लेखक के मन में बस के हिस्सेदार साहब के लिए श्रद्धा के भाव क्यों आए? Show
B. क्योंकि वह केवल अपने लाभ हेतु बस चला रहा था। लोगों की जान की परवाह उसे नहीं थी। 155 Views “मैंने उस कंपनी के हिस्सेदार की तरफ पहली बार श्रद्धाभाव से देखा।” पुलिया के ऊपर बस का टायर पंचर (फिस्स) हो गया। जिससे बस जोर से हिलकर रुक गई। अगर यह बस तेज गति से चल रही होती तो अवश्य ही उछलकर नाले में गिर जाती। ऐसे में लेखक ने कंपनी के हिस्सेदार की ओर श्रद्धाभाव से देखा। यह श्रद्धा इसलिए जागी क्योंकि हिस्सेदार केवल अपने स्वार्थ हेतु लाचार था। वह जानता था कि बस के टायर खराब हैं और कभी भी लोगों की जान खतरे में पड़ सकती है। फिर भी निरंतर बस को सड़क पर दौड़ा रहा था। यात्रियों की चिंता किए बिना धन बटोरने पर लगा था। 3316 Views आप अपनी किसी यात्रा के खट्टे-मीठे अनुभवों को याद करते हुए एक लेख लिखिए। पिछले वर्ष मैं अपने विद्यालय की ओर से जयपुर घूमने गया। हम पचास बच्चे थे व पाँच अध्यापिकाएँ हमारे साथ थीं। बड़ी खुशी-खुशी हमारी बस शाम को पाँच बजे जयपुर के लिए रवाना हुई। हमें कहा गया कि सुबह पाँच बजे तक हम लीग जयपुर पहुँच जाएँगे। जैसे ही बस चली ऐसा लगा कि जैसे मनचाही मुराद पूरी होने जा रही हो। हमने खूब खेल खेलने व नाच-गाना शुरू कर दिया। अध्यापिकाएँ भी बड़े आनंद भाव से हमारा साथ दे रही थीं। हमने नौ बजे अपने-अपने खाने के डिब्बे खोले और मजे से सब अपने मनपसंद भोजन का आनंद लेने लगे। फिर अध्यापिकाओं ने कहा कि हमें थोड़ी देर आराम करना चाहिए लेकिन हमें चैन, कहाँ हमने फिर अंताक्षरी खेलनी प्रारंभ कर दी। रात के दो बज गए लेकिन किसी की आँखो में नींद न थी। लगभग तीन बजे के करीब एकदम सुनसान जंगल में भरतपुर के पास अचानक हमारी बस का टायर पंचर हो गया। न चाहते हुए भी बस रोकनी पड़ी। हम सब डर गए थे। अचानक दो लुटेरे बस मै चढ़ आए उन्होंने हम सबसे नगदी बटोर ली। हम व हमारी अध्यापिकाएँ सभी डर गए। टायर के ठीक होते ही हम सोच में पड़ गए कि क्या करें? वापिस घरों की ओर जाएँ या जयपुर। तभी हमारी अध्यापिका ने प्रधानाचार्य को फोन किया तो उन्होंने कहा कि बच्चों का उत्साह बनाए रखो और सीधा जयपुर गोल्डन होटल में ही जाकर ठहरो। शाम तक वे स्वयं वहाँ आ रही हैं। उन्होंने शाम की वहाँ पहुँचकर जैसे सबके चेहरों को मुस्कुराहट दे दी और अगले दिन सुबह से लगातार तीन दिन तक हमें घुमाती रहीं और जिस बच्चे ने जो भी पसंद किया उन्होंने इसे लेकर दिया। हम लुटेरों की बात भूल भी गए और जयपुर का मजा लेन लगे। 2583 Views “लोगों ने सलाह दी कि समझदार आदमी इस शाम वाली बस से सफर नहीं करते।” ‘समझदार आदमी इस शाम वाली बस में सफर नहीं करते’ लोगों ने लेखक और उसके मित्रों को यह सलाह इसलिए दी क्योंकि वे जानते थे कि बस की हालत बहुत खराब है। रास्ते में बस कभी भी और कहीं भी धोखा दे सकती है। 1681 Views “हम पाँच मित्रों ने तय किया कि शाम चार बजे की बस से चलें। पन्ना से इसी कंपनी की बस सतना के लिए घंटे भर बाद मिलती
है।”
कारक शब्द से निर्मित वाक्य- • कि योजक शब्द से बनने वाले वाक्य- 483 Views “ऐसा जैसे सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के भीतर बैठे हैं।” जब बस को चालक ने स्टार्ट किया तो सारी बस में अजीब-सी धड़कन उत्पन्न हुई। ऐसे में लेखक और उसके मित्रों को लगा कि जैसे सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के अंदर बैठ हैं। अर्थात् इंजन के स्टार्ट होने पर इंजन के पुर्जो की भाँति बस के यात्री हिल रहे थे और पूरी बस में इंजन का शोर गूँज रहा था। 1272 Views लेखक के मन में कंपनी के हिस्सेदार के प्रति श्रद्धा का भाव क्यों उमड़ा *?Solution : लेखक के मन में हिस्सेदार के लिए श्रद्धा इसलिए जग गयी, क्योंकि बस के टायर घिस कर बिल्कुल खराब हो रहे थे। परिणामस्वरूप पुलिया के ऊपर बस का टायर पंचर हो गया था जिससे बस जोर से हिलकर रुक गई। अगर बस तेज गति से चल रही होती तो अवश्य ही उछल कर नाले में गिर जाती। इससे अन्य यात्रियों के साथ-साथ उसकी जान को भी खतरा था।
लेखक के मन में लहस्सेदार साहब के कलए श्रद्धा क्यों जग गई?Answer. Explanation: लेखक के मन में हिस्सेदार साहब के लिए अपार श्रद्धा जग गई इसका यही कारण था कि बस के टायरों की हालत का पूरी तरह से ज्ञान होने पर भी हिस्सेदार साहब अपनी जान हथेली पर रखकर उस बस में सफर कर रहे थे । बलिदान और त्याग की ऐसी भावना का कहीं और मिलना बहुत मुश्किल है ।
बस को देखकर लेखक के मन में कौन सा भाव उमड़ पड़ा?Answer: उत्तर:- बस की जर्जर अवस्था से लेखक को ऐसा महसूस हो रहा था कि बस की स्टीयरिंग कहीं भी टूट सकती है तथा ब्रेक फेल हो सकता है। ऐसे में लेखक को डर लग रहा था कि कहीं उसकी बस किसी पेड़ से टकरा न जाए।
लेखक को इंजन के अंदर बैठने का अनुभव क्यों हो रहा था?हालांकि बस के अधिकांश शीशे टूट चुके थे, जो बचे थे वो इंजन के चालू होने पर हिलने लगे और उनसे किसी को चोट लगने का खतरा बढ़ गया था। लेखक को ऐसा प्रतीत हो रहा था, कि जैसे उसकी सीट के नीचे ही इंजन हो। इन सब कारणों से लेखक को लगा कि वो बस में नही इंजन में बैठे हैं।
|