सुख – चैन लुट जाता है।

ऊंट कितना ऊंचा?

इसे सुनेंरोकेंकक्षा 2 हिंदी रिमझिम 1: (क) ऊँट कितना ऊँचा? Ans.: (क) ऊँट मेरी कक्षा की दीवार जितना ऊँचा होता है।

ऊंट कितने दिन तक बिना पानी पिए रह सकता है?

इसे सुनेंरोकेंऐसा माना जाता है कि ऊंट अपने कूबड़ में पानी जमा करके रखते हैं, जबकि ऐसा नहीं है। उसके कूबड़ में वसा जमा होती है। जो धीरे-धीरे जरूरत पड़ने पर पानी या ऊर्जा में बदलती रहती है। इसलिए वह छह महीने तक बिना पानी पिए जीवित रह सकता है।

धूप न हो तो क्या होगा?

इसे सुनेंरोकेंAnswer: अगर धूप न हो तो पेड़-पौधे और हम मर जाएँगे। धूप से पेड़-पौधे भोजन बनाते हैं तथा हमारे शरीर को महत्वपूर्ण विटामिन प्राप्त होता है। अगर हवा न हो तो सभी साँस नहीं ले पाएँगे और सारे मर जाएँगे।

यदि हवा पानी पेड़ पौधे न हो तो क्या होगा?

इसे सुनेंरोकेंअगर पानी न हुआ, तो हम सब मर जाएँगे क्योंकि पानी पृथ्वी के हर प्राणी की मह्त्वपूर्ण आवश्यकता है। अगर पेड़-पौधे न हो तो हम सबको भोजन प्राप्त नहीं होगा। सभी एक-दूसरे को मारने लगेंगे। वातावरण में प्रदूषण फैल जाएगा हमें शुद्ध हवा नहीं मिल पाएगी।

बस की यात्रा पाठ के अनुसार एक पुलिया के ऊपर बस के पहुँचते ही क्या हुआ?

इसे सुनेंरोकेंपुलिया पर पहुँचते ही बस का टायर पंचर हो गया। लेखक ने कंपनी के हिस्सेदार को श्रद्धाभाव से इसलिए देखा क्योंकि यह जानते हुए भी कि बस के पहिए खराब हैं, लोगों की जान खतरे में पड़ सकती है, वे निरंतर अपने लोभ-लालच के कारण बस को सड़क पर भगा रहे थे।

लेखक को गिलानी क्यों हो रही थी?

इसे सुनेंरोकेंप्रश्न: 7. लेखक बस से यात्रा कर रहा था, फिर उसे ग्लानि क्यों हो रही थी? उत्तर: क्षीण चाँदनी में पेड़ की छाया में खड़ी बस उसे वृद्धा के समान लग रही थी। वह सोच रहा था कि यदि वह और उसके साथी इस पर लदकर न आते तो बस की यह दशा न होती, इसीलिए उसे ग्लानि हो रही थी।

लोगों ने शाम की बस से यात्रा न करने की सलाह क्यों दी?

इसे सुनेंरोकेंAnswer. समझदार आदमी इस शाम वाली बस में सफर नहीं करते’ लोगों ने लेखक और उसके मित्रों को यह सलाह इसलिए दी क्योंकि वे जानते थे कि बस की हालत बहुत खराब है। रास्ते में बस कभी भी और कहीं भी धोखा दे सकती है।

लोगों ने सलाह दी कि समझदार आदमी इस शाम वाली बस से सफर नहीं करते लोगों ने यह सलाह क्यों दी?

इसे सुनेंरोकें’समझदार आदमी इस शाम वाली बस में सफर नहीं करते’ लोगों ने लेखक और उसके मित्रों को यह सलाह इसलिए दी क्योंकि वे जानते थे कि बस की हालत बहुत खराब है। रास्ते में बस कभी भी और कहीं भी धोखा दे सकती है।

उत्सर्ग की भावना दुर्लभ है इस से क्या आशय है *?

इसे सुनेंरोकेंकहते- “वह महान आदमी आ रहा है जिसने एक टायर के लिए प्राण दे दिए। मर गया, पर टायर नहीं बदला।” ‘उत्सर्ग की भावना दुर्लभ है’ इन शब्दों का क्या अर्थ है? लोगों के प्रति सचेत न होना।

कलियाँ किसका प्रतीक हैं?

इसे सुनेंरोकेंनिद्रित कलियाँ आलस्य में डूबे हुए नवयुवकों का प्रतीक है।

क्यों हो रही है कश्मीरी पत्रकारों पर कार्रवाई

  • रियाज़ मसरूर
  • बीबीसी संवाददाता, श्रीनगर

22 अप्रैल 2020

लेखक को गिलानी क्यों हो रही थी? - lekhak ko gilaanee kyon ho rahee thee?

भारत प्रशासित कश्मीर में सरकार ने सख़्त क़ानून यूएपीए (ग़ैरक़ानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम) के तहत एक महिला फ़ोटो-पत्रकार समेत तीन पत्रकारों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की है जिसकी दुनिया भर के पत्रकारों के संगठन ने भर्त्सना की है.

26 वर्षीया मसरत ज़हरा पर राष्ट्रविरोधी फ़ेसबुक पोस्ट्स लिखने का आरोप है जिसे लेकर सोशल मीडिया पर काफ़ी आक्रोश देखा गया.

ज़हरा पिछले चार वर्षों से वाशिंगटन पोस्ट और गेटी इमेजेज़ के लिए कश्मीर कवर कर रही थीं.

राष्ट्रीय समाचार पत्र द हिंदू के संवाददाता आशिक़ पीरज़ादा को एक पुलिस हैंडआउट के अनुसार “फ़ेक न्यूज़” लिखने के आरोप में थाने तलब किया गया.

उन्हें इसके लिए लॉकडाउन के बीच श्रीनगर से लगभग 100 किलोमीटर दूर अपने घर से लंबा सफ़र करना पड़ा.

आशिक़ ने एक मारे गए चरमपंथी के परिवार वालों को ये कहते बताया था कि प्रशासन ने उन्हें बारामुला में उनके घर से लगभग 160 किलोमीटर दूर दफ़न चरमपंथी की लाश को निकालने की अनुमति दी है.

आशिक़ पीरज़ादा ने बीबीसी से कहा,”जाँचकर्ताओं ने सरकारी आदेश की प्रति नहीं होने को लेकर आपत्ति की पर मैंने उन्हें डिप्टी कमिश्नर के साथ हुए कॉल और टेक्स्ट रिकॉर्ड दिखाए. वो कहते रहे कि वो मुझे कॉल करेंगे पर उन्होंने किया नहीं. आख़िर में बात सुलझी और मैं आधी रात के बाद घर लौट सका. “

मसरत के ख़िलाफ़ एफ़आईआर और आशिक़ को सम्मन भेजने को लेकर सोशल मीडिया पर विरोध हो ही रहा था, और एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया को अधिकारों का दुरुपयोग बता ही रही थी कि एक और जाने-माने पत्रकार, लेखक और टीवी बहसों में दिखने वाले गौहर गिलानी के ख़िलाफ़ भी यूएपीए क़ानून के तहत कार्रवाई की गई.

पुलिस हैंडआउट में कहा गया कि उनके ख़िलाफ़ सोशल मीडिया पर ऐसे पोस्ट लिखने पर मामला दर्ज किया गया जो भड़काऊ और शांति-व्यवस्था के लिए ख़तरा थे.

सोशल मीडिया पर विरोध

पत्रकारों को पूछताछ के लिए बुलाने वाले कश्मीर साइबर पुलिस सेल के प्रमुख ताहिर अशरफ़ को सोशल मीडिया पर काफ़ी ट्रोल किया गया और उन्हें “मौक़ापरस्त” बताया गया.

उनके पुराने ट्वीट्स सामने लाए गए जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को 2002 के गुजरात दंगों के पीड़ितों की तुलना पिल्लों से करने के लिए उन्हें निष्ठुर बताया था. सरकारी सूत्रों ने बताया कि इस घटना के बाद उन्हें तलब किया गया था.

मसरत ज़हरा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी जिसे उन्होंने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के इस भरोसे के बाद वापस ले लिया है कि उनके ख़िलाफ़ लगे आरोप वापस ले लिए जाएँगे.

वहीं आशिक़ पीरज़ादा ने कहा,”मुझे पहले ताहिर अशरफ़ के दफ़्तर अनंतनाग बुलाया गया. तब देर शाम हो रही थी, मगर फिर भी ये यूएपीए के तहत कार्रवाई से आसान था. मैं खुशकिस्मत हूँ कि बात इससे ज़्यादा नहीं बढ़ी.“

तीनों पत्रकारों के बारे में पुलिस के बयानों में आपत्तिजनक बताए गए लेखों का कोई ब्यौरा नहीं है मगर ज़हरा बताती हैं कि उनसे 2018 में मुहर्रम के जुलूस की तस्वीर दोबारा छापने के बारे में पूछा गया जिसमें मातमी लोगों के हाथ में बुरहान वानी की तस्वीर थी. इस लोकप्रिय चरमपंथी को 2016 में मार डाला गया था.

कश्मीरी पत्रकारों ने सोशल मीडिया पर इन पत्रकारों के ख़िलाफ़ दर्ज आरोपों को वापस लेने की माँग की है.

वहीं अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं रिपोर्टर्स सांस फ़्रंतिए और एमनेस्टी इंटरनेशल ने भारत सरकार से आरोपों को वापस लेने और प्रेस की स्वतंत्रता बहाल करने की माँग की है.

पाबंदियों के बीच पत्रकारिता

कश्मीर पिछले वर्ष अगस्त से ही अनिश्चितता के दौर से गुज़र रहा है जब भारत सरकार ने उसका विशेष दर्जा समाप्त कर दिया और कई तरह की पाबंदियाँ लगा दीं.

अब हालाँकि फ़ोन सेवाएँ और 2-जी इंटरनेट बहाल हो गया है मगर पत्रकारों की शिकायत है कि वो ख़ुद को पूरी तरह स्वतंत्र नहीं महसूस करते.

श्रीनगर स्थित पत्रकार रियाज़ मलिक कहते हैं,”आधिकारिक तौर पर कोई पाबंदी नहीं है, मगर जब कुछ लिखने पर सज़ा मिल सकती है, तो ये पाबंदी की ही तरह है .“

पर एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने नाम ना ज़ाहिर करने की शर्त पर बीबीसी से कहा कि इन पत्रकारों के ख़िलाफ़ कार्रवाई उनकी रिपोर्टिंग के लिए नहीं की गई.

अधिकारी ने कहा,”जब कोई सोशल मीडिया पर लोगों को भड़काता है तो क़ानून को कार्रवाई करनी ही पड़ेगी. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता शांति और सुरक्षा के हिसाब से ही दी जाती है, हम केवल क़ानून का पालन कर रहे हैं.”

कई पत्रकारो से पूछताछ, कुछ गिरफ़्तार

पिछले आठ महीनों में कश्मीर में कई पत्रकारों को पूछताछ के लिए बुलाया गया है.

कामरान यूसुफ़ नामक फ़्रीलांस पत्रकार को अनुच्छेद 370 हटाने के पहले कई महीनों तक हिरासत में रखा गया था और पिछले साल अगस्त के बाद तनाव भड़कने पर फिर तलब किया गया.

बांदीपोरा के शेख़ सलीम और तारिक़ मीर को कई महीनों तक क़ैद रखा गया.

आसिफ़ सुल्तान नामक पत्रकार को चरमपंथियों को पनाह देने के आरोप में दो साल से भी ज़्यादा वक्त से क़ैद रखा गया है.

आउटलुक पत्रिका के संवाददाता नसीर गनाइ को पिछले साल बुलाया गया था.

नसीर कहते हैं,”कश्मीरी पत्रकार केवल पत्रकार नहीं हैं, वो कश्मीरी भी हैं और उन्हें अपनी ख़बर बतानी है. उससे उनके ऊपर जोखिम बढ़ जाता है .”

लेखक को ग्लानि क्यों हो रही है?

हमें ग्लानि हो रही थी कि बेचारी पर लदकर हम चले आ रहे हैं। अगर इसका प्राणांत हो गया तो इस बियाबान में हमें इसकी अंत्येष्टि करनी पड़ेगी। हिस्सेदार साहब ने इंजन खोला और कुछ सुधारा ।

लेखिका को हैरानी क्यों नहीं हुई?

जब कंपनी के हिस्सेदार ने बताया कि बस अभी अपने आप चलेगी ? Solution : लेखक ने बस के बारे में जानकारी ली कि क्या यह बस चलती भी है तब हिस्सेदार ने बताया चलती क्यों नहीं जी , अभी चेलगी। अपने आप चलेगी। अब लेखक को हैरानी हुई कि क्या बस अपने आप चलती है।

लेखक को छोड़ने आए लोग बस में बैठने की तुलना किससे कर रहे थे और क्यों?

बस की दशा देखकर लेखक और उसके साथी उससे जाने का निश्चय नहीं कर पा रहे थे। उसके डॉक्टर मित्र ने उसके अनुभव को याद दिलाते हुए कहा कि यह बस नई-नवेली बसों से भी ज़्यादा विश्वसनीय है। लेखक अपने साथियों के साथ बस में बैठ गया। जो छोड़ने आए थे, वे लेखक को इस तरह देख रहे थे, मानो लेखक इस दुनिया से जा रहा हो।

लेखक को इंजन के अंदर बैठने का अनुभव क्यों हो रहा था?

उत्तर:- जब बस चालक ने इंजन स्टार्ट किया तब सारी बस झनझनाने लगी। लेखक को ऐसा प्रतीत हुआ कि पूरी बस ही इंजन है। मानो वह बस के भीतरबैठकर इंजन के भीतर बैठा हुआ हो। अर्थात् इंजन के स्टार्ट होने पर इंजन के पुर्जो की भांति बस के यात्री हिल रहे थे।