Tvisha Chaswal Raj (महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद ने अपने जीवनकाल मे पन्द्रह उपन्यास लिखे थे इन उपन्यासों में से कुछ लघु तो कुछ बेहद भीमकाय उपन्यास थे। भीमकाय उपन्यासों मे ’सेवासदन’ जो उर्दू मे दो भागों मे ’बाजारे-हुस्न’ के नाम से प्रकाशित हुआ। पहला भाग वर्ष 1921 में तथा दूसरा भाग वर्ष 1922 में लाहौर के ’दारूल-इशाअत पंजाब’ ने प्रकाशित किया। हिन्दी में पहली बार सितम्बर 1918 मे ’हिन्दी पुस्तक एजेन्सी, कलकत्ता’ से प्रकाशित हुआ था। ’प्रेमाश्रम’ उपन्यास हिन्दी में वर्ष 1922 में ’हिन्दी पुस्तक एजेन्सी, कलकत्ता’ से प्रकाशित हुआ । ’रंगभूमि’ उपन्यास उर्दू भाषा में ’चैगाने हस्ती’ के नाम से सितंबर, 1928 में प्रकाशित हुआ। ’कायाकल्प’ उपन्यास के हिन्दी संस्करण का प्रथम प्रकाशन वर्ष जून-जुलाई 1926 में प्रेमचंद के अपने प्रेस सरस्वती प्रेस, बनारस द्वारा किया गया। उर्दू में प्रथम बार प्रकाशन ’लाजपतराय एण्ड संस’, लाहौर ने ’पर्दा-ए-मजाज’ के नाम से किया। प्रकाशन वर्ष मुद्रित नहीं है। ’कर्मभूमि’ उपन्यास का प्रथम हिन्दी संस्करण वर्ष 1932 के सितम्बर माह में ’सरस्वती प्रेस’, बनारस से हुआ। ’गबन’ उपन्यास का हिन्दी संस्करण मार्च 1931 के प्रारंभ में प्रेमचंद के अपने प्रकाशन ’सरस्वती प्रेस’, बनारस से प्रकाशित हुआ। एवं ’गोदान’ इसका प्रथम हिन्दी प्रकाशन ’सरस्वती प्रेस’, बनारस एवं ’हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय’, बंवई ने संयुक्त रूप से जून 1936 मे किया। उर्दू में प्रेमचंद के देहान्त के बाद पहली बार ’मकतबा-ए-जामिया’, दिल्ली से दिसंबर 1939 में ’गऊदान’ के नाम से प्रकाशित हुआ, आदि के नाम लिये जा सकते है । Show प्रस्तुत आलेख में प्रेमचंद के लघु उपन्यास ’निर्मला’ की सार्थकता व सजीवता के संबंध में चर्चा करने का प्रयास किया गया है। इस उपन्यास में दहेज जैसी कुरितियो से होने वाली समस्याओं के विषय में बताया गया था, यह समस्या आज भी बदस्तूर चलने के कारण इसकी प्रासंगिकता इतने वर्षो बाद भी कम नहीं हुई है। इस लघु उपन्यास में प्रेमचंद ने बेमेल विवाह तथा दहेज के दुष्परिणामों का बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया था। इस उपन्यास से पूर्व प्रेमचंद ने समाज की कई कुरीतियों एवं बुराइयों को लेकर अपने उपन्यासों का विषय बनाया था जिनमें प्रमुख पंडे पुजारियों द्वारा समाज में फैलाया जा रहा पाखंड प्रपंच पर कुठाराघात, विधवा विवाह की समस्या, कल-कारख़ानों के दुष्परिणाम, आभूषण प्रेम, ज़मींदारी प्रथा, तथा किसानों पर हो रहे अत्याचारों आदि का वर्णन प्रमुखता के साथ अपने उपन्यासों में कर चुके थे। जब ’निर्मला’ उपन्यास को लिखा तो इसमें दहेज रूपी दानव जिसने घरों के घर बर्बाद कर दिये थे, के संबंध में बड़ा ही दुखद वर्णन कर इसे आम पाठकों के बीच पहुंचाया। आम पाठकों से संबंधित समस्या होने के कारण पाठकों के बीच यह उपन्यास बेहद लोकप्रिय बन गया तथा हिन्दी पाठकों ने भी इसका खुले दिल से स्वागत किया। चूंकि इस उपन्यास की कथावस्तु दहेज की व्यवस्था न हो पाने के कारण ज़िदंगी भर घर गृहस्थी में पिसती एक आम महिला की ज़िदंगी की त्रासद कहानी थी, इस कारण महिलाओ ने इस उपन्यास को बेहद पसंद किया। इस उपन्यास की कथावस्तु के संबंध में कतिपय विद्वानों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये हैं जिन्हें पाठकों के समक्ष रखा जाना आवश्यक है । (1) ’’यह उपन्यास पहली बार हिन्दी में ही प्रकाशित हुआ। पहले 'चांद' में धारावाहिक रूप में नवंबर 1925 से नवंबर 1926 तक प्रकाशित हुआ और फिर 'चांद' प्रेस द्वारा ही पुस्तक रूप में भी 1927 में प्रकाशित हुआ, इसे महिलाओ में अत्यंत लोकप्रियता प्राप्त हुई।’’ (6) संदर्भः- निर्मला का रचना काल क्या है?प्रेमचन्द द्वारा लिखित 'निर्मला' उपन्यास, जिसका निर्माण काल 1923 ई. और प्रकाशन का समय 1927 ई. है।
निर्मला किसका उपन्यास है?प्रेमचन्द्र के उन उपन्यासों में निर्मला बहुत आगे माना जाता है जिन्होंने साहित्य के मानक स्थापित किए. इस उपन्यास में प्रेमचंद ने समाज में औरत और उसकी दशा का चित्रण पेश किया है. आज प्रेमचंद की पुण्यतिथि पर हम पेश कर रहे हैं उनके उपन्यास निर्मला का एक अंश.
निर्मला उपन्यास का उद्देश्य क्या है?उपन्यास का लक्ष्य अनमेल-विवाह तथा दहेज़ प्रथा के बुरे प्रभाव को अंकित करता है। निर्मला के माध्यम से भारत की मध्यवर्गीय युवतियों की दयनीय हालत का चित्रण हुआ है। उपन्यास के अन्त में निर्मला की मृत्यृ इस कुत्सित सामाजिक प्रथा को मिटा डालने के लिए एक भारी चुनौती है।
निर्मला कौन है?वे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से संबद्ध हैं तथा पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता भी रह चुकी हैं। निर्मला सीतारमन भारत की पहली पूर्णकालिक महिला वित्त मंत्री हैं; हालांकि इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए अतिरिक्त कार्यभार के रूप में यह मंत्रालय संभाला था। तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु, भारत।
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