पानी गए न उबरे मोती मानुष चून ये पंक्ति किसकी है? - paanee gae na ubare motee maanush choon ye pankti kisakee hai?

रहिमन पानी राखिये

रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून।

पानी गए ऊबरै, मोती, मानुष, चून॥

रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयुक्त किया है। पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में 'विनम्रता' से है। मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होना चाहिए। पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं। तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है। रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे के बिना संसार का अस्तित्व नहीं हो सकता, मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है उसी तरह विनम्रता के बिना व्यक्ति का कोई मूल्य नहीं हो सकता। मनुष्य को अपने व्यवहार में हमेशा विनम्रता रखनी चाहिए।

स्रोत :

  • पुस्तक : रहीम ग्रंथावली (पृष्ठ 100)
  • रचनाकार : रहीम
  • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
  • संस्करण : 1985

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पानी गए न ऊबरे मोती मानुष चून किसकी पंक्ति है?

पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून॥ रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयुक्त किया है। पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में 'विनम्रता' से है। मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होना चाहिए।

पानी गए न ऊबरे मोती मानस चून पंक्ति में कौन सा अलंकार है?

मनुष्य के सन्दर्भ में आत्मसम्मान, मोती के सन्दर्भ में चमक या कान्ति, आटे के सन्दर्भ में जल। अतः यहाँ श्लेष अलंकार है।

रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून किसकी पंक्ति है?

इस दोहे में रहीमदास जी कहते है कि पानी को बचा के रखिए क्युकी बिना पानी के बिना सब सुना है, पानी के जाने से मोती अपनी चमक खो देता है,चुना सुख कर बेकार हो जाता है ठीक उसी प्रकार सम्मान के खो जाने से मनुष्य के जीवन का कोई अर्थ नहीं रह जाता है।