ताज शीर्षक कविता के कवि का नाम - taaj sheershak kavita ke kavi ka naam

हाय! मृत्यु का ऐसा अमर, अपार्थिव पूजन?
जब विषण्ण, निर्जीव पड़ा हो जग का जीवन!
संग-सौध में हो शृंगार मरण का शोभन,
नग्न, क्षुधातुर, वास-विहीन रहें जीवित जन?

मानव! ऐसी भी विरक्ति क्या जीवन के प्रति?
आत्मा का अपमान, प्रेत औ’ छाया से रति!!
प्रेम-अर्चना यही, करें हम मरण को वरण?
स्थापित कर कंकाल, भरें जीवन का प्रांगण?
शव को दें हम रूप, रंग, आदर मानन का
मानव को हम कुत्सित चित्र बना दें शव का?

गत-युग के बहु धर्म-रूढ़ि के ताज मनोहर
मानव के मोहांध हृदय में किए हुए घर!
भूल गये हम जीवन का संदेश अनश्वर,
मृतकों के हैं मृतक, जीवतों का है ईश्वर!

रचनाकाल: अक्टूबर’१९३५

ताज शीर्षक कविता के कवि का नाम क्या है?

ताज / सुमित्रानंदन पंत - कविता कोश

ताज कविता का सार क्या है?

ताज छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत जी द्वारा रचित एक उत्कृष्ट कविता है। इस कविता के माध्यम से कवि ने उन लोगों पर व्यंग करते है जो मारे हुए को अमर बनाने के लिए पूजा करते हैं। कवि ताजमहल को एक सुंदर स्मारक नहीं बल्कि रूढ़िवादी व्यवस्था के रूप में देखते हैं। कवि से शोषित वर्गों के शोषण पर बनाया गया मानते है।

ताज कविता का मूल भाव क्या है?

ख) पंत की 'ताज' कविता का मूल भाव लिखिए ।

TAAJ कविता के लेखक कौन है?

प्रकृति के अद्भुत चित्रकार पंत का मिज़ाज कविता में बदलाव का पक्षधर रहा है । शुरुआती दौर में छायावादी कविताएँ लिखीं। पल-पल परिवर्तित प्रकृति वेश इन्हें जादू की तरह आकृष्ट कर रहा था। बाद में चल कर प्रगतिशील दौर में ताज और वे आँखें 2022-23 Page 2 / आरोह जैसी कविताएँ भी लिखीं।