मुद्रा से क्या अभिप्राय है मुद्रा के प्राचीन तथा आधुनिक रूपों में अंतर बताइए? - mudra se kya abhipraay hai mudra ke praacheen tatha aadhunik roopon mein antar bataie?

UP Board Class 10 Economics | मुद्रा और साख

UP Board Solutions for Class 10 sst Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

अध्याय 3.                               मुद्रा और साख

                                  अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

(क) एन०सी०ई० आर०टी० पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1. जोखिम वाली परिस्थितियों में ऋण कर्ज़दार के लिए और समस्याएँ खड़ी कर सकता है।

स्पष्ट कीजिए।

उत्तर― हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में बहुत-सी गतिविधियों में ऐसे बहुत-से सौदे होते हैं जहाँ

किसी-न-किसी रूप में ऋण का प्रयोग होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में कर्ज की मुख्य माँग फसल उगाने के लिए

होती है। किसान ऋतु के आरंभ में फसल उगाने के लिए उधार लेते हैं और फसल तैयार हो जाने पर उधार

चुका देते हैं। किंतु यदि किसी वजह से फसल बरबाद हो जाती है, तो कर्ज की अदायगी असंभव हो जाती है।

ऐसी परिस्थिति में किसान अपनी जमीन का कुछ हिस्सा बेचने को मजबूर हो जाता है। इस प्रकार, इस

जोखिम वाली परिस्थिति में कर्जदार के लिए ऋण लेने से कई समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं और उसकी

कमाई बढ़ने की बजाय उसकी स्थिति और बदतर हो जाती है।

प्रश्न 2. मुद्रा आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या को किस तरह सुलझाती है? अपनी ओर

से उदाहरण देकर समझाइए।

उत्तर― वस्तु-विनिमय प्रणाली में मृदा का प्रयोग किए बिना सीधे तौर पर वस्तुओं का आदान-प्रदान

किया जाता था। ऐसी स्थिति में मांगों का दोहरा संयोग होना जरूरी था। उदाहरण के तौर पर अगर किसी

कपड़ों के व्यापारी को चावल चाहिए तो उसे ऐसे किसान की तलाश होगी, जो चावलों के बदले में कपड़े

खरीदना चाहता हो। इस समस्या का निदान मुद्रा प्रयोग करके किया जाता है। मुद्रा माँगों के दोहरे संयोग की

समस्या को खत्म कर देती है। मुद्रा विनिमय प्रक्रिया में मध्यस्थता का काम करती है, इसे विनिमय का

माध्यम भी कहा जाता है।

प्रश्न 3. अतिरिक्त मुद्रा वाले लोगों और जरूरतमंद लोगों के बीच बैंक किस तरह मध्यस्थता करते

है ?

उत्तर―अतिरिक्त मुद्रा वाले व्यक्ति अपनी मुद्रा को बैंकों में अपने नाम से खाता खोलकर जमा कर देते

हैं। बैंक ये निक्षेप स्वीकार करते हैं और इस पर सूद भी देते हैं। इस तरह लोगों की मुद्रा बैंकों के पास सुरक्षित

रहती है और इस पर सूद भी मिलता है। लोगों को इसमें से जब चाहे मुद्रा निकालने की सुविधा भी प्रदान की

जाती है। बैंक इस जमाराशि का केवल 15% हिस्सा नकद के रूप में अपने पास रखते हैं। बैंक जमाराशि के

प्रमुख भाग को कर्ज देने के लिए इस्तेमाल करते हैं। विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के लिए कर्ज की बहुत माँग

रहती है। बैंक लोगों को कर्ज देता है और उन पर ब्याज लगाता है। इस प्रकार बैंक दो गुटों के बीच मध्यस्थता

का काम करते हैं।

प्रश्न 4. 10 रुपये के नोट को देखिए। इसके ऊपर क्या लिखा है? क्या आप इस कथन की व्याख्या

कर सकते हैं ?

उत्तर―10 रुपये के नोट के ऊपर लिखा है―भारतीय रिजर्व बैंक। इसका अर्थ है―भारतीय रिजर्व

बैंक केन्द्रीय सरकार की तरफ से करेंसी नोट जारी करता है। भारतीय कानून के अनुसार किसी व्यक्ति या

संस्था को मुद्रा जारी करने का आदेश नहीं है। इसके अतिरिक्त कानून रुपयों को विनिमय के माध्यम के रूप

में उपयोग करने की वैधता प्रदान करता है। भारत में रुपये को सौदों में अदायगी करने से मना नहीं किया जा

सकता।

प्रश्न 5. हमें भारत में ऋण के औपचारिक स्रोतों को बढ़ाने की क्यों जरूरत है?

उत्तर―औपचारिक स्तर पर ऋण देने वालों की तुलना में अनौपचारिक खंड के अधिकतर ऋणदाता

कहीं अधिक ब्याज वसूल करते हैं। इस तरह अनौपचारिक स्तर पर लिया गया ऋण कर्जदाता को कहीं

अधिक महंँगा पड़ता है। अधिक ब्याज से कर्जदार की आय का ज्यादातर हिस्सा ऋण उतारने में खर्च हो

जाता है। इससे ऋण का बोझ बढ़ सकता है। व्यक्ति ऋण के फंदे में फंस सकता है। इन सभी कारणों से

भारत में ऋण के औपचारिक स्रोतों को बढ़ाने की जरूरत है। बैंकों तथा सहकारी समितियों को अधिक कर्ज

देना चाहिए। इसके द्वारा लोगों की आय बढ़ सकती है, क्योंकि फिर बहुत-से लोग अपनी विभिन्न

आवश्यकताओं के लिए सस्ता कर्ज ले सकेंगे। सस्ता और सामर्थ्य के भीतर का कर्ज देश के विकास के लिए

बहुत जरूरी है।

प्रश्न 6. गरीबों के लिए स्वयं सहायता समूहों के संगठनों के पीछे मूल विचार क्या है? अपने शब्दों में

व्याख्या कीजिए।

उत्तर―भारत के सभी ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक नहीं है। जहाँ है, वहां भी बैंक से कर्ज लेना साहूकार से कर्ज

लेने की अपेक्षा अधिक कठिन कार्य है। ऋणाधार की कमी होने के कारण भी गरीब परिवार बैंकों से ऋण

नहीं ले पाते। इसलिए गरीब लोग महाजनों से ऋण लेते हैं जो ब्याज की दरें बहुत ऊँची रखते हैं। गरीब लोगों

को इस हालात से बचाने के लिए ऋण देने के नए तरीकों को अपनाने की कोशिश की गई है। आत्मनिर्भर

गुटों के संगठन के पीछे भी यही विचार है। इन गुटों को सरकार ऋण देती है। इस ऋण को अदा करने की

जिम्मेदारी भी गुट की होती है। आत्मनिर्भर गुट कर्जदारों को ऋणाधार की कमी की समस्या से उबारने में

सहायता करते हैं। उन्हें समयानुसार विभिन्न लक्ष्यों के लिए एक निश्चित ब्याज दर पर ऋण मिल जाता है।

इससे ग्रामीण लोग स्वावलंबी बन जाते हैं। गुट की नियमित बैठकों के जरिए लोगों को एक माध्यम मिलता है

जहाँ वे विभिन्न प्रकार के सामाजिक विषयों; जैसे-स्वास्थ्य, पोषण और हिंसा इत्यादि पर आपस में चर्चा

कर पाते हैं।

प्रश्न 7. क्या कारण है कि बैंक कुष्ठ कर्जदारों को कर्ज देने के लिए तैयार नहीं होते?

उत्तर― बैंक कुछ कर्जदारों को कर्ज देने के लिए राजी नहीं होते। जो कर्जदार ऋण की शर्ते पूरी नहीं

कर पाते, बैक उन्हें कर्ज नहीं देतेो ब्याज दर, सम्पत्ति और कागजात की माँग और भुगतान के तरीके, इन

सबको मिलाकर ऋण की शर्ते कहा जाता है। बैंक ऋण से औपचारिकता है। यदि औपचारिकताएं पूरी न हों

तो बैंक ऋण नहीं पाते।

प्रश्न 8. भारतीय रिज़र्व बैंक अन्य बैंकों की गतिविधियों पर किस तरह नज़र रखता है? यह ज़रूरी

क्यों है?

उत्तर― भारत में भारतीय रिज़र्व बैंक केंद्रीय सरकार की तरफ से करेंसी नोट जारी करता है। इसके

साथ-साथ यह अन्य बैंकों की गतिविधियों पर नज़र रखता है। भारतीय रिज़र्व बैंक यह देखता है कि बैंक

वास्तव में नकद शेष बनाए हुए हैं। बैंक केवल लाभ बनाने वाली इकाइयों और व्यापारियों को ही ऋण मुहैया

नहीं करा रहे, बल्कि छोटे किसानों, छोटे उद्योगों, छोटे कर्ज़दारों को भी ऋण दे रहे हैं। समय-समय पर

बैंकों को (आर०बी०आई०) को यह जानकारी देनी पड़ती है कि वे कितना और किनको ऋण दे रहे हैं और

उसकी ब्याज की दरें क्या हैं। यह इसलिए जरूरी है, ताकि ऋण की सुविधा सभी को मिलती रहे।

प्रश्न 9. विकास में ऋण की भूमिका का विश्लेषण कीजिए।

उत्तर―हमारे जीवन की बहुत-सी गतिविधियों में ऐसे बहुत-से सौदे होते हैं जहाँ किसी-न-किसी रूप

में ऋण का प्रयोग होता है। ऋण (उधार) से हमारा तात्पर्य एक सहमति से है, जहाँ उधारदाता कर्जदार को

धन, वस्तुएँ या सेवाएं मुहैया कराता है और बदले में कर्जदार से भुगतान करने का वादा लेता है। ऋण

उत्पादक की कार्यशील पूंँजी की जरूरत को पूरा करता है। उसे उत्पादन के कार्यशील खर्चों तथा उत्पादन को

समय पर खत्म करने में मदद करता है। इसके जरिए वह अपनी कमाई बढ़ा पाता है। इस स्थिति में ऋण एक

महत्त्वपूर्ण तथा सकारात्मक भूमिका अदा करता है।

प्रश्न 10.मानवको एकछोटा व्यवसाय करने के लिए ऋण की जरूरत है। मानव किस आधार पर यह

निश्चित करेगा कि उसे यह ऋण बैंक से लेना चाहिए या साहूकार से? चर्चा कीजिष्ट।

उत्तर―मानव को एक छोटा व्यवसाय आरम्भ करना है। इसके लिए वह ऋण किससे ले? इसके लिए

उसे दोनों ऋण स्थितियों की तुलना करनी होगी। यदि वह साहूकार से ऋण लेगा तो साहूकार ज्यादा ब्याज

की दर पर ऋण देता। वह नाजायज तरीकों से अपने पैसे वापस लेने का प्रयास कर सकता है। उसकी

गतिविधियों पर देखरेख करने वाली कोई संस्था नहीं है। यदि वह बैंक से ऋण लेगा तो उसे सीमित ब्याज पर

ऋण मिलेगा। इसके जरिए उसकी आय बढ़ सकती है। बैंक से सस्ता और सामर्थ्य के भीतर का कर्ज मिलता

है। इसलिए व्यक्ति अपने व्यवसाय हेतु बैंक से ही कर्ज लेना चाहेगा।

प्रश्न 11. भारत में 80 प्रतिशत किसान छोटे किसान हैं, जिन्हें खेती करने के लिए ऋण की जरूरत

होती है।

(क) बैंक छोटे किसानों को ऋण देने से क्यों हिचकिचा सकते हैं?

(ख) वे दूसरे स्रोत कौन हैं, जिनसे छोटे किसान कर्ज ले सकते हैं।

(ग) उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए कि किस तरह ऋण की शर्ते छोटे किसानों के प्रतिकूल हो सकती

(घ) सुझाव दीजिए कि किस तरह छोटे किसानों को सस्ता ऋण उपलब्ध कराया जा सकता है।

उत्तर― (क) बैंक छोटे किसानों को ऋण देने से इसलिए हिचकिचाते हैं क्योंकि छोटे किसान ऋण की

शर्ते पूरी नहीं कर पाते। ऋण के लिए ऋणाधार की उनके पास सर्वथा कमी रहती है।

(ख) ये छोटे किसान आमतौर से साहूकारों से कर्ज लेते हैं तो ये साहूकार बिना ऋणाधार के कर्ज तो

दे देते हैं परन्तु ब्याज की दरें ज्यादा रखते हैं।

(ग) ऋण की शर्ते छोटे किसानों के प्रतिकूल हो सकती हैं। ब्याज दर, सम्पत्ति और कागजात की

माँग और भुगतान के तरीके आदि ऋण की शर्ते होती हैं। उदाहरणस्वरूप अगर छोटा किसान

ऋण लेना चाहेगा तो उसे ये शर्ते पूरी करनी होंगी। उसे वे कागजात देने पड़ेंगे जो उसके वेतन,

सम्पत्ति आदि का रिकॉर्ड दिखाते हों। यदि किसान के पास ये सब कागजात नहीं हैं तो उसे

ऋण नहीं मिल पाता।

(घ) छोटे किसानों को सस्ता ऋण उपलब्ध कराया जा सकता है। इसके लिए सहकारी समितियों का

स्थापन किया जा सकता है। ये सहकारी समितियाँ किसानों, बुनकरों, औद्योगिक मजदूरों

इत्यादि को सस्ते मूल्यों पर ऋण उपलब्ध करा सकती हैं। सहकारी समितियाँ कृषि उपकरण

खरीदने, खेती तथा व्यापार करने, मछली पकड़ने, घर बनाने तथा अन्य किस्म के खर्चों के

लिए ऋण दिलवाती हैं।

प्रश्न 12.रिक्त स्थानों की पूर्ति करें―

(क)………परिवारों की ऋण की अधिकांश जरूरतें अनौपचारिक स्रोतों से पूरी होती हैं।

(ख) ………ऋण की लागत ऋण का बोझ बढ़ाती है।

(ग)…………केन्द्रीय सरकार की ओर से करेंसी नोट जारी करता है।

(घ) बैंक……….पर देने वाले ब्याज से ऋण पर अधिक ब्याज लेते हैं।

(ड.)……….सम्पत्ति है जिसका मालिक कर्जदार होता है जिसे वह ऋण लेने के लिए गारंटी के

रूप में इस्तेमाल करता है, जब तक ऋण चुकता नहीं हो जाता।

उत्तर―(क) ग्रामीण, (ख) ऋणफंदा, (ग) भारतीय रिजर्व बैंक, (घ) जमा, (ङ) ऋणाधार।

प्रश्न 13.सही उत्तर का चयन करें―

(क) स्वयं सहायता समूह में बचत और ऋण संबंधित अधिकतर निर्णय लिए जाते हैं―

1.बैंक द्वारा 2. सदस्यों द्वारा 3. गैर सरकारी संस्था द्वारा।

(ख) ऋण के औपचारिक स्रोतों में शामिल नहीं है―

1. बैंक     2. सहकारी समिति    3. मालिक।

उत्तर― (क) सदस्यों द्वारा, (ख) मालिक।

 परियोजना कार्य

नीचे दी गई सारणी शहरी क्षेत्रों के विभिन्न लोगों के व्यवसाय दिखाती है। इन लोगों को किन उद्देश्यों के लिए

ऋण की जरूरत हो सकती है? रिक्त स्तंभों को भरें।

व्यवसाय                                               ऋण लेने का कारण

निर्माण मजदूर

कम्प्यूटर शिक्षित स्नातक छात्र

सरकारी सेवा में नियोजित व्यक्ति

दिल्ली में प्रवासी मजदूर

घरेलू नौकरानी

छोटा व्यापारी

ऑटो रिक्शा चालक

बंद फैक्ट्री का मजदूर

आगे, लोगों को दो वर्गों में विभाजित कीजिए, जिन्हें आप सोचते हैं कि बैंक से कर्ज मिल सकता है और

जिन्हें कर्ज मिलने की आशा नहीं है। आपने वर्गीकरण के लिए किन कारकों का उपयोग किया?

व्यवसाय                                     ऋण लेने का कारण

निर्माण मजदूर                              अपनी आकस्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति के

                                                   लिए।

कम्प्यूटर शिक्षित स्नातक छात्र           कम्प्यूटर खरीदकर अपना व्यवसाय खोलने के

                                                    लिए।

सरकारी सेवा में नियोजित व्यक्ति       घर बनाने या बच्चों की पढ़ाई के लिए।

दिल्ली में प्रवासी मजदूर                   ताकि वह अपनी झुग्गी बना सके।

घरेलू नौकरानी                               दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए।

छोटा व्यापारी                                 सामान खरीदने के लिए।

ऑटो रिक्शा चालक                        ताकि वह टैक्सी खरीद सके।

बंद फैक्ट्री का मजदूर                      ताकि वह अपने बच्चों का पेट भर सके।

बैंक से कर्ज मिलने के आधार पर इन्हें इस प्रकार विभक्त किया जा सकता है―

जिन्हें बैंक से कर्ज मिल सकता है        जिन्हें बैंक से कर्ज नहीं मिल सकता है

कम्प्यूटर शिक्षित स्नातक छात्र              निर्माण मजदूर

सरकारी सेवा में नियोजित व्यक्ति          दिल्ली में प्रवासी मजदूर

छोटा व्यापारी                                    घरेलू नौकरानी    

ऑटो रिक्शा चालक                           बंद फैक्टी का मजदूर

यह वर्गीकरण इस आधार पर किया गया है कि जो लोग बैंक का कर्ज वापस कर सकते हैं, उन्हें ऋण मिलने

की संभावना है; जैसे-सरकारी सेवा में लगा व्यक्ति प्रत्येक माह निश्चित पैसे कमा रहा है इसलिए वह कर्ज

अदा कर सकता है, जबकि जिसके कर्ज अदा करने की उम्मीद नहीं है उसे कर्ज नहीं मिल सकता;

जैसे―घरेलू नौकरानी या मजदूर। ये इतना भी पैसा कमा नहीं पाते कि अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा कर

सकें, तो फिर उनसे कर्ज अदा करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है?

(ख) अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

                                 बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1. भारत में करेन्सी नोट कौन जारी करता है?

(क) वित्त मंत्रालय

(ख) भारतीय स्टेट बैंक

(ग) भारत सरकार

(घ) भारतीय रिजर्व बैंक

                               उत्तर― (घ) भारतीय रिजर्व बैंक

प्रश्न 2. सहकारी समितियाँ ग्रामीण परिवारों को कितना प्रतिशत ऋण उपलब्ध करा पाती हैं?

(क) 27%

(ख) 25% 

(ग) 30% 

(घ) 20%

              उत्तर―(क) 27%

प्रश्न 3. औपचारिक ऋण सबसे अधिक किस वर्ग के लोगों को मिलता है?

(क) समृद्ध परिवार

(ख) गरीब परिवार

(ग) अमीर परिवार

(घ) इनमें से कोई नहीं

                            उत्तर― (ग) अमीर परिवार

प्रश्न 4. भारत में रुपये के प्रयोग को वैधता कैसे प्रदान की गई है?

(क) विश्व बैंक द्वारा

(ख) कानून द्वारा

(ग) UNO द्वारा

(घ) अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय द्वारा

                                         उत्तर― (ख) कानून द्वारा

                            अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. चेक क्या है?

उत्तर― चेक इस प्रकार का कागज होता है, जो कि बैंक को किसी व्यक्ति के खाते से चेक पर लिखे

नाम के किसी अन्य व्यक्ति को एक निश्चित धनराशि का भुगतान करने का आदेश देता है।

प्रश्न 2. ऋणाधार से क्या अभिप्राय है?

उत्तर―ऋणाधार ऐसी सम्पत्ति है जिसका स्वामी ऋण लेने वाला व्यक्ति होता है उदाहरणत: भूमि,

मकान, स्वर्ण इत्यादि, किंतु इसका प्रयोग वह ऋणदाता को गारंटी के रूप में करने देता है, जब तक कि कर्ज

का भुगतान न हो जाए।

प्रश्न 3. विभिन्न प्रकार के ऋणों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर―ऋण दो प्रकार के होते हैं―औपचारिक ऋण तथा अनौपचारिक ऋण

प्रश्न 4. भारत में मुद्राओं का निर्गमन अथवा उन्हें कौन जारी करता है?

उत्तर―भारत में भारतीय रिजर्व बैंक मुद्राओं का निर्गमन करता है अर्थात् यह प्रक्रिया जारी रखता है।

                                      लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. मुद्रा से क्या अभिप्राय है? मुद्रा के प्राचीन तथा आधुनिक रूपों में अंतर बताइए।

उत्तर―मुद्रा का उपयोग हमारे प्रतिदिन के जीवन का एक अभिन्न भाग है। मुद्रा विनिमय प्रक्रिया में

मध्यस्थता का कार्य करती है, अत: मुद्राको विनिमय का माध्यम भी कहा जाता है। सिक्कों के मुद्रा के

प्रचलन से पूर्व अनाज, पशु, इत्यादि का प्रयोग मुद्रा के रूप में किया जाता था। तत्पश्चात् सोना, चाँदी, तांँबा

इत्यादि धातुओं के सिक्के प्रचलन में आए। आधुनिक युग में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए गए करेंसी

नोट भारतीय मुद्रा का नवीन रूप है।

प्रश्न 2. लोग अपने अतिरिक्त धन को किस प्रकार सुरक्षित रखते हैं?

उत्तर―लोग अपने अतिरिक्त धन को बैंकों में अपने नाम से खाता खोलकर जमा कर देते हैं। बैंक इस

जमा को स्वीकार कर उस पर ब्याज भी देते हैं। इस प्रकार लोगों का रुपया बैंकों में सुरक्षित रहता है।

प्रश्न 3. वर्तमान में गरीबों को ऋण उपलब्ध कराने के लिए क्या प्रयास किये गये हैं?

उत्तर―वर्तमान में गरीबों को ऋण उपलब्ध कराने के लिए निम्नलिखित प्रयास किये गये हैं-

1. ग्रामों में गरीबों विशेषकर महिलाओं को छोटे-छोटे समूहों में संगठित कर उनकी बचत पूँजी

एकत्रित किया है। उन्हें स्वयं सहायता समूह कहते हैं।

2 छोटे-छोटे कर्ज समूह बनाए गए हैं, जो गरीब को कम ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध करवाते हैं।

3. स्वरोजगार के अवसरों में वृद्धि के प्रयास किये गये हैं, जिससे गरीब अपने लिए अतिरिक्त आय

अर्जित कर सकें।

4. निर्णय समूहों का भी गठन किया गया है जो अन्य समूहों को दिए जाने वाले ऋण के लक्ष्य, रकम,

ब्याज दर, वापस करने की अवधि आदि के विषय में निर्णय लेते हैं।

प्रश्न 4. साख किसे कहते है? इसका क्या महत्त्व है?

उत्तर― अपनी दैनिक गतिविधियों में हम अनेक प्रकार के लेन-देन करते हैं जिसमें किसी-न-किसी

रूप में ऋण का प्रयोग होता है। ऋण से तात्पर्य एक प्रकार की सहमति से है जहाँ साहूकार कर्जदार को धन,

वस्तुएँ अथवा सेवाएं प्रदान करता है। बदले में भविष्य में कर्जदार से भुगतान का वादा लेता है, जिसे साख

कहा जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में साख की माँग फसल उगाने के लिए की जाती है।

प्रश्न 5. आत्मनिर्भर गुटों के लाभ बताइए।

उत्तर― कुछ जागरूक नागरिकों की पहल से आत्मनिर्भर गुटों का निर्माण हुआ। इसके अंतर्गत एक

विशेष स्वयं सहायता समूह में एक-दूसरे के निकटवर्ती 15 से 20 सदस्य होते हैं। यह सदस्य अपनी

आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु छोटे-छोटे ऋण-समूह से ऋण ले सकते हैं। समूह इन कों पर ब्याज लेता है।

किंतु यह ब्याज साहूकार द्वारा लिए जाने वाले ब्याज से कम होता है।

इस प्रकार के आत्मनिर्भर गुटों द्वारा छोटे-छोटे उद्योगों के लिए एक सशक्त पृष्ठभूमि तैयार करते हैं, जिससे

ऋण सुविधा सुलभ हो सके। इस प्रकार ये आत्मनिर्भर गुट निर्धन तथा कम पढ़े-लिखे समाज के लिए एक

वरदान सिद्ध हुए हैं।

                                       दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. ऋण के औपचारिक तथा अनौपचारिक स्रोतों का तुलनात्मक अध्ययन कीजिए।

उत्तर―भारत में लोग विभिन्न स्रोतों से ऋण लेते हैं। इन ऋणों को दो वर्गों में विभाजित किया जाता

है―औपचारिक एवं अनौपचारिक क्षेत्र ऋणा प्रथम वर्ग में बैंकों तथा सहकारी समितियों से लिए ऋण

सम्मिलित हैं। अनौपचारिक ऋणदाता में व्यापारी, मालिक, साहूकार, संबंधी तथा मित्र इत्यादि आते हैं।

भारतीय रिजर्व बैंक ऋणों के औपचारिक स्रोतों की कार्यप्रणाली पर अपनी दृष्टि रखता है। अनौपचारिक

क्षेत्रक में ऋणदाताओं की गतिविधियों की देख-रेख करने वाली कोई संस्था नहीं होती। वे ऐच्छिक दरों पर

कर्ज दे सकते हैं। उन्हें गैरकानूनी तरीकों से अपने पैसे वापस लेने से रोकने वाला कोई नहीं है।

औपचारिक ऋणदाता की अपेक्षा अनौपचारिक क्षेत्रक के अधिकांश कर्जदाता कहीं अधिक ब्याज वसूल

करते हैं। इस प्रकार अनौपचारिक ऋण कर्जदार को अधिक महँगा पड़ता है। व्यक्ति ऋण के जाल में फंँसता

जाता है। यह भी संभव है कि जो व्यक्ति ऋण लेकर उद्यम शुरू करना चाहते हैं, वे ऋण की अधिक लागत

देखकर अपनी सोच परिवर्तित कर दें। इन सभी कारणों से बैंकों तथा सहकारी समितियों को अधिक कर्ज

देना चाहिए। इस प्रकार लोगों की आय में वृद्धि संभव है तथा बहुत-से लोग अपनी विभिन्न आवश्यकताओं

की पूर्ति हेतु ऋण ले सकेंगे।

आज भी औपचारिक स्रोत ग्रामीण परिवारों की कुल ऋण आवश्यकताओं का मात्र 50 प्रतिशत ही पूर्ण कर

सकता है। बाकी अन्य आवश्यकताएँ अनौपचारिक स्रोतों से पूर्ण होती हैं। अनौपचारिक ऋणदाताओं के द्वारा

प्राप्त किए कर्ज पर ब्याज दर सामान्यतः काफी अधिक होती हैं इसलिए बैंकों एवं सहकारी समितियों को

अपनी गतिविधियों विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में वृद्धि की आवश्कयता है जिससे कि कर्जदारों की

अनौपचारिक स्रोत पर निर्भरता कम हो। सस्ता एवं सामर्थ्य के अनुकूल ऋण देश के विकास के लिए अति

आवश्यक है।

प्रश्न 2. बैंकों की प्रमुख गतिविधियों का वर्णन कीजिए।

उत्तर―हमारे देश में भारतीय रिजर्व बैंक (आर०बी०आई०) केंद्रीय सरकार की ओर से करेंसी नोट

जारी करता है। भारतीय कानून के अनुसार किसी संस्था अथवा व्यक्ति को मुद्रा जारी करने का अधिकार

नहीं है। लोगों द्वारा मुद्रा बैंकों में निक्षेप रूप में रखी जाती है। बैंक जनता से जो धन जमा खातों में स्वीकार

करते हैं उस धन का एक छोटा भाग अपने पास नकद के रूप में रखते हैं। वर्तमान स्थिति में भारत में बैंक

जमा का केवल 15 प्रतिशत नकद के रूप में अपने पास रखते हैं। इसको किसी एक दिन में जमाकर्ताओं द्वारा

धन निकालने की संभावना को देखते हुए यह व्यवस्था की जाती है। इस जमाराशि के एक बड़े भाग को बैंक

ऋण देने के लिए प्रयोग में लाते हैं। विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के कारण ऋण की काफी माँग बनी रहती

है। बैंक जमाराशि का जनता की ऋण आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु प्रयोग करते हैं। बैंकों द्वारा जमा राशि पर

जो ब्याज दिया जाता है उससे अधिक ब्याज ऋण पर लिया जाता है।

बैंकों की आय का मुख्य स्रोत कर्जदारों से लिए गए ब्याज एवं जमाकर्ताओं को दिए गए ब्याज के बीच का

अंतर होता है। बैंक केवल लाभ अर्जित करने के लिए व्यवसायियों एवं व्यापारियों को ऋण उपलब्ध नहीं

करा रहे, अपितु छोटे-छोटे किसानों, छोटे-छोटे उद्योगों तथा छोटे कर्जदारों को धन दे रहे हैं। आर्थिक

गतिविधियों को संचालित करने के लिए ऋण की आवश्यकता होती है। बैंकों द्वारा प्रदान किए गए ऋण के

सकारात्मक प्रभाव होते हैं।

मुद्रा से क्या अभिप्राय है मुद्रा के प्राचीन तथा आधुनिक रूपों में अन्तर बताएँ?

सिक्कों के मुद्रा के प्रचलन से पूर्व अनाज, पशु, इत्यादि का प्रयोग मुद्रा के रूप में किया जाता था। तत्पश्चात् सोना, चाँदी, तांँबा इत्यादि धातुओं के सिक्के प्रचलन में आए। आधुनिक युग में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए गए करेंसी नोट भारतीय मुद्रा का नवीन रूप है।

मुद्रा का प्राचीन रूप क्या है?

मुद्रा (Currency) का प्राचीनतम रूप वस्तु-मुद्रा हैं। इसलिए उपरोक्त सभी विकल्पों में ऑप्शन (ग) का उत्तर सही होगा।

मुद्रा का आधुनिक रूप क्या है?

(i) इसमें करेंसी - कागज के नोट - सिक्के तथा बैंक में निक्षेप शामिल है। (ii) मुद्रा के पारम्परिक रूप में चाँदी, सोना तथा ताँबें के सिक्के शामिल है।

मुद्रा कितने प्रकार के होते हैं?

अनुक्रम.
5.1 अभय मुद्रा.
5.2 भूमिस्पर्श मुद्रा.
5.3 धर्मचक्र मुद्रा.
5.4 ध्यान मुद्रा.
5.5 वरद मुद्रा.
5.6 वज्र मुद्रा.
5.7 वितर्क मुद्रा.
5.8 ज्ञान मुद्रा.