परशुराम ने स्वयं की बढ़ाई का बखान करते हुए क्या क्या कहा? - parashuraam ne svayan kee badhaee ka bakhaan karate hue kya kya kaha?

वेबडेस्क। हिन्दू संस्कृति में जिन दशावतारों का वर्णन है उनमें से छटवॉ अवतार भगवान श्री परशुराम जी के जन्म दिन के रूप में भी अक्षय तृतीया को सारे देश में मनाया जाता है। अक्षय का अर्थ है जिसका कभी नाश न हो स्थायी वही रह सकता है। जो सर्वदा सत्य हो। सत्य केवल परमात्मा है श्री परशुराम जी ही अक्षय है और आज भी जीवित है। युग का प्रारंभ अक्षय तृतीया से होता है युग का परिवर्तन हमेशा अक्षय तृतीया पर होता है सृष्टि के प्रारंभ से आज तक 7 लोग अश्वत्थामा, बलि, ब्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य तथा परशुराम ऐसे हुए हैं जिन्होंने अपने शरीर का त्याग नहीं किया है हैहयवंश का क्षत्रिय राजा सहस्त्रार्जुन ने अनेको प्रकार की सेवा सुश्रुषा करके भगवान दत्तात्रेय जी को प्रसन्न करके उनसे एक हजार भुजायें, शारीरिक बल, अतुल सम्पत्ति प्राप्त कर लिये थे।

सहस्त्रार्जुन शक्ति समपन्न होकर प्रभुता के मद में देवताओं और ऋषियों पर अत्याचार करता था। सम्पूर्ण पृथ्वी क्षत्रिय, सहस्त्रार्जुन और उसके दस हजार अत्याचारी पुत्रों के अत्याचार से त्रस्त थी पीडित पृथ्वी तथा ऋषियों ने भगवान विष्णु से सहस्त्रार्जुन को रोकने के लिये प्रार्थना की तब भगवान विष्णु ने जमदग्नि के पुत्र के रूप में माता रेणुका के गर्भ से परशुराम जी के रूप में जन्म लिया। मध्यकाल के सूर्य की प्रचण्ड किरणों जैसी आभा वाले भगवान श्री परशुराम शंकर के परम शिष्य है जिनके विशाल वक्षस्थल पर यज्ञोपवीत शोभायमान है और कांधों पर शत्रु विनाशक धनुष एवं तरकश सुशोभित है वे अपने एक हाथ में शास्त्र एवं दूसरे हाथ में शस्त्र के रूप में अत्यंत तीक्ष्ण धार वाला परशु (फरसा) लिये हुये हैं।

भगवान परशुराम ने श्रीराम को विष्णु धनुष प्रदान किया जिससे वह रावण जैसे आतातायी का संहार कर सकें। भगवान कृष्ण को सुदर्शन चक्र भी श्री परशुराम जी द्वारा प्रदत्त है अस्त्रविद्या आशुतोष महादेव ने सिखाई और परशु विद्या श्री गणेश ने परशुराम जी से सत्य की रक्षा के लिये क्रोध आवश्यक है बाली और रावण के विनाश में यही नीति राम के काम आयी थी। परशुराम की ब्रह्म निष्ठ वीरता का संदेश कृष्ण ने गीता में अर्जुन को दिया। भगवान कृष्ण भी जरासंघ के भय से भगवान परशुराम की शरण में गये। ब्रह्मा जी के सात मानस पुत्रों में प्रमुख महर्षि भृगू के चार पुत्र धाता, विधाता, च्यवन और शुक्राचार्य तथा पुत्री लक्ष्मी हुई। च्यवन के पुत्र मौर्य तथा मौर्य के पुत्र ऋचीक हुए महर्षि जमदग्नि इन्हीं ऋचीक के पुत्र थे इनका विवाह महाराजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका से हुआ था। माता रेणुका ने पांच पुत्रों को जन्म दिया था जिनके नाम रूमणमान, सुषेण, बसु, विश्वावसु तिा राम रखे गए।

राम यानी परशुधारी राम जब विष्णु ने परशुराम के रूप में अवतार लिया तो लक्ष्मी पृथ्वी के रूप में उनके साथ रही। तेजस्वी परशुराम यज्ञोपवीत संस्कार के बाद शिवजी की अर्चना के लिये हिमालय में अलकनंदा गंगा के किनारे चले गए। शिव ने प्रसन्न होकर शस्त्र, शास्त्र में पारंगत होकर सदा विजयी होने का आर्शीवाद दिया शंकर जी ने उन्हें अस्त्र, शस्त्रों का प्रयोग संहार-उपसंहार की विधि मंत्र सहित प्रदान की। विजया नामक धनुष, अभेद्य कवच अश्वों से युक्त रथ, अक्षय तरकश देते हुये कहॉ ''इससे युद्ध भूमि में तुम्हारी पराजय कदापि संभव नही इच्छानुसार तुम्हारी शक्ति की वुद्धि होती रहेगी'' भीष्म, द्रोण व कर्ण ने भी शस्त्र विद्या का प्रशिक्षण परशुराम जी से लिया था

परशुराम जी किसी जाति के विरोधी नही थी। बल्कि वह असत्य और दुर्गुणो के विरोधी थे। यही कारण था की जब कर्ण के जाति संबंधी असत्य के बारे में जानकारी मिली तो उन्होने उसे श्राप दिया कि ''यह विद्या तुम अपने संकट काल में भुल जाओगे और महाभारत के समय में ऐसा हुआ भी था। भगवान राम के द्वारा सीता स्वयंवर के समय धनुष तोडा गया तब भगवान परशुराम क्रोध में इसलिये प्रगट हुये क्योंकि यह धनुष स्वंय परशुराम द्वारा त्यागा गया शिवजी का धनुष था। जनक की सभा में राम के सत्य को पहचानते ही धनुष तोडने वाले राम से भेंट के उपरांत उन्होंने अपना फरसा भी त्याग कर तपस्या में लीन हो गये। अपने जीवन में उन्होंने केवल राम का ही लोहा माना।

क्षत्रिय राजा सहस्त्रार्जुन मद में अंधा होकर एक बार वह महर्षि जगदग्नि के आश्रम में आया और उनकी कामधेनु छीनकर अपने साथ ले गया क्रोधित जमदग्नि ने राजा सहस्त्रार्जुन का वध कर दिया और कामधेनु लेकर वापिस आ गये। प्रतिकार स्वरूप सहस्तत्रार्जुन के दस हजार पुत्रों ने जमदग्नि की हत्या कर दी थी। परशुराम ने प्रतिकार स्वरूप राजा सहस्त्रार्जुन के दस हजार पुत्रों की हत्या कर दी थी। इस क्रम में उन्होंने 21 बार शत्रुओं से युद्ध किया। परशुराम जी ने आतातायी राजाओं को मारकर जो पृथ्वी जीती थी उसे ऋषि कश्यप को दान में दे दी और स्वंय महेन्द्र पर्वत पर चले गये। परशुराम ने ब्रहम्मणों तथा सभी जातियों, धर्मों के लोगों को यह शिक्षा दी थी। ''शास्त्रों के अध्ययन के साथ स्वाभिमान की रक्षा और देत्यों के दमन के लिये शस्त्र उठाने का साहस भी स्वंय में पैदा करना होगा'' भगवान परशुराम ने समयानुकूल उत्कृष्ट आचरण का आदर्श स्थापित किया वह युगो-युगों तक मानव मात्र को प्रेरणा देता रहेगा।

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क्षितिज – काव्य खंड – राम लक्ष्मण परशुराम संवाद

पेज नम्बर : 14  प्रश्न अभ्यास

प्रश्न 1. परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए?

उत्तर – धनुष टूटने पर जब परशुराम ने क्रोध प्रकट किया, तब लक्ष्मण ने निम्नलिखित तर्क दिए

  • हम तो इस धनुष को अन्य धनुषों के समान साधारण धनुष समझ रहे थे।
  • मेरी समझ के अनुसार तो सभी धनुष एक समान ही होते हैं।
  • यह धनुष तो पुराना होने के कारण श्रीराम के छूने मात्र से ही टूट गया। इसमें उनका कोई दोष नहीं।
  • हम धनुष को तोड़ने में लाभ-हानि नहीं देखते। इसमें श्री रामचंद्र जी का कोई दोष नहीं है।
  • बचपन में हमसे कितने धनुष टूटे, परंतु आपने उन पर कभी क्रोध नहीं किया। इस विशेष धनुष पर आपकी क्या ममता है?

प्रश्न 2. परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं, उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – राम स्वभाव से कोमल और विनयी हैं। उनके मन में बड़ों के प्रति श्रद्धा और आदर है। वे गुरुजनों के सामने झुकना अपना धर्म समझते हैं। वे महाक्रोधी परशुराम के क्रुद्ध होने पर भी स्वयं को उनका दास कहते हैं। इस प्रकार वे परशुराम का दिल जीत लेते हैं। लक्ष्मण राम से एकदम विपरीत हैं। वे बहुत उग्र और प्रचंड हैं। उनकी जुबान छुरी से भी अधिक तेज है। वे व्यंग्य-वचनों से परशुराम को छलनी-छलनी कर देते हैं। उनकी उग्रता और कठोर वचनों को सुनकर न केवल परशुराम भड़क उठते हैं बल्कि अन्य सभाजन भी उन्हें अनुचित कहने लगते हैं। वास्तव में राम छाया है तो लक्ष्मण धूप। राम शीतल जल हैं तो लक्ष्मण आग।

प्रश्न 3. लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।

उत्तर – मेरे अनुसार लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का सबसे अच्छा अंश निम्नलिखित है:

लक्ष्मणः हे मुनि! धनुष तोड़ने में हम किसी लाभ-हानि की चिंता नहीं करते। और यह धनुष तो छूते ही स्वयं टूट गया अतः आपका हम पर क्रोध करना सर्वथा अनुचित है।

परशुराम: हे दुष्ट बालक! तू मुझसे तथा मेरे स्वभाव से परिचित नहीं है। मैं अत्यंत क्रोधी हूँ। मैं अब तक तूझे बालक मानकर ही तेरा वध नहीं कर रहा हूँ। और तू मुझे सिर्फ एक साधारण मुनि समझता है।

लक्ष्मण: हे मुनि! आप स्वयं को बहुत योद्धा मान रहे हैं। और मुझे बार-बार अपना फरसा दिखाकर डराने का प्रयत्न कर रहे हैं। आप फूंक से पहाड़ उड़ाना चाहते हैं। हम भी कुम्हड़ा के बतिया के समान कोमल बालक नहीं है जो आपकी धमकियों से डर जाएँगे। आपके वचन ही अत्यंत कठोर हैं आपको धनुष-बाण और फरसे की कोई जरूरत नहीं।

प्रश्न 4. परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए –

बाल ब्रह्मचारी अति कोही, विस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।

भुजबल भूमि भूप विनु कीन्ही। विपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।

सहसवाहुभुज छेदनिहारा। परसु विलोकु महीपकुमारा।।

मातु पितहि जनि सोचवस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।
उत्तर – परशुराम ने अपने विषय में चौपाई में कहा- मैं, बाल ब्रह्मचारी और स्वभाव से प्रचंड क्रोधी हूँ। मैं क्षत्रिय कुल का विश्व प्रसिद्ध घोर शत्रु हूँ। मैंने अपने भुजबल से अनेक बार पृथ्वी को राजाओं से रहित कर दिया है। मैंने अनेक बार पृथ्वी को जीतकर उसे ब्राह्मणों को दान में दे डाला। मेरा फरसा बड़ा भयानक है। अतः हे राजकुमार (लक्ष्मण)! सहस्र भुजाओं को काटने वाले मेरे इस फरसे को देख। मेरा फरसा बहुत ही भयानक है। हे राजकुमार लक्ष्मण! तू मुझसे भिड़कर अपने माता-पिता को चिंता में मत डाल! अर्थात् अपनी मृत्यु को बुलावा मत दे क्योंकि मेरा यह भयंकर फरसा गर्भों में पल रहेशिशुओं तक का नाश कर चुका है।


प्रश्न
5. लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताई?


उत्तर –
लक्ष्मण ने किसी भी वीर योद्धा की विशेषताओं के बारे में कहा था कि – वीर योद्धा व्यर्थ ही अपनी वीरता की डींगे नहीं हाँकते बल्कि युद्ध भूमि में युद्ध करते हैं। अपने अस्त्र-शस्त्रों से वीरता के जौहर दिखाते हैं। शत्रु को सामने पाकर जो अपने प्रताप की बातें करते हैं वो तो कायर होते हैं।


प्रश्न 6. साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने विचार लिखिए।

उत्तर – साहस और शक्ति मानव मात्र के लिए सद्गुण हैं जो अत्यंत आवश्यक हैं। अगर इनके साथ विनम्रता का मिलन हो जाए तो क्या कहना। अक्सर साहस और शक्ति के प्रदर्शन में विनम्रता छूट जाती है। इसे साहस और शक्ति का विरोधी मान लिया जाता है परंतु वास्तविकता इसके विपरीत है। साहस और शक्ति विनम्रता के साथ ही प्रशंसनीय हैं।

प्रश्न 7. भाव स्पष्ट कीजिए-


(क) बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।

पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन पूँकि पहारू।।

(ख) इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं, जे तरजनी देखि मरि जाहीं।।

देखि कुठारू सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।

(ग) गाधिसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।

अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

उत्तर –

(क) लक्ष्मण हँसकर कोमल वाणी में बड़बोले परशुराम से बोले- अहो मुनिवर! आप तो माने हुए महायोद्धा निकले। आप मुझे बार-बार कुल्हाड़ी इस प्रकार दिखा रहे हैं मानो फूंक मारकर पहाड़ उड़ा देंगे। आशय यह है कि परशुराम का गरज-गरजकर अपनी वीरता का गुणगान करना व्यर्थ है। उनकी वीरता खोखली है। उसमें कोई सच्चाई नहीं।

(ख) कवि ने परशुराम के झूठे अभिमान को काव्य रूढ़ि के माध्यम से स्पष्ट किया है। समाज में पुरानी युक्ति है कि कुम्हड़े के छोटे फल की ओर तर्जनी अंगुली से संकेत करने भर से वह मर जाता है। लक्ष्मण कुम्हड़े के कच्चे फल जैसे कमजोर नहीं थे जो परशुराम की धमकी मात्र से भयभीत हो जाते। लक्ष्मण ने यदि उनसे अभिमानपूर्वक कुछ कहा था तो वह उनके अस्त्र-शस्त्र और फरसे को देखकर कहा था।

(ग) प्रस्तुत काव्यांश का भाव है कि जिस प्रकार सावन के अंधे को चारों ओर हरा-ही-हरा दिखाई देता है, वैसे विजय के मद में चूर व्यक्ति को सभी वीर योद्धा तुच्छ और निर्बल नजर आते हैं। परिणामस्वरूप वह अपने से ताकतवर शत्रु को पहचान कर भी नहीं पहचान पाता है।

प्रश्न 8. पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।

उत्तर – तुलसीदास के पठित पाठ के आधार पर उनकी भाषागत विशेषताओं पर दस पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं-

(1) तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में अवधी भाषा का प्रयोग किया है।

(2) कवि ने दोहा-चौपाई छंद का सुंदर प्रयोग किया है।

(3) दो चौपाइयों के बाद एक दोहे का क्रम अत्यंत सुंदर बन गया है।

(4) भाषा में व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग सुंदर है।

(5) भाषा अलंकारों से सुसज्जित है।

(6) छंद में मात्राओं के बंधन का पूरा निर्वाह हुआ है।

(7) गेयता का गुण विद्यमान है।
(8) संवादात्मक शैली होने के कारण प्रस्तुत पठित अंश में नाटकीयता का समावेश है।

(9) ओजगुण एवं वीर रस है।
(10) भाषा विषयानुरूप, अर्थगांभीर्य युक्त एवं प्रभावशाली है।


प्रश्न 9. इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर–  प्रस्तुत पद के अध्ययन से पता चलता है कि लक्ष्मण के कथन में गहरा व्यंग्य छिपा हआ है। लक्ष्मण परशुराम से कहते हैं। कि बचपन में हमने ऐसे कितने ही धनुष तोड़ डाले तब किसी ने कोई क्रोध नहीं किया। श्रीराम ने तो इस धनुष को छुआ ही था कि यह टूट गया। परशुराम की डींगों को सुनकर लक्ष्मण पुनः कहते हैं कि हे मुनि, आप अपने आपको बड़ा भारी योद्धा समझते हैं और फूंक मारकर पहाड़ उड़ाना चाहते हैं। हम भी कोई कुम्हड़बतिया नहीं कि तर्जनी देखकर मुरझा जाएंगे। आप ये धनुष-बाण व्यर्थ ही धारण किए हुए हैं क्योंकि आपका तो एक-एक शब्द करोड़ों वज्रों के समान है। लक्ष्मण जी व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि आपके रहते आपके यश का वर्णन भला कौन कर सकता है? शूरवीर तो युद्ध क्षेत्र में ही अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हैं तथा कायर अपनी शक्ति का बखान किया करते हैं। परशुराम के शील पर पुनः व्यंग्य करते हुए लक्ष्मण जी कहते हैं कि आपके शील को तो पूरा संसार जानता है। आप तो केवल अपने घर में ही शूरवीर बने  फिरते हैं, आपका किसी योद्धा से पाला नहीं पड़ा।

प्रश्न 10. निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लाखए।


(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।

(ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।

(ग ) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा।
बार बार मोहि लागि वोलावा।

(घ) लखन उत्तर आहुति सरिस भृगुवरकोपु कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु॥


उत्तर –
(क) ‘ब’ और ‘ह’ की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है – (वज्र के समान वचन।)


(ख) उपमा – कोटि कुलिस

अनुप्रास – कोटि कुलिस।


(ग) उत्प्रेक्षा – तुम मानो काल को हाँक कर ला रहे हो।

पुनरुक्ति प्रकाश – बार-बार।


(घ) उपमा – लखन उत्तर आहुति सरिस

जल सम वचन। (वचन जल के समान)

रूपक – भृगुबर कोपु कृसानु (क्रोध रूपी आग)

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 11. “सामाजिक जीवन में क्रोध की जरूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो, तो मनुष्य दूसरे के द्वारा पहुँचाए जाने वाले बहुत-से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।” आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात को पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव के लिए नहीं होता, बल्कि कभी-कभी सकारात्मक भी होता है। इसके पक्ष या विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिए।

उत्तर

पक्ष– जीवन में अपने अधिकारों की माँग के लिए क्रोध बहुत ज़रूरी है। इससे अन्याय का मुकाबला किया जा सकता है। क्रोध भी एक भाव है जिसका उचित अवसर पर प्रयोग सकारात्मक होता है। किसी के प्रति अन्याय को रोकना या अपने अधिकार के लिए क्रोध करना क्रोध का सकारात्मक रूप है।

विपक्ष – ज़रूरी नहीं कि क्रोध धारण कर के ही अपने अधिकारों की माँग पूरी होती हो। कभी-कभी शांत स्वभाव भी व्यक्ति को उसके अधिकार दिलाने में सहायक होता है। क्रोध एक अवगुण है। यह विवेक के नाश का कारण माना जाता है। क्रोध एक ऐसा शत्रु है, जो मनुष्य को नष्ट कर देता है। यह शरीर और मन को बुरा बना देता है। क्रोध में आकर व्यक्ति अन्याय भी कर देता है। क्रोध मनुष्य को अहंकारी बना देता है।

प्रश्न 12. संकलित अंश में राम का व्यवहार विनयपूर्ण और संयत है, लक्ष्मण लगातार व्यंग्य वाणों का उपयोग करते हैं और परशुराम का व्यवहार क्रोध से भरा हुआ है। आप अपने आपको इस परिस्थिति में रखकर लिखें कि आपका व्यवहार कैसा होता।

उत्तर (i) राम के रूप में मेरा व्यवहार– संकलित अंश में प्रस्तुत परिस्थितियों में मेरा व्यवहार निश्चित रूप से नम्रतापूर्ण व अनुशासित होता। मैं अपने भाई को भी समझाता कि बड़ों के साथ मर्यादा में रहकर बातें करनी चाहिए। मैं उस तथ्य को स्वीकार करता, जिसके फलस्वरूप परशुराम क्रोधित हो रहे थे। बड़ों का सम्मान करना मेरा पुनीत कर्तव्य है। मैं अपने छोटे भाई को भी समझाता कि बड़ों का सम्मान करना चाहिए।

(ii) लक्ष्मण के रूप में मेरा व्यवहार– लक्ष्मण के रूप में मेरा व्यवहार न तो बहुत विनयपूर्ण होता और न ही व्यंग्यपूर्ण। मैं मध्यम मार्ग अपनाकर अपने विचार रखता। मैं उस प्रसंग को ध्यान में रखता, जिसके फलस्वरूप शिव धनुष तोड़ा गया। मैं विनयपूर्वक अपना पक्ष उनके सामने रखता। बड़ों के साथ सम्मान से बातें करना अच्छी बात है। हर स्थान पर ईंट का जवाब पत्थर नहीं होता है। मैं उनसे व्यंग्यपूर्ण बातें नहीं करता, व्यंग्यपूर्ण व्यवहार अपमानजनक होता है। । मैं परशुराम के श्रद्धेय व्यक्तित्व को नकारता नहीं।

(iii) परशुराम के रूप में मेरा व्यवहार– अपने इष्ट की प्रिय वस्तु के टूट जाने पर मुझे क्रोध अवश्य आता, परंतु मैं उस क्रोध की अभिव्यक्ति मर्यादा में रहकर करता क्योंकि मेरे विचार में मर्यादाएँ केवल छोटों के लिए ही नहीं बड़ों के लिए भी आवश्यक हैं। अतः मर्यादित आचरण करके पहले मैं उस तथ्य का पता लगाता, जिसके कारण शिव धनुष-खंडन की घटना घटित हुई। यह विचार करके कि धनुष का टूटना एक शुभ घटना थी और धनुष का खंडन करने वाले स्वयं विष्णु के अवतार श्री राम थे, मैं श्री राम का सम्मान करता और उनको शुभकामनाएँ देता। ये शुभकामनाएँ इसलिए भी होती कि उन्होंने धनुष का खंडन करके राजा जनक को पुत्री के विवाह की चिंता से मुक्त कर दिया था।


प्रश्न 13. अपने किसी परिचित या मित्र के स्वभाव की विशेषताएँ लिखिए।


उत्तर
– मेरे एक परिचित बहुत ही सुशील व विनम्र हैं। वे सदा सबकी सहायता करने के लिए तैयार रहते हैं। वे अपने माता-पिता व बड़ों का सम्मान करते हैं, उनके द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करते हैं। अपने साथियों के साथ मिल-जुलकर रहते हैं। गरीबों तथा अनाथों के लिए उनके मन में दयाभाव है। वे हमेशा उनकी मदद करने के लिए तैयार रहते हैं। उनमें स्वाभिमान कूट-कूटकर भरा हुआ है।
प्रश्न 14. दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए-इस शीर्षक को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखिए।

उत्तर – एक बच्ची-विल्मा रुडोल्फ़ का जन्म टेनेसस के एक गरीब परिवार में हुआ। 14 साल की उम्र में वह पोलियों का शिकार हो गई। डॉक्टरों ने उसे यहाँ तक कह दिया कि वह जिंदगी भर चल-फिर नहीं सकेगी, किंतु वह कुशल धाविका बनना चाहती थी। डॉक्टरों के मना करने पर भी उसने ब्रेस को उतारकर पहली दौड़ प्रतियोगिता में भाग लिया, किंतु वह सबसे पीछे रही। उसके बाद दूसरी-तीसरी अन्य दौड़ प्रतियोगिताओं में सबसे पीट रही, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। वह अपनी त्रुटियों को दूर करती रही और सन् 1960 के ओलंपिक में वह दुनिया की सबसे तेज़ धाविका बनी।

प्रश्न 15. उन घटनाओं को याद करके लिखिए, जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।


उत्तर
– (i) हमारे पड़ोस में एक परिवार रहता है। पिता तो अपने काम में व्यस्त रहते हैं। माँ बच्चों की देखभाल तथा घर का सारा काम करती हैं। दिनभर की थकी माँ जब रात को आराम करने लगतीं, तो पिता किसी-न-किसी बात पर झगड़ा कर देते। बच्चे सहम जाते। एक दिन उनके बेटे ने मुझसे कहा कि वह ढंग से पढ़ नहीं पाता। पिता जी बिना किसी कारण माँ से झगड़ने लगते हैं। मैंने उसे समझाया कि तुम अपने पिता से अकेले में बात करके देखो। बेटे ने पिता से कहा कि वे माँ पर अत्याचार न करें। इसका उसपर बुरा असर पड़ रहा है। यदि पिता नहीं माने, तो वह घर छोड़कर चला जाएगा। यह सुनकर उसके पिता स्तब्ध रह गए। फिर उन्होंने कभी अपनी पत्नी पर अत्याचार नहीं किया।


(ii) मेरे मित्र के घर जो लड़की काम करती है, उसके साथ बुरा व्यवहार किया जाता था। उसे खाने में रूखा-सूखा तथा बचा हुआ खाना दिया जाता था। उसे आदेश दिया गया था कि वह काम समाप्त कर ज़मीन पर बैठेगी, चाहे सर्दी हो या गरमी। उसके खाने के बरतन भी अलग रखे हुए थे। जब भी मैं उसके घर जाता, मुझे बहुत अजीब लगता था।जो सबके लिए खाना बनाती है, घर का सारा काम करती है; उसके प्रति नफ़रत की भावना क्यों? मैंने अपने मित्र से बात की। उसे समझाया कि हमें गरीबों पर अत्याचार नहीं करना चाहिए। धीरे-धीरे उसने अपने घर के बड़ों को समझाया। कभी-कभी उसे विरोध भी करना पड़ा। आज वह लड़की परिवार के एक सदस्य की तरह सुख से रह रही है।


प्रश्न 16. अवधी भाषा आज किन-किन क्षेत्रों में बोली जाती है?

उत्तर – अवधी भाषा प्रचलित रूप से आजकल लखनऊ, अयोध्या, फैजाबाद, सुलतानपुर, प्रतापगढ़, इलाहाबाद, जौनपुर, मिर्जापुर, फतेहपुर तथा आस-पास के क्षेत्रों में बोली जाती है।

Mrs. Shilpi Nagpal is a post-graduate in Chemistry and an experienced tutor who has been teaching students since 2007. She specialises in tutoring science subjects for students in grades 6-12. Mrs. Nagpal has a proven track record of success, and her students have consistently achieved better grades and improved test scores. She is articulate, knowledgeable and her passion for teaching shines through in her work with students.

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