पूर्वांचल रचना किस कवि ने लिखा है - poorvaanchal rachana kis kavi ne likha hai

प्रसिद्ध साहित्यकार व कवि डॉ. केदारनाथ सिंह के निधन की खबर से काशी का भी साहित्य जगत शोकाकुल हो गया। डॉ. सिंह का बनारस से गहरा संबंध था। उनकी पढ़ाई-लिखाई इसी शहर में हुई। लेखकों और साहित्यकारों से उनके गहरे संबंध थे।

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प्रसिद्ध कवि ज्ञानेंद्रपति ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि कवि केदारनाथ सिंह का निधन हिन्दी के सर्वाधिक महत्वपूर्ण और लोकप्रिय कवि का जाना है लेकिन उनकी याद अपनी कृतियों में हमेशा के लिए बनी रहेगी। केदार जी अज्ञेय संपादित ‘तीसरा सप्तक’ के प्रमुख  कवि थे और नई कविता आंदोलन में उन्होंने अग्रगामी भूमिका निभाई। बाद की कविता, जिसे युवा कविता भी कहा गया, उसके प्रमुख कवि के रूप में उन्हें याद रखा जाएगा। उनकी कविता में गांव की मिट्टी की सोंधी गंध मिलती है, साथ ही प्रगतिशील आधुनिकता के तत्व भी। 

बीएचयू में भोजपुरी अध्ययन केंद्र के समन्वयक प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि डॉ. केदारनाथ सिंह ने अपनी कविता से बनारस को हिन्दी जगत में प्रसिद्धि प्रदान की। उनकी कविताओं में भोजपुरी के शब्द मिलते हैं। उनके निधन से जो रिक्तता हुई है, वह कभी नहीं भर पाएगी। 

यूपी कालेज में हिन्दी के पूर्व विभागाध्यक्ष डा. रामसुधार सिंह ने बताया कि कालेज से डॉ. केदारनाथ सिंह का गहरा सम्बन्ध था। जब  भी बनारस आते तो यूपी कॉलेज में उनका आना जरूर होता था। दिल्ली में रहते हुए भी वह अपनी जमीन से जुड़े रहे। उनकी कविताओं में पूर्वांचल के माटी की सुगंध मिलती है। उनका जाना पूर्वांचल की अपूरणीय क्षति है। 

प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. जितेंद्रनाथ मिश्र ने कहा कि केदारनाथ सिंह नई कविता के प्रसिद्ध कवि थे। छंद और मुक्त छंद, दोनों पर उनका समान अधिकार था। पिछले 50 वर्षों में कविता में जितने भी आंदोलन हुए, सब में उनका दखल था। 

लेखिका डा. नीरजा माधव ने उनके संस्मरणों को साझा करते हुए कहा कि डॉ. केदारनाथ सिंह से उनकी पहली मुलाकात साहित्यकार डॉ. बच्चन सिंह के रथयात्रा स्थित ‘निराला निवेश’ में हुई। उसके बाद दूरदर्शन एवं कई अन्य साहित्यिक कार्यक्रमों में उनसे भेंट होती रही। उनसे लगाव का एक विशेष कारण था। उनके चेहरे में अपने पिता की झलक दिखाई देती थी। उनका जाना एक पिता  के जाने जैसा दुख देने वाला है। स्नेह की मूर्तिमान छवि और अपने समय के श्रेष्ठ कवि के स्थान को शायद ही कोई भर सके।

महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में हिन्दी विभाग के प्रोफसर और जेएनयू में उनके शोध छात्र रहे डॉ. निरंजन सहाय ने कहा कि केदार जी के न रहने की खबर समकालीन हिन्दी कविता की सबसे दुखद खबर है। वह निराला के बाद अकेले ऐसे कवि हैं, जिनकी कविता का प्रभाव चार पीढ़ियों पर साफतौर महसूस किया जा सकता है। उनका अनुभव क्षेत्र काफी विस्तृत था। वह एक साथ गांव और शहर पर लिखने वाले सच्ची भारतीय कविता का खाका निर्मित करते थे। 

‘निराला निवेश’ में जमती थी अड़ी
डॉ. केदारनाथ सिंह जब भी काशी आते तो रथयात्रा स्थित निराला निवेश कॉलोनी में अपने समधी, प्रसिद्ध आलोचक डॉ. बच्चन सिंह के यहां रूकते थे।  बनारस में प्रो. काशीनाथ सिंह तथा अन्य साहित्यकारों से उनके आत्मीय संबंध थे। 

यहीं पर साहित्यकारों का जमवाड़ा होता। साहित्य पर चर्चा होती। काशी विद्यापीठ में हिन्दी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. श्रद्धानंद, प्रो. सुरेंद्र प्रताप, गीतकार डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र समेत कई लोगों को उन दिनों की याद आज भी ताजा है। सभी उनके निधन की खबर से स्तब्ध हैं। 

पूर्वांचल रचना किस कवि ने लिखा है - poorvaanchal rachana kis kavi ne likha hai

पूर्वांचल उत्तर-मध्य भारत का एक भौगोलिक क्षेत्र है जो उत्तर प्रदेश के पूर्वी छोर पर स्थित है। यह उत्तर में नेपाल, पूर्व में बिहार, दक्षिण मे मध्य प्रदेश के बघेलखंड क्षेत्र और पश्चिम मे उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र द्वारा घिरा है। इसे एक अलग राज्य बनाने के लिए लंबे समय से राजनीतिक मांग उठती रही है। वर्तमान में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व उत्तर प्रदेश विधानसभा में 117 विधायकों द्वारा होता है तो वहीं इस क्षेत्र से 23 लोकसभा सदस्य चुने जाते हैं।

पूर्वांचल के मुख्यतः तीन भाग हैं- पश्चिम में पूर्वी अवधी क्षेत्र, पूर्व में पश्चिमी-भोजपुरी क्षेत्र और उत्तर में नेपाल क्षेत्र। यह भारतीय-गंगा मैदान पर स्थित है और पश्चिमी बिहार के साथ यह दुनिया में सबसे अधिक घनी आबादी वाला क्षेत्र है। उत्तर प्रदेश के आसपास के जिलों की तुलना में मिट्टी की समृद्ध गुणवत्ता और उच्च केंचुआ घनत्व के कारण कृषि के लिए अनुकूल है। भोजपुरी क्षेत्र में प्रमुख भाषा है।

1991 में उत्तर प्रदेश की सरकार ने पूर्वांचल विकास निधि की स्थापना की जिसका उद्देश्य था क्षेत्रीय विकास परियोजनाओं के लिये धन इकट्ठा करना जिससे भविष्य में संतुलित विकास के जरिए स्थानीय जरूरतों को पूरा करते हुए क्षेत्रीय असमानताओं का निवारण हो सके। लेकिन आजादी के 70 सालों बाद तक भी नहीं हो सका। सिर्फ पूर्वांचल के पिछड़ेपन के नाम पर वोटों की सियासत की जा रही है।[1] हर चुनाव में विकास की बातें की जाती है मगर वोट लेने के बाद सभी राजनीतिक दल पूर्वांचल की बदहाली को भुला देते हैं। यही वजह है कि अब अलग राज्य की मांग तेजी से उठने लगी है।पूर्वांचल विकास परिवार संस्था पूर्वांचल के 6 करोड़ लोगों के बीच काम कर रही है।

परिचय[संपादित करें]

पूर्वांचल उत्तर प्रदेश के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में से एक है। इसकी वजह जाति आधारित राजनीति तथा एक विशाल जनसंख्या है। पूर्वांचल के प्रमुख मुद्दों मे बुनियादी सुविधाओं की कमी, उचित ग्रामीण शिक्षा और रोजगार का अभाव, कानून व्यवस्था को चिह्नित किया गया है। पूर्वांचल सांस्कृतिक रूप से समृद्ध क्षेत्र है।

1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के नायक मंगल पांडे इसी क्षेत्र के बलिया के मूल निवासी थे। भदोही और मिर्जापुर एशिया में कालीन निर्माण में प्रमुख खिलाड़ी रहे हैं। प्रयागराज इसका प्रमुख और बड़ा शहर है। जिला वाराणसी भारतीय पर्यटन और विशेष रूप से साड़ी के निर्माण का केंद्र है। सोनभद्र पूर्वांचल का एक जिला, ७०००MW बिजली का उत्पादन करता है, जो उत्तर प्रदेश के राज्य में कुल बिजली उत्पादन के लगभग आधा है और भारत क सबसे बड़ा और केवल चूना पत्थर की प्रमुख खदान है। वाराणसी और कुशीनगर कुल उत्तर प्रदेश में आने के पर्यटकों के ६५% से अधिक लोगो को आकर्षित करता है। मिर्जापुर और सोनभद्र प्राकृतिक संसाधनों के साथ बहुत समृद्ध हैं। सब के बावजूद पूर्वांचल अभी भी राज्य में सबसे पिछड़े क्षेत्रो मे से एक है। जिसका मुख्य कारण राज्य सरकार और केन्द्र सरकार द्वारा उचित ध्यान की कमी है। वाराणसी को पूर्वांचल की राजधानी कहा जाता है ।

पूर्वांचल अपराध और भ्रष्टाचार के के कारण अति पिछड़े क्षेत्रों में सम्मिलित है,जिसके कारण आम जनता के लिए पर्याप्त शिक्षा और रोजगार के अवसरों का अभाव है। भारत के किसी भी क्षेत्र के लोगों से अधिक शोषण ब्रिटिशों ने इस क्षेत्र के लोगों का किया क्योंकि यहां के लोगों में प्रबल राष्ट्रवाद एवं देशभक्ति की भावना कूट कूट कर भरी थी, जो गुलामी का विरोध करते थे।

पूर्वांचल के जिले[संपादित करें]

प्रयागराज पूर्वांचल का प्रमुख शहर और जिला है, यह मौजूदा समय में यूपी की न्यायिक राजधानी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट यहीं पर हैं। यूपी लोकसेवा आयोग का दफ्तर यहां हैं। संगम नगरी की नाम से प्रसिद्ध है। हर 12 वर्ष में यहां दुनिया का सबसे बड़ा कुंभ मेला लगता है। प्रयागराज पूर्वांचल का एकमात्र ऐसा जिला है जिसका लगभग आधा हिस्सा तीन तहसीलें बुंदेलखंड में आती हैं। मेजा, कोरांव और बारा तहसील बुंदेलखँड में आती है। हंडिया तहसील पूर्वांचल में आती है। हंडिया में दो विधानसभा सीटें हैं, 258 हंडिया औऱ 259 प्रतापपुर जो कि भदोही लोकसभा में आती हैं।

वाराणसी[संपादित करें]

वाराणसी शहर उत्तरी भारत की मध्य गंगा घाटी में, भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के पूर्वी छोर पर गंगा नदी के बायीं ओर के वक्राकार तट पर स्थित है। यहां वाराणसी जिले का मुख्यालय भी स्थित है। वाराणसी शहरी क्षेत्र — सात शहरी उप-इकाइयों का समूह है और ये ११२.२६ वर्ग कि॰मी॰ (लगभग ४३ वर्ग मील) के क्षेत्र फैला हुआ है।[49] शहरी क्षेत्र का विस्तार (८२°५६’ पूर्व) - (८३°०३’ पूर्व) एवं (२५°१४’ उत्तर) - (२५°२३.५’ उत्तर) के बीच है।[49] उत्तरी भारत के गांगेय मैदान में बसे इस क्षेत्र की भूमि पुराने समय में गंगा नदी में आती रहीं बाढ़ के कारण उपत्यका रही है।
वाराणसी में विभिन्न कुटीर उद्योग कार्यरत हैं, जिनमें बनारसी रेशमी साड़ी, कपड़ा उद्योग, कालीन उद्योग एवं हस्तशिल्प प्रमुख हैं। बनारसी पान विश्वप्रसिद्ध है और इसके साथ ही यहां का कलाकंद भी मशहूर है। वाराणसी में बाल-श्रमिकों का काम जोरों पर है।
बनारसी रेशम विश्व भर में अपनी महीनता एवं मुलायमपन के लिये प्रसिद्ध है। बनारसी रेशमी साड़ियों पर बारीक डिज़ाइन और ज़री का काम चार चांद लगाते हैं और साड़ी की शोभा बढ़ाते हैं। इस कारण ही ये साड़ियां वर्षों से सभी पारंपरिक उत्सवों एवं विवाह आदि समारोहों में पहनी जाती रही हैं। कुछ समय पूर्व तक ज़री में शुद्ध सोने का काम हुआ करता था।
वाराणसी के उच्चतर माध्यमिक विद्यालय इंडियन सर्टिफिकेट ऑफ सैकेंडरी एजुकेशन (आई.सी.एस.ई), केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सी.बी.एस.ई) या उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद (यू.पी.बोर्ड) से सहबद्ध हैं।

जौनपुर[संपादित करें]

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प्रवेश के भीतर, अटाला मस्जिद, जौनपुर

जौनपुर जिला वाराणसी प्रभाग के उत्तर-पश्चिम भाग में स्थित है। इसकी भूमिक्षेत्र २४.२४०N से २६.१२०N अक्षांश और ८२.७०E और ८३.५०E देशांतर के बीच फैली हुई है। गोमती और सई मुख्य नदियाँ हैं। इनके अलावा, वरुण, पिली और मयुर आदि छोटी नदियाँ हैं। मिट्टी मुख्य रूप से रेतीली, चिकनी बलुई है। जिले मे खनिजों की कमी है। जिले का भौगोलिक क्षेत्रफल ४०३८ किमी२ है।
जौनपुर जिला की वास्तविक जनसंख्या ४,४७६,०७२ (भारतीय जनगणना २०११) है। जिनमे २,२१७,६३५ पुरुष तथा २,२५८,४३७ महिलाएँ है।
जिले का आर्थिक विकास मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है। इस का मुख्य कारण जिले में भारी उद्योग का अभाव है। कई उद्योग वाराणसी-जौनपुर राजमार्ग के साथ आ रहे हैं।

भदोही[संपादित करें]

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भदोही के गोपीगंज में कालीन का प्रदर्शन करता एक विक्रेता

भदोही, उत्तर प्रदेश का एक जिला है। यह कालीन निर्माण के लिये प्रसिद्ध है। उत्‍तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र के प्रमुख जनपद वाराणसी से 1996 में बना भदोही जिला आम जन के द्वारा 'कालीन नगरी' नाम से जाना जाता है। इलाहाबाद, जौनपुर, वाराणसी, मीरजापुर की सीमाओं को स्‍पर्श करता यह जिला अपने कालीन उद्योग के कारण विश्‍व में अत्‍यन्‍त प्रसिद्ध है। भारत के भौगोलिक मानचित्र पर यह जिला मध्‍य गंगा घाटी में 25.09 अक्षांश उत्‍तरी से 25.32 उत्‍तरी अक्षांश तक तथा 82.45 देशान्‍तर पूर्वी तक फैला है। 1056 वर्ग कि॰मी॰ क्षेत्रफल वाले इस जिले की जनसंख्‍या 10,77630 है। ज्ञानपुर, औराई, भदोही तीन तहसील मुख्‍यालयों के अधीन डीघ, अभोली, सुरियावां, ज्ञानपुर, औराई और भदोही विकास खण्‍ड कार्यालय है। इलाहाबाद की 2 विधानसभा सीटें हंडिया और प्रतापपुर के साथ मिलकर संसदीय क्षेत्र बनाने वाले इस जनपद में 3 विधान सभा क्षेत्र ज्ञानपुर,औराई और भदोही हैं। इस जनपद का मुख्‍य व्‍यवसाय कालीन है।

मिर्ज़ापुर[संपादित करें]

मिर्ज़ापुर उत्तर प्रदेश राज्य का एक शहर है। यह मिर्ज़ापुर जिला का मुख्यालय है। पर्यटन की दृष्टि से मिर्जापुर काफी महत्वपूर्ण जिला माना जाता है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक वातावरण बरबस लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचती है। मिर्जापुर स्थित विन्ध्याचल धाम भारत के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। इसके अतिरिक्त, यह जिला सीता कुण्ड, लाल भैरव मंदिर, मोती तालाब, टंडा जलप्रपात, विन्धाम झरना, तारकेश्‍वर महादेव, महा त्रिकोण, शिव पुर, चुनार किला, गुरूद्वारा गुरू दा बाघ और रामेश्‍वर आदि के लिए प्रसिद्ध है। मिर्जापुर वाराणसी,भदोही जिले के उत्तर, सोनभद्र जिले के दक्षिण और इलाहाबाद जिले के पश्चिम से घिरा हुआ है।

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मिर्जापुर की स्थिति 25.15, 82.58 पर है। यहां की औसत ऊंचाई है 80 मीटर (265 फीट)।

पूर्वांचल भाषा संगम

[2]

प्रमुख आकर्षण[संपादित करें]

  • तारकेश्वर महादेव, मिर्जापुर
  • महात्रिकोण, मिर्जापुर
  • शिवपुर, मिर्जापुर
  • सीता कुंड, मिर्जापुर
  • चुनार का किला
  • विंध्याचल धाम मिर्जापुर
  • भारत का मानक समय मिर्ज़ापुर जिले के विंध्याचल शहर के अमरावती चौराहे से निर्धारित किया जाता है।

गाज़ीपुर[संपादित करें]

गाजीपुर, पूर्वांचल का पुराना जिला एवं नगर है। इसका प्राचीन नाम गाधिपुरी था जो कि लगभग सन १३३० में सैय्यद मसूद ग़ाज़ी नामक एक मुल्स्लिम शासक द्वारा बदल दिया गया। गाजीपुर, अंग्रेजों द्वारा १८२० में स्थापित, विश्व में सबसे बड़े अफीम के कारखाने के लिए प्रख्यात है। यहाँ हथकरघा तथा इत्र उद्योग भी है। ब्रिटिश भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड कार्नवालिस की मृत्यु यहीं हुई थी तथा वे यहीं दफन हैं। शहर उत्तर प्रदेश-बिहार सीमा के बहुत नजदीक स्थित है। यहाँ की स्थानीय भाषा भोजपुरी है। यह पवित्र शहर बनारस के ७० की मी पूर्व में स्थित है

प्रमुख आकर्षण[संपादित करें]

  • रामलीला मैदान
  • धामूपुर
  • सैदपुर भितरी
  • महाहर धाम
  • कॉर्नवालिस मकबरा
  • पवहारी बाबा आश्रम
  • लठिया, जमानिया
  • दुल्लहपुर
  • अंधऊ हवाई अड्डा
  • मारकण्डेय महादेव मन्दिर

गोरखपुर[संपादित करें]

गोरखपुर, पूर्वांचल का प्रमुख जिला एवं नगर है। यह गोरखपुर जिला, और गोरखपुर कमीशनरी तथा पूर्वोत्तर रेलवे का प्रशासनिक मुख्यालय है। यह नगर गीता प्रेस एवं गोरखनाथ मन्दिर के लिये विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यह महान संत परमहंस योगानन्द का भी जन्म स्थान है। शहर में भी कई ऐतिहासिक बौद्ध स्थल है। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर पूर्वाचल का प्रसिद्ध विश्वविद्यालय है। यहां पर 2 विश्विद्यालय हैं। यहां पर 2 मेडिकल कॉलेज भी हैं। पिछले दिनों गोरखपुर एम्स का लोकार्पण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कर कमलों से हुआ। अब गोरखपुर का उर्वरक कारखाना भी चालू हो गया है। यहां पर एयरफोर्स बेस स्टेशन भी है,जो कि 1963 में बनाया गया था। ये 6 सेंतुरारी में 16 जनपद में से एक था जिसे माला के नाम से जानते थे।चौरी चौरा कांड यही पर हुआ था। यहां पर मिया साहेब का इमामबाड़ा भी है ,जिसमे सोने और चांदी की ताझिया रखी हुई है। इमामबाड़े में एक धुनि है जो कई दसको से जल रही।

कुशीनगर[संपादित करें]

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महापरिनिर्वाण प्राप्त बुद्ध की छवि, कुशीनगर

कुशीनगर भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला एवं एक एक छोटा सा कस्बा है। इस जनपद का मुख्यालय कुशीनगर से कोई १५ किमी दूर पडरौना में स्थित है। कुशीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग २८ पर गोरखपुर से कोई ५० किमी पूरब में स्थित है। महात्मा बुद्ध का निर्वाण यहीं हुआ था। यहाँ अनेक सुन्दर बौद्ध मन्दिर हैं। इस कारण से यह एक अन्तरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल भी है जहाँ मुख्यत: विश्व भर के बौद्ध तीर्थयात्री भ्रमण के लिये आते हैं। कुशीनगर कस्बे के और पूरब बढ़ने पर लगभग २० किमी बाद बिहार राज्य आरम्भ हो जाता है। हाल में कुशीनगर में इंटरनेशनल एयरपोर्ट भी बना है, जिसका लोकार्पण भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 20 अक्टूबर, 2021 को किया।

देवरिया[संपादित करें]

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देवरिया भारत के उत्तर प्रदेश प्रान्त का एक शहर एवं जिला मुख्यालय है।
देवरिया जनपद में मुख्य रूप से हिन्दी भाषा बोली जाती है। देवरिया जनपद की कुल जनसंख्या की लगभग ९६ प्रतिशत जनता हिन्दी, लगभग ३ प्रतिशत जनता उर्दू और एक प्रतिशत जनता के बातचीत का माध्यम अन्य भाषाएँ हैं। बोली की बात करें तो ग्रामीण जनता के साथ-साथ अधिकांश शहरी जनता भी प्रेम की बोली भोजपुरी बोलती है। कुल जनसंख्या की दृष्टि से इस जनपद में लगभग चौरासी प्रतिशत हिन्दू, लगभग पंद्रह प्रतिशत मुस्लिम और एक प्रतिशत अन्य धर्म को मानने वाले हैं। इस जनपद की जनता आपस में प्रेम-भाव से रहते हुए सबके दुख-सुख में सहभागी बनती है। या यूँ कहें "देवरिया जनपद रूपी उपवन को हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई, बौद्ध आदि पुष्प अपनी सुगंध से महकाते हैं और ये सुगंध आपस में मिलकर पूरे भारत को गमकाती है।"

आजमगढ़[संपादित करें]

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आजमगढ़ उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में से एक महत्वपूर्ण जिला है । जो सरयू नदी के दक्षिण और गंगा नदी के उत्तर में तमसा नदी के किनारे बसा है । महाकाब्यों के अनुसार तमसा नदी को भगवान श्रीराम पार करके चित्रकूट की तरफ गयें थें। प्रथम पंचवर्षी योजना यहां के लिए बहुत ही लाभकारी रही थी। यहां पर अवधि और भोजपुरी भांषाओं का संगम है।उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों में से एक, आजमगढ़, अपने उत्तर-पूर्वी हिस्से को छोड़कर कभी प्राचीन कोसल राज्य का हिस्सा था। आजमगढ़ को ऋषि दुर्वासा की भूमि के रूप में भी जाना जाता है, जिसका आश्रम फूलपुर तहसील में स्थित था, जो फूलपुर तहसील मुख्यालय से 6 किलोमीटर (3.7 मील) उत्तर में तमसा और मझुए नदियों के संगम के पास स्थित था।

इसकी स्थापना शाहजहां के शासनकाल के दौरान 1665 में विक्रमजीत के बेटे आजम ने की थी। विक्रमाजीत परगना निज़ामाबाद में मेहनगर के गौतम राजपूतों के वंशज थे जिन्होंने अपने कुछ पूर्ववर्तियों की तरह इस्लाम अपनाया था। उसकी एक मुस्लिम पत्नी थी, जिससे उसके दो बेटे आज़म और अज़मत हुए। आज़म ने अपने नाम से शहर का नाम आज़मगढ़ शहर, और किला को अपना नाम दिया, जबकी अज़मत ने परगना सगरी में किले और अज़मतगढ़ बाजार का निर्माण करवाया था। चैबील राम के हमले के बाद, अज़मत खान अपने सैनिकों के साथ उत्तर की ओर भाग गया। उन्होंने गोरखपुर में घाघरा पार करने का प्रयास किया, लेकिन दूसरी तरफ के लोगों ने उसके आने का विरोध किया, और उन्हें या तो मध्य धारा में गोली मार दी गई या बचने के प्रयास में डूब गया। आजमगढ़ स्वतंत्रा आंदोलन के लिए भी पहचाना जाता है, गांधीजी के आव्हान पर सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में अतरौलिया खंड के रामचरित्र सिंह व उनके नाबालिक बेटे सत्यचरण सिंह ने एक साथ अंग्रेजो का डटकर मुकाबला किया और गोली खायी। पिता पुत्र का एकसाथ स्वतंत्रा के आंदोलन में कूदने का विरला ही उदाहरण देखने को मिलता है। महान यायावर साहित्यकार महापंडित राहुल सांकृत्यायन और शायर कैफी आजमी का संबंध पर आजमगढ़ से रहा है। वीर रस के महान कवि अयोध्या प्रसाद उपाध्याय हरिओंध और श्याम नारायण पांडेय का जन्म भी आजमगढ़ में ही हुआ। झारखंड के प्रसिद्ध स्वयंसेवी संस्था विकास भारती के संस्थापक सह सचिव अशोक भगत का जन्म भी आजमगढ़ जिले में हुआ. आदिवासियों के बीच सेवा और विकास के प्रकल्प चलाने के लिए भारत सरकार ने श्री अशोक भगत को प्रतिष्ठित पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

मऊ[संपादित करें]

मऊ उत्तर प्रदेश के मऊ जिला का मुख्यालय है। इसका पूर्व नाम मऊनाथ भंजन (उर्दु:امئو نات بنجن)) था। अवन्तिकापुरी, गोविन्द साहिब, दत्तात्रेय, दोहरी घाट, दुर्वासा, मेहनगर, मुबारकपुर, महाराजगंज, नि‍जामाबाद और आजमगढ़ मऊ के प्रमुख स्थलों में से है। यह जिला लखनऊ के दक्षिण-पूर्व से 282 किलोमीटर और आजमगढ़ के पूर्व से 56 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह शहर तमसा नदी के किनारे बसा है। तमसा नदी शहर के बीच से निकलती/गुजरती है। भामऊ जिले के इतिहास को लेकर कई भ्रम है। सामान्यत: यह माना जाता है कि मऊ शब्द तुर्किश शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ गढ़, पांडव और छावनी होता है। वस्तुत: इस जगह के इतिहास के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। माना जाता है प्रसिद्ध शासक शेर शाह सूरी के शासन काल के दौरान इस क्षेत्र में कई आर्थिक विकास करवाए गए। वहीं मिलिटरी बेस और शाही मस्जिद के निर्माण में काफी संख्या में श्रमिक और कारीगर मुगल सैनिकों के साथ यहां आए थे। स्वतंत्रता आन्दोलन के समय में भी मऊ की महत्वपूर्ण भूमिका रही

महाराजगंज[संपादित करें]

भारत-नेपाल सीमा के समीप स्थित महाराजगंज उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला है। इसका जिला मुख्यालय महाराजगंज शहर मे स्थित है। पहले इस जगह को कारापथ के नाम से जाना जाता था। यह जिला नेपाल के दक्षिण , गोरखपुर जिले के उत्तर, कुशीनगर जिले के पश्चिम और सिद्धार्थ नगर व संत कबीर नगर जिले के पूर्व मे स्थिति है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह काफी महत्वपूर्ण स्थल है।नौतनवा ,सौनोली, आनंद नगर, कोल्हुई,सिसवा,परतावल और निचलोल ।यहां की मुख्य बाज़ार और कस्बे है।

बस्ती[संपादित करें]

यह भारत के उत्तर प्रदेश प्रान्त का एक शहर और बस्ती जिला का मुख्यालय है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह स्थान काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। बस्ती जिला संत कबीर नगर जिले के पश्चिम में और गोण्डा के पूर्व में स्थित है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भी यह उत्तर प्रदेश का सातवां बड़ा जिला है। प्राचीन समय में बस्ती को 'कौशल' के नाम से जाना जाता था।

संत कबीर नगर[संपादित करें]

संत कबीर नगर जिला उत्तरी भारत के उत्तर प्रदेश राज्य 75 जिलों में से एक है। खलीलाबाद शहर जिला मुख्यालय है| संत कबीर नगर जिला बस्ती मंडल का एक हिस्सा है। यह जिला उत्तर में सिद्धार्थ नगर जिले से पूर्व में गोरखपुर जिले से दक्षिण में अम्बेडकर नगर जिले से और पश्चिम में बस्ती जिला द्वारा घिरा है। इस जिले का क्षेत्रफल 1659.15 वर्ग किलोमीटर है।यह तीन तहसीलो मे बटा है धनघटा,खलीलाबाद, मेहदावल । भगवान शिव का विश्वव प्रसिद्ध मंदिर श्री तामेश्वरनाथ धाम,अवधी के मसहूर कवि रंगपाल हरिहरपुर,विश्व प्रसिध्द संत कबीर की निर्वाण स्थली मगहर और बखिर पक्षी विहार झील,हैंसर आदि यहां के प्रमुख स्थलों में से हैं। घाघरा, राप्‍ती,आमी और कुआनो यहां की प्रमुख नदियां है। मगहर एक कस्बा है जो आमी नदी के किनारे स्थित है|मगहर में संत कबीरदास की मृत्यु हुई थी|जिनके नाम पर जिले का नाम पड़ा है|मेहदावल विधानसभा से ही उत्तर प्रदेश की प्रथम महिला विधायक श्रीमती सुचेता कृपलानी(पूर्व मुख्यमन्त्री) चुनी गयी थी।

सिद्धार्थ नगर[संपादित करें]

सिद्धार्थनगर भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला है। जिले का मुख्यालय सिद्धार्थनगर है। प्राचीन काल के शाक्य गणराज्य की राजधानी भगवान बुद्ध जहां के राजकुमार थे "कपिलवस्तु" इसी जनपद में स्थित है। भगवान बुद्ध के वास्तविक नाम "सिद्धार्थ" के ऊपर ही इस जनपद का नाम सिद्धार्थनगर रखा गया है। इस जनपद में नौगढ़,शोहरतगढ़,इटवा, डुमरियागंज और बांसी 5 तहसीलें हैं। कपिलवस्तु, शोहरतगढ़, इटवा,डुमरियागंज और बांसी 5 विधानसभा क्षेत्र हैं। सिद्धार्थनगर के पूर्व में जनपद महराजगंज और संतकबीरनगर, पश्चिम में जनपद बलरामपुर, उत्तर में नेपाल देश और दक्षिण में जनपद बस्ती स्थित है।इस जिले की प्रमुख नदियां राप्ती, बूढ़ी राप्ती, बाणगंगा आदि नदियां हैं। इस जिले में चार बड़े रेलवे स्टेशन नौगढ़, बढ़नी, शोहरतगढ व उसका है। इस जिले में 5 तहसील, 14 व्लाक व 6 नगर हैं। यहां की मुख्य भाषा हिन्दी, अवधी, उर्दू व भोजपुरी है। मुख्य व्यवसाय कृषि है।उपजाऊ मिट्टी के पाये जाने के कारण यहां पर धान ( प्रसिद्ध कालानमक), गेहूं व गन्ने की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। सिद्धार्थनगर का "कालानमक" चावल अपने स्वाद और सुगंध के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इसके अलावा सिद्धार्थनगर में 'सिद्धार्थ विश्वविद्यालय सिद्धार्थनगर, कपिलवस्तु भी अवस्थित है, जो पठन-पाठन के लिए एवं बौद्ध अध्ययन के लिए जाना जाता है। और अभी हाल ही में प्रधानमंत्री जी ने ,स्व० माधव प्रसाद त्रिपाठी,मेडिकल कॉलेज का लोकार्पण भी किया है, यह पर घरेलू हवाई अड्डा भी प्रस्तावित है,

    ====प्रमुख आकर्षण====
  • पिपरहवा स्तूप
  • सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु
  • समय माता मंदिर,कठेला बाजार
  • भारतभारी मंदिर,डुमरियागंज
  • कपिलवस्तु थीम पार्क
  • कपिलवस्तु पार्क
  • स्व० माधव प्रसाद त्रिपाठी मेडिकल कॉलेज
  • सिंघेश्वरी मंदिर
  • पलटा देवी मंदिर आदि

बलिया[संपादित करें]

बलिया पूर्वांचल का प्रमुख जिला एवं नगर है। शहर की पूर्वी सीमा गंगा और घाघरा के संगम में निहित है। बलिया, गाजीपुर से 76 किलोमीटर और वाराणसी से 150 किलोमीटर स्थित है। पूर्वांचल के अन्य जिलों की भांति भोजपुरी यहाँ के लोगों की मुख्य बोली है।

भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में बलिया बागी बलिया (विद्रोही बलिया) के रूप में अपना महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है। १९४२ के भारत छोड़ो आन्दोलन के समय बलिया ने एक छोटी अवधि के लिये ब्रिटिश शासन के जिला सरकार का तख्ता पलट किया और चित्तू पांडे के अधीन एक स्वतंत्र प्रशासन स्थापितकिया।

एक वार्षिक मेले के ददरी मेला, एक मैदान पर शहर की पूर्वी सीमा पर गंगा और सरयू नदियों के संगम पर मनाया जाता है। मऊ, आजमगढ़, देवरिया,गोरखपुर,गाजीपुर और वाराणसी के रूप में पास के जिलों के साथ नियमित संपर्क में रेल और सड़क के माध्यम से मौजूद है।

रसड़ा - यहाँ से ३५ किलोमीटर पश्चिम में स्थित एक क़स्बा है। यहाँ नाथ बाबा का मंदिर है जो स्थानीय सेंगर राजपूतों के देवता हैं। इसके अलावा यहाँ दरगाह हज़रत रोशन शाह बाबा, दरगाह हज़रत सैयद बाबा और लखनेसर डीह के प्राचीन अवशेष दर्शनीय स्थल हैं।

उल्लेखनीय व्यक्तितव: मंगल पांडे - 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के नायक मगल पाण्डेय बलिया जिले के नगवां गाँव में जन्मे थे। चित्तू पाण्डेय - 1942 के आंदोलन में काँग्रेसी नेता जिनके नेतृत्व में बलिया में स्वतंत्र सरकार का गठन हुआ था। राम नगीना सिंह - 1952 प्रथम सांसद (प्रजातांत्रिक सोशलिस्ट पार्टी) बलिया गाजीपुर संयुक्त लोकसभा सीट | गौरी शंकर भइया - पूर्व मंत्री जयप्रकाश नारायण - नेता। चन्द्रशेखर- भारत के नवें प्रधानमन्त्री। जनेश्वर मिश्र - "छोटे लोहिया" के नाम से जाने जाने वाले समाजवादी नेता। गौरीशंकर राय - पूर्व मंत्री परशुराम चतुर्वेदी - प्रख्यात हिंदी साहित्यकार। हजारी प्रसाद द्विवेदी - प्रख्यात हिंदी साहित्यकार। डॉo उदयनारायण तिवारी - प्रख्यात हिंदी साहित्यकार। भगवतशरण उपाध्याय - प्रख्यात हिंदी साहित्यकार। विश्वनाथ उपाध्याय - स्वतंत्रता सेनानी डॉ0 कृष्णबिहारी मिश्र - प्रख्यात हिंदी साहित्यकार। डॉ0 कृष्णदेव उपाध्याय -प्रख्यात हिंदी साहित्यकार। भैरव प्रसाद गुप्त - प्रख्यात हिंदी साहित्यकार। अमरकांत - प्रख्यात हिंदी साहित्यकार। डॉ0 केदारनाथ सिंह - प्रख्यात हिंदी साहित्यकार। दूधनाथ सिंह - प्रख्यात हिंदी साहित्यकार। डॉ0 रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव - प्रख्यात हिंदी साहित्यकार। काशीनाथ मिश्र - बलिया वीर अहिरो की नगरी भी है ।जिसमें वीर लोरिक का निवास स्थान रहा है

सोनभद्र[संपादित करें]

सोनभद्र भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला है। जिले का मुख्यालय राबर्ट्सगंज है।
स्वतंत्रता मिलने के लगभग 10 वर्षों तक यह क्षेत्र (तब मिर्जापुर जिले का भाग) अलग-थलग था तथा यहां यातायात या संचार के कोई साधन नहीं थे। पहाड़ियों में चूना पत्थर तथा कोयला मिलने के साथ तथा क्षेत्र में पानी की बहुतायत होने के कारण यह औद्योगिक स्वर्ग बन गया। यहां पर देश की सबसे बड़ी सीमेन्ट फैक्ट्रियां, बिजली घर (थर्मल तथा हाइड्रो), एलुमिनियम एवं रासायनिक इकाइयां स्थित हैं। साथ ही कई सारी सहायक इकाइयां एवं असंगठित उत्पादन केन्द्र, विशेष रूप से स्टोन क्रशर इकाइयां, भी स्थापित हुई हैं।

शिक्षा[संपादित करें]

पूर्वांचल रचना किस कवि ने लिखा है - poorvaanchal rachana kis kavi ne likha hai

पूर्वांचल के प्रमुख विश्वविद्यालय[संपादित करें]

  • बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, (बीएचयू) वाराणसी
  • सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी
  • महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी
  • वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर
  • दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर
  • सिद्धार्थ विश्वविद्यालय, कपिलवस्तु, सिद्धार्थ नगर
  • जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय,बलिया
  • मदन मोहन मालवीय टेक्निकल यूनिवर्सिटी,गोरखपुर (MMMEC)
  • राजर्षि टंडन ओपन यूनिवर्सिटी प्रयागराज
  • शिब्ली नेशनल कॉलेज आजमगढ़
  • राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज-(आरईसी), आज़मगढ़
  • अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान,गोरखपुर

महत्वपूर्ण सड़क, रेल और हवाई अड्डे[संपादित करें]

प्रमुख सड़कें[संपादित करें]

  • राष्ट्रीय राजमार्ग-२, ७, १९, २८, ५६, ९७
  • स्वर्णिम चतुर्भुज

रेलवे[संपादित करें]

पूर्वांचल के सभी जिले रेलवे से अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं। इलाहाबाद उत्तर मध्य रेलवे का मुख्य़ालय है जबकि गोरखपुर, पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय है।

विमानपत्तन[संपादित करें]

  • बमरौली विमान पत्तन इलाहाबाद
  • गोरखपुर विमानपत्तन
  • वाराणसी विमानपत्तन
  • मीरपुर विमानपत्तन

पूर्वांचल विकास परिवार यह एक संस्था है जो पूर्वांचल के 5 करोड़ लोगों के जीवन के उत्थान के लिए संघर्षरत है। इसका मुख्यालय मुंबई में है। पूर्वांचल में इसका मुख्यालय जौनपुर में है। डॉ दृगेश यादव इसके संस्थापक हैं।

  1. "UP Election में हर पार्टी के लिए इतनी अहम क्यों हैं पूर्वांचल की स‍ियासत, जान‍िए". आज तक. अभिगमन तिथि 2021-11-15.
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 3 अक्तूबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अक्तूबर 2017.