आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है। जनसंख्या विस्फोट शहरीकरण, वाहनों की संख्या में वृद्धि, अत्यधिक औद्योगीकरण के कारण जंगलों की कटाई और सफाई की जा रही है। फिर भी प्राकृतिक कच्चे माल की कमी हो जा रही है। उदाहरण स्वरूप लकड़ी की मात्रा कम हो रही है और फर्नीचर की मांग बढ़ रही है। इस मांग को पूरा करने के लिये कृत्रिम पदार्थों का उत्पादन शुरू हुआ। इस कृत्रिम पदार्थ को प्लास्टिक नाम से जाना जाता है। Show प्लास्टिक शब्द लेटिन भाषा के प्लास्टिक्स तथा ग्रीक भाषा के शब्द प्लास्टीकोस से लिया गया है। दैनिक जीवन से लेकर आरामदेय वस्तुओं में प्लास्टिक का उपयोग किया जा रहा है। आज प्रत्येक क्षेत्र में प्लास्टिक का उपयोग किया जा रहा है। बच्चों के खिलौनों से लेकर रसोई, बाथरूम, इलेक्ट्रिक उपकरणों, कारों एलरोप्लेन में, क्रॉकरी, फर्नीचर, कन्टेनर, बोतलें, पर्दे, दरवाजे, दवाईयों के रैपर तथा बोतले, डिस्पोजिबिल सिरिंजों का उपयोग बहुत बढ़ गया है। प्लास्टिक के कुछ विशेष गुण होते हैं, जैसे प्लास्टिक हल्की होती है। इस पर जल, अम्ल व क्षार का प्रभाव नहीं होता है तथा यह सरलता से साफ हो जाती है। देखने में सुंदर लगने के साथ ही इस पर दीमक का प्रभाव नहीं होता है जबकि लकड़ी को दीमक खा जाती है। अत: फर्नीचर बनाने में इसका अत्यधिक उपयोग किया जा रहा है। इलेक्ट्रिकल उपकरणों, टी.वी. की बॉडी, रसोई के सामान, डिनर सेट, पाइप आदि में प्लास्टिक का उपयोग किया जाता है। प्लास्टिक के कुछ दोष भी हैं। इसका विखण्डन सरलता से नहीं होता है तथा जलने पर विषैली गैसें उत्पन्न करती हैं जो पर्यावरण को प्रभावित करता है। इसका स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ता है। जिस स्थान पर प्लास्टिक होगी उस स्थान पर पानी और हवा नहीं पहुँच पाती है। अत: उस स्थान पर जीवन समाप्त हो जाता है, इस प्रकार प्लास्टिक हानि भी पहुँचाती है। प्लास्टिक का निर्माण सर्वप्रथम अमेरिका में वैज्ञानिक जॉन वेसली हयात ने किया था। व्यवहारिक रूप में फोटोग्राफिक फिल्म बनाई गई। धीरे-धीरे कार और एरोप्लेन के पुर्जे बनाये जाने लगे। विंड स्क्रीन, स्वचालित वाहनों की खिड़कियों के पर्दे आदि बनाये जाने लगे। सन 1930 में एथिलीन और प्रोपेलीन से पॉलीथीन और पॉलीप्रोपीन का निर्माण किया गया। कृत्रिम रबड़ और रेशे या धागे भी बनाये जाने लगें। सन 1960 में प्लास्टिक उद्योग का विकास शुरू हुआ तथा सन 1973 में प्लास्टिक उद्योग अपने चरम पर पहुँच गया। सन 1990 में उत्पादन 86 मिलियन टन तक पहुँच गया था। जो आज बढ़कर 120 मिलियन टन तक हो गया है। आज के युग को प्लास्टिक युग कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। आज बटन, खिलौने से लेकर रसोईघर, बाथरूम, पर्दे, फर्नीचर, दरवाजे विभिन्न पुर्जे काम में आ रहे हैं। सन 1900 में जर्मनी, फ्रांस में प्लास्टिक का व्यवसायिक उत्पादन प्रारंभ किया जो आज जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। प्लास्टिक दो प्रकार की होती है-1. थर्मोप्लास्टिक- यह वह प्लास्टिक होती है जो गर्म करने पर विभिन्न रूपों में बदल जाती है। जैसे- पॉलीथीन, पॉली प्रोपीलीन, पॉली विनायल क्लोरायड। 2. थर्मोसेटिंग- यह वह प्लास्टिक होती है जो गर्म करने पर सेट हो जाती है, जैसे- यूरिया, फॉर्मेल्डिहाइड, पॉली यूरेथेन। उपयोग के आधार पर भी प्लास्टिक को दो समूहों में विभाजित करते हैं। 1. कम घनत्व वाली, 2. उच्च घनत्व वाली। इनका उपयोग कवरिंग मैटेरियल के रूप में, कैरी बैग के रूप में किया जाता है कम भार उठाने के लिए कम घनत्व वाली प्लास्टिक का उपयोग करते हैं। अधिक भार तथा सुंदर बैग या कंटेनर के लिये उच्च घनत्व वाली प्लास्टिक का उपयोग करते हैं। कम घनत्व वाली पॉलीथीन (एल. डी. पी. ई.), उच्च घनत्व वाली पॉलीथीन (एच. डी. पी. ई.), पॉली विनायल क्लोरायड (पी. वी. सी.), पॉली-प्रोपीलीन (पी. पी.), पॉली स्टायरीन ये सब थर्मोप्लास्टिक हैं। इनका पुन: चक्रण कर प्रयोग में लाते हैं। प्लास्टिक का निर्माण बहुलीकरण तथा संघनन अभिक्रिया द्वारा होता है। बहुलीकरण वह क्रिया है जिसमें एक ही पदार्थ के बहुत से अणु या भिन्न पदार्थ के बहुत से अणु मिलकर बहुलक बनाते हैं। बहुलक का अणुभार पदार्थों के अणुभार का गुणक होता है। सामान्यतया यह प्रक्रिया असतृप्त पदार्थ दर्शाते हैं। संघनन वह क्रिया है जिसमें एक ही या भिन्न पदार्थ के दो या अधिक अणु आपस में मिलकर बहुलक बनाते हैं। साथ ही जल, अमोनिया इत्यादि उपजात पदार्थों का निर्माण करते हैं। भिन्न पदार्थों से विभिन्न प्लास्टिक का निर्माण करते हैं जिनका उपयोग विभिन्न उपयोगों में होता है। विभिन्न प्लास्टिकों का निर्माण इस प्रकार होता है। 1. पॉली एथिलीन- उच्च ताप और दबाव पर एथिलीन के बहुत से अणु आपस में मिलकर पॉलीथीन के बहुलक का निर्माण करते हैं।
2. पॉली प्रोपीलीन- उच्च ताप और दाब पर प्रोपीलीन के बहुत से अणु आपस में मिलकर पॉली प्रोपीलीन का निर्माण करते हैं।
3. पॉली विनायल क्लोरायड (पी. वी. सी.)- उच्च ताप और दाब पर विनायल क्लोरायड के बहुत से अणु आपस में मिलकर पॉली विनायल क्लोरायड का निर्माण करते हैं।
4. पॉली स्टायरीन- उच्च ताप और दाब पर फिनायल एथिलीन के बहुत से अणु आपस में मिलकर पॉली स्टायरीन बनाते हैं।
5. पॉली विनायल ऐसीटेट- उच्च ताप ओर दाब पर विनायल ऐसीटेट के बहुत से अणु आपस में मिलकर पॉली विनायल ऐसीटेट का निर्माण करते हैं। इसका उपयोग फिल्म बनाने में करते हैं।
सन 2000 में आस्ट्रेलिया के समुद्र के किनारे व्हेल मछली का शव मिला। शव के पोस्टमार्टम से ज्ञात हुआ कि व्हेल के पेट में प्लास्टिक बैग, फूड पैकेज पाये गये। प्लास्टिक के जलाने पर दूषित गैसें उत्पन्न होती हैं जो पर्यावरण को अत्यधिक प्रदूषित करती है। प्लास्टिक का पुन: चक्रण कर अन्य वस्तुएं बना सकते हैं। प्लास्टिक को पुन: चक्रण करने के लिये नम्बर दिये जाते हैं। जैसे पॉली एथिलीन टरथेलेट को नम्बर एक, उच्च घनत्व वाली पॉलीथीन को दो, पॉली स्टायरीन को छ: दिया गया है। प्लास्टिक का पुन: चक्रण कर कबाड़ की मात्रा को कम करते हैं। गुणों के आधार पर प्लास्टिक का उपयोग सीमित कर हानि से बचा जा सकता है। प्लास्टिक की अधिकता को कम करने से प्रकृति की सुन्दरता बनी रहती है। जीवन में उमंग, उत्साह, स्फूर्ती बनी रहेगी। यदि प्लास्टिक का उपयोग कम नहीं किया तो विकास विनाश में परिवर्तित हो जायेगा तब जीवन नीरस व अभिशाप होगा। संदर्भ 2. फिनार, आई. एल. (1963) कार्बनिक रसायन, भाग-1, लौंगमेन। 3. मोरीसन, आर. टी. एण्ड बॉयड, आर. एन. (1992) कार्बनिक रसायन, छठा संस्करण, प्रेन्टिस हॉल आफ इण्डिया, नई दिल्ली। 4. नाटा, जी. (1961) प्रीजियस कंसट्रक्टेड पॉलीमर, साइंस अमेरिकन। सम्पर्कएके चतुर्वेदी प्लास्टिक के कौन कौन से गुण होते हैं?प्लास्टिक के कुछ विशेष गुण होते हैं, जैसे प्लास्टिक हल्की होती है। इस पर जल, अम्ल व क्षार का प्रभाव नहीं होता है तथा यह सरलता से साफ हो जाती है। देखने में सुंदर लगने के साथ ही इस पर दीमक का प्रभाव नहीं होता है जबकि लकड़ी को दीमक खा जाती है। अत: फर्नीचर बनाने में इसका अत्यधिक उपयोग किया जा रहा है।
प्लास्टिक का विशिष्ट गुणधर्म क्या है?प्लास्टिक लम्बे समय तक टिकाऊ होता है | यह आसानी से लम्बे समय तक इस्तेमाल किया जाता है | प्लास्टिक में जंग नहीं लगता | प्लास्टिक सस्ता मिलता है , इसलिए सब इसे आसानी से खरीद सकते है | प्लास्टिक अपने वजन के लिए मजबूत होता है |
प्लास्टिक क्या है प्लास्टिक कितने प्रकार के होते हैं?This is Expert Verified Answer. प्लास्टिक दो प्रकार का होता है:. जैसे पालीथीन , पाली-विनाइल क्लोराइड|. थर्मोसेट्स प्लास्टिक इसे जो एक बार आकर दे दिया जाता है फिर भी उन्हें ऊष्मा देकर भी आकर बदल नहीं सकते | इसे नर्म नहीं किया जाता है | जिस ढांचे में एक बार बदल दिया जाता है उसे नर्म नहीं किया जाता |. प्लास्टिक से क्या क्या हानि है?प्लास्टिक के निर्माण में उपयोग किए जाने वाले रसायन शरीर के लिए विषाक्त और हानिकारक है। प्लास्टिक के इस्तेमाल से सीसा, कैडमियम और पारा जैसे रसायन सीधे मानव शरीर के संपर्क में आते हैं। ये जहरीले पदार्थ कैंसर, जन्मजात विकलांगता, इम्यून सिस्टम और बचपन में बच्चों के विकास को प्रभावित कर सकते है।
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