प्रस्तुत पक्तियों का सप्रसंग व्याख्या करें? Show मुझसे मिलने को कौन विकल? मैं होऊँ किसके हित चंचल? यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है! दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! प्रसंग: प्रस्तुत काव्याशं हहरिवंशराय ‘बच्चन’ द्वारा रचित कविता ‘एक गीत’ से अवतरित है। इस कविता में कवि का मन निराशा एवं ककुंठासे क्षुब्ध है। इन पक्तियों में कवि ने अपने अकेलेपन की भावना को अभिव्यक्ति प्रदान की है। व्याख्या: कवि देखता है कि सभी प्राणी और पक्षीगण अपने-अपने घरों की ओर लौटने को उत्सुक प्रतीत होते हैं। सभी के घरों में उनकी प्रतीक्षा हो रही है। लेकिन कवि हताश है, निराश है कि उसके पर में ऐसा कोई नहीं है जो उसकी उत्कंठापूर्ण प्रतीक्षा कर रहा हो, जो उससे मिलने के लिए व्याकुल हो। वह भला किसके लिए चंचल गति से अपने पैर बढ़ाए। यही निराशा का अहसास उसके कदमों में शिथिलता भर देता है और उसका मन पीड़ा से भर उठता है। एक अशांत, विधुर-वियोग जनित प्रमाद एवं विषाद उसे घेरने लगता है। वह अपनी कर्म-गति में एक प्रकार की शिथिलता का अनुभव करने लगता है। उसका हृदय विह्वल हो उठता है। दिन जल्दी ही ढल जाएगा और रात को प्रिय श्यामा की वियोग-वेदना उसे मथती रहेगी। तब उसका हृदय अशांत हो उठेगा। विशेष: 1. एकाकी जीवन बिताने वाले व्यक्ति की मनोदशा का अत्यंत मार्मिक चित्रण हुआ है। 2. ‘प्रश्नालंकार’ द्वारा पीड़ा को अधिक प्रभावी बनाया गया है। 3. सहज एवं सरल भाषा का प्रयोग किया गया है। 1500 Views कविता एक ओर जग-जीवन का भार लिए घूमने की बात करती है और दूसरी ओर मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ-विपरीत से लगते इन कथनों का क्या आशय है? यह सही है कि ये दोनों भाव विपरीत प्रतीत होते हैं, पर कवि स्वयं को जग से जोड़कर भी और जग से अलग भी महसूस करता है। उसे यह बात भली प्रकार ज्ञात है कि वह पूरी तरह से जग-जीवन से निरपेक्ष नहीं रह सकता। दुनिया उसे चाहे कितने भी कष्ट क्यों न दे फिर भी वह दुनिया से कटकर नहीं रह सकता। वह भी इसी दुनिया का एक अंग है। इसके बावजूद कवि जग की ज्यादा परवाह नहीं करता। वह संसार के बताए इशारों पर नहीं चलता। उसका अपना पृथक् व्यक्तित्व है। वह अपने मन के भावों को निर्भीकता के साथ प्रकट करता है और वह इस बात का ध्यान नहीं रखता कि यह जग क्या कहेगा। उसकी स्थिति तो ऐसी है-’मैं दुनिया में हूँ, पर दुनिया का तलबगार नहीं हूँ।’ 2847 Views बच्चे किस बात की आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे? बच्चे इस बात की आशा में नीड़ों (घोंसलों-घरों) से झाँक रहे होंगे कि उनके माँ-बाप लौटकर घर आ रहे होंगे। ये बच्चे भूखे प्यासे होंगे। उन्हें खाने की चीज मिलने की भी प्रतीक्षा होगी। वे सारे दिन अकेले रहकर तंग आ गए होंगे अत: वे अपने माता-पिता से मिलने को उत्सुक होंगे। इसीलिए वे नीड़ों से झाँककर उनके आने की प्रतीक्षा कर रहे होंगे। 826 Views मैं और? और जग और कहाँ का नाता-पंक्ति में और शब्द की विशेषता बताइए। इस पंक्ति में ‘और’ शब्द के प्रयोग में चमत्कार है। इसका प्रयोग तीन बार हुआ है। ‘मैं और’ से तात्पर्य है कि मैं अन्य लोगों से हटकर हूँ, ‘जग और’-यह संसार और ही प्रकार है। इन दोनों के मध्य आया ‘और’ योजक के रूप में आया है। ‘और’ शब्द दोनों संबंधों के मध्य अंतर को स्पष्ट कर रहा है। कवि स्वयं को समाज से हटकर अलग मानता है। उसमें और समाज में अलगाव है। दोनों में कोई नाता नहीं हैं। 2083 Views जहाँ पर दाना रहते हैं वहीं नादान भी होते हैं-कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा? ऐसा इसलिए कहा होगा क्योंकि यह जग स्वार्थी है। जहाँ पर उसे कुछ मिलता है वह वहीं जम जाता है। दाना का अर्थ चतुर, बुद्धिमान भी है। इस दृष्टि से इस पंक्ति का अर्थ हुआ कि जहाँ पर कुछ बुद्धिमान एवं चतुर लोग रहते हैं। वहीं इस संसार में कुछ नादान (मूर्ख) भी मिलते हैं। इस संसार में सभी प्रकार के व्यक्ति मिलते हैं। इस संसार में सभी प्रकार के व्यक्ति मिलते हैं। इस संसार में भाँति-भाँति के प्राणी रहते हैं। ये अच्छे भी है तो बुरे भी। विरोधी होते हुए भी इनका आपस में संबंध है। 1498 Views शीतल वाणी में आग-के होने का क्या अभिप्राय है? ‘शीतल वाणी में आग’ होने का अभिप्राय यह है कि उसकी वाणी में शीतलता भले ही दिखाई देती हो, पर उसमें आग जैसे जोशीले विचार भरे रहते हैं। उसके दिल में इस जग के प्रति विद्रोह की भावना है पर वह जोश में होश नहीं खोता। वह अपनी वाणी में शीतलता बनाए रखता है। यहाँ आग से अभिप्राय कवि की आंतरिक पीड़ा से है। वह प्रिय वियोग की विरह वेदना को हृदय में समाए फिरता है। यह वियोग की वेदना उसे निरंतर जलाती रहती है। ‘शीतल वाणी में आग’ विरोधाभास की स्थिति है। पर यह पूरी तरह विरोधी नहीं है। यहाँ विरोध का आभास मात्र हाेता है। 1415 Views प्रस्तुत पक्तियों का सप्रसंग व्याख्या करें? मुझसे मिलने को कौन विकल? मैं होऊँ किसके हित चंचल? यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है! दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! प्रसंग: प्रस्तुत काव्याशं हहरिवंशराय ‘बच्चन’ द्वारा रचित कविता ‘एक गीत’ से अवतरित है। इस कविता में कवि का मन निराशा एवं ककुंठासे क्षुब्ध है। इन पक्तियों में कवि ने अपने अकेलेपन की भावना को अभिव्यक्ति प्रदान की है। व्याख्या: कवि देखता है कि सभी प्राणी और पक्षीगण अपने-अपने घरों की ओर लौटने को उत्सुक प्रतीत होते हैं। सभी के घरों में उनकी प्रतीक्षा हो रही है। लेकिन कवि हताश है, निराश है कि उसके पर में ऐसा कोई नहीं है जो उसकी उत्कंठापूर्ण प्रतीक्षा कर रहा हो, जो उससे मिलने के लिए व्याकुल हो। वह भला किसके लिए चंचल गति से अपने पैर बढ़ाए। यही निराशा का अहसास उसके कदमों में शिथिलता भर देता है और उसका मन पीड़ा से भर उठता है। एक अशांत, विधुर-वियोग जनित प्रमाद एवं विषाद उसे घेरने लगता है। वह अपनी कर्म-गति में एक प्रकार की शिथिलता का अनुभव करने लगता है। उसका हृदय विह्वल हो उठता है। दिन जल्दी ही ढल जाएगा और रात को प्रिय श्यामा की वियोग-वेदना उसे मथती रहेगी। तब उसका हृदय अशांत हो उठेगा। विशेष: 1. एकाकी जीवन बिताने वाले व्यक्ति की मनोदशा का अत्यंत मार्मिक चित्रण हुआ है। 2. ‘प्रश्नालंकार’ द्वारा पीड़ा को अधिक प्रभावी बनाया गया है। 3. सहज एवं सरल भाषा का प्रयोग किया गया है। 1500 Views कवि और कविता का नाम लिखिए। कवि: हरिवंशराय बच्चन, कविता: दिन जल्दी-जल्दी ढलता है। 548 Views यह संसार कवि को किस रूप में अपनाना चाहता है और क्यों? कवि को यह ससार एक कवि के रूप में ही अपनाना चाहता है। कवि के रोदन में भी संसार को अपने भावों का प्रकटीकरण जान पड़ता है। 314 Views कवि की दशा किस प्रकार की है? कवि की दशा दीवानों जैसी है। वह मस्ती में जीता है। उसके गीतों को सुनकर लोग झूम उठते हैं। 327 Views कवि किसे, किस प्रकार का संदेश दिए फिरता है? कवि अपने गीतों के माध्यम से मस्ती का संदेश दिए फिरता है। कवि के जीवन की मस्ती को लोग संदेश पा जाते हैं। इसे सुनकर लोग झूम उठते हैं। 299 Views कवि के अनुसार दिन की क्या विशेषता है? कवि के अनुसार दिन की विशेषता -यह है। कि जल्दी- जल्दी बीतता है अर्थात् समय परिवर्तनशील है और यह किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। 674 Views मुझसे मिलने को कौन विकल से क्या तात्पर्य है *?मुझसे मिलने को कौन विकल इन पंक्तियों से कवि का क्या तात्पर्य है? इसे सुनेंरोकेंइस दृष्टि से इस पंक्ति का अर्थ हुआ कि जहाँ पर कुछ बुद्धिमान एवं चतुर लोग रहते हैं। वहीं इस संसार में कुछ नादान (मूर्ख) भी मिलते हैं। इस संसार में सभी प्रकार के व्यक्ति मिलते हैं।
मुझसे मिलने को कौन विकल कवि के मन में यह प्रश्न क्यों उठता है?व्याख्या: कवि देखता है कि सभी प्राणी और पक्षीगण अपने-अपने घरों की ओर लौटने को उत्सुक प्रतीत होते हैं। सभी के घरों में उनकी प्रतीक्षा हो रही है। लेकिन कवि हताश है, निराश है कि उसके पर में ऐसा कोई नहीं है जो उसकी उत्कंठापूर्ण प्रतीक्षा कर रहा हो, जो उससे मिलने के लिए व्याकुल हो।
मुझसे मिलने को है कौन विकल पंक्ति में कौन सा अलंकार है?'क्यों कवि कहकर' तथा 'झूम झुके' में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
मुझसे मिलने को कौन विकल मैं हूं किसके हित चंचल में अलंकार का प्रयोग हुआ है?कवि विरोधाभास अलंकार का प्रयोग अत्यंत सटीक रूप में करता है 'रोदन मै राग', 'शीतल वाणी में आग'।
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