मुद्रा के प्रमुख कार्य क्या-क्या है मुद्रा किस प्रकार वस्तु विनिमय प्रणाली की कमियों को दूर करता है - mudra ke pramukh kaary kya-kya hai mudra kis prakaar vastu vinimay pranaalee kee kamiyon ko door karata hai

मान लीजिए कि एक बंधपत्र दो वर्षों के बाद 500 रु० के वादे का वहन करता है, तत्काल कोई प्रतिफल प्राप्त नहीं होता है। यदि ब्याज दर 5% वार्षिक है, तो बंधपत्र की कीमत क्या होगी ?


माना बंधपत्र की कीमत = x
      ब्याज की दर  = 5%
           समय  = 2 वर्ष 
पहले वर्ष का ब्याज; 
           = x × 5100 = 5x100= x20...(i)

दूसरे वर्ष के लिए बंधपत्र की कीमत;
                   = x + x20= 21x20 
दूसरे वर्ष का ब्याज
                   = 21x20×5100= 21x20 × 5100 =  21x400 ...(ii)
कुल ब्याज;
    (i) + (ii)
= x20 + 21x400 = 20x + 21x400 = 41x400

चूँकि,
                  =41x400 = 500⇒   x = 500 × 40041 = 4878 .048 (approx)
अत: बंधपत्र की कीमत  = 4,878 रूपए 


संव्यवहार के लिए मुद्रा की माँग क्या है? किसी निर्धारित समयावधि में संव्यवहार मूल्य से यह किस प्रकार संबंधित है ?


संव्यवहार के लिए मुद्रा की माँग से अभिप्राय एक अर्थव्यवस्था में संव्यवहारों को पूरा करने के लिए मुद्रा की माँग से है।
     सूत्रों के रूप में, मुद्रा की संव्यवहार माँग
        (MTd) = k. T
यहाँ,     k = धनात्मक अंश 
          T = एक इकाई समयावधि में संव्यवहारों का कुल मौद्रिक मूल्य  
संव्यवहार के लिए मुद्रा की माँग और किसी निर्धारित समयावधि में संव्यवहार मूल्य में घनिष्ठ संबंध है। यदि अर्थव्यवस्था में किसी निर्धारित समयावधि में संव्यवहार मूल्य अधिक है तो मुद्रा की माँग भी अधिक होगी।


वस्तु विनिमय प्रणाली क्या है ? इसकी क्या कमियाँ है ?


वस्तु विनिमय प्रणाली: मुद्रा के बिना प्रत्यक्ष रूप से वस्तुओं का वस्तुओं के लिए लेन-देन वस्तु विनिमय प्रणाली कहलाती है। अर्थात् इस प्रणाली में वस्तुओं के बदले वस्तुएँ ही खरीदी जाती हैं। उदाहरणार्थ, गेहूँ के बदले कपड़ा प्राप्त करना, किसी अध्यापक को उसकी सेवाओं का भुगतान अनाज के रूप में किया जाना इत्यादि।

वस्तु-विनिमय की कमियाँ: वस्तु विनिमय की निम्नलिखित कमियाँ हैं:-

  1. आवश्कताओं के दोहरे संयोग का अभाव: वस्तु का वस्तु के साथ विनिमय तभी सम्भव हो सकता हैं जब दो ऐसे व्यक्ति परस्पर विनिमय करें जिन्हें एक-दूसरे की आवश्यकता हो;अर्थात् पहले व्यक्ति की वस्तु की पूर्ति, दूसरे की माँग की वस्तु हो और दूसरे व्यक्ति की पूर्ति की वस्तु, पहले व्यक्ति की माँग की वस्तु हो। इस प्रकार दोहरे संयोग की समस्या उत्त्पन्न होती हैं।
  2. मूल्य के सामान्य मापदंड का अभाव: वस्तु विनिमय प्रणाली में ऐसी सामान्य इकाई का अभाव होता है, जिसके द्वारा वस्तुओं और सेवाओं का माप किया जा सके; उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति गेहूँ का लेन-देन करना चाहता है तो उसे गेहूँ का मूल्य कपड़े के रूप में (1 किलो गेहूँ  = 1 मीटर कपड़ा), दूध के रूप में (1 किलो गेहूँ = 2 लीटर दूध) आदि बाज़ार में उपलब्ध हर वस्तु के रूप में पता होना चाहिए। यह जानना चाहे असंभव ना हो परंतु कठिन अवश्य है।
  3. वस्तु की अविभाज्यता: जो वस्तुएँ अविभाज्य होती हैं, उनकी विनिमय दर का निर्धारण करना विनिमय प्रणाली के अंतर्गत एक गंभीर समस्या उत्पन्न कर देता है; जैसे एक भैंस तथा कुत्तों का विनिमय करने में कठिनाई उत्पन्न होती है।
  4. मूल्य संचय का अभाव: यहाँ मूल्य का संचय वस्तुओं के रूप में हो सकता है, परंतु मूल्य को वस्तुओं के रूप में संचित करने में विभिन्न कठिनाइयाँ आती हैं। उदाहरण:
    1. मूल्यों को वस्तुओं के रूप में संचित करने में अधिक स्थान की आवश्यकता पड़ती है।
    2. आलू, टमाटर, अनाज, फल आदि को संचित नहीं किया जा सकता, इसलिए वस्तुओं की दशा में, क्रय शक्ति को बचाकर रखना बहुत कठिन कार्य है।
    3. वस्तुओं के मूल्य में अंतर आ जाता हैं।
  5. भविष्य में भुगतान करने की समस्या: वस्तु विनिमय व्यवस्था में वस्तुओं का भविष्य में भुगतान करने में कठिनाइयाँ उत्पन्न हो सकती है। इस प्रणाली में ऐसी कोई इकाई नहीं होती जिसे स्थगित/भविष्य भुगतान के मानक के रूप में प्रयोग कर सकें। भुगतान की जाने वाली वस्तु की किस्म को लेकर विवाद भी उत्पन्न हो सकता है। इतना ही नहीं ब्याज का भुगतान करने की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है।


मुद्रा के प्रमुख कार्य क्या-क्या हैं ? मुद्रा किस प्रकार वस्तु विनिमय प्रणाली की कमियों को दूर करता है ?


मुद्रा के चार प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं:

  1. विनिमय का माध्यम;
  2. मूल्य का मापक;
  3. भावी भुगतान का आधार;
  4. मूल्य संचय।

मुद्रा निम्नलिखित प्रकार से वस्तु-विनिमय प्रणाली की कमियों को दूर करती हैं:

विनिमय का माध्यम: मुद्रा की सर्वप्रथम भूमिका यह है कि वह मुद्रा विनिमय के माध्यम के रूप में कार्य करती है। मुद्रा विनिमय के माध्यम के रूप में विनिमय सौदों को दो भागों क्रय और विक्रय में विभाजित करती है। मुद्रा का यह कार्य आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की कठिनाई को दूर करता है। लोग अपनी वस्तुओं को मुद्रा के बदले में बेचते हैं और उससे प्राप्त राशि को अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं के क्रय में प्रयोग करते हैं।

मूल्य का मापक: मुद्रा मूल्य के मापक के रूप में भी कार्य करती हैं। विभिन्न वस्तुओं की कीमत को मुद्रा के रूप में दर्शाया जा सकता हैं। मुद्रा में व्यक्त कीमतों के आधार पर दो वस्तुओं के सापेक्षिक मूल्यों की तुलना करना सरल हो जाता है। इस प्रकार मुद्रा विनिमय के सामान्य मापक के अभाव की समस्या को हल कर देती है।

भावी भुगतान का आधार: साख आज की आधुनिक पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का रक्त तथा जीवन बन चूका हैं। करोड़ों सौदों में तत्कालीन भुगतान नहीं किया जाता। देनदार यह वायदा करते हैं की वे भविष्य की किसी तारीख पर भुगतान करेंगे। उन स्थितियों में, मुद्रा भावी भुगतानों के आधार के रूप में कार्य करती हैं। ऐसा इसलिए संभव है, क्योंकि मुद्रा को सामान्य स्वीकृति प्राप्त है, इसका मूल्य स्थिर है, यह टिकाऊ तथा समरूप होती है। 

मूल्य संचय: धन को मुद्रा के रूप में आसानी से संचित किया जा सकता हैं। मुद्रा को मूल्य की हानि किए बिना संचित किया जा सकता हैं। बचत सुरक्षित होती है तथा उन्हें आवश्यकता पड़ने पर उपयोग किया जा सकता हैं। इस प्रकार, मुद्रा वर्तमान तथा भविष्य के मध्य एक पुल का कार्य करती है। हालांकि मुद्रा के अतिरिक्त अन्य परिसंपत्ति भी मूल्य संचय का कार्य कर सकती है, परंतु, ये संपत्तियाँ दूसरी वस्तु के रूप में आसानी से परिवर्तनीय नहीं हो सकती हैं और इनकी सार्वभौमिक स्वीकार्यता भी नहीं होगी। 


भारत में मुद्रा पूर्ति की वैकल्पिक परिभाषा क्या है?


भारतीय रिज़र्व बैंक मुद्रा की पूर्ति के वैकल्पिक मापों को चार रूपों में प्रकाशित करता है, नामत: M1, M2, M3 और M4 ।
ये सभी निम्नलिखित तरह से परिभाषित किये जाते हैं:
            M1 = C + DD + OD
            M2 = M1 + डाकघर बचत बैंकों में बचत जमाएँ 
            M3 = M1 + व्यावसायिक बैंकों की निवल आवधिक जमाएँ
            M4 = M3 + डाकघर बचत संस्थाओं में कुल जमाएँ 
जहाँ ,
           C = जनता के पास करेंसी 
          DD = माँग जमाएँ 
          OD = रिज़र्व बैंक के पास अन्य जमाएँ 
M1 and M2 संकुचित मुद्रा (Narrow Money) कहलाती है। M3 और M4 को व्यापक मुद्रा (Broad Money) कहते हैं।
M1 संव्यवहार के लिए सबसे तरल और आसान है, जबकि M4 इनमें सबसे कम तरल है।