विषयसूची मुख में मुद्राएं कितने प्रकार की होती हैं?अनुक्रम
मुद्रा कैसे काम करती है?इसे सुनेंरोकेंकुछ मुद्राएं प्राणिक व तत्व मुद्राओं को मिलाकर बनती हैं। लगभग 80 प्रकार की मुद्राएं हैं जो दोनों हाथों में अलग-अलग, दोनों हाथों को मिलाकर एक या प्रत्येक हाथ से अलग बनती हैं। अंगुलियों को आपस में मिलाकर मुद्राएं बनती हैं। हमारे हाथों की पांचों अंगुलियों में पांच तत्त्व हैं जिनमें संतुलन जरूरी है। योग मुद्राएं क्या है? इसे सुनेंरोकेंयोग के अभ्यासकों में मुद्रा विज्ञान अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। कुछ योग विशेषज्ञ मुद्रा को ‘हस्त योगा’ भी कहते हैं। मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए विभिन्न योगासन और प्राणायाम के साथ इन मुद्राओं का अभ्यास करना भी जरूरी हैं। योग मुद्रा का अभ्यास करने से शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक लाभ होता हैं। आकाश मुद्रा कैसे करते हैं?इसे सुनेंरोकेंमुद्रा बनाने का तरीका:- आकाश मुद्रा करने के पहले वज्रासन में बैठ जाएं। फिर अंपने अंगूठे के पोरे को मध्यमा अंगुली के अगे के पोरे से मिलाएं। बाकी की अंगुलियों को सीधा रखें। यह आकाश मुद्रा है। कौन सी मुद्रा मलाशय के सभी रोगों को नष्ट करती है?इसे सुनेंरोकेंव्यान मुद्रा इस मुद्रा को दोनों हाथों से करें। योग मुद्रा आसन कैसे करें? इसे सुनेंरोकेंइसे योग मुद्रा कहते हैं। इसे ही वज्रासन में बैठकर भी कर सकते हैं। विधि-2 : पद्मासन में बैठकर दोनों हाथों को पीठ के पीछे ले जाकर दाएं हाथ से बाएं हाथ की कलाई को पकड़े। श्वास बाहर छोड़ते हुए भूमि पर ठोड़ी स्पर्श करें, दृष्टि सामने रहें। मुद्रा कौन कौन सी होती है?इसे सुनेंरोकेंयोग में, मुद्राओं के मूलत: दो प्रकार माने गए हैं। मुद्रा के निर्माण में अंगूठे से विभिन्न अंगुली के पोर को स्पर्श कराया जाता है। विभिन्न अंगुलियों के स्पर्श से बनने वाली योग मुद्रा का शरीर पर अलग तरह से प्रभाव पड़ता है। जबकि कुछ योग मुद्राएं कलाई को मोड़कर भी बनाई जाती हैं। मुद्रा से होने वाले क्या महत्व लाभ है?इसे सुनेंरोकेंपृथ्वी मुद्रा इस मुद्रा से पृथ्वी तत्व मजबूत होता है और शारीरिक दुबलापन दूर होता हैं। अधिक लाभ लेने के लिए दोनों हाथों से पद्मासन या सुखासन में बैठ कर करना चाहिए। सयंम और सहनशीलता को बढ़ती हैं। चेहरा तेजस्वी बनता है और त्वचा निखरती हैं। मुद्रा क्या है मुद्रा के कार्य बताइए? इसे सुनेंरोकेंमुद्रा एक ऐसा मूल्यवान रिकॉर्ड है या आमतौर पर वस्तुओं और सेवाओं के लिए भुगतान के रूप में स्वीकार किया जाने वाला तथ्य है. यह सामाजिक-आर्थिक संदर्भ के अनुसार ऋण के पुनर्भुगतान के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है. मुद्रा का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है लेनदेन को सुविधाजनक बनाना. मुद्रा का आर्थिक महत्व क्या है?इसे सुनेंरोकेंआर्थिक विकास का मापक — मुद्रा किसी देश के आर्थिक विकास का आकलन करने के लिए एक सही व्यवस्था है। मुद्रा के कारण किसी देश की आर्थिक विकास की दर मापी जा सकती है। श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण — आज के युग में बड़े पैमाने पर अनेक वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है। class="wdp_articleLImg"> मुख, नाक, आंख, कान और मस्तिष्क को पूर्णत: स्वस्थ्य तथा ताकतवर बनाने के लिए हठ योग में पांच प्रमुख मुद्राओं का वर्णण मिलता है। सामान्यजनों को निम्नलिखित मुद्राओं का अभ्यास किसी जानकार योग शिक्षक से सीखकरही करना चाहिए। वैसे यह मुद्राएं सिर्फ साधकों के लिए हैं जो कुंडलिनी जागरण कर सिद्धि प्राप्त करना चाहते हैं। ये पांच प्रमुख मुद्राएं हैं- 1.खेचरी (मुख के लिए), 2.भूचरी (नाक के लिए), 3.चांचरी (आंख के लिए), 4.अगोचरी (कान के लिए), 5.उन्मनी (मस्तिष्क के लिए)। खेचरी से स्वाद् अमृततुल्य होता है। भूचरी से प्राण-अपान वायु में एकता कायम होती है। चांचरी से आंखों की ज्योति बढ़ती है और ज्योतिदर्शन होते हैं। अगोचरी से आंतरिक नाद का अनुभव होता है और उन्मनी से परमात्मा के साथ ऐक्य बढ़ता है। उक्त सभी से पांचों इंद्रियों पर संयम कायम हो जाता है। 1.खेचरी- इसके लिए जिभ और तालु को जोड़ने वाले मांस-तंतु को धीरे-धीरे काटा जाता है, अर्थात एक दिन जौ भर काट कर छोड़ दिया जाता है। फिर तीन-चार दिन बाद थोड़ा-सा और काट दिया जाता है। इस प्रकार थोड़ा-थोड़ा काटने से उस स्थान की रक्त शिराएं अपना स्थान भीतर की तरफ बनाती जाती हैं। जीभ को काटने के साथ ही प्रतिदिन धीरे-धीरे बाहर की तरफ खींचने का अभ्यास किया जाता है। इसका अभ्यास करने से कुछ महिनों में जीभ इतनी लम्बी हो जाती है कि यदि उसे ऊपर की तरफ उल्टा करें तो वह श्वास जाने वाले छेदों को भीतर से बन्द कर देती है। इससे समाधि के समय श्वास का आना-जाना पूर्णतः रोक दिया जाता है। 2.भूचरी- भूचरी मुद्रा कई प्रकार के शारीरिक मानसिक कलेशों का शमन करती है। कुम्भक के अभ्यास द्वारा अपान वायु उठाकर हृदय स्थान में लाकर प्राण के साथ मिलाने का अभ्यास करने से प्राणजय होता है, चित स्थिर होता है तथा सुषुम्ना मार्ग से प्राण संस्पर्श के ऊपर उठने की संभावना बनती है। 3.चांचरी- सर्वप्रथम दृष्टि को नाक से चार अंगुल आगे स्थिर करने का अभ्यास करना चाहिए। इसके बाद नासाग्र पर दृष्टि को स्थिर करें, फिर भूमध्य में दृष्टि स्थिर करने का अभ्यास करें। इससे मन एवं प्राण स्थिर होकर ज्योति का दर्शन होता है। 4.अगोचरी- शरीर के भीतर नाद में सभी इंद्रियों के साथ मन को पूर्णता के साथ ध्यान लगाकर कान से भीतर स्थित नाद को सुनने का अभ्यास करना चाहिए। इससे ज्ञान एवं स्मृति बढ़ती है तथा चित्त एवं इंद्रियां स्थिर होती हैं। 5.उन्मनी- सहस्त्रार (जो सर की चोटी वाला स्थान है) में पूर्ण एकाग्रता के साथ मन को लगाने का अभ्यास करने से आत्मा परमात्मा की ओर गमन करने लगती है और व्यक्ति ब्रह्मांड की चेतना से जुड़ने लगता है। चेतावनी- यह आलेख सिर्फ जानकारी हेतु है। कोई भी व्यक्ति इसे पढ़कर करने का प्रयास ना करें, क्योंकि यह सिर्फ साधकों के लिए है आम लोगों के लिए नहीं। |