मध्यप्रदेश में जंगल सत्याग्रह कहाँ हुआ था? - madhyapradesh mein jangal satyaagrah kahaan hua tha?

जान‍िए, क‍िस तरह आद‍िवास‍ियों के जंगल सत्‍याग्रह ने ब्र‍िट‍िश हुकूमत की नाक में कर द‍िया था दम

इतिहास के पन्नों में भारतीय स्‍वतंत्रता संग्राम की कई ऐसी कहा‍न‍ियां दर्ज हैं ज‍िनसे आज की युवा पीढ़ी को रूबरू कराने की सख्‍त जरूरत है। यह कहान‍ियां गौरव बोध कराती हैं। हम भारत के लोगों के संघर्ष की दास्‍तां सुनाकर देश सेवा के ल‍िए प्रेर‍ित करती हैं।

रांची, (आशीष स‍िंंह)। गुलामी के दौर से ही आदिवासियों में पराधीनता की बेड़ी काट फेंकने का जज्बा था। तभी तो छत्तीसगढ़ के दक्षिण में बस्तर के ‘गुंडाधुर’ ने समाज को एकजुट किया और भूमकाल जैसा आंदोलन खड़ा कर दिया। तो दूसरे छोर पर छत्तीसगढ़ के सुदूर सरगुजा में ‘लागुड़-बिगुड़’ व अन्य आदिवासी क्रांतिकारियों के बीच धुंधले प्रमाण मिलते हैं। इन जनजातीय नायकों की परंपरा बिरसा मुंडा और टंट्या भील जैसे आदिवासी जननायक पुरखों वाली ही है।

स्वेच्छा से दीं गिरफ्तारियां

आज भी जब कोई आदिवासी समाज से जल, जंगल और जमीन को लेकर अन्याय की बात करता है तो विरोध के स्वर खड़े हो जाते हैं। इसी से ब्रिटिशकालीन हुकूमत के दौर में जंगल सत्याग्रह जैसे आंदोलन का अनुमान लगाया जा सकता है। जनवरी 1922 के प्रथम सप्ताह में जंगल सत्याग्रह की घोषणा की गई। इस सत्याग्रह के सूत्रधार थे श्यामलाल सोम। निर्णय लिया गया कि जंगल से जलाऊ लकड़ी काटकर जंगल कानून तोड़ा जाए और गिरफ्तारी दी जाए। श्यामलाल सोम, विश्वंभर, आनंदराम, हरखराम सोम, पंचम सिंह, श्रीराम सोम, मंगलू केवट, समेदास सतनामी, शोभाराम साहू सहित 33 सत्याग्रही आरंभ में ही रायपुर से गिरफ्तार कर लिए गए। इनको तीन से छह माह की कैद और जुर्माने की सजा दी गई।

बढ़ने लगा असंतोष

1930 का आंदोलन रायपुर में पूरी तीव्रता से चल रहा था। अवसर आ गया था कि आंदोलन का विस्तार किया जाए। महासमुंद तहसील के तमोरा ग्राम से ग्रामीणों में असंतोष की सूचनाएं प्राप्त हो रही थीं। तहसील में हुए जंगल सत्याग्रह का यह इतिहास ठाकुर प्यारेलाल सिंह द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के आधार पर है। सितंबर माह में एक बड़ी सभा का आयोजन हुआ, जिसमें हजारों लोग शामिल हुए। एक जत्था सत्याग्रह के लिए भेजा गया। इसके बाद लोग घरों को लौट गए। लोगों के वापस जाते ही सब इंस्पेक्टर मिर्जा बेग ने शंकरराव गनोदवाले को गिरफ्तार कर लिया। अगले दिन दोपहर को पुन: सभा हुई। लगभग 500 लोगों का एक बड़ा दल ग्राम टोढ़ होते हुए आ रहा था कि मिर्जा बेग ने उन्हें मार्ग में रोक लिया। 17 सत्याग्रहियों को गिरफ्तार कर जंगल में छोड़ दिया गया। संगठित ग्रामीणों ने रसद-बेगार बंद कर दिया और कर्ज अदा करने से इंकार कर दिया।

घास काटकर भी सत्याग्रह

उधर 21 अगस्त, 1930 को धमतरी में एक वृहद सभा का आयोजन किया गया। इसमें सरकारी जंगल में घास काटकर सत्याग्रह करने की घोषणा की गई। इस रुद्री जंगल सत्याग्रह के संचालन के लिए युद्ध समिति का गठन किया गया। पं. नारायण राव मेघावाले युद्ध समिति के प्रथम डिक्टेटर नियुक्त किए गए। उन्होंने 22 अगस्त से सत्याग्रह आरंभ करने की घोषणा की। पहले दिन के सत्याग्रह के लिए दल के नेता तथा प्रथम सत्याग्रही नत्थू जी जगताप नियुक्त किए गए। सभा में जगताप को नारायण राव ने केसरिया दुपट्टा प्रदान किया, जिस पर ‘सत्याग्रही स्वयंसेवक सेनानी’ लिखा हुआ था। उन्हें बिल्ला भी दिया गया, जो सत्याग्रह करने की अनुमति का प्रतीक था। 22 अगस्त, 1930 को सूर्योदय के साथ ही नत्थू जगताप तथा नारायण राव मेघावाले घरों से ही गिरफ्तार कर लिए गए।

आंदोलन में जुटे कृषक

दुर्ग जिले में लोहारा जंगल सत्याग्रह दो भाइयों नरसिंह प्रसाद अग्रवाल तथा सरयू प्रसाद अग्रवाल के नेतृत्व में चलाया गया। उनके साथ इस युद्ध में जंगल के आदिवासी और गांव के कृषक शामिल थे। वे नौ अगस्त, 1930 को पोंडी ग्राम में जंगल सत्याग्रह का संचालन करते और भाषण देते हुए गिरफ्तार कर लिए गए। उन्हें एक वर्ष का सश्रम कारावास तथा 200 रुपए जुर्माने की सजा दी गई। 1932 के आंदोलन में 12 फरवरी को उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया।

रियासतों के प्रयास से शुरू हुआ सत्याग्रह

1938 में महात्मा गांधी ने रियासती जनता को आजादी के आंदोलन में भाग लेने का आह्वान किया। रियासतों में भी कांग्रेस ने संगठन को मजबूत करने का आदेश दिया। छुईखदान, राजनांदगांव, खैरागढ़ आदि रियासतों मे ठाकुर प्यारेलाल सिंह के प्रयासों से कांग्रेस संगठन का निर्माण हुआ। इसी वर्ष छुईखदान में जंगल सत्याग्रह आरंभ हुआ। गोवर्धनलाल वर्मा, गुलाब दास वैष्णव, अमृतलाल महोबिया आदि ने छुईखदान जंगल सत्याग्रह की बागडोर संभाली। ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने अपने प्रमुख सहयोगी रामनारायण हषरुल मिश्र को मार्गदर्शन के लिए कवर्धा भेजा। राजनांदगांव में जंगल सत्याग्रह की बागडोर ठाकुर लोटन सिंह के हाथों में थी।

Edited By: M Ekhlaque

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बैतूल के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गंजन सिंह की कहानी:जंगल बचाने के लिए चलाया सत्याग्रह, ब्रिटिश आर्मी से सीधे भिड़ते, पढ़िए...कैसे शाहपुर थानेदार की ली जान

बैतूल4 महीने पहले

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मध्यप्रदेश में जंगल सत्याग्रह कहाँ हुआ था? - madhyapradesh mein jangal satyaagrah kahaan hua tha?

स्वतंत्रता संग्राम में बैतूल जिले का इतिहास बेहद समृद्ध रहा है। यहाँ आजादी की लड़ाई में आदिवासियों ने विलक्षण जन आंदोलन के जरिए अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था। 1930 में जब महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह का एलान किया था। उस समय बैतूल जिले में नमक सत्याग्रह के स्थान पर एक नए आंदोलन का सूत्रपात हुआ था। नमक सत्याग्रह की जगह जंगल सत्याग्रह।

जंगल सत्याग्रह में आदिवासी जंगल कानून तोड़ने के लिए जंगलों में जाकर पेड़ काटा करते थे और विरोध स्वरुप वहीं बैठ जाते थे। सन् 1930 के जंगल सत्याग्रह के आव्हान के समय तो इस अंचल का हर आदिवासी कंधे पर कम्बल डाले और हाथ में लाठी और कुल्हाड़ी लेकर ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती देने जंगल पहाड़ों से निकल पड़ा था। आदिवासियों का नेता बना बंजारीढाल का गंजन सिंह कोरकू।

पुलिस और सेनानियों में संघर्ष हुआ

गंजनसिंह कोरकू का नाम बैतूल के आजादी के इतिहास में कभी भुलाया नहीं जाएगा। जंगल सत्याग्रह की आग को पूरे जिले में फ़ैलाने में उनका योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता। 22 अगस्त 1930 को उन्होंने बंजारीढाल में सैकड़ों आदिवासियों के साथ जंगल सत्याग्रह किया। जब शाहपुर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिश की तो पुलिस और भीड़ के बीच संघर्ष छिड़ गया। बताया जाता है की इस दौरान गंजन सिंह का हाथ पकड़ता देख उनकी बहन रमकी बाई ने शाहपुर के थानेदार को हंसिया मारकर जान ले ली थी।

पचमढ़ी पुलिस ने गिरफ्तार किया

अगले दिन 23 अगस्त 1930 को पुलिस और आंदोलानकारियों की फिर से मुठभेड़ हुई। यहां पुलिस गोली चालन में कोवा आदिवासी शहीद हो गए।गंजनसिंह भाग निकलने में सफल हुए। उनकी गिरफ़्तारी के लिए अंग्रेजी सरकार ने 500 रूपये का इनाम भी घोषित किया था। बताया जाता है की उन्हें पकड़ने के सारे प्रयास विफल हो जाते थे । आखिर में वे पचमढ़ी पुलिस की गिरफ्त में आ गए और उन्हें 5 साल के कठोर कारावास की सजा दी गयी। गंजनसिंह का काल खंड 1930 और इसके आसपास के वर्षो में रहा जब उन्होंने अंग्रेजो को खूब छकाया।

सम्मोहन विद्या का जानते थे गंजन

प्रसिद्धि के कारण कहा जाता है की गंजनसिंह जादू जानता था। वह सम्मोहन विद्या का भी जानकार था। यही वजह है की जब अंग्रेज उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिश करते थे तो वे अदृश्य हो जाते थे। एक किवदंती यह भी है की वह अपने साथ थैलियो में चिरोठे के काले बीज रखा करते थे। अंग्रेजी पुलिस के पास आते ही वे बीज उन पर फेंक दिया करते थे।फेंकें जाते ही यह बीज मधुमख्खिया बन जाते थे। यही वजह रही की वे लंबे समय तक पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े।

मध्यप्रदेश में जंगल सत्याग्रह कहाँ हुआ?

महात्मा गांधी के साथ बिलासपुर में पदयात्रा भी की। इसके बाद 1922 के असहयोग आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर भाग लिया। इस वजह से एक वर्ष कारावास भी झेलना पड़ा। 1930 में जब जंगल सत्याग्रह आंदोलन शुरू हुआ तो उसमें भी अंग्रेजों की खिलाफत करने लगे।

जंगल सत्याग्रह कहाँ हुआ था?

1930 में महात्मा गाँधी के आह्वान पर मध्य भारत के बैतूल जिले से जंगल सत्याग्रह की शुरुआत हुई थी. जिसके बाद पूरे देश के वनवासी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ इस जंगल सत्याग्रह में शामिल हुए थे. इस सत्याग्रह में आदिवासियों के एक महानायक का नाम था सरदार गंजन सिंह कोरकू.

जंगल सत्याग्रह के जनक कौन?

जनवरी 1922 के प्रथम सप्ताह में जंगल सत्याग्रह की घोषणा की गई। इस सत्याग्रह के सूत्रधार थे श्यामलाल सोम।

घोड़ाडोंगरी सत्याग्रह कब हुआ?

घोड़ा-डोंगरी का जंगल सत्याग्रह की प्रमुख घटनाएँ बताइए। Solution : घोड़ा-डोंगरी का जंगल सत्याग्रह-आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिला स्वतन्त्रता आन्दोलन का प्रमुख केन्द्र रहा है और यहाँ के वनवासियों ने पराधीनता के विरुद्ध संघर्ष किया। सन् 1930 के जंगल सत्याग्रह के समय बैतूल के आदिवासी समुदाय ने आन्दोलन की मशाल थाम ली।