माँग विश्लेषण कैसे किया जाता है? - maang vishleshan kaise kiya jaata hai?

उत्तर - माँग विश्लेषण :

अर्थशास्त्र में माँग का नियम उतना ही प्राचीन है जितना अर्थशास्त्र है। अर्थशास्त्र प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से माँग के नियम पर आधारित है । माँग एवं पूर्ति के चारों ओर सम्पूर्ण आर्थिक विश्लेषण चक्कर लगा है, इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। माँग के नियम के बिना उपभोग एवं बाजार की विभिन्न दशाओं का अध्ययन नहीं किया जा सकता है। माँग की परिभाषा विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने विभिन्न रूपों में व्यक्त की है।

माँग की परिभाषा- माँग की प्रमुख परिभाषाएँ निम्न हैं -

(1) प्रो. पेन्सन के अनुसार, “माँग एक प्रभावपूर्ण इच्छा है जिसमें तीन बातें शामिल हैं –

(i) वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा, (ii) वस्तु को खरीदने हेतु पर्याप्त साधन तथा (iii) साधनों को व्यय करने की तत्परता।”

(2) प्रो. जे. एस. मिल के शब्दों में, “माँग शब्द का अभिप्राय मांगी गई मात्रा से लगाया जाना चाहिए जो कि एक निश्चित मूल्य द्वारा क्रय की जाती है। मॉग की मात्रा स्थिर मात्रा नहीं होगी। यह तो सामान्य मूल्य के साथ बदलती रहती है।”

(3) प्रो, मेयर्स के अनुसार, “किसी वस्तु की माँग उन वस्तुओं की मात्राओं की सारणी होती है जिन्हें केता समय विशेष पर सभी सम्भव मूल्यों पर खरीदने के लिए तैयार रहता है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि माँग में निम्न पाँच तत्व पाये जाते हैं -

(i) वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा

(ii) वस्तु को प्राप्त करने के साधन हेतु पर्याप्त साधन

(iii) वस्तु विशेष पर साधन व्यय करने की तत्परता।

(iv) वस्तु की इच्छा कीमत विशेष से सम्बन्ध रखती है।

(v) मॉग का सम्बन्ध समय विशेष से होता है।

माँग के प्रकार- माँग की परिभाषा जानने के पश्चात् इसके विभिन्न भेदों की जानकारी भी आवश्यक है, मॉग के निम्न तीन प्रकार होते हैं -

(i) मूल्य माँग

(ii) आय मॉग

(iii) प्रति अथवा आड़ी माँग

मूल्य माँग- अन्य बातें समान रहते हुए, एक उपभोक्ता एक निश्चित समय में विभिन्न मूल्य स्तरों पर वस्तु की कितनी मात्राएँ खरीदता है, यह उसकी मूल्य माँग कहलाती है। अन्य बातें समान रहने से आशय उपभोक्ता की आय, रुचि तथा व्यवहार में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होना है। यदि इन बातों में परिवर्तन होगा तो यह नियम कार्यशील नहीं होगा। इस प्रकार वस्तु की माँग उसकी कीमत पर निर्भर करती है। मूल्य माँग को निम्न चित्र की सहायता से समझाया जा सकता है –

माँग विश्लेषण कैसे किया जाता है? - maang vishleshan kaise kiya jaata hai?

चित्र
उपर्युक्त चित्र में X-अक्ष पर X वस्तु की मात्रा तथा Y-अक्ष पर Y वस्तु का मूल्य दर्शाया गया हैं। DD माँग वक्र बायें से दायें नीचे की ओर गिरता हैं। माँग वक्र का ढाल ऋणात्मक है। इसीलिए ऊंचे मूल्य पर कम मात्रा तथा नीचे मूल्य पर अधिक मात्रा खरीदी जाती है । OP कीमत पर वस्तु की OQ मात्रा तथा OP1 मात्रा खरीदी जाती है । वस्तु के मूल्य में कमी आने पर माँग वक्र पर स्थित E1 बिन्दु खिसककर E बिन्दु पर आ जाता है। यह व्यक्ति की व्यक्तिगत माँग है और सभी व्यक्तियों की माँग को जोड़ने से वस्तु की बाजार माँग ज्ञात की जा सकती है।

आय माँग- आय माँग से आशय उन वस्तुओं तथा सेवाओं की मात्राओं से है जिन्हें किसी समय विशेष में अन्य बातें समान रहते हुए उपभोक्ता अपने आय-स्तरों पर खरीदने हेतु तत्पर रहता है। आय माँग के अन्तर्गत वस्तुओं को श्रेष्ठ तथा घटिया वस्तुओं की श्रेणी में विभक्त करकें भी अध्ययन किया जा सकता है। सामान्यतया आय माँग निम्न प्रकार से दर्शाया जाता

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- चित्र-
उपर्युक्त चित्र में OX-अक्ष पर वस्तु की मात्रा तथा OY-अक्ष पर उपभोक्ता की आय प्रदर्शित की गई है। DD माँग वक्र मूल्य बिन्दु से ऊपर की ओर धनात्मक रूप से बढ़ रहा है। इससे स्पष्ट होता है कि आय एवं मॉग में सीधा सम्बन्ध है अर्थात् आय में वृद्धि से वस्तु की माँग बढ़ती है तथा आय में कमी से इसकी माँग घटती है।

श्रेष्ठ वस्तुओं के सम्बन्ध में जो माँग वक्र प्राप्त होगा उसका ढाल धनात्मक होगा, क्योंकि प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होने के साथ-साथ इन वस्तुओं की माँग बढ़ाई जाती है। इस प्रकार व्यक्ति की आय का सीधा सम्बन्ध वस्तु की माँग से होता है जिसमें माँग वक्र बायें से दायें ऊपर की ओर उठता जाता है। इसे चित्र से स्पष्ट किया जा सकता है। चित्र के अनुसार जब उपभोक्ता की आय OY1 थी तब वह X वस्तु की OQ मात्रा क्रय कर E बिन्दु पर रहता है । उपभोक्ता की आय OY2 हो जाती है तब वह अपनी आय से X वस्तु की OQ1 मात्रा तक क्रय कर लेता है जिससे E2 बिन्दु पर रहता है ।

घटिया या निकृष्ट श्रेणी की वस्तुओं के सम्बन्ध में माँग वक्र का ढाल ऋणात्मक होगा जैसा कि विभिन्न वस्तुओं के सम्बन्ध में होता है । उपभोक्ता की आयु में ज्यों-ज्यों वृद्धि होती जाती है, त्यों-त्यों उसके द्वारा इन वस्तुओं का उपभोग घटा दिया जाता है। दूसरे शब्दों में निकृष्ट वस्तुओं के लिए उपभोक्ता की आय तथा माँग में ऋणात्मक सम्बन्ध पाया जाता है । इसे निम्न चित्र से दर्शाया गया है –

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उपर्युक्त चित्र में OY अक्ष पर उपभोक्ता की आय तथा OX-अक्ष पर X वस्तु की क्रय की जाने वाली मात्रा दर्शायी गई है। जब उपभोक्ता की आय OY1 होती है तब वह वस्तु की OQ1 मात्रा क्रय करता है तथा आय में वृद्धि होने पर OY2 आय के स्तर पर OQ मात्रा वस्तु खरीदी जावेगी। अतः निकृष्ट वस्तुओं के लिए आय प्रभाव ऋणात्मक होता है ।

प्रति अथवा आड़ी माँग- किसी वस्तु की प्रति या आड़ी माँग वस्तु की उन क्रियाओं को दर्शाती है जिसे उपभोक्ता एक निश्चित समय में, उस वस्तु के मूल्य तथा आय के समान रहने पर उस स्थानापन्न वस्तु के मूल्यों में परिवर्तन होने पर खरीदने को तैयार होता है । प्रति स्थापनापन्न प्रतिस्थापन वस्तुओं अथवा पूरक वस्तुओं के सन्दर्भ में होती है।

प्रति स्थानापन्न वस्तुओं की स्थिति में जब एक वस्तु की कीमत में वृद्धि हो जाती है। तो दूसरी वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है। उदाहरणार्थ, चाय, कॉफी का प्रतिस्थापन्न है । यदि चाय की कीमत में अधिक वृद्धि हो जाती है तो कॉफी की माँग बढ़ जायेगी क्योंकि चाय की अपेक्षा कॉफी सस्ती हो गई है। यही कारण है कि प्रतिस्थापन वस्तु की माँग का वक्र धनात्मक होता है। इसे निम्न चित्र से स्पष्ट कर सकते हैं -

माँग विश्लेषण कैसे किया जाता है? - maang vishleshan kaise kiya jaata hai?

उपर्युक्त चित्र में DD माँग वक्र चाय की कीमत तथा कॉफी की माँग मात्रा में सीधा सम्बन्ध दर्शाता है। यदि चाय की कीमत OPT से बढ़कर OPT1 हो जाती है तो कॉफी की माँग मात्रा भी OQF से बढ़कर OQF1 हो जाती है ।

पूरक वस्तुओं के सन्दर्भ में प्रतिस्थानापन्न वस्तुओं के विपरीत स्थिति पाई जाती है। यदि किसी एक पूरक वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है तो दूसरी वस्तु की माँग बहुत अधिक घट जाती है। उदाहरणार्थ, क्रिकेट बैठ की कीमत में वृद्धि होने से क्रिकेट बॉल की माँग गिर जाती है क्योंकि बिना बैट के बॉल का काम नहीं होता है । इसे निम्न चित्र द्वारा स्पष्ट किया गया है ।

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इस चित्र में DD वक्र पूरक वस्तु का माँग वक्र है । Y वस्तु की कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है तो X वस्त की माँग मात्रा OQ से घटकर OQ1 हो जाती है। अतः पूरक वस्तुओं के माँग वक्र का ढाल ऋणात्मक होता है जो उस वस्तु की मांग तथा पूरक वस्तु की कीमत में विपरीत सम्बन्ध की व्याख्या करता है।

माँग अनुसूची- माँग अनुसूची किसी समय विशेष में दिये हुए मूल्यों पर उस वस्तु की खरीदी जाने वाली मात्राओं को दर्शाती है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि माँग अनुसूची मूल्य तथा माँगी गई मात्रा में कार्यात्मक सम्बन्ध को व्यक्त करती है। प्रो. बेन्हम के अनुसार, किसी बाजार में एक निश्चित समय पर दिये हुए मूल्यों पर वस्तु की मात्रा बेची जाती है यदि वस्तु की उस मात्रा को एक सारणी के रूप में लिखा जाय तो यह माँग सारणी या अनुसूची कहलाती है।”

माँग अनुसूची को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है –

(1) व्यक्तिगत मॉग तालिका

(2) बाजार मॉग तालिका

व्यक्ति माँग तालिका- व्यक्तिगत अनुसूची या तालिका वह अनुसूची है जो एक व्यक्ति के सम्बन्ध में इस बात की जानकारी प्रदान करती है कि वह किसी समय विशेष में दी हुई कीमत पर उस वस्तु की कितनी मात्रा को क्रय कर रहा है। इस प्रकार माँग अनुसूची किसी वस्तु या सेवा के मूल्य तथा उसकी माँगी मात्रा में क्रियात्मक सम्बन्ध प्रकट करती है। यह अग्रांकित अनुसूची से इस प्रकार दर्शाया जा सकता है -

  तालिका - व्यक्तिगत माँग अनुसूची
मूल्य प्रति इकाई (रुपये में)  माँगी गई x वस्तु की इकाइयाँ
1      60
2      50
3      40
4      30
5      20
6      10
उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि ज्यों-ज्यों वस्तु की कीमत बढ़ती है, वैसे-वैसे उसकी माँगी जाने वाली मात्रा घटती जाती है। जब वस्तु का मूल्य एक रुपया है तब वस्तु की 60 इकाइयों की माँग की जाती है जबकि वस्तु की कीमत एक रुपये से बढ़कर 8 रुपये होने पर माँगी जाने वाली मात्रा 10 इकाइयाँ हो जाती हैं अर्थात् कीमत में और वस्तु की माँग मात्रा में विपरीत सम्बन्ध है। इसे अग्रवत् चित्र में दर्शाया गया है।

इस चित्र में OY-अक्ष पर X वस्तु की कीमत तथा OX-अक्ष पर X वस्तु की माँग मात्रा को दिखाया गया है । वस्तु की कीमत एक रुपया होने पर इसकी माँग मात्रा 60 इकाइयाँ है तथा कीमत 6 रुपये होने पर इसकी माँग मात्रा घटकर 10 इकाइयाँ हो जाती है।

बाजार माँग अनुसूची- बाजार में वस्तु के असंख्य केता होते हैं जिनके सम्बन्ध में अनेकानेक माँग वक्रों को प्राप्त किया जाता है। यदि सभी व्यक्तिगत माँग वक्रों को एक साथ जोड़ दिया जाय, तो बाजार मॉग वक्र प्राप्त किया जा सकता है।

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बाजार माँग अनुसूची को दो प्रकार से ज्ञात किया जा सकता है -

प्रथम, जब विभिन्न व्यक्तियों की व्यक्तिगत माँग अनुसूची को जोड़ दिया जाता है तो बाजार माँग वक्र की संरचना हो जाती है ।

द्वितीय, बाजार माँग अनुसूची को ज्ञात करने हेतु बाजार के समस्त केताओं में से प्रतिनिधि केताओं का चुनाव कर लिया जाता है । फिर प्रतिनिधि केताओं की माँग से कुल केताओं की माँग को गुणा कर लिया जाता है। इससे माँग अनुसूची तैयार हो जाती है ।

अतः बाजार में विभिन्न कीमतों तथा उनसे सम्बन्धित कुल माँगों को मिलाकर एक बाजार माँग अनुसूची तैयार की जा सकती है। उदाहरणार्थ, किसी बाजार में तीन व्यक्ति X, Y तथा Z हैं और किसी वस्तु के लिए उन तीनों व्यक्तियों की माँग अनुसूची निम्न प्रकार होगी -

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तालिका से स्पष्ट है कि विभिन्न उपभोक्ताओं की माँग को दिखाया गया है, जिन्हें चित्र से स्पष्ट किया जा सकता है और अन्त में उन सब के योग बराबर माँग वक्र की रचना की गई है। माँग वक्र ऊपर से नीचे की ओर झुका हुआ है जो इस बात का सूचक है कि कीमत

होने पर माँग बढ़ती है तथा कीमत बढ़ने पर माँग घटती है अर्थात् मूल्य में तथा वस्तु की माँग मात्रा में विपरीत सम्बन्ध है।

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माँग वक्र की मान्यताएँ

माँग वक्र निम्न मान्यताओं पर आधारित है –

1. उपभोक्ताओं का स्वभाव, रुचि एवं आय में कोई परिवर्तन नहीं होता है।

2. विभिन्न वस्तुओं जिनके उपभोग में उपभोक्ता की रुचि होती है, की कीमतें अपरिवर्तित रहती हैं।

3. माँग वक्र स्थिर स्थिति को प्रदर्शित करता है।

4. कीमत तथा माँग के पारस्परिक सम्बन्धों में परिवर्तन निरन्तर होते रहते हैं।

5. एक निरन्तर माँग वक्र यह मानता है कि वस्तु की छोटी-छोटी इकाइयाँ हो सकती

माँग विश्लेषण कैसे किया जाता?

किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर खरीदने के लिये इच्छुक है, अन्य संबंधित वस्तुओं की कीमतों को और उपभोक्ता की आय को स्थिर रखते हुए । चित्र 2.2, एक व्यक्ति का वस्तु X के लिए, विभिन्न कीमतों पर, उसके काल्पनिक मांग वक्र को प्रदर्शित करता है। मात्राओं को क्षैतिज अक्ष पर तथा कीमतों को उर्ध्वाधर अक्ष पर दिखाया गया है।

मांग विश्लेषण से क्या तात्पर्य है?

उत्तर - माँग विश्लेषण - प्रत्येक व्यावसायिक फर्म में अनेक मुद्दे होते हैं जिन पर कार्यपालकों को निर्णय लेना होता है जैसे कि क्या उत्पादन करना है, कत्र उत्पादन करना है, कैसे उत्पादन करना है, उत्पादन की गुणवत्ता कैसी होगी आदि । माँग का सिद्धान्त इन समस्याओं में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है

माँग के नियम का विश्लेषण कीजिए क्या इसके अपवाद भी है?

मांग के कानून के अपवाद आम तौर पर वस्तु की मांग तब बढती है जब उस वस्तु के कीमत में गिरव आता है और ठीक इसके विपरीत मूल्य में बढ़ोतरी के साथ वस्तु की मांग की गई राशि गिर जाती है।

माँग के तीन आवश्यक तत्व क्या है?

माँग के लिए मुख्य तीन बातें आवश्यक हैं- (1) माँग प्रभावपूर्ण इच्छा होती है, (2) माँग किसी निश्चित क़ीमत पर माँगी गयी मात्रा होती है, तथा (3) माँग किसी निश्चित समय के आधार पर माँगी गयी मात्रा होती है।