पारंपरिक ऊर्जा का स्रोत कौन सा है? - paaramparik oorja ka srot kaun sa hai?

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गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोत

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  • धरती के गर्भ में मौजूदकोयला, पेट्रोलियम, परमाणु ईंधन,गैस ये सभी समाप्तहोने वाले ऊर्जा स्त्रोत हैं इसलिए इन्हें परम्परागत ऊर्जा स्रोत कहा जाता है|
  • ऊर्जाआधुनिक समाज के विकास का आधार है | चूँकि उपरोक्त परम्परागत ऊर्जा स्रोत (कोयला, पेट्रोलियम, परमाणु ईंधन और प्राकृतिक गैस) तेजी से समाप्त हो रहे हैं और साथ ही इनके दहन और उपयोग से पर्यावरणीय क्षति होती है | इसलिए अब यह आवश्यक हो चला है कि देश की ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए देश में विद्यमान गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोतों की सम्भावनाओं को विकसित किया जाए | देश में गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोतों का विकास इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इनसे पर्यावरण विनाश नहीं होता |
  • ऊर्जा न केवल परम्परागत स्रोतों में विद्यमान है बल्कि प्रकृति में गैर-परम्परागत स्रोतों जैसे – पवन, सौर विकिरण, समुद्री लहरोंआदि में भी ऊर्जा की संभावना व्याप्त है | इस प्रकार कहा जा सकता है कि ऊर्जा प्रत्येक स्थान पर उपलब्ध है आवश्यकता है कि किस प्रकार से इसका समुचित दोहन किया जाये |
  • गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोतों के अन्तर्गत पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा, बायोगैस, ज्वारीय ऊर्जा, तरंग ऊर्जा और बायोमास ऊर्जा को शामिल किया जाता है | इसे नवीकरणीय अथवा अक्षय ऊर्जा (जो कभी समाप्त न हो) स्रोत भी कहते हैं |
  • देश में विद्यमान अक्षय ऊर्जा स्रोतों के विकास के लिए 1982 ई० में गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोत विभाग की स्थापना की गयी थी|
  • देश में गैर-परम्परागत ऊर्जा से संबंधित सभी मुद्दों पर देख-रेख करने के लिए एक पृथक मंत्रालय की स्थापना की गई है, जिसका नाम गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोत मंत्रालय है |
  • देश में गैर-परम्परागत ऊर्जा (Non-conventional Energy-NCE ) की कुल स्थापित क्षमता वर्ष 2019 तक80633 मेगावाट हो गयी है जो कि देश में विद्युत की कुल स्थापित क्षमता का 22% है |

सौर ऊर्जा

  • हमारेदेश में सौर ऊर्जा के विकास के लिए सर्वोत्तम दशाएंराजस्थानराज्य में हैं |
  • भारत के जलवायु अध्याय में बताया गया है कि मानसून का प्रभाव राजस्थान में नहीं पड़ता है|अतः राजस्थान में बादल नहीं बन पाते हैं जिससे राजस्थान में वर्षभर सूर्य की किरणें चमकती रहती हैं| यही कारण है कि सौर ऊर्जा के लिए आदर्श दशाएं राजस्थान राज्य में विद्यमान हैं |
  • देश में सौर ऊर्जा का उपयोग दो रूपों में किया जाता है –

(i)       सूर्य की ऊर्जा को सीधे बिजली में परिवर्तित करके

(ii)      सौरताप को भाप में परिवर्तित करके

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सौर ऊर्जा

  • सौर प्रकाश-वोल्टीय तकनीक(solar photovoltaic technology)अधिकाधिक क्षेत्र से सूर्य के प्रकाश को एकत्र कर विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित कर देता है |
  • Photovoltaic Cell को Solar Cell भी कहते हैं | जब कई सारे Soller cell को जोड़ दिया जाता है तोsolar panel का निर्माण होता है |
  • Photovoltaic Cell वास्तव में एक शुद्ध सिलिकॉन का टुकड़ा होता है जिसे सूर्य के प्रकाश के सम्पर्क में लाने पर विद्युत का निर्माण होता है |
  • विश्व में सिलिकॉन का प्रचुर भण्डार है | पृथ्वी का क्रस्ट लगभग 30 किमी०मोटा है | क्रस्ट में कमश: आक्सीजन, सिलिका, एल्यूमिनियम तथा लोहासर्वाधिक मात्रा में पाया जाता है |
  • पृथ्वी के क्रस्ट में आक्सीजन के पश्चात् सिलिका सर्वाधिक मात्रा में पाया जाता है| अत: सिलिका के प्रचुरता के कारण बड़े मात्रा में Photovoltaic Cell का निर्माण किया जाता सकता है |
  • देश के विभिन्न क्षेत्रों में सौर ऊर्जा की बड़ी संभावना है|देश में सौर ऊर्जा का विकास करने के लिए 2010 में एक कार्यक्रम जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन(JNNSM)की शुरूआत की गयी थी |
  • जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन के अन्तर्गत 13वीं पंचवर्षीय योजना के अन्त तक अर्थात् 2022 तक 20 हजार मेगावाट सौरविद्युत उत्पादन करने का लक्ष्य रखा गया है | इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए देश में अनेक सोलर वैलियों का निर्माण किया जा रहा है |
  • सोलर वैली ऐसा औद्योगिक क्षेत्र है जिसमें ऊर्जा के रूप में केवल सौर ऊर्जा का निर्माण और उपयोग किया जायेगा |

पवन ऊर्जा

  • पवनों के निरन्तर प्रवाह के कारण उनमें गतिज ऊर्जा पायी जाती है |देश में गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोतों की कुल स्थापित क्षमता में सबसे बड़ा हिस्सापवन ऊर्जा का है |
  • पवन ऊर्जा के उत्पादन के मामले में भारत का विश्व में चौथा स्थान है| इसमें शीर्षस्थानपर क्रमश:चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और जर्मनी का स्थान है|
  • देश में शीर्ष पवन ऊर्जा उत्पादक राज्य तमिलनाडु है |
  • देश में तटीय राज्यों में पवन ऊर्जा के विकास की पर्याप्त संभावना है | तटीय क्षेत्रों में पवन ऊर्जा की संभावना इसलिए है क्योंकि यहां पवन निर्बाध रूप से निरंतर प्रवाहित होती रहती है |
  • भारत में तटीय क्षेत्रों में वायु की गति लगभग 10 किमी/घंटा होती है| ऐसे क्षेत्रों में प्रमुख रूप से गुजरात, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, उड़ीसा,आन्ध्र प्रदेश इत्यादि का विशेष स्थान है |

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पवन ऊर्जा

  • तटीय क्षेत्रों में पवन ऊर्जा का दोहन करने के लिए जगह-जगह पवन चक्कियांलगाई गई हैं |
  • तमिलनाडु में कन्याकुमारी के समीप मुप्पंडल नामक स्थान पर सर्वाधिक पवन चक्कियां लगाई गई हैं | वास्तव में यह एशिया का सबसे बड़ा पवन फॉर्म समूह है|इसी प्रकार गुजरात में माण्डवी सबसे बड़ा पवन ऊर्जा का केन्द्र है |

Note-      उपरोक्त विषय में प्रस्तुत आंकड़े वर्ष 2020 में वास्तविक आंकड़ो पर आधारित हैं इसलिए विश्वसनीय हैं |

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परंपरागत ऊर्जा का स्रोत क्या है?

परंपरागत ऊर्जा के स्रोत: जलावन, उपले, कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस और बिजली। गैर परंपरागत ऊर्जा के स्रोत: सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, बायोगैस और परमाणु ऊर्जा

पारंपरिक स्रोत का दूसरा नाम क्या है?

चूँकि ये ईंधन पादप एवं जंतु उत्पाद हैं, अतः इन ईंधनों के स्रोत को हम जैव - मात्रा कहते हैं । परंतु ये ईंधन अधिक ऊष्मा उत्पन्न नहीं करते तथा इन्हें जलाने पर अत्यधिक धुआँ निकलता है इसीलिए, इन ईंधनों की दक्षता में वृद्धि के लिए प्रौद्योगिकी का सहारा आवश्यक है

पारंपरिक और गैर पारंपरिक ऊर्जा स्रोत क्या हैं?

ऊर्जा के पारंपरिक और गैर-पारंपरिक स्रोत | Conventional and Non-Conventional Sources of Energy. 1. पेट्रोलियम- पेट्रोलियम का निर्माण करोड़ों वर्षों तक जीव-जंतुओं और जीवाश्मों की चट्टानों के नीचे दबने से होता है। भारत में पेट्रोलियम का सीमित भंडार है