निम्नलिखित वाक्य के काल पहचानिए इससे अन्न का सदुपयोग करने और उसकी बरबादी न करने का संदेश मिलता है - nimnalikhit vaaky ke kaal pahachaanie isase ann ka sadupayog karane aur usakee barabaadee na karane ka sandesh milata hai

निम्नलिखित वाक्य के काल पहचानिए इससे अन्न का सदुपयोग करने और उसकी बरबादी न करने का संदेश मिलता है - nimnalikhit vaaky ke kaal pahachaanie isase ann ka sadupayog karane aur usakee barabaadee na karane ka sandesh milata hai
(किशन चंद चौधरी)

लेखक, सद्द बरग्राम, कांगड़ा से हैं

भोजन की बर्बादी रोकने के लिए लोगों के आचार-विचार, व्यवहार में बदलाव लाने से ही हमारी वास्तविक जीत संभव होगी। देश को समृद्ध बनाना है, तो हमें इन बातों पर अमल करना होगा। देश परमाणु शक्ति संपन्न देश बेशक बन जाए, पर यदि उसके लोग भूखे पेट सोते हों, तो इस परमाणु शक्ति का कोई फायदा नहीं है। अनाज की कीमत वही जान सकता है, जिसे भूख का एहसास हो…

कोई देश इस लिए गरीब नहीं होता है कि उसके पास साधन- संसाधन नहीं हैं। कोई देश इस लिए गरीब होता है क्योंकि उसके पास साधन-संसाधन तो हैं, पर वह उनका प्रयोग करने में असफल है या वह अपने साधनों का दुरुपयोग करता है। यही बात हमारे द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले खाद्यान्नों पर भी लागू होती है। कितनी मुश्किल से किसान अन्न उगाता है और हम कितनी आसानी से कितना ही अन्न शादी समारोहों में बबार्द कर देते हैं। हम सभी इस विषय को अच्छी तरह से जानते हैं कि देश के लाखों लोगों को दो वक्त का खाना नसीब नहीं हो पा रहा है, इसके बावजूद हम लोग घर-शादी बारात और अन्य आयोजनों पर खाने की जबरदस्त बर्बादी करते हैं। संपन्न परिवारों में भोजन बर्बादी आम बात हो गई है। जरूरत से ज्यादा भोजन पकाना और उसे बर्बाद करना दिनचर्या बन गई है। सामूहिक भोजन समारोह में भी जरूरत से ज्यादा प्लेट में ले लेते हैं और फिर खा नहीं पाते और वही छोड़कर निकल जाते हैं। क्या हमने कभी सोचा है कि हम जो यह जूठन छोड़ देते हैं, उससे हम कितनी बर्बादी करते हैं, क्या कभी सोचा है कि अगर जूठन न छोड़ें तो यह कितने गरीबों का पेट भर सकती है? हमारे देश में जहां 21.2 करोड़ लोग कुपोषित और अल्पपोषित हैं, खाद्य पदार्थों की बर्बादी निश्चित रूप में अपराध है। बर्बाद अनाज का हरेक दाना बचा लिया जाए तो इससे भूखे रहने को मजबूर एक बड़ी आबादी का पेट भरा जा सकता है।

हम सब अपनी कारगुजारियों से खाद्य पदार्थों की बर्बादी को आज गंभीर समस्या बना चुके हैं। तमाम सरकारी- गैर सरकारी अध्ययन इस बात की पुष्टि करते हैं कि हर वर्ष 6.7 करोड़ टन खाद्यान्न बर्बाद हो जाता है। भारत में जब हम अन्न की बर्बादी की बात करते हैं तो हमें पहली वजह बताई जाती है कि अनाज भंडारण के लिए कोल्ड स्टोरेज की कमी और खाद्य प्रसंस्करण की सीमित क्षमता के चलते यहां अन्न की बर्बादी होती है। समूचे देश को अन्न की बर्बादी को रोकने के लिए असल जरूरत है इसे राष्ट्रीय मुहिम में बदलने की। अन्न के प्रति लोगों को संवेदनशील बनाने की चुनौती है। इस समस्या को प्रधानमंत्री मोदी ने अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में प्रमुखता से शामिल किया  है। सरकार को लोगों में जागरूकता लाने के लिए संगठित कदम उठाने चाहिएं। खाद्य पदार्थों की बर्बादी रोकने के लिए अमरीका ने 2015 में एक कानून बनाया। इसे पाथ एक्ट के नाम से जाना जाता है। इस कानून के अंतर्गत खाना दान करने पर लोगों, संस्थाओं को कर छूट दी जाती है। छोटे किसानों की सुविधा के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में भंडारण की व्यवस्था, कोल्ड स्टोरेज में सेंसर लगे, जिससे किसानों को फोन पर अलर्ट भेज कर आगाह किया जा सके। ग्रामीण इलाकों के आसपास मेगा फूड पार्क विकसित किए जाने चाहिएं।

इससे फल, सब्जियों जैसे जल्द खराब होने वाली सामग्री की समय पर पैकेजिंग हो। खाना बनाते समय कम से कम खाद्य सामग्री बर्बाद करें। जरूरत से अधिक यदि खाना बना लिया है तो उसे फेंकने की बजाय पड़ोसियों, सहयोगियों को दें। रसोई से निकलने वाले बचे हुए खाने और जूठन को कूड़ेदान में फेेंकने के बजाय जानवरों को खिला दें। किचन से निकलने वाले कचरे को यदि मिट्टी में दबा दिया जाए तो इससे प्राकृतिक खाद यानी कंपोस्ट बन जाती है। इसका इस्तेमाल पौधों में डालने के लिए किया जा सकता है। इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया की मदद से राष्ट्रव्यापी मुहिम छेड़ी जाए, जिसके तहत लोगों को घरेलू स्तर पर अन्न की बर्बादी रोकने के लिए शिक्षित किया जाए। अंत में लोगों को जागरूकता बढ़ाई जाए कि घर पर भोजन पकाना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। जितने लोग प्रोसेस्ड फूड से दूर होंगे, अन्न की बर्बादी में उतनी कमी आएगी। स्कूलों और कालेजों में किताबों के जरिए बच्चों में भोजन बर्बादी न करने बारे संस्कार बचपन से ही डालने की जरूरत है। लोगों को भोजन के प्रति आदर की भावना दिखानी चाहिए। जैसे प्राचीनकाल के समय से हमारे देश में भोजन को देवताआें द्वारा दी गई कीमती वस्तु माना जाता है। अन्न की बर्बादी को रोकने के लिए जगानी होगी व्यापक स्तर पर राष्ट्रीय चेतना।

भोजन की बर्बादी रोकने के लिए लोगों के आचार-विचार, व्यवहार में बदलाव लाने से ही हमारी वास्तविक जीत संभव होगी। देश को समृद्ध बनाना है, तो हमें इन बातों पर अमल करना होगा। देश परमाणु शक्ति संपन्न देश बेशक बन जाए, पर यदि उसके लोग भूखे पेट सोते हों, तो इस परमाणु शक्ति का कोई फायदा नहीं है। अनाज की कीमत वही जान सकता है, जिसे भूख का एहसास हो। भरा हुआ पेट अनाज की कीमत नहीं जान सकता। किसान खेत में अनाज उगाकर पूरे देश का पेट पालता है। वह अपनी जिम्मेदारी निभाता है, तो क्या हम अनाज की बर्बादी रोककर अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा सकते। अगर हम खाने को बर्बाद नहीं करेंगे, तो जितना उगाते हैं उसमें ही गुजारा कर सकते हैं। ज्यादा उगाकर ज्यादा बर्बाद करने से कोई फायदा नहीं होगा।

हिमाचली लेखकों के लिए

लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे।

-संपादक

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