इस प्रकार बस्तर विद्रोह ने अंग्रेजी सरकार को वनों को आरक्षित करने की अपनी नीति में मूल सुधार करने के Show
लिए विवश किया। लगभग ऐसा ही कुछ इण्डोनेशिया के टापू जावा में भी हुआ। अंग्रेजों की भाँति डच लोगों को अपने जहाजों के निर्माण कार्य में बहुत-सी टिम्बर की आवश्यकता थी जो वे जावा से अपने देश हॉलैण्ड ले जाना चाहते थे। उन्होंने भी अपने फॉरेस्ट कानून पास करके जावा के मूल निवासियों को वनों का प्रयोग करने से रोक दिया। इस नीति ने जावा के आदिवासियों का जीना हराम कर दिया था। 1770 ई० में क्लांगों (Kalangs) ने विद्रोह कर दिया और जोना (Joana) के डच किले पर धावा बोल दिया। चाहे डचों ने इस विद्रोह को दबा दिया और नए कठोर फॉरेस्ट कानून बनाए, परन्तु उन्हें भी जहाँ-तहाँ जंगली जातियों को कई रियायतें देनी पड़ी। वनों में खेती करने वालों पर पहले तो कर लगाए गए फिर कई लोगों को इन करों से मुक्त कर दिया गया, यदि वे जंगलों के काटने और टिम्बर को ढोने में डच अधिकारियों को सहयोग दें। कई लोगों को इन कार्यों के बदले कुछ वेतन भी दिया जाता था। 1890 ई० में एक जावा नेता सुरोन्तिको सामिन (Surontiko Samin) और उसके अनुयायियों ने डच सरकार के इस अधिकार को ही ललकार डाला कि डच सरकार को वनीय क्षेत्र में नियन्त्रण करने का कोई हक नहीं है। जब कभी सरकार ने वनीय क्षेत्रों का निरीक्षण करने का प्रयत्न किया तो सामिन के अनुयायियों ने उसका डटकर विरोध किया। वे अपनी भूमि पर लेट जाते थे, कुछ ने कर देने से इनकार कर दिया जबकि कुछ अन्य ने बेगार देना बन्द कर दिया। इस प्रकार बस्तर और जावा के लोगों ने औपनिवेशिक शक्तियों की शोषण नीति का यथासम्भव विरोध किया।
प्रश्न 3. सन् 1880 से 1920 के बीच भारतीय उपमहाद्वीप के वनाच्छादित क्षेत्र में 97 लाख हेक्टेयर की गिरावट आयी। पहले के 10.86 करोड़ हेक्टेयर से घटकर यह क्षेत्र 9.89 करोड़ हेक्टेयर रह गया था। इस गिरावट में निम्नलिखित कारकों की भूमिका बताएँ― •रेलवे •जहाज निर्माण •कृषि-विस्तार • व्यावसायिक खेती •चाय-कॉफी के बागान •आदिवासी और किसान उत्तर― • 1850 में रेलवे के विस्तार ने एक नई माँग को जन्म दिया। औपनिवेशिक व्यापार एवं शाही सैनिक टुकड़ियों के आवागमन के लिए रेलवे आवश्यक था। रेल के इंजन चलाने के लिए ईंधन के तौर पर एवं रेलवे लाइन बिछाने के लिए स्लीपर (लकड़ी के बने हुए) जो कि पटरियों को उनकी जगह पर बनाए रखने के लिए आवश्यक थे, सभी के लिए लकड़ी चाहिए थी। 1860 के दशक के बाद से रेलवे के जाल में तेजी से विस्तार हुआ। जैसे-जैसे रेलवे पटरियों का भारत में विस्तार हुआ, अधिकाधिक मात्रा में पेड़ काटे गए। 1850 के दशक में अकेले मद्रास प्रेसिडेंसी में स्लीपरों के लिए 35,000 पेड़ सालाना काटे जाते थे। आवश्यक संख्या में आपूर्ति के लिए सरकार ने निजी ठेके दिए। इन ठेकेदारों ने बिना सोचे-समझे पेड़ काटना शुरू कर दिया और रेल लाइनों के इर्द-गिर्द जंगल तेजी से गायब होने लगे। • उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ तक इंग्लैण्ड में बलूत के जंगल गायब होने लगे थे जिसने अंततः शाही जल सेना के लिए लकड़ी की आपूर्ति में समस्या पैदा कर दी। समुद्री जहाजों के बिना शाही सत्ता को बचाए एवं बनाए रखना कठिन हो गया था। इसलिए, 1820 तक अंग्रेजी खोजी दस्ते भारत की वन-संपदा का अन्वेषण करने के लिए भेजे गए। एक दशक के अंदर बड़ी संख्या में पेड़ों को काट डाला गया और बहुत अधिक मात्रा में लकड़ी का भारत से निर्यात किया गया। • उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ में औपनिवेशिक सरकार ने सोचा कि वन अनुत्पादक थे। वेनों की भूमि को व्यर्थ समझा जाता था जिसे जुताई के अधीन लाया जाना चाहिए ताकि उस भूमि से राजस्व और कृषि उत्पादों को पैदा किया जा सकता था और इस तरह राज्य की आय में बढ़ोतरी की जा सकती थी। यही कारण था कि 1880 से 1920 के बीच खेती योग्य भूमि के क्षेत्रफल में 67 लाख हेक्टेयर की वृद्धि हुई। उन्नीसवीं सदी में बढ़ती शहरी जनसंख्या के लिए वाणिज्यिक फसलों; जैसे कि जूट, चीनी, गेहूँ एवं कपास की मांग बढ़ गई और औद्योगिक उत्पादन के लिए कच्चे माल की जरूरत पड़ी। इसलिए अंग्रेजों ने सीधे तौर पर वाणिज्यिक फसलों को बढ़ाया दिया। इस प्रकार भूमि को जुताई के अंतर्गत लाने के लिए वनों को काट दिया गया। • वाणिज्यिक वानिकी में प्राकृतिक वनों में मौजूद विभिन्न प्रकार के पेड़ों को काट दिया गया। प्राचीन वनों के विभिन्न प्रकार के पेड़ों को उपयोगी नहीं माना गया। उनके स्थान पर एक ही प्रकार के पेड़ सीधी लाइन में लगाए गए। इन्हें बागान कहा जाता है। वन अधिकारियों ने जंगलों का सर्वेक्षण किया, विभिन्न प्रकार के पेड़ों के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र का आंकलन किया और वन प्रबंधन के लिए कार्य-योजना बनाई। उन्होंने यह भी तय किया कि बागान का कितना क्षेत्र प्रतिवर्ष काटा जाए। इन्हें काटे जाने के बाद इनका स्थान “व्यवस्थित” वन लगाए जाने थे। कटाई के बाद खाली जमीन पर पुन: पेड़ लगाए जाने थे ताकि कुछ ही वर्षों में यह क्षेत्र पुनः कटाई के लिए तैयार हो जाए। • यूरोप में इन वस्तुओं की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए प्राकृतिक वनों के बड़े क्षेत्रों को चाय, कॉफी, रबड़ के बागानों के लिए साफ कर दिया गया। औपनिवेशी सरकार ने वनों पर अधिकार कर लिया और इनके बड़े क्षेत्रों को कम कीमत पर यूरोपीय बाग लगाने वालों को दे दिए। इन क्षेत्रों की बाड़ाबंदी कर दी गई और वनों को साफ करके चाय व कॉफी के बाग लगा दिए गए। बागान के मालिकों ने मजदूरों को लंबे समय तक और वह भी कम मजदूरी पर काम करवाकर बहुत लाभ कमाया। घुमंतू खेती करने वाले जले हुए वनों की जमीन पर बीज बो देते और पुन: पेड़ उगाते। जब ये चले जाते तो वनों की देखभाल करने के लिए कोई भी नहीं बचता था। • वे सामान्यत: घुमंतू खेती करते थे जिसमें वनों के हिस्सों को बारी-बारी से काटा एवं जलाया जाता है। मानसून की पहली बरसात के बाद राख में बीज बो दिए जाते हैं। यह प्रक्रिया वनों के लिए हानिकारक थी। इसमें हमेशा जंगल की आग का खतरा बना रहता था।
प्रश्न 4. युद्धों से जंगल क्यों प्रभावित होते हैं? उत्तर- अनेक कारणों से युद्ध के दौरान वनों पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है। विशेषकर निम्नलिखित कारणों की विशेष भूमिका रहती है―
(i) आधुनिक युग में आक्रमण से बचने के लिए सैनिक लोग खुले स्थान छोड़कर वनों की छत्रछाया में आ जाते हैं ताकि उन पर कोई हवाई हमला न कर सके। एक तो वे वनों को बर्बाद कर देते हैं और बाकी बची-खुची कसर शत्रु पक्ष के लोग पूरा कर देते हैं जब अपने विरोधियों को ढूँढ़ते-ढूँढ़ते वे वनों में घुस आते हैं। हर छिपने वाले स्थान को मिटाने के लिए वे अन्धाधुन्ध वृक्षों को काट देते हैं या जला देते हैं। ऐसे में वनों का कुछ बचता नहीं।
(ii) युद्धों में व्यस्त हो जाने के कारण बहुत-से देशों का ध्यान वनों का सुव्यवस्थित ढंग से विकास करने के कार्यों से हट जाता है और परिणामस्वरूप बहुत-से वन लापरवाही का शिकार हो जाते हैं।
(iii) युद्ध से सम्बन्धित विभिन्न कार्यों की पूर्ति के लिए वृक्षों को अन्धाधुन्ध काट दिया जाता है जिसके परिणामस्वरूप थोड़े ही समय में हरे-भरे वन गायब हो जाते हैं।
(iv) कई बार देश की अपनी सरकारें, जब देखती हैं कि उनके वनों पर शत्रु का अधिकार हो जाएगा तो वे स्वयं वनों को काटना शुरू कर देती हैं और इस प्रकार भी वनों का नामोनिशान तक मिट जाता है। ऐसा ही दूसरे विश्व युद्ध में इण्डोनेशिया में हुआ जब वहाँ जापानी अधिकार की सम्भावना बढ़ गई तो वहाँ की डच सरकार ने स्वयं अपने वनों को काट डाला।
(v) कई बार इन वनों पर अधिकार करने वाली शक्तियाँ इन वनों को अन्धाधुन्ध काट देती हैं ताकि दूसरा पक्ष इन वनों में शरण न ले सके। दूसरे विश्वयुद्ध में इण्डोनेशिया पर अपने अधिकार के समय जापान ने ऐसा ही किया। इस प्रकार इण्डोनेशिया के वनों को दोहरी मार भुगतनी पड़ी। इस दोधारी तलवार से भला वन कैसे बच सकते थे।
(vi) वन-अधिकारियों और सरकार को युद्ध में फंँसा देखकर बहुत बार वनों के आस-पास रहने वाले लोग वनों को काटना शुरू कर देते हैं ताकि एक तो उनको लकड़ी से आमदनी हो जाए और दूसरे उनकी खेती करने वाली भूमि का दायरा बढ़ जाए विशेषकर जिन लोगों को पहले वनों से बाहर निकाला गया था वे फिर से वनों को अपने अधिकार में ले लेते हैं। इस प्रकार युद्धों का हर तरह से वनों पर बड़ा विनाशकारी प्रभाव पड़ता है।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
बहुविकल्पीय प्रश्न प्रश्न 1. मध्य भारत में कौन-से वन्य समुदाय पाए जाते हैं? (क) कराचा (ख) कोरावा (ग) बंजारा (घ) बेगा उत्तर―(घ) बेगा
प्रश्न 2. कलंग………से संबंधित है। (क) बस्तर (ख) जावा (ग) इंडोनेशिया (घ) छत्तीसगढ़ उत्तर―(ख) जावा
प्रश्न 3.कलंग लोगों को उनकी…….. में दक्षता के कारण जाना जाता था। (क) वनों की कटाई (ख) वन काटने का प्रशिक्षण देने (ग) धाराप्रवाह बोलने (घ) खेती उत्तर―(क) वनों की कटाई
प्रश्न 4.जावा में वन प्रबंधन के अधीन था। (क) ब्रिटिश (ख) डच (ग) फ्रेंच (घ) पुर्तगाली उत्तर―(ख) डच
प्रश्न 5. नए वन्य कानूनों के लागू होने के बाद कौन-सा नया व्यवसाय अस्तित्व में आया? (क) जुताई (ख) जंगली रबड़ के पेड़ों से लेटेक्स एकत्र करना (ग) शिकार (घ) इनमें से कोई नहीं उत्तर―(ख) जंगली रबड़ के पेड़ों से लेटेक्स एकत्र करना
प्रश्न 6. बस्तर कहाँ स्थित है? (क) छत्तीसगढ़ (ख) आंध्र प्रदेश (ग) ओडिशा (घ) मध्य प्रदेश उत्तर―(क) छत्तीसगढ़
प्रश्न 7. वर्तमान में जावा किसलिए प्रसिद्ध है? (क) गेहूँ उत्पादक द्वीप (ख) चावल उत्पादक द्वीप (ग) मक्का उत्पादक द्वीप (घ) चाय उत्पादक द्वीप उत्तर―(ख) चावल उत्पादक द्वीप
प्रश्न 8. जंगलों में निवास करने वाले लोग किस चीज से धन अर्जित करते हैं? (क) महुआ के फूल (ख) तेन्दु के पत्ते (ग) लकड़ी (घ) फल उत्तर―(ख) तेन्दु के पत्ते
प्रश्न 9. घुमंतू खेती को ………नाम से भी जाना जाता है। (क) मिश्रित कृषि (ख) आदिम कृषि (ग) स्वीडन कृषि (घ) आधुनिक कृषि उत्तर―(ग) स्वीडन कृषि
प्रश्न10. औपनिवेशिक काल के दौरान वनों का तेजी से सफाया क्यों हुआ? (क) वाणिज्यिक फसलों की मांँग पूरी करने के लिए। (ख) वनों को व्यर्थ का बियाबान समझा जाता था। (ग) लकड़ी की माँग को पूरा करने के लिए। (घ) उपरोक्त सभी। उत्तर―(घ) उपरोक्त सभी।
प्रश्न11. 1850 के दशक में मद्रास प्रेसिडेंसी में स्लीपरों के लिए सालाना कितने पेड़ काटे जाते थे? (क) 38,000 पेड़ (ख) 35,890 पेड़ (ग) 37,990 पेड़ (घ) 35,000 पेड़ उत्तर―(घ) 35,000 पेड़
प्रश्न12. किस स्थान पर 1906 में इंपीरियल वन अनुसंधान केंद्र की स्थापना की गई? (क) देहरादून (ख) बस्तर (ग) बेंगलोर (घ) नागपुर उत्तर―(क) देहरादून
प्रश्न13. भारतीय वन अधिनियम कब लागू हुआ? (क) 1869 में (ख) 1855 में (ग) 1865 में (घ) 1860 में उत्तर―(ग) 1865 में
प्रश्न14. घुमंतू खेती को श्रीलंका में किस नाम से जाना जाता है? (क) मिलपा (ख) चितमेने (ग) चेना (घ) पोडू उत्तर―(ग) चेना
प्रश्न15. किस अवधि के दौरान 80,000 बाघ, 1,50,000 तेंदुए और 2,00,000 भेड़िये इनाम के लिए मार डाले गए? (क) 1815-1920 (ख) 1885-1995 (ग) 1805-1923 (घ) 1875-1925 उत्तर―(घ) 1875-1925
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.देवसारी या दांड क्या है? उत्तर― बस्तर के सीमावर्ती गाँवों में लोगों द्वारा दिया जाने वाला एक शुल्क। यदि एक गाँव के लोग दूसरे गाँव के जंगल से थोड़ी लकड़ी लेना चाहते हैं तो इसके बदले में वे एक छोटा शुल्क अदा करते हैं।
प्रश्न 2. ब्लैन्डॉगडिएन्स्टेन प्रणाली क्या है? उत्तर― डचों को पेड़ काटने, लट्ठों को ढोने और स्लीपर तैयार करने के लिए मजदूर चाहिए थे। पहले उन्होंने जंगलों में खेती की, जमीन पर कर लगा दिया और फिर कुछ गाँवों को इस कर से इस शर्त पर मुक्त कर दिया कि वे सामूहिक रूप से पेड़ काटने और लकड़ी ढोने के लिए भैंसे उपलब्ध कराने का काम मुफ्त में किया करेंगे। इसे ब्लैन्डॉगडिएन्स्टेन प्रणाली के नाम से जाना जाता था।
प्रश्न 3. डायट्रिच ब्रैडिस कौन था? उत्तर― डायट्रिच ब्रैंडिस एक जर्मन वन विशेषज्ञ था। ब्रैंडिस को अंग्रेजी सरकार ने वन के विषय पर मशविरे के लिए बुलाया और उसे देश का पहला वन महानिदेशक नियुक्त किया गया। ब्रैंडिस ने 1864 में भारतीय वन सेवा की स्थापना की और 1865 के भारतीय वन अधिनियम को सूत्रबद्ध करने में सहयोग दिया।
प्रश्न 4. झूम या घुमंतू खेती के विभिन्न महाद्वीपों में उनके स्थानीय नाम के बारे में बतलाएँ। उत्तर― झूम या घुमंतू खेती के कई स्थानीय नाम; जैसे-दक्षिण पूर्ण एशिया में लादिग, मध्य अमेरिका में मिलपा, अफ्रीका में चितमेन या तावी व श्रीलंका में चेना। हिन्दुस्तान में घुमंतू खेती के लिए धया, पेंदा, बेवर, नेवड़, झूम, पोडू, खंदाद और कुमरी ऐसे ही कुछ स्थानीय नाम हैं।
प्रश्न 5. गुंडा धूर कौन था? उत्तर― गुंडा धूर नेथानार गाँव का एक आंदोलनकारी था जिसने अंग्रेजों के खिलाफ होने वाली बगावत में बढ़-चढ़कर भाग लिया था। इस आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने दमनकारी नीति अपनाई। इस आंदोलन को नियंत्रित करने में अंग्रेजी सरकार को तीन महीने लग गए। गुंडाधुर अंग्रेजी सरकार की पकड़ में कभी भी नहीं आया।
प्रश्न 6. वन ग्राम किसे कहा जाता था? उत्तर- औपनिवेशिक सरकार ने 1905 में जब जंगल के दो-तिहाई हिस्से को आरक्षित किया परन्तु कुछ गाँवों को आरक्षित वनों में इस शर्त पर रहने दिया गया कि वे वन विभाग के लिए पेड़ों की कटाई और दुलाई का काम मुफ्त करेंगे और जंगल को आग से बचाए रखेंगे। बाद में इन्हीं गाँवों को वन ग्राम कहा जाने लगा।
प्रश्न 7. 1700 से 1995 के बीच वनों की कितनी कटाई हुई? उत्तर- 1700 से 1995 के बीच 139 लाख वर्ग किलोमीटर जंगल यानी दुनिया के कुल क्षेत्रफल का 9.3 प्रतिशत भाग औद्योगिक इस्तेमाल, खेती-बाड़ी चरागाहों व ईंधन की लकड़ी के लिए साफ कर दिया गया।
प्रश्न 8. इम्पीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना कब हुई थी? उत्तर― इम्पीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना 1906 में देहरादून में हुई। यहाँ जिस पद्धति की शिक्षा दी जाती थी उसे वैज्ञानिक वानिकी (साइंटिफिक फॉरेस्ट्री) कहा गया।
प्रश्न 9. वन अधिनियम के चलते देश भर में गाँव वालों की किस तरह मुश्किलें बढ़ गई? उत्तर― वन अधिनियम के बाद घर के लिए लकड़ी काटना, पशुओं को चराना, कंद-मूल, फल इकट्ठा करना आदि रोजमर्रा की गतिविधियाँ गैरकानूनी बन गईं। जलावनी लकड़ी एकत्र करने वाली औरतें विशेष तौर से परेशान रहने लगीं।
प्रश्न 10.1875 से 1925 के बीच कितने जंगली जानवर मारे गए थे? उत्तर― 1875 से 1925 के बीच इनाम के लालच में 80,000 से ज्यादा बाघ, 1,50,000 तेंदुए और 2,00,000 भेड़िए मार गिराए गए। धीरे-धीरे बाघ के शिकार को एक खेल की ट्रॉफी के रूप में देखा जाने लगा। अकेले जॉर्ज यूल नामक अंग्रेज अफसर ने 400 बाघों को मारा था।
प्रश्न 11. घुमंतू खेती से क्या तात्पर्य है? उत्तर― यह कृषि की वह पुकार है जिसमें जब एक जगह की जमीन का उपजाऊपन समाप्त होने लगता है तो कृषक दूसरी जगह जाकर खेती करने लगते हैं। वे इस पर उगी हुई वनस्पति को जला देते हैं और इसकी राख को खाद की तरह प्रयोग करते हैं। इस तकनीक को ‘काटो और जलाओ’ तकनीक भी कहा जाता है।
प्रश्न 12.बस्तर में पाए जाने वाली प्रमुख जनजातियों के नाम लिखें तथा उनके प्रमुख रीति-रिवाजों के बारे में बतलाएँ। उत्तर― बस्तर में मरिया और मुरिया, गोंड, धुरवा, भतरा, हलबा आदि अनेक आदिवासी समुदाय रहते हैं। बस्तर के जनजाति लोग मानते हैं कि हरेक गाँव को उसकी जमीन ‘धरती माँ’ से मिली है और बदले में वे प्रत्येक खेतिहर त्योहार पर धरती को चढ़ावा चढ़ाते हैं। धरती के अलावा वे नदी, जंगल व पहाड़ों की आत्मा को भी उतना ही मानते हैं।
प्रश्न 13.सुरोन्तिको सामिन ने किस तरह का आंदोलन खड़ा किया? उत्तर― जावा के निवासी सुरोन्तिको सामिन ने जंगलों पर राजकीय मालिकाने पर सवाल खड़ा करना प्रारंभ कर दिया। उसका तर्क था कि चूँकि हवा, पानी, जमीन और लकड़ी राज्य की बनायी हुई नहीं हैं इसलिए उन पर उसका अधिकार नहीं हो सकता। जल्दी ही एक व्यापक आंदोलन खड़ा हो गया।
प्रश्न 14. डचों ने जावा में ‘भस्म कर भागो नीति के तहत क्या किया और इसका जावा पर क्या प्रभाव पड़ा? उत्तर― जावा पर जापानियों के कब्जे से ठीक पहले डचों ने ‘भस्म कर भागो नीति’ अपनायी जिसके तहत आरा मशीनों और सागौन के विशाल लट्ठों के ढेर जला दिए गए जिससे वे जापानियों के हाथ न लग पाएँ। इसके बाद जापानियों ने वनवासियों को जंगल काटने के लिए बाध्य करके अपने युद्ध उद्योग के लिए जंगलों का निर्मम दोहन किया। बहुत सारे गाँव वालों ने इस अवसर का लाभ उठाकर जंगल में अपनी खेती का विस्तार किया।
प्रश्न 15. अंग्रेजों के खिलाफ होने वाले वन विद्रोह के नायकों के नाम बताएँ। उत्तर― हिन्दुस्तान और दुनिया भर में वन्य समुदायों ने अपने ऊपर थोपे गए बदलावों के खिलाफ बगावत की। संथाल परगना में सीधू और कानू, छोटानागपुर में बिरसा मुंडा और आंध्र प्रदेश में अल्लूरी सीताराम राजू को लोकगीतों और कथाओं में अंग्रेजों के खिलाफ उभरे आंदोलनों के नायक के रूप में आज भी याद किया जाता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. घुमंतू खेती पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। उत्तर― घुमंतू या झूम खेती एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका की पारंपरिक कृषि पद्धति है। इस प्रकार की खेती में वनों के हिस्सों को बारी-बारी से काटा एवं जलाया जाता है। मानसून की पहली बरसात के बाद राख में बीज बो दिए जाते हैं और अक्तूबर-नवंबर में फसल काट ली जाती है। इन भूखण्डों पर दो-एक साल खेती करने के बाद इन्हें 12 से 18 साल तक के लिए परती छोड़ दिया जाता है जिससे वहाँ फिर से जंगल पनप जाए। इन भूखंडों में मिश्रित फसलें उगायी जाती हैं। इसके कई स्थानीय नाम हैं; जैसे-दक्षिण-पूर्व एशिया में लादिंग, मध्य अमेरिका में मिलपा, अफ्रीका में चितमने या तावी व श्रीलंका में चेना। हिन्दुस्तान में घुमंतू खेती के लिए धया, पेंदा, बेवर, नेवड़, झूम, पोडू, खंदाद और कुमरी ऐसे ही कुछ स्थानीय नाम हैं।
प्रश्न 2. वानिकी में नए बदलाव क्या है? उत्तर― अस्सी के दशक से वैज्ञानिक वानिकी और वन समुदायों को जंगलों से बाहर रखने की अपेक्षा जंगलों का संरक्षण अधिक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य बन गया है। सरकार ने यह भी मान लिया है कि इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वन प्रदेशों में रहने वालों को शामिल करना होगा। मिजोरम से लेकर केरल तक हिन्दुस्तान में हर जगह घने जंगल केवल इसलिए बच पाए क्योंकि ग्रामीणों ने पवित्र बगीचा समझकर सरना, देवराकुडु, कान, राई इत्यादि नाम रखकर इनकी रक्षा की। कुछ गाँव तो वन-रक्षकों पर निर्भर रहने के बजाय अपने जंगलों की चौकसी आप करते रहे हैं इसमें हर परिवार बारी-बारी से अपना योगदान देता है। वन विभाग के अधिकारियों ने जंगलों का सर्वेक्षण किया, विभिन्न किस्म के पेड़ों वाले क्षेत्रों का आंकलन किया और वन-प्रबंधन के लिए योजनाएँ बनायीं।
प्रश्न 3. वनों में रहने वाले लोगों के लिए वन्य उत्पाद किस प्रकार लाभदायक हैं? उत्तर― वनों में रहने वाले लोग वन्य उत्पादों; जैसे कि कंद-मूल, पत्ते, फल व जड़ी-बूटियों का प्रयोग कई चीजों के लिए करते हैं― (i) फल और कंद अत्यंत पोषक खाद्य हैं, विशेषकर मानसून के दौरान जबकि फसल कटकर घर नहीं पहुँची हो।
(ii) जड़ी-बूटियों का प्रयोग दवा के रूप में किया जाता है।
(iii) लकड़ी का प्रयोग हल और जूए जैसे खेती के औजार बनाने में किया जाता है।
(iv) बाँस से बेहतरीन बाड़ें बनायी जा सकती हैं और इसका उपयोग छतरी तथा टोकरी बनाने के लिए भी किया जा सकता है।
(v) सूखे हुए कुम्हड़े के खोल का प्रयोग आसानी से ले जाने वाली पानी की बोतल के रूप में किया जा सकता है।
(vi) जंगलों में लगभग सब कुछ उपलब्ध है-पत्तों को जोड़-जोड़कर ‘खाओ-फेंको’ किस्म के पत्तल और दोने बनाए जा सकते हैं।
(vii) सियादी की लताओं से रस्सी बनायी जा सकती है।
(viii) सेमूर (सूती रेशम) की काँटेदार छाल पर सब्जियाँ छीली जा सकती हैं।
(ix) महुए के पेड़ से खाना पकाने और रोशनी के लिए तेल निकाला जा सकता है।
प्रश्न 4. वैज्ञानिक वानिकी क्या है? इस पर एक टिप्पणी लिखिए। उत्तर― वैज्ञानिक वानिकी के अंतर्गत विविध प्रजाति वाले प्राकृतिक वनों को काट डाला गया। इनकी जगह सीधी पंक्ति में एक ही प्रजाति के पेड़ लगा दिए गए। इसे बागान कहा जाता है। वन विभाग के अधिकारियों ने जंगलों का सर्वेक्षण किया, विभिन्न किस्म के पेड़ों वाले क्षेत्र का आकलन किया और वन-प्रबंधन के लिए योजनाएँ बनायीं। उन्होंने यह भी तय किया कि बागान का कितना क्षेत्र प्रतिवर्ष काटा जाएगा। कटाई के बाद खाली हुई भूमि पर पुन: पेड़ लगाए जाने थे ताकि कुछ ही वर्षों में यह क्षेत्र दोबारा कटाई के लिए तैयार हो जाए।
प्रश्न 5. ‘अपराधी कबीलें किन्हें कहा जाता था और वे किन गतिविधियों में संलिप्त थे? उत्तर― नोमड एवं चरवाहा समुदाय के लोगों को अपराधी कबीले कहा जाता था जिन्हें लकड़ी चुराते हुए पकड़ा जाता था। वन प्रबंधन द्वारा लाए गए बदलावों के कारण नोमड एवं चरवाहा समुदाय लकड़ी काटने, अपने पशुओं को चराने, कंद-मूल एकत्र करने, शिकार एवं मछली पकड़ने से वंचित हो गए। ये सभी गैरकानूनी घोषित कर दिए गए। इसके परिणामस्वरूप अब ये लोग वनों से लकड़ी चुराने पर बाध्य हो गए। उन्हें शिकार करने, लकड़ी एकत्र करने और अपने पशु चराने देने के लिए वन-रक्षकों को घूस देनी पड़ती थी।
प्रश्न 6. ग्रामीणों एवं वन लगाने वालों में एक अच्छे जंगल पर क्या वैचारिक मतभेद थे? उत्तर― सन् 1865 में वन अधिनियम के लागू होने के बाद वन विभाग ऐसे पेड़ चाहता था जो भवन, समुद्री जहाज या रेलवे स्लीपर निर्माण के उपयुक्त हों। उन्हें ऐसे पेड़ चाहिए थे जो कठोर लकड़ी दे सकें और लंबे व सीधे हों। इसलिए टीक व साल के वृक्षों को प्रोत्साहन दिया गया और अन्य पेड़ों को काट दिया गया दूसरी ओर ग्रामीण अपनी विभिन्न आवश्यकताओं; जैसे कि ईंधन, भूसा व पत्तों की पूर्ति करने वाले मिश्रित प्रजाति के वन चाहते थे।
प्रश्न 7. जावा के कलंग कौन थे? वे इतने बहुमूल्य क्यों थे? उत्तर― जावा के कलंग कुशल वन काटने वाले और घुमंतू खेती करने वाले थे। वे इतने महत्त्वपूर्ण थे कि जब 1755 में जावा की माताराम रियासत का विभाजन हुआ तो 6000 कलंग परिवारों को दोनों राज्यों में बराबर-बराबर बाँट दिया गया। उनकी दक्षता के बिना सागौन की कटाई करके राजाओं के महल बनाना कठिन होता। जब अठारहवीं शताब्दी में डचों ने वनों पर नियंत्रण प्राप्त किया तो उन्होंने कलंगों को अपने अधीन करके उनसे काम लेने का प्रयास किया। 1770 में कलंगों ने जोआना में एक डच किले पर आक्रमण करके विरोध जताने की कोशिश की किन्तु इस विद्रोह को दबा दिया गया।
प्रश्न 8. बस्तर के लोगों के बारे में आप क्या जानते हैं? उत्तर― बस्तर में विभिन्न समुदाय निवास करते हैं जैसे कि मरिया और मुरिया, गोंड, धुरवा, भतरा और हलबा। ये अलग-अलग भाषाएँ बोलते हैं किन्तु इनके रीति-रिवाज एवं मान्यताएँ एक जैसे हैं। बस्तर के लोगों का विश्वास है कि प्रत्येक को “धरती माँ” द्वारा जमीन दी गई थी और बदले में । प्रत्येक खेतीहर त्योहार पर धरती को कुछ अर्पित कर इसकी देखभाल करते हैं। धरती के अलावा वे नदी, जंगल व पहाड़ों की आत्मा के प्रति भी आदर प्रकट करते हैं। क्योंकि हर गाँव को अपनी चौहद्दी पता होती है इसलिए ये लोग इन सीमाओं के भीतर समस्त प्राकृतिक संपदाओं की देखभाल करते हैं। गाँव के कुछ लोग अपने वनों के संरक्षण के लिए चौकीदार रखते और प्रत्येक घर उनको वेतन देने के लिए थोड़ा अनाज दान करता। प्रत्येक वर्ष एक बड़ी सभा का आयोजन किया जाता है जहाँ एक परगने (गाँवों का समूह) के गाँवों के मुखिया जुटते हैं और जंगल सहित सभी दूसरे जरूरी मुद्दों पर चर्चा करते हैं।
प्रश्न 9. औपनिवेशिक सरकार ने घुमंतू खेती पर प्रतिबंध क्यों लगाया? उत्तर― औपनिवेशिक सरकार ने घुमंतू खेती पर प्रतिबंध लगाया क्योंकि- (i) औपनिवेशिक सरकार घुमंतू खेती को वनों के लिए हानिकारक मानती थी। (ii) वे भूमि को रेलवे के लिए लकड़ी पैदा करने के लिए तैयार करना चाहते थे न कि खेती के लिए। (iii) उन्हें डर था कि जलाने की प्रक्रिया खतरनाक साबित हो सकती थी क्योंकि वह उनकी बहुमूल्य लकड़ी को भी जला सकती थी। (iv) घुमंतू खेती में सरकार के लिए कर की गणना कर पाना कठिन था। इसलिए सरकार ने घुमंतू खेती को प्रतिबंधित कर दिया।
प्रश्न 10. बस्तर के लोगों ने ब्रिटिश के विरुद्ध विद्रोह क्यों किया? उन्होंने अंग्रेजों के प्रति विद्रोह को किस प्रकार संगठित किया? उत्तर― औपनिवेशिक सरकार ने 1905 में जब जंगल के दो-तिहाई हिस्से को आरक्षित करने, घुमंतू खेती को रोकने और शिकार व अन्य उत्पादों के संग्रह पर पाबंदी लगाने जैसे प्रस्ताव रखे तो बस्तर के लोग परेशान हो गए। कुछ गाँवों को आरक्षित वनों में इस शर्त पर रहने दिया गया कि वे वन-विभाग के लिए पेड़ों की कटाई और ढुलाई का काम मुफ्त करेंगे और जंगल को आग से बचाएँगे। बाद में इन्हीं गाँवों को ‘वन ग्राम’ कहा जाने लगा। बाकी गाँवों के लोगों को बिना किसी सूचना या मुआवजे के हटा दिया गया। लंबे समय से गाँव वाले जमीन के बढ़े हुए लगान तथा औपनिवेशिक अधिकारियों के द्वारा बेगार और चीजों की निरंतर माँग से तंग आए हुए थे। इसके बाद पहले 1899-1900 में और फिर 1907-08 में भयानक अकाल पड़े जिन्होंने उनकी मुश्किलें बढ़ा दीं। वन-नीतियों का विरोध करने के लिए काँगेर वनों के धुरवा समुदाय के लोग विरोध करने की इस मुहिम में सबसे आगे थे क्योंकि आरक्षण सबसे पहले यहीं लागू हुआ था। •1910 में आम की टहनियाँ, मिट्टी के ढेले, मिर्च और तीर गाँव-गाँव चक्कर काटने लगे। • प्रत्येक गाँव ने इस बगावत के खर्चे में कुछ-न-कुछ मदद दी। • बाजार लूटे गए, अधिकारियों व व्यापारियों के घरों, स्कूलों और पुलिस थानों को लूटा व जलाया गया तथा अनाज का पुनर्वितरण किया गया।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. भारत में व्यावसायिक वानिकी कब और क्यों आई? इसे अम्ल में लाने पर इसने भारत के वनों में निवास करने वाले लोगों पर क्या प्रभाव डाला? उत्तर― अंग्रेजों को इस बात की चिंता थी कि स्थानीय लोगों द्वारा जंगलों का उपयोग व व्यापारियों द्वारा पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से जंगल नष्ट हो जाएंगे। इसलिए उन्होंने डायट्रिच ब्रैडिस नामक जर्मन विशेषज्ञ को इस विषय पर सलाह लेने के लिए बुलाया और उसे देश का पहला वन महानिदेशक नियुक्त किया। ब्रैंडिस ने अनुभव किया कि लोगों को संरक्षण विज्ञान में प्रशिक्षित करना और जंगलों के प्रबंधन के लिए एक व्यवस्थित तंत्र विकसित करना होगा। इसलिए ब्रैंडिस ने 1864 में भारतीय वन सेवा की स्थापना की और 1865 के भारतीय वन अधिनियम को सूत्रबद्ध करने में सहयोग दिया। नियम बनाए गए और इस तरह पूरी प्रणाली कानूनी रूप से बाध्यकारी बना दी गई। पेड़ों की कटाई और पशुओं को चराने जैसी गतिविधियों पर पाबंदी लगा दी गई ताकि लकड़ी के उत्पादन हेतु वनों को संरक्षित किया जा सके। यदि कोई इस तंत्र की अवमानना करके पेड़ काटते पाया जाता तो उसे सजा दी जाती। इम्पीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना 1906 में देहरादून में हुई। यहाँ जिस पद्धति की शिक्षा दी जाती थी उसे ‘वैज्ञानिक वानिकी’ कहा गया। वैज्ञानिक वानिकी में प्राकृतिक वनों में मौजूद विभिन्न प्रकार के पेड़ों को काट दिया गया। उनके स्थान पर एक ही प्रकार के पेड़ सीधी लाइन में लगाए गए। इन्हें बागान कहा जाता है। वन अधिकारियों ने जंगलों का सर्वेक्षण किया, विभिन्न प्रकार के पेड़ों के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र का आकलन किया और वन प्रबंधन के लिए कार्य-योजना बनाई। उन्होंने यह भी तय किया कि बागान का कितना क्षेत्र प्रतिवर्ष काटा जाए। इन्हें काटे जाने के बाद इनका स्थान “व्यवस्थित” वन लगाए जाने थे। कटाई के बाद खाली जमीन पर पुन: पेड़ लगाए जाने थे ताकि कुछ ही वर्षों में यह क्षेत्र पुनः कटाई के लिए तैयार हो जाए। भारतीय वन अधिनियम ने भारतीय वन के निवासियों के जीवन को कई प्रकार से प्रभावित किया― (i) उनके सभी दैनिक कार्य-अपने घरों के लिए लकड़ी काटना, अपने पशुओं को चराना, कंद-मूल एकत्र करना, शिकार एवं मछली पकड़ना-सभी गैरकानूनी हो गए।
(ii) अब लोग वनों से लकड़ी चुराने पर बाध्य हो गए, और यदि वे पकड़े जाते, तो वे वन संरक्षकों की दया पर होते थे जो उनसे रिश्वत वसूल करते थे।
(iii) पुलिस वाले एवं वन-रक्षक अपने लिए मुफ्त खाने की माँग करके लोगों को सताते।
(iv) सरकार ने घुमंतू या झूम खेती पर प्रतिबंध लगा दिया। वे इसे उपजाऊ भूमि की बरबादी समझते थे जो इसकी अपेक्षा रेलवे के लिए लकड़ी का उत्पादन करने के लिए प्रयोग की जा सकती थी।
(v) समुदायों को बलपूर्वक वनों में उनके घरों से विस्थापित कर दिया गया।
(vi) घुमंतू या झूम खेती करने वालों को अपने व्यवसाय बदलने पर मजबूर किया गया जबकि कुछ ने परिवर्तन का विरोध करने के लिए बड़े और छोटे विद्रोहों में भाग लिया।
प्रश्न 2. बस्तर के लोगों की अंग्रेजों की वन नीतियों के प्रति क्या प्रतिक्रिया थी? इसके क्या परिणाम निकले? उत्तर― बस्तर के लोग उस समय चिंतित हो उठे जब 1905 में औपनिवेशिक सरकार ने दो-तिहाई वनों को आरक्षित करने और घुमंतू खेती, शिकार और अन्य उत्पादों के संग्रह पर रोक लगाने का प्रस्ताव रखा। वन नीतियों का विराध करने के लिए कांगेर वन के धुरवा संप्रदाय ने इसमें पहल की जहाँ सबसे पहले क्रांति की शुरुआत हुई। •1910 में आम की टहनियाँ, मिट्टी का एक ढेला, लाल मिर्च और तीर गाँव-गाँव चक्कर काटने लगे। •प्रत्येक ग्रामीण ने इस बगावत के खर्चे में कुछ-न-कुछ मदद दी। •बाजार लूटे गए, अधिकारियों व व्यापारियों के घरों, स्कूलों और पुलिस थानों को लूटा व जलाया गया तथा अनाज का पुनर्वितरण किया गया। • जिन पर हमले हुए उनमें से अधिकतर लोग औपनिवेशिक राज्य और इसके दमनकारी कानूनों से किसी-न-किसी तरह जुड़े हुए थे। 1 औपनिवेशिक काल के वन प्रबंधन में आए परिवर्तनों ने इन समूहों को कैसे प्रभावित किया?Solution : घुमंतू और चरवाहा समुदायों को उनके दैनिक जीवन पर नए वन कानूनों का बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। वन प्रबंधन द्वारा लाए गए बदलावों के कारण नोमड एवं चरवाहा समुदाय के लोग वनों में पशु नहीं चरा सकते थे, कंदमूल व फल एकत्र नहीं कर सकते थे और शिकार तथा मछली नहीं पकड़ सकते थे। यह सब गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था।
औपनिवेशिक काल में वनों की कटाई क्यों की गई अथवा औपनिवेशिक काल में रेल लाइन का विकास क्यों किय गया?- रेल की पटरी हेतु स्लीपर बनाने के लिए वन विभाग पेड़ों को काटने और इनसे पटरे बनाने के लिए तो आदिवासियों को नियुक्त किया करता था लेकिन उनको अपने घर बनाने के लिए इन पेड़ों को काटने की अनुमति न थी । उन्नीसवीं सदी की शुरुआत तक इंग्लैंड में बलूत (ओक ) के जंगल लुप्त होने लगे थे।
बस्तर के औपनिवेशिक वन प्रबंधन क्या था?Solution : (i) बस्तर एवं जावा दोनों क्षेत्रों में वन अधिनियम लागू हुआ। इसमें वनों की तीन श्रेणियों में बाँटा गया आरक्षित, सुरक्षित प ग्रामीण वन वनो को राज्य के अंतर्गत लाया गया और ग्रामीणों के साथ-साथ चरवाहे और घुमंतू समुदाय के भी प्रवेश करने पर रोक लगा दी गई।
भारत में औपनिवेशिक शासन के दौरान वनों का विनाश अधिक क्यों हुआ कारण सहित विस्तृत उल्लेख कीजिए?(i) जनसंख्या में वृद्धि, भोजन की मांग में वृद्धि और वनों की कीमत पर खेती के तहत भूमि का विस्तार। (ii) अंग्रेजों द्वारा उपनिवेशीकरण ने व्यावसायिक फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहित किया। (iii) रेलवे के विस्तार और जहाज निर्माण के उद्देश्यों के लिए लकड़ी की बढ़ती माँग।
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