कार्ल मार्क्स की साम्यवादी विचारधारा ही मार्क्सवादी विचारधारा के नाम से जानी जाती है। मार्क्स एक समाजवादी विचारक थे और यथार्थ पर आधारित समाजवादी विचारक के रूप में जाने जाते हैं। सामाजिक राजनीतिक दर्शन में मार्क्सवाद (Marxism) उत्पादन के साधनों पर सामाजिक स्वामित्व द्वारा वर्गविहीन समाज की स्थापना के संकल्प की साम्यवादी विचारधारा है।[1] मूलतः मार्क्सवाद उन आर्थिक राजनीतिक और आर्थिक सिद्धांतो का समुच्चय है जिन्हें उन्नीसवीं-बीसवीं सदी में कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स और व्लादिमीर लेनिन तथा साथी विचारकों ने समाजवाद के वैज्ञानिक आधार की पुष्टि के लिए प्रस्तुत किया।[2] द्वंद्वात्मक भौतिकवाद[संपादित करें]विचारों का द्वंद्व- पदार्थ -परस्पर संबंधित एवं निर्भर था वस्तुओं की गतिशीलता परिवर्तन मात्रात्मक एवं गुणात्मक दोनों। सामाजिक गठन की ऐतिहासिक व्याख्या करने वाला मार्क्स का यह सिद्धांत हेगेल के द्वंद्ववादी पद्धति की आलोचना करता है। पूंजी भाग १ की भूमिका लिखते हुए मार्क्स ने द्वंद्ववाद और हेगेल के प्रति अपना दृष्टिकोण व्यक्त किया है- "हेगेल के लिए मानव मस्तिक की जीवन प्रक्रिया, अर्थात् चिंतन की प्रक्रिया, जिसे 'विचार' के नाम से उसने एक स्वतंत्र कर्त्ता तक बना डाला है, वास्तविक संसार की सृजनकत्री है और वास्तविक संसार 'विचार' का बाहरी इंद्रियगम्य रूप मात्र है। इसके विपरीत, मेरे लिए विचार इसके सिवा और कुछ नहीं कि भौतिक संसार मानव मस्तिष्क में प्रतिबिंबित होता है और चिंतन के रूपों में बदल जाता है। हेगेल के हाथों में द्वंद्ववाद पर रहस्य का आवरण पड़ जाता है, लेकिन इसके बावजूद सही है कि हेगेल ने ही सबसे पहले विस्तृत और सचेत ढंग से यह बताया था कि अपने सामान्य रूप में द्वंद्ववाद किस प्रकार काम करता है। हेगेल के यहाँ द्वंद्ववाद सिर के बल खड़ा है। यदि आप उसके रहस्यमय आवरण के भीतर छिपे तर्कबुद्धिपरक सारतत्त्व का पता लगाना चाहते हैं, तो आपको उसे उलटकर फिर पैरों के बल सीधा खड़ा करना होगा।"[3] आधार और अधिरचना[संपादित करें]मार्क्सवाद के अनुसार सामाजिक संरचना की आर्थिक व्याख्या करने वाला यह प्रमुख सिद्धांत है। यह सिद्धांत उन्नीसवीं शताब्दी के बाद लागू होता है। उससे पहले इस विचारधारा के होने या पाए जाने के कोई प्रमाण नहीं मिलते हैं। आर्थिक रुप से शोषण करने वालों (शोषक)के खिलाफ़ आवाज उठाने में मार्क्सवाद का बहुत बड़ा योगदान रहा है। मार्क्स के प्रेरणा स्रोत हीगल,फ्रांसीसी समाजवाद,सेंट साइमन,ब्रिटिश समाजवादी-एडम स्मिथ। वर्ग संघर्ष[संपादित करें]मार्क्सवाद मानव सभ्यता और समाज को हमेशा से दो वर्गों -शोषक और शोषित- में विभाजित मानता है।[4] माना जाता है साधन संपन्न वर्ग ने हमेशा से उत्पादन के संसाधनों पर अपना अधिकार रखने की कोशिश की तथा बुर्जुआ विचारधारा की आड़ में एक वर्ग को लगातार वंचित बनाकर रखा। शोषित वर्ग को इस षडयंत्र का भान होते ही वर्ग संघर्ष की ज़मीन तैयार हो जाती है। वर्गहीन समाज (साम्यवाद) की स्थापना के लिए वर्ग संघर्ष एक अनिवार्य और निवारणात्मक प्रक्रिया है।[5] यह भी देखें[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
6 - मार्क्सवाद के मूलभूत सिध्दांत अशोक कुमार पाण्डेय दखल प्रकाशन २०१५ पृष्ठ-१६६ ISBN ९७८-९३-८४१५९-१७-७ बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]मार्क्सवाद क्या है? मार्क्सवाद का महत्व और पतन सामान्य सामग्री[संपादित करें]
परिचयात्मक लेख[संपादित करें]
मार्क्सवादी जालस्थल[संपादित करें]
विशिष्ट विषय[संपादित करें]
मार्क्सवाद की मुख्य विशेषताएं क्या है?मार्क्सवाद की प्रमुख विशेषताएं (Features of Marxism)
मार्क्सवाद पूंजीवाद के विरूद्ध एक प्रतिक्रिया है। मार्क्सवाद पूंजीवादी व्यवस्था को समाप्त करने के लिये हिंसात्मक साधनो का प्रयागे करता है। मार्क्सवाद प्रजातांत्रीय संस्था को पूंजीपतियो की संस्था मानते है जो उनके हित के लिये और श्रमिको के शोषण के लिए बना गयी है।
मार्क्सवाद का मूल सिद्धांत क्या है?मार्क्सवाद मानव सभ्यता और समाज को हमेशा से दो वर्गों -शोषक और शोषित- में विभाजित मानता है। माना जाता है साधन संपन्न वर्ग ने हमेशा से उत्पादन के संसाधनों पर अपना अधिकार रखने की कोशिश की तथा बुर्जुआ विचारधारा की आड़ में एक वर्ग को लगातार वंचित बनाकर रखा।
मार्क्सवाद के प्रवर्तक कौन है?सही उत्तर विकल्प (1) है, अर्थात कार्ल मार्क्स।
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