हाल के वर्षों में भारत ने आसियान पर पर्याप्त ध्यान दिया है, कथन को सही ठहराने के लिए दो बिंदु दें - haal ke varshon mein bhaarat ne aasiyaan par paryaapt dhyaan diya hai, kathan ko sahee thaharaane ke lie do bindu den

हाल के वर्षों में भारत ने आसियान पर पर्याप्त ध्यान दिया है, कथन को सही ठहराने के लिए दो बिंदु दें - haal ke varshon mein bhaarat ne aasiyaan par paryaapt dhyaan diya hai, kathan ko sahee thaharaane ke lie do bindu den

नवम्बर 4, 2019 को बैंकॉक में आयोजित आरसीईपी शिखर सम्मेलन में प्रधान मंत्री मोदी

बैंकॉक में हाल ही में संपन्न हुए आसियान शिखर सम्मेलन में, भारत को बहुप्रतीक्षित क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी [आरसीईपी] में शामिल होने से पीछे हटना पड़ा। 2013 में ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया और दस आसियान देशों के बीच जो बातचीत शुरू हुई, वह नई दिल्ली द्वारा उठाए गए कुछ प्रमुख मुद्दों को संतुष्ट नहीं कर सकी। मौजूदा बहुपक्षीय व्यापारिक शासन के कमजोर होने और संरक्षणवाद के लिए एक उभरती हुई कहानी के साथ, आरसीईपी में क्षेत्रीय मुक्त व्यापार समझौतों के लाभों को प्रबल किया। आरसीईपी के तहत आने वाला क्षेत्र आज के समय में दुनिया के सबसे गतिशील आर्थिक क्षेत्रों में से एक है और इस समय भारत इस व्यवस्था से बाहर रहने से व्यापक बाजार पहुंच और अधिमान्य या कम व्यापार बाधाओं का लाभ गवा सकता है। इस प्रकार, भारतीय वस्तुओं काउच्च लागत, शुल्क और अन्य बाजार पहुंच निषेध तंत्र का सामना करना जारी रहेगा, जिससे आरसीईपी राष्ट्रों जैसेचीन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में इसका निर्यात सीमित हो जाएगा, जिनके साथ कोई द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौता [एफटीए] नहीं किया गया है।जबकि हम इस व्यवस्था में शामिल ना होने पर भारत के लिए निहितार्थों पर बहस कर सकते हैं, पर ऐसे कुछ कारक हैं जिन पर विचार करने की आवश्यकता है जिनके कारण ऐसा निर्णय लिया गया है। आरसीईपीवार्ता इतना विस्तृत नहीं था कि इसमें भारत की कुछ बड़ी चिंताओं को समायोजित किया जा सका, जो इसके निर्माताओं और कृषि-आधारित क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं। भारतकी कुछ बड़ी चिंताएं जिसे बाकी के आरसीईपी सदस्य राष्ट्रों से स्वीकृति की आवश्यकता थी, उसमें मूल के नियमों को सख्ती से लागू करने, नया शुल्क दर स्थापित करने के लिए आधार वर्ष बदलना, सामान्य औरमोड 4’ में सेवाओं का समावेशन शामिल है जो विशेष रूप से व्यावसायिकों की आवाजाही से संबंधित है। हालांकि भारत द्वारा उठाए गए ये मुद्दे, सदस्यों के मध्य किसी भी सहमतितक नहीं पहुँच सका। व्यापार घाटे में वृद्धि का मुद्दा भी है जो भारत के अन्य आरसीईपी राष्ट्रों के साथ है - जिनमें से चीन कुल 60 प्रतिशत का गठन करता है जिसकी वजह से वर्तमान स्वरूप में यह व्यवस्था अलाभकारी बन गया।भारत यह सुनिश्चित करने के लिए कि ये चीनी वस्तुओं और ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से कृषि और डेयरी उत्पादों के संबंध में प्रतिस्पर्धी बना रहे, अपने उत्पादों को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए संरचनात्मक सुधार कर रहा है। भारत परिवहन, लॉजिस्टिक्स सहायता, संचार आदि के मायनों में बुनियादी ढाँचे का एक मजबूत नेटवर्क तैयार कर उत्पादन क्षमताओं के पूरक के तौर पर अन्य आवश्यक कदम उठाने के साथ-साथ अपने विनिर्माण क्षेत्र को मजबूत कर रहा है। भारत सरकार आधारभूत संरचना के संदर्भ में कमियों को पूरा करने की दिशा में सागरमाला, भारत निर्माण, डिजिटल इंडिया पहल, तथा सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय राजमार्ग और अवसंरचना सहयोग की परियोजनाओं पर काम कर रही है।[1] सरकार द्वारा किए गए ये प्रयास उल्लेखनीय हैं, लेकिन बुनियादी ढाँचों की भारी कमियों को पूरा करने के लिए कड़ा प्रयास करने की आवश्यकता है ताकि भारत की पिछड़ी विनिर्माण क्षेत्र को आगे बढ़ाया जा सके। इसलिए यह माननाहोगा कि अगर भारत, विशेष रूप से लम्बे समय में, अपनी आर्थिक संरचनात्मक कमियाँ पूरी ना कर सका तो आरसीईपीमें भारत की गैर-भागीदारी का वास्तविक अवसर लागत महत्वपूर्ण होगा।आसियान और भारत के बीच पहले से मौजूद एफटीए हालांकि ऐसे अवसर प्रदान करता रहेगा जिन्हेंअनदेखा नहीं किया जा सकता। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि जब भारत ने शीत युद्ध समाप्त होने के बाद आसियान के साथ अपने संबंध बनाना शुरू किया, तब दोनों पक्षों के लिए आर्थिक संबंधों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता एक प्रमुख एजेंडा था। लुक ईस्टनीति के तहत, आसियान देशों की आर्थिक गतिशीलता ने इसे आर्थिक सहभागिता में एक महत्वपूर्ण भागीदार बनाया। 1992 में भारत को आसियान का एक क्षेत्रीय भागीदार बनने के लिए आमंत्रित किया गया था जिसने व्यापार, निवेश और पर्यटन संबंधों को बढ़ावा देने में मदद की। 1995 में भारत को पूर्ण संवाद भागीदार बनाया गया, जिससे सहयोग के लिए एक व्यापक एजेंडा मिला, जिसमें सुरक्षाऔर राजनीतिक सहयोग के क्षेत्र भी शामिल थे।[2]

 1992

से 1996 तक चार वर्षों से भी कम समय में, आसियान के साथ भारत का दोतरफ़ा व्यापार दोगुना से बढ़कर 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया और वर्ष 2002 में 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर का लक्ष्य पार कर गया। भारत ने अपने व्यापक आर्थिक सहयोग [सीईसीए] को सक्रिय करने के लिए 8 अक्टूबर, 2003 को आसियान के साथ रूपरेखा समझौते पर हस्ताक्षर किया।इस प्रारंभिक समझौतेने एक अर्ली हार्वेस्ट प्रोग्राम [ईएचपी] का मार्ग खोल दिया, जिसमें आर्थिक सहयोग के क्षेत्र और आश्वासन बनाने के एक उपाय के रूप में विनिमय के लिए वस्तुओं की एक आम सूची शामिल थी। भारत और आसियान के बीच वस्तुओं के व्यापार पर एक समझौते के लिए वार्ता भी मार्च 2004 में शुरू हुई थी। यह वार्ता छह साल तक चली जिसके बाद 13 अगस्त, 2009 को बैंकॉक में आयोजित आसियानके आर्थिक मंत्रियों की बैठक के दौरान भारत-आसियान मुक्त व्यापार समझौता (एआईएफटीए) पर हस्ताक्षर किया गया। भारत और आसियान के बीच वस्तुओं के व्यापार को कवर करता यह समझौता 1 जनवरी, 2010 को प्रभाव में आया।[3] 9 सितंबर 2014 को, भारत ने औपचारिक रूप से आसियान के साथ सेवा व्यापार और निवेश व्यापार के समझौते पर हस्ताक्षर किया। सेवा समझौते ने भारत और आसियान के बीच जनशक्ति और निवेश दोनों के विनिमय के रास्ते खोले।[4] भारत ने 2005 में सिंगापुर और 2011 में मलेशिया के साथ द्विपक्षीय सीईसीएऔर सितंबर 2004 में थाईलैंड के साथ अर्ली हार्वेस्ट स्कीम [एफटीए] पर भी हस्ताक्षर किया है।[5]

चित्र संख्या एक: भारत-आसियान व्यापार, 2012-18 [बिलियन अमेरिकी डॉलर में][6]

हाल के वर्षों में भारत ने आसियान पर पर्याप्त ध्यान दिया है, कथन को सही ठहराने के लिए दो बिंदु दें - haal ke varshon mein bhaarat ne aasiyaan par paryaapt dhyaan diya hai, kathan ko sahee thaharaane ke lie do bindu den
चित्र संख्या दो: 2018-19 में आसियान राष्ट्रों के साथ भारत का व्यापार [7]
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चित्र संख्या एक में दिखाए गए आंकड़े एफटीए की स्थापना के बाद भारत और आसियान के बीच द्विपक्षीय व्यापार को इंगित करता है। यह देखा जा सकता है कि कुल व्यापार बढ़ा है और2018 के अंत में 96 बिलियन अमेरिकी डॉलर पर आकर थमा है। जबकि आसियान को भारत का कुल निर्यात समान दर से बढ़ा है और2018 में 37.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर पर आकर थमा है, इसके आयात 2013 में 42.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़ कर 2018 में 59.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर हुआ है। जैसा कि चित्र संख्या दो में दिखाया गया है, 2018-19 में सिंगापुर, वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया, और थाईलैंड के साथ भारत का व्यापार घाटा रहा है, जबकि फिलीपींस, म्यांमार, कंबोडिया, ब्रूनेई, और लाओ पीडीआर के साथ व्यापार अधिशेष रहा है।एफटीएके बाद की अवधि में, आसियान के पक्ष में वस्तुओं का व्यापार असममित हो गया, जबकि भारत के निर्यात में उल्लेखनीय उछाल नहीं देखी गई है। इसके अलावा, 2014 में भारत-आसियान के बीच सेवाओं और निवेश में व्यापार को लेकर किया गयासमझौताअब भी इंडोनेशिया और कंबोडिया द्वारा अनुसमर्थित किया जाना बाकी है, ताकि यह प्रभाव में आ सके। अतः, आसियान के साथ बढ़ते असंतुलित द्विपक्षीय व्यापार के कारण भारत दबाव में है। जिन पांच आसियान देशों के साथ भारत व्यापार अधिशेष का लाभ उठाता है, दुर्भाग्य से उनके साथ भी व्यापार का स्तर कम बना हुआ है। अवसंरचना विकास, आईटी, फार्मास्युटिकल, टेक्सटाइल आदि क्षेत्रों में सहयोग की निश्चित रूप से कुछ संभावनाएं हैं। भारत को इन देशों के साथ साझेदारी के नए क्षेत्रों पर गौर करना चाहिए जहां हितों का मजबूत अभिसरण मौजूद हो, जिनमे से एक फिलीपींस है।पिछले कुछ वर्षों में फिलीपींस की आर्थिक गतिशीलता और छह प्रतिशत से अधिक की निरंतर जीडीपी विकास दर की उपलब्धि फिलीपींस को आसियान राज्यों में से भारत के एक बड़े भागीदार के रूप में दर्शाता है। अक्टूबर 2019 में फिलीपींस के हालिया दौरे के दौरान, भारत के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने गहरे और बृहद द्विपक्षीय संबंधों की आवश्यकता पर बल दिया। जबकि भारत और फिलीपींस के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगातार बढ़ रहा है, विशेष रूप से आईटी-बीपीओ खंड में, राष्ट्रपति ने कहा कि कई अन्य क्षेत्रों जैसे कि व्यापार, निवेश, सेवाओं, कृषि, इंजीनियरिंग से लेकर नई तकनीकों तक के क्षेत्र में भी साझेदारी बढ़ाने की गुंजाइश है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत की "मेक इन इंडिया" पहल और अगली पीढ़ी के बुनियादी ढाँचे की योजनाओं के साथ फिलीपींस की "बिल्ड, बिल्ड, बिल्ड" बुनियादी ढांचे की पहल दोनों पक्ष की कंपनियों और निवेशकों के लिए अपार अवसर प्रस्तुत करते हैं।[8]

हाल के वर्षों में भारत ने आसियान पर पर्याप्त ध्यान दिया है, कथन को सही ठहराने के लिए दो बिंदु दें - haal ke varshon mein bhaarat ne aasiyaan par paryaapt dhyaan diya hai, kathan ko sahee thaharaane ke lie do bindu den
भारत-फिलीपींस राजनयिक संबंधों की 70 वीं वर्षगांठ के अवसर पर फिलीपींस के राजकीय दौरे के दौरान, 19 अक्टूबर, 2019 को राष्ट्रपति दुतेर्ते के साथ राष्ट्रपति कोविंद।


इसके लिए या उस कारण से, विशेष रूप से आसियान के उन राज्यों, जिनके साथ कम व्यापार हुआ है, के साथ किसी अन्य साझेदारी में संपर्कता और अवसंरचना की एक मजबूत रेखा महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। हार्ड संपर्कता के अलावा इस सॉफ्ट संपर्कता में, क्षमता के साथ-साथ योग्यता निर्माण के संदर्भ में, सहयोग और समन्वय भी महत्वपूर्ण होगा। भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच चल रही संपर्कता परियोजनाओं को पूरा करना आवश्यक है, जो वस्तुओं का निर्यात बढ़ाने और व्यापार घाटे को कम करने में मदद करेगा। आसियान शिखर सम्मेलन के लिए बैंकॉक दौरे के दौरान भारतीय प्रधान मंत्री ने 2 नवंबर, 2019 को भारतीय प्रवासियों को संबोधित करते हुए, भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच सहज संपर्क के महत्व पर जोर दिया। प्रधान मंत्री के अनुसार यह व्यापार और विकास को सुविधाजनक बनाने में मदद करेगा।[9]प्रधान मंत्री ने अर्थ और लोगों के विनिमय को और तेज करने के लिए दक्षिण पूर्व एशिया के साथ सरकार की संपर्कता एजेंडे को जारी रखने पर जो बल दिया है, दर्शाता है कि भारत अपने कदम पीछे नहीं लेने वाला है और क्षेत्रीय व्यापार व्यवस्था के प्रतिभारत की निरंतर प्रतिबद्धता को दर्शाता है। आसियान के साथ भारत कीचल रही एफटीए अवसर के विशाल क्षेत्र इंगित करता है। भारत की ओर से नए क्षेत्रों, जैसे कि समुद्री अंतरिक्ष में सहयोग पर जोर देने की आवश्यकता है, जिसमें नीली अर्थव्यवस्था का विकास शामिल है। इसके अलावा, सेवाओं और निवेश पर एफटीए के शीघ्र अनुसमर्थन से भारत को आसियान के साथ व्यापार के समग्र संतुलन में सुधार करने में मदद मिलेगी। इसके लिए नई दिल्ली को आसियान देशों द्वारा उठाए गए कुछ चिंताओं को ध्यान में रखते हुए यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि उनके हितों को संबोधित किया जाए। भले ही अपने एशियाई समकक्षों की तुलना में भारतीय विनिर्माण क्षेत्र में प्रतिस्पर्धात्मकता की कमी है, लेकिन पूरकता के आधार पर और जिन क्षेत्रों में हमें तुलनात्मक लाभ है, उनमें अपना आर्थिक जुड़ाव बनाना जारी रखने की आवश्यकता है।

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[1]Radhika Rao, “RCEP and India: Weighing the benefits of Regionalism”, DBS Focus, October 9, 2019, https://www.dbs.com/aics/templatedata/article/generic/data/en/GR/102019/191009_insights_india.xml, Accessed on November 8, 2019.

[2]“India-ASEAN Relations”, Ministry of External Relations, August 2018,  https://mea.gov.in/aseanindia/20-years.htm, Accessed on November 8, 2019.

[3]ChandrimaSikdar and Biswajit Nag, “Impact of India-ASEAN Free Trade Agreement: A Cross –Country Analysis using applied General Equilibrium Modelling”, Asia-Pacific Research and Training Network on Trade Working Paper Series, No 107, November 2011https://www.unescap.org/sites/default/files/AWP%20No.%20107.pdf, Accessed on November 8, 2019.

[4]“India formally signs Trade in Services & Trade in Investments Agreement with ASEAN”, Press Information Bureau, Government of India, September 9, 2014, https://pib.gov.in/newsite/PrintRelease.aspx?relid=109489, Accessed on November 11, 2019.

[5]Foreign Trade [ASEAN], Department of Commerce, Ministry of Commerce and Industry, https://commerce.gov.in/InnerContent.aspx?Id=74, Accessed on November 8, 2019

[6]Foreign Trade [ASEAN], Department of Commerce, Ministry of Commerce and Industry, https://commerce.gov.in/InnerContent.aspx?Id=74, Accessed on November 8, 2019.

[7]Foreign Trade [ASEAN], Department of Commerce, Ministry of Commerce and Industry, https://commerce.gov.in/InnerContent.aspx?Id=74, Accessed on November 8, 2019.

[8]“Address by President at India-Philippines Business Conclave and 4th India-ASEAN Business Summit”, Ministry of External Affairs, October 19, 2019, https://www.mea.gov.in/Speeches-Statements.htm?dtl/31965/Address_by_President_at_IndiaPhilippines_Business_Conclave_and_4th_IndiaASEAN_Business_Summit, Accessed on November 11, 2019.

[9]“Northeast India will be gateway to Southeast Asia, says PM Modi”, The Times of India, November 2, 2019, https://timesofindia.indiatimes.com/india/northeast-india-will-be-gateway-to-southeast-asia-says-pm-modi/articleshow/71869280.cms, Accessed on November 13, 2019.