1. वन-वन, उपवनवन-वन, उपवन- Show
रुपहले, सुनहले आम्र-बौर, वन के विटपों की डाल-डाल अब फैला फूलों में विकास, (जनवरी’ १९३२) 2. तप रे मधुर-मधुर मनतप रे मधुर-मधुर मन! अपने सजल-स्वर्ण से पावन तेरी मधुर-मुक्ति ही बंधन, (जनवरी’ १९३२) 3. शांत सरोवर का उरशांत सरोवर का उर (फरवरी’ १९३२) 4. आते कैसे सूने पलआते कैसे सूने पल (जनवरी’ १९३२) 5. मैं नहीं चाहता चिर-सुखमैं नहीं चाहता चिर-सुख, (फ़रवरी’ १९३२) 6. देखूँ सबके उर की डालीदेखूँ सबके उर की डाली- (फ़रवरी’ १९३२) 7. सागर की लहर लहर मेंसागर की लहर लहर में (फ़रवरी’ १९३२) 8. आँसू की आँखों से मिलआँसू की आँखों से मिल (फ़रवरी’ १९३२) 9. कुसुमों के जीवन का पलकुसुमों के जीवन का पल (फ़रवरी’ १९३२) 10. जाने किस छल-पीड़ा सेजाने किस छल-पीड़ा से (फ़रवरी’ १९३२) 11. क्या मेरी आत्मा का चिर-धनक्या मेरी आत्मा का चिर-धन? मैं प्रेमी उच्चादर्शों का, जग-जीवन में उल्लास मुझे, (फ़रवरी’ १९३२) 12. खिलतीं मधु की नव कलियाँखिलतीं मधु की नव कलियाँ (फ़रवरी’ १९३२) 13. सुन्दर विश्वासों से हीसुन्दर विश्वासों से ही (जनवरी’ १९३२) 14. सुन्दर मृदु-मृदु रज का तनसुन्दर मृदु-मृदु रज का तन, (फ़रवरी’ १९३२) 15. गाता खग प्रातः उठकरगाता खग प्रातः उठकर— (जनवरी, १९३२) 16. विहग, विहगविहग, विहग, हँस उठे हृदय के ओर-छोर चिर मुँदे मर्म के गुहा-द्वार, यह रे, किस छबि का मदिर-तीर? अस्थिर है साँसों का समीर, बहती रोओं में मलय-वात, नव रूप, गन्ध, रँग, मधु, मरन्द, (ये) (जनवरी’ १९३२) 17. जग के दुख-दैन्य-शयन परजग के दुख-दैन्य-शयन पर (फ़रवरी, १९३२) 18. तुम मेरे मन के मानवतुम मेरे मन के मानव, (जनवरी’ १९३२) 19. झर गई कली, झर गई कलीझर गई कली, झर गई कली! चल-सरित-पुलिन पर वह विकसी, आई लहरी चुम्बन करने,
आती ही जाती नित लहरी, निज वृन्त पर उसे खिलना था, है लेन देन ही जग-जीवन, (फ़रवरी’ १९३२) 20. प्रिये, प्राणों की प्राण(भावी पत्नी के प्रति) प्रिये, प्राणों की
प्राण! जननि-अंचल में झूल सकाल नवल मधुऋत-निकुंज में प्रात हृदय के पलकों में गति-हीन मुकुल-मधुपों का मृदु मधुमास, अरुण-अधरों की पल्लव-प्रात, खेल सस्मित-सखियों के साथ खोल सौरभ का मृदु कच-जाल मृदूर्मिल-सरसी में सुकुमार अरे वह प्रथम-मिलन अज्ञात! सुमुखि, वह मधु-क्षण! वह मधु-बार! अरे, चिर-गूढ़ प्रणय आख्यान! (एप्रिल’ १९२७) 21. कब से विलोकती तुमकोकब से विलोकती तुमको (फ़रवरी’ १९३२) 22. मुसकुरा दी थी क्या तुम, प्राणमुसकुरा दी थी क्या तुम, प्राण! (अक्तूबर’ १९२७) 23. नील-कमल-सी हैं वे आँखनील-कमल-सी हैं वे आँख! (जनवरी’ १९३२) 24. तुम्हारी आँखों का आकाशतुम्हारी आँखों का आकाश, (अक्टूबर’ १९२७) 25. नवल मेरे जीवन की डालनवल मेरे जीवन की डाल (मार्च’ १९२८) 26. आज रहने दो यह गृह-काजआज रहने दो यह गृह-काज, (फ़रवरी’ १९३२) 27. मधुवन(१) आज लोहित मधु-प्रात आज उन्मद मधु प्रात आज स्वर्णिम मधु-प्रात प्रिये, मुकुलित मधु-प्रात [२] [३] (अगस्त’ १९३०) 28. रूप-तारा तुम पूर्ण प्रकामरूप-तारा तुम पूर्ण प्रकाम; उषा सी स्वर्णोदय पर भोर तारिका-सी तुम दिव्याकार, आत्म-निर्मलता में तल्लीन प्रथम-यौवन मेरा
मधुमास, कल्पना तुममें एकाकार, (नवंबर’ १९२५) 29. कलरव किसको नहीं सुहाताकलरव किसको नहीं सुहाता? कलरव किसको नहीं सुहाता? कलरव किसको नहीं सुहाता? (१९२२) 30. अलि! इन भोली बातों कोअलि! इन भोली बातों को 31. आँखों की खिड़की से उड़-उड़आँखों की खिड़की से उड़-उड़ मिलता जब
कुसुमित जन-समूह निज कोमल-पंखों से छूकर उर-उर में मृदु-मृदु भावों के 32. जीवन की चंचल सरिता मेंजीवन की चंचल सरिता में मोहित हो, कुसुमित-पुलिनों से मैंने कुछ सुखमय इच्छाएँ सुनता हूँ, इस निस्तल-जल में आएगी मेरे पुलिनों पर (फ़रवरी’ १९३२) 33. मेरा प्रतिपल सुन्दर होमेरा प्रतिपल सुन्दर हो, हों बूँदें अस्थिर, लघुतर, मधुऋतु के कुसुम मनोहर, मेरा प्रतिपल निर्भय हो, (जनवरी’ १९३१) 34. आज शिशु के कवि को अनजानआज शिशु के कवि को अनजान खोल कलियों के उर के द्वार (जनवरी’ १९२६) 35. लाई हूँ फूलों का हासलाई हूँ फूलों का हास, फैल गई मधु-ऋतु की ज्वाल, उमड़ पड़ा पावस परिप्रोत, विरल जलद-पट खोल अजान अधिक अरुण है आज सकाल- (एप्रिल’ १९२७) 36. जीवन का उल्लासजीवन का
उल्लास,- रे फैल-फैल फेनिल हिलोल (फ़रवरी’ १९३२) 37. प्राण! तुम लघु-लघु गातप्राण! तुम लघु-लघु गात! नील-नभ के निकुंज में लीन, अधर मर्मर-युत, पुलकित अंग, हरित-द्युति चंचल-अंचल-छोर, विश्व-हृत-शतदल निभृत-निवास, (१९३०) 38. जग के उर्वर-आँगन मेंजग के उर्वर-आँगन में बरसो कुसुमों में मधु बन, छू-छू जग के मृत रज-कण बरसो सुख बन, सुखमा बन, (जून’ १९३०) 39. नीरव-तार हृदय मेंनीरव-तार हृदय में, चरण-कमल में अर्पण कर मन, नित्य-कर्म-पथ पर तत्पर धर, (१९१९) 40. विहग के प्रतिविजन-वन के ओ विहग-कुमार! (अगस्त’ १९३०) 41. एक तारानीरव सन्ध्या मे प्रशान्त अब हुआ सान्ध्य-स्वर्णाभ लीन, पश्चिम-नभ में हूँ रहा देख आकांक्षा का उच्छ्वसित
वेग चिर अविचल पर तारक अमन्द! (फ़रवरी’ १९३२) 42. चाँदनीनीले नभ के शतदल पर (फ़रवरी’ १९३२) 43. अप्सरानिखिल-कल्पनामयि अयि अप्सरि! शैशव की तुम परिचित
सहचरि, तन्द्रा के छाया-पथ से आ प्रथम रूप मदिरा से उन्मद इन्द्रलोक में पुलक नृत्य तुम स्वर्गंगा में जल-विहार जब रवि-छवि-चुम्बित चल-जलदों पर कभी स्वर्ग की थी तुम अप्सरि, तुम्हें खोजते छाया-बन
में गौर-श्याम तन, बैठ प्रभा-तम, तुहिन-बिन्दु में इन्दु-रश्मि सी नील रेशमी तम का कोमल मेंहदी-युत मृदु-करतल-छबि से शत भावों के विकच-दलों से जगती के अनिमिष पलकों पर
सखि, मानस के स्वर्ग-वास में अंग अंग अभिनव शोभा का निखिल-विश्व ने निज गौरव जग के सुख-दुख, पाप-ताप, (फ़रवरी’ १९३२) 44. नौका-विहारशांत स्निग्ध, ज्योत्स्ना उज्ज्वल! चाँदनी रात का प्रथम प्रहर, नौका से उठतीं जल-हिलोर, अब पहुँची चपला बीच धार, पतवार घुमा, अब प्रतनु-भार,
ज्यों-ज्यों लगती है नाव पार 45. तेरा कैसा गान(क) हँसते हैं विद्वान, (ख) मुझे न अपना ध्यान, (जुलाई’ १९२७) 46. चीटियों की-सी काली-पाँति
चीटियों की-सी काली-पाँति (अगस्त’ १९३०) मानव ऐसी भी विरक्ति क्या जीवन से पंक्ति किस कविता से ली गई है?जब विप्पण निर्जीव पड़ा हो जग का जीवन। मानव! ऐसी भी विरक्ति क्या जीवन के प्रति। आत्मा का अपमान, प्रेत औ छाया से रति।
मानव ऐसी भी विरक्ति क्या जीवन के प्रति?मानव! ऐसी भी विरक्ति क्या जीवन के प्रति? आत्मा का अपमान, प्रेत औ' छाया से रति!! प्रेम-अर्चना यही, करें हम मरण को वरण?
Taj कविता के लेखक कौन है?प्रकृति के अद्भुत चित्रकार पंत का मिज़ाज कविता में बदलाव का पक्षधर रहा है । शुरुआती दौर में छायावादी कविताएँ लिखीं। पल-पल परिवर्तित प्रकृति वेश इन्हें जादू की तरह आकृष्ट कर रहा था। बाद में चल कर प्रगतिशील दौर में ताज और वे आँखें 2022-23 Page 2 / आरोह जैसी कविताएँ भी लिखीं।
पंत की पहली कविता कौन सी है?वीणा (1918, पन्त जी की प्रथम काव्यकृति, इसे कवि ने 'तुतली बोली में एक बालिका का उपहार' कहा है।)
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