विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना क्यों की गई? - vikramashila vishvavidyaalay kee sthaapana kyon kee gaee?

विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना क्यों की गई? - vikramashila vishvavidyaalay kee sthaapana kyon kee gaee?

विक्रमशिला विश्वविद्यालय के ध्वंसाशेष

विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना क्यों की गई? - vikramashila vishvavidyaalay kee sthaapana kyon kee gaee?

विक्रमशिला भारत का एक प्रसिद्ध शिक्षा-केन्द्र (विश्वविद्यालय) था। नालन्दा विश्वविद्यालय और विक्रमशिला दोनों पाल राजवंश के राज्यकाल में शिक्षा के लिए जगत्प्रसिद्ध थे। वर्तमान समय में बिहार के भागलपुर जिले का अन्तिचक गाँव वहीं है जहाँ विक्रमशिला थी। इसकी स्थापना ८वीं शताब्दी में पाल राजा धर्मपाल ने की थी।[1] प्रसिद्ध पण्डित अतीश दीपंकर यहीं शिक्षण करते थे।

यहाँ पर लगभग 160 विहार थे, जिनमें अनेक विशाल प्रकोष्ठ बने हुए थे। विद्यालय में सौ शिक्षकों की व्यवस्था थी। नालन्दा की भाँति विक्रमशिला विश्‍वविद्यालय भी बौद्ध संसार में सर्वत्र सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। इस महाविद्यालय के अनेक सुप्रसिद्ध विद्वानों में 'दीपांकर श्रीज्ञान अतीश' प्रमुख थे। ये ओदन्तपुरी के विद्यालय के छात्र थे और विक्रमशिला के आचार्य। 11वीं शती में तिब्बत के राजा के निमंत्रण पर ये वहाँ पर गए थे। तिब्बत में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में इनका योगदान बहुत महत्वपूर्ण समझा जाता है।

मान्यता है कि बख्तियार खिलजी नामक मुस्लिम आक्रमणकारी ने सन ११९३ के आसपास इसे नष्ट कर दिया था।

इस विश्वविद्यालय ने अपनी स्थापना के तुरन्त बाद ही अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व प्राप्त कर लिया था। विक्रमशिला विश्वविद्यालय के प्रख्यात विद्वानों की एक लम्बी सूची है। तिब्बत के साथ इस शिक्षा केन्द्र का प्रारम्भ से ही विशेष सम्बंध रहा है। विक्रमशिला विश्वविद्यालय में विद्याध्ययन के लिए आने वाले तिब्बत के विद्वानों के लिए अलग से एक अतिथिशाला थी। विक्रमशिला से अनेक विद्वान तिब्बत गए थे तथा वहाँ उन्होंने कई ग्रन्थों का तिब्बती भाषा में अनुवाद किया। इन विद्वानों में सबसे अधिक प्रसिद्ध दीपंकर श्रीज्ञान थे जो उपाध्याय अतीश के नाम से विख्यात हैं। विक्रमशिला का पुस्तकालय बहुत समृद्ध था। विक्रमशिला विश्वविद्यालय में बारहवीं शताब्दी में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों की संख्या ३००० थी। विश्वविद्यालय के कुलपति ६ भिक्षुओं के एक मण्डल की सहायता से प्रबंध तथा व्यवस्था करते थे। कुलपति के अधीन ४ विद्वान द्वार-पण्डितों की एक परिषद प्रवेश लेने हेतु आये विद्यार्थियों की परीक्षा लेती थी।
इस विश्वविद्यालय में व्याकरण, न्याय, दर्शन और तंत्र के अध्ययन की विशेष व्यवस्था थी। इस विश्वविद्यालय की व्यवस्था अत्यधिक सुसंगठित थी। बंगाल के शासक शिक्षा की समाप्ति पर विद्यार्थियों को उपाधि देते थे। सन १२०३ ई० में बख्तियार खिलजी ने विक्रमशिला विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया।[2]
यहाँ बौद्ध धर्म और दर्शन के अतिरिक्त न्याय, तत्त्वज्ञान, व्याकरण आदि की भी शिक्षा दी जाती थी। विद्यार्थियों की सुविधा के लिए पुस्तकें उपलब्ध कराई जाती थीं तथा उनकी जिज्ञासाओं का समाधान विद्वान आचार्यों द्वारा किया जाता था। यहाँ देश से ही नहीं विदेशों से भी विद्याध्ययन के लिए छात्र आते थे। शिक्षा समाप्ति के बाद विद्यार्थी को उपाधि प्राप्त होती थी जो उसके विषय की दक्षता का प्रमाण मानी जाती थी। पूर्व मध्ययुग में विक्रमशिला विश्वविद्यालय के अतिरिक्त कोई शिक्षा केन्द्र इतना महत्त्वपूर्ण नहीं था कि सुदूर प्रान्तों के विद्यार्थी जहाँ विद्या अध्ययन के लिए जाएँ। इसीलिए यहाँ छात्रों की संख्या बहुत अधिक थी। यहाँ के अध्यापकों की संख्या ही ३००० के लगभग थी अतः विद्यार्थियों का उनसे तीन गुना होना तो सर्वथा स्वाभाविक ही था। इस विश्वविद्यालय के अनेकानेक विद्वानों ने विभिन्न ग्रंथों की रचना की, जिनका बौद्ध साहित्य और इतिहास में नाम है। इन विद्वानों में कुछ प्रसिद्ध नाम हैं- रक्षित, विरोचन, ज्ञानपाद, बुद्ध, जेतारि रत्नाकर शान्ति, ज्ञानश्री मिश्र, रत्नवज्र और अभयंकर। दीपंकर नामक विद्वान ने लगभग २०० ग्रंथों की रचना की थी। वह इस शिक्षाकेन्द्र के महान प्रतिभाशाली विद्वानों में से एक थे। अब इस विश्वविद्यालय के केवल खण्डहर ही अवशेष हैं।[3]

स्थिति[संपादित करें]

कुछ विद्वानों का मत है कि इस विश्वविद्यालय की स्थिति वहाँ थी जहाँ वर्तमान समय में कहलगाँव रेल स्टेशन (भागलपुर नगर से 19 मील दूर) स्थित है। कहलगाँव से तीन मील पूर्व गंगा नदी के तट पर 'बटेश्वरनाथ का टीला' नामक स्थान है, जहाँ पर अनेक प्राचीन खण्डहर पड़े हुए हैं। इनसे अनेक मूर्तियाँ भी प्राप्त हुई हैं, जो इस स्थान की प्राचीनता सिद्ध करती हैं। अन्य विद्वानों के विचार में विक्रमशिला, ज़िला भागलपुर में पथरघाट नामक स्थान के निकट बसा हुआ था।

मुस्लिम आक्रमण[संपादित करें]

विक्रमशिला विश्‍वविद्यालय बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा का प्रमुख केन्द्र था। यहाँ न्याय, तत्वज्ञान एवं व्याकरण की शिक्षा दी जाती थी। 12वीं शती में यह विश्वविद्यालय एक विराट् शिक्षा–संस्था के रूप में प्रसिद्ध था। इस समय में यहाँ पर तीन सहस्र विद्यार्थियों की शिक्षा के लिए समुचित व्यवस्था थी। संस्था का एक प्रधान अध्यक्ष तथा छः विद्वानों की एक समीति मिलकर विद्यालय की परीक्षा, शिक्षा, अनुशासन आदि का प्रबन्ध करती थी। 1203 ई. में मुसलमानों ने जब बिहार पर आक्रमण किया, तब नालन्दा की भाँति विक्रमशिला को भी उन्होंने पूर्णरूपेण नष्ट–भ्रष्ट कर दिया। बख़्तियार ख़िलजी ने 1202-1203 ई. में विक्रमशिला महाविहार को नष्ट कर दिया था। यहाँ के विशाल पुस्तकालय को आग के हवाले कर दिया था, उस समय यहाँ पर 160 विहार थे जहां विद्यार्थी अध्ययनरतथे। इस प्रकार यह महान विश्वविद्यालय, जो उस समय एशिया भर में विख्यात था, खण्डहरों के रूप में परिणत हो गया।

खुदाई कार्य[संपादित करें]

विक्रमशिला के बारे में सबसे पहले राहुल सांकृत्यायन ने सुल्तानगंज के निकट होने का अंदेशा प्रकट किया था। उसका मुख्य कारण था कि अंग्रेज़ों के जमाने में सुल्तानगंज के निकट एक गांव में बुद्ध की प्रतिमा मिली थी। बावजूद उसके अंग्रेज़ों ने विक्रमशिला के बारे में पता लगाने का प्रयास नहीं किया। इसके चलते विक्रमशिला की खुदाई पुरातत्त्व विभाग द्वारा 1986 के आसपास शुरू हुई।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "विक्रमशिला विश्वविद्यालय". मिथिला विहार. अभिगमन तिथि १६ अगस्त २००९. [मृत कड़ियाँ]
  2. ईश्वरी प्रसाद, पद्मभूषण (जुलाई १९८६). प्राचीन भारतीय संस्कृति, कला, राजनीति, धर्म तथा दर्शन. इलाहाबाद: मीनू पब्लिकेशन, म्योर रोड. पृ॰ ३५५ से ३५६.
  3. "राष्ट्रीय महत्त्व की धरोहर..." लाइवहिंदुस्तान. अभिगमन तिथि १६ अगस्त २००९. [मृत कड़ियाँ]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • विक्रमशिला
  • नालन्दा विश्वविद्यालय

बाहरी कडियाँ[संपादित करें]

  • विक्रमशिला का इतिहास (लेखक- परशुराम ठाकुर ब्रह्मवादी)
  • आईये, जाने भारत के प्राचीन शिक्षा केन्द्रों के बारें में
  • विक्रमशिलाविश्व का दूसरा आवासीय विश्वविद्यालय (सुबोध कुमार नंदन)

विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना किसने और क्यों की?

इस विश्वविद्यालय की स्थापना पाल वंश के राजा धर्मपाल ने आठवीं सदी के अंतिम वर्षों या नौवीं सदी की शुरुआत में की थी. करीब चार सदियों तक वजूद में रहने के बाद तेरहवीं सदी की शुरुआत में यह नष्ट हो गया था. एक मान्यता यह है कि महाविहार के संस्थापक राजा धर्मपाल को मिली उपाधि 'विक्रमशील' के कारण संभवतः इसका नाम विक्रमशिला पड़ा.

Vikramshila विश्वविद्यालय के संस्थापक कौन थे?

धर्मपालविक्रमशिला विश्वविद्यालय / संस्थापकnull

विक्रमशिला विश्वविद्यालय कहाँ था?

8वीं शताब्दी में पाल वंश के शासक धर्मपाल द्वारा बिहार प्रान्त के भागलपुर में विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। विश्‍व प्रसिद्ध विक्रमशिला विश्‍वविद्यालय भागलपुर से 38 किलोमीटर दूर है।

विक्रमशिला के पाठ्यक्रम में क्या क्या शामिल था?

यहाँ तंत्र , व्याकरण , न्याय , सृष्टि – विज्ञान , शब्द – विद्या , शिल्प – विद्या , चिकित्सा – विद्या , सांख्य , वैशेषिक , आत्मविद्या , विज्ञान , जादू एवं चमत्कार विद्या इस विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में सम्मलित थे ।