मोहन के व्रत पर प्राणों का आसव इसमें भर दूं में मोहन कौन है? - mohan ke vrat par praanon ka aasav isamen bhar doon mein mohan kaun hai?

प्रो. डॉ. योगेन्द्र यादव

वरिष्ठ गॉंधीयन स्कालर, प्राध्यापक, सम्पादक एवं भाषाविद्‍

गॉंधी अन्तर्राष्ट्रीय शोध संस्थान, जैन हिल्स, जलगॉंव, महाराष्ट्र

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मोहन के व्रत पर प्राणों का आसव किसमें भर दूँ – पं. माखनलाल चतुर्वेदी

महात्मा गांधी के आह्वान पर पं. माखनलाल चतुर्वेदी ने असहयोग आंदोलन में भाग लिया. ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करके काल कोठरी में ठूंस दिया. उस समय जेल की काल कोठरी अलग तरीके की होती थी. किसी प्रकार की सुविधा नहीं होती थी. अनेक प्रकार की यातनायें दी जाती थी. अपनी मनोदशा, काल कोठरी, एवं वहां की यातनाओं का वर्णन दादा ने अपनी इस कविता में की है. वे कहते हैं कि उन दिनों कैदियों को भरपेट भोजन नहीं दिया जाता था, मरने भी नहीं देते थे. रात-दिन बहुत ही कड़ा पहरा दिया जाता था. कैदी जब रात को सोते थे, तो पहरेदार संतरी उन पर अपनी बूटों से प्रहार करते थे. जिससे उन्हें काफी पीड़ा होती थी. कोयल के माध्यम से दादा कैदियों की दशा और जेल के वातावरण का वर्णन इस प्रकार करते हैं. इस कविता को पढ़कर उसकी एक झलक मिल जाती है.

क्या गाती हो? क्यों रह-रह जाती हो?
कोकिल बोलो तो!
क्या लाती हो? सन्देशा किसका है?
कोकिल बोलो तो!

ऊँची काली दीवारों के घेरे में
डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में
जीने को देते नहीं पेट भर खाना
मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना!
जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है
शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है?
हिमकर निराश कर चला रात भी काली
इस समय कालिमामय जागी क्यों आली?
क्यों हूक पड़ी? वेदना-बोझ वाली-सी;
कोकिल बोलो तो!

बन्दी सोते हैं, है घर-घर श्वासों का
दिन के दुख का रोना है निश्वासों का
अथवा स्वर है लोहे के दरवाज़ों का
बूटों का या सन्त्री की आवाज़ों का
या गिनने वाले करते हाहाकार।
सारी रातें हैं -एक, दो, तीन, चार-!
मेरे आँसू की भरीं उभय जब प्याली
बेसुर! मधुर क्यों गाने आई आली?
क्या हुई बावली? अर्द्द्घरात्रि को चीखी
कोकिल बोलो तो!
किस दावानल की ज्वालाएँ हैं दीखीं?
कोकिल बोलो तो!

निज मधुराई को कारगृह पर छाने
जी के घावों पर तरलामृत बरसाने
या वायु-विटप-वल्लरी चीर, हठ ठाने
दीवार चीरकर अपना स्वर अज़माने
या लेने आई इन आँखों का पानी?
नभ के ये दीप बुझाने की है ठानी!
खा अन्धकार करते वे जग रखवाली।
क्या उनकी शोभा तुझे न भाई आली?
तुम रवि-किरणों से खेल, जगत् को रोज़ जगाने वाली
कोकिल बोलो तो!
क्यों अर्द्धरात्रि में विश्व जगाने आई हो? मतवाली
कोकिल बोलो तो!

दूबों के आँसू धोती रवि-किरनों पर
मोती बिखराती विन्ध्या के झरनों पर
ऊँचे उठने के व्रतधारी इस वन पर
ब्रह्माण्ड कँपाती उस उद्दण्ड पवन पर
तेरे मीठे गीतों का पूरा लेखा
मैंने प्रकाश में लिखा सजीला देखा
तब सर्वनाश करती क्यों हो, तुम; जाने या बेजाने?
कोकिल बोलो तो!
क्यों तमोपत्र पर विवश हुई, लिखने चमकीली तानें?
कोकिल बोलो तो!

क्या, देख न सकती जंज़ीरों का पहना?
हथकड़ियाँ क्यों? यह ब्रिटिश राज का गहना
कोल्हू का चर्चक चूँ? जीवन की तान
मिट्टी पर अंगुलियों ने लिक्खे गान
हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ
खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूआ
दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली
इसलिए रात में ग़ज़ब ढा रही आली?
इस शान्त समय में, अन्धकार को बेध, रो रही क्यों हो?
कोकिल बोलो तो!
चुपचाप मधुर विद्रोह बीज, इस भाँति बो रही क्यों हो?
कोकिल बोलो तो!

काली तू, रजनी भी काली, शासन की करनी भी काली
काली लहर, कल्पना काली, मेरी काल-कोठरी काली
टोपी काली, कमली काली, मेरी लौह-शृंखला काली
पहरे की हुंकृति की व्याली, तिस पर है गाली, ऐ आली!
इस काले संकट-सागर पर मरने की, मदमाती!
कोकिल बोलो तो!
अपने चमकीले गीतों को, क्योंकर हो तैराती?
कोकिल बोलो तो!

तेरे मांगे हुए न बैना, री! तू नहीं बन्दिनी मैना
न तू स्वर्ण-पिंजड़े की पाली, तुझे न दाख खिलाए आली!
तोता नहीं; नहीं तू तूती, तू स्वतन्त्र, बलि की गति कूती
तब तू रण का ही प्रसाद है, तेरा स्वर बस शंखनाद है।
दीवारों के उस पार, या कि इस पार दे रही गूंजें?
हृदय टटोलो तो!
त्याग शुक्लता, तुझ काली को आर्य-भारती पूजे
कोकिल बोलो तो!

तुझे मिली हरियाली डाली, मुझे नसीब कोठरी काली!
तेरा नभ भर में संचार, मेरा दस फुट का संसार!
तेरे गीत कहावें वाह, रोना भी है मुझे ग़ुनाह!
देख विषमता तेरी मेरी, बजा रही तिस पर रण-भेरी!
इस हुंकृति पर, अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ?
कोकिल बोलो तो!
मोहन के व्रत पर प्राणों का आसव किसमें भर दूँ?
कोकिल बोलो तो!

फिर कुहू! -अरे, क्या बन्द न होगा गाना?
इस अन्धकार में मधुराई दफ़नाना?
नभ सीख चुका है कमज़ोरों को खाना
क्यों बना रही अपने को उसका दाना?
फिर भी करुणा-गाहक बन्दी सोते हैं
स्वप्नों में स्मृतियों की श्वासें धोते हैं!
इन लौह-सीखचों की कठोर पाशों में
क्या भर देगी बोलो निद्रित लाशों में?
क्या घुस जाएगा रुदन तुम्हारा नि:श्वासों के द्वारा?
कोकिल बोलो तो!
और सवेरे हो जाएगा उलट-पुलट जग सारा?
कोकिल बोलो तो!

मोहन के व्रत पर प्राणों का आसव इसमें भर दूं में मोहन कौन है?

बजा रही तिस पर रणभेरी ! इस हुंकृति पर, अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ? कोकिल बोलो तो! मोहन के व्रत पर, प्राणों का आसव किसमें भर दूँ!

मोहन के व्रत पर प्राणों का आसव किसमें भर दूँ यहाँ मोहन शब्द किसकी ओर संकेत कर रहा है?

प्राणों का आसव किसमें भर दूँ? कोकिल बोलो तो! अब कवि कहता है कि कोयल की पुकार पर वह कुछ भी करने को तैयार है। मोहन का अर्थ है मोहनदास करमचंद गाँधी।

मोहन के व्रत पर पर मोहन से क्या आशय है?

उत्तर. 'मोहन के व्रत पर' का आशय मोहनदास करमचंद गाँधी के द्वारा किए गए आह्नान तथा आजादी की लड़ाई से है।

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