पेशाब में प्रोटीन आने के क्या लक्षण है? - peshaab mein proteen aane ke kya lakshan hai?

भारत में क्रॉनिक किडनी रोग (सीकेडी) से पीड़ित रोगियों की संख्या का अभी तक सही-सही पता नहीं चल पाया है, लेकिन उपलब्ध स्रोतों के अनुसार पिछले 15 सालों में क्रॉनिक किडनी रोग से पीड़ित भारतीयों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है। अनुमान के अनुसार, भारत में हर सौ में से 17 लोग किडनी की बीमारी से पीड़ित हैं, जो उच्च रक्तचाप, डायबिटीज या किडनी फेल्योर के पारिवारिक इतिहास के कारण होता है।

अपशिष्ट पदार्थों से मुक्त करती है किडनी
हर दिन हमारी किडनी 200 लीटर रक्त को फिल्टर करती है और इस प्रक्रिया में 2 लीटर विषाक्त पदार्थ, अपशिष्ट और पानी निकलतेे हैं। अपशिष्ट और पानी अंतत: शरीर से मूत्र और मल के रूप में निकल जाते हैं। इस प्रक्रिया के माध्यम से हमारी किडनी शरीर के तरल पदार्थ के स्तर को नियंत्रित रखती है। किडनी हार्मोन का भी उत्सर्जन करती है, जो रक्तचाप को नियंत्रित करते हैं, लाल रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करते हैं और हड्डियों को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करते हैं।
कई बार किडनी समय के साथ धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त हो जाती है। लेकिन रोगी इसके कारण तब तक बीमार महसूस नहीं करता है, जब तक किडनी खराब नहीं हो जाती है। इसलिए किडनी की बीमारी के बारे में जागरूकता पैदा करना, बीमारी की रोकथाम और बीमारियों का शीघ्र पता लगाना बहुत जरूरी है।

पहचानें संकेत
शुरुआती दौर में ही अगर किडनी की बीमारी का इलाज हो जाए तो बहुत बार दवाइयों से ही यह बीमारी ठीक हो जाती है। किडनी की बीमारी के लक्षण हैं- पेशाब में प्रोटीन आना और यूरिया में क्रीयेटिन का स्तर बढ़ना। यह ग्लोमेरुल नेफ्राटाइटिस नामक बीमारी के लक्षण होते हैं।

बायोप्सी से सटीक जांच संभव
अधिकतर लोग इन शुरुआती लक्षणों को नजरंदाज करते हैं, लेकिन शुरुआत में ही अगर किडनी बायोप्सी करा लें तो ग्लोमेरुल नेफ्राटाइटिस (किडनी की बीमारी) का इलाज किया जा सकता है, जिससे किडनी को प्रभावित होने से बचाया जा सकता है।
कई लोग नियमित रूप से अपने रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल के स्तर की जांच कराते हैं, लेकिन दर्द से रहित और किडनी की अज्ञात समस्याओं का पता लगाने के लिए अलग से ‘क्रिएटिनिन परीक्षण’ (एक तरह का किडनी टेस्ट) नहीं कराते हैं। 

बच्चे भी हो सकते हैं प्रभावित
यदि आप सोचते हैं कि केवल वृद्ध लोग ही किडनी की बीमारी के शिकार होते हैं तो आप गलत हैं। यह बच्चों को भी हो सकती है। बच्चे स्वस्थ बने रहें, इसके लिए किडनी की बीमारी का प्रारंभिक अवस्था में ही पता लगाना बहुत जरूरी है ताकि किडनी को क्षतिग्रस्त होने से रोका जा सके। इसमें एक्यूट किडनी इंजरी भी शामिल है। यदि आपके बच्चे का वजन नहीं बढ़ पा रहा है, उसकी शारीरिक वृद्धि कम हो रही है, उसके शरीर में बार- बार दर्द होता है, पेशाब करने में कठिनाई होती है या पेशाब करने में अधिक समय लगता है, सुबह उठते समय उसके चेहरे, पैरों या टखनों में सूजन होती है तो उसे किडनी की समस्या हो सकती है।

ऐसे करें किडनी की सुरक्षा
शरीर के सबसे महत्वपूर्ण अंगों में से एक मानी जाने वाली किडनी को स्वस्थ रखने के लिए जागरूक रहना  आवश्यक है। नीचे दिए गए सुझावों पर अमल करने से किडनी की बीमारी का खतरा कम हो सकता है।

जांच कराएं 
साल में एक बार शारीरिक परीक्षण के दौरान अपनी किडनी की जांच कराना महत्वपूर्ण है। यदि आप डायबिटीज या उच्च रक्तचाप की समस्या से पीड़ित हैं तो आपको किडनी की बीमारी होने का खतरा अधिक है। किडनी की बीमारी की जांच के लिए दो साधारण परीक्षण हैं:
0 एल्ब्यूमिन (एक तरह का प्रोटीन) की जांच के लिए मूत्र परीक्षण कराएं। मूत्र में प्रोटीन आना किडनी की क्षति के शुरुआती लक्षणों में से एक है। जब मूत्र में बहुत अधिक प्रोटीन होता है तो इसका मतलब यह है कि किडनी के फिल्टर क्षतिग्रस्त हो गए हैं और प्रोटीन का रिसाव शुरू हो रहा है।
0 क्रिएटिनिन की जांच के लिए रक्त परीक्षण कराएं। क्रिएटिनिन एक अपशिष्ट पदार्थ है (मांसपेशियों के चयापचय से) जिसे किडनी के रास्ते शरीर से निकाल दिया जाता है। क्रिएटिनिन के स्तर का इस्तेमाल आपके अनुमानित ग्लोमेरुल फिल्टरेशन दर (ईजीएफआर) की गणना के लिए किया जाता है। ईजीएफआर से यह पता चलता है कि किडनी रक्त से अपशिष्ट पदार्थों को कितने प्रभावी तरीके से छान रही है।

नियंत्रित करें रक्तचाप और रक्त शर्करा का स्तर 
उच्च रक्तचाप और डायबिटीज किडनी की बीमारी के दो प्रमुख कारण हैं। किडनी में कई रक्त वाहिकाएं होती हैं। उच्च रक्तचाप और डायबिटीज सहित रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाने वाले रोग किडनी को  भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। यहां तक कि उच्च रक्तचाप (प्री- हाइपरटेंशन) और रक्त शर्करा का अधिक स्तर, जिसे सामान्यत: ‘प्री- डायबिटीज’ कहा जाता है, किडनी को नुकसान पहुंचा सकते हैं। 

वजन नियंत्रित रखें
वजन काबू में रखना आपकी किडनी की सेहत के लिए भी जरूरी है। अधिक वजन होने का मतलब है किडनी को विषाक्त पदार्थों को फिल्टर करने और बढ़े हुए शारीरिक द्रव्यमान की चयापचय की जरूरत को पूरा करने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी। मोटापा किडनी की बीमारी के दो प्रमुख जोखिम कारकों, डायबिटीज और उच्च रक्तचाप होने के खतरे को भी बढ़ाता है। वजन कम करने से इन जोखिमों को कम करने में मदद मिल सकती है।

धूम्रपान छोड़ दें
धूम्रपान किडनी के अलावा किडनी को क्षति पहुंचाने वाली डायबिटीज और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों की स्थिति को ज्यादा खराब कर देता है। धूम्रपान छोड़ना मुश्किल हो सकता है, लेकिन यह आपकी जीवनशैली से संबंधित सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन होगा, जिससे आप अपनी किडनी की रक्षा कर सकते हैं। इसका असर आपकी सेहत पर समग्र रूप से दिखाई देगा।

शारीरिक सक्रियता बढ़ाएं
आमतौर पर धीरे-धीरे किडनी क्षतिग्रस्त होती जाती है, ऐसे में नियमित शारीरिक सक्रियता से किडनी की बीमारी रोकने में मदद मिलती है। शारीरिक सक्रियता और स्वस्थ आहार लेने से किडनी की बीमारी की आशंका कम हो जाती है।

अपने खान-पान पर नजर रखें
नमक का सेवन कम करें और संसाधित खाद्य पदार्थों से मिलने वाले उच्च सोडियम स्तर पर नजर रखें, क्योंकि ये उच्च रक्तचाप पैदा कर सकते हैं और किडनी को नुकसान पहुंचा सकते हैं। बहुत अधिक सोडियम के इस्तेमाल से उच्च रक्तचाप हो सकता है, इसलिए नमक का सेवन कम करना बेहतर होता है। रोजाना लगभग 1.5 से 2.3 ग्राम नमक का सेवन करना चाहिए। किडनी की समस्याओं से बचने के लिए बच्चों को तरल पदार्थ, विशेष रूप से पानी का अधिक सेवन करना चाहिए।

दर्दनिवारक दवा लेने पर सावधानी बरतें
डॉक्टरी परामर्श या बिना परामर्श से ली जाने वाली दर्दनिवारक दवाएं किडनी के द्वारा फिल्टर की जाती हैं। इसका मतलब यह है कि आपकी किडनी इन दवाओं को तोड़कर शरीर से बाहर निकालती है। इसलिए किसी भी दवा को लेने से पहले हमेशा इसके लेबल को पढ़ें और उसके खतरों और लाभ के बारे में जान लें। इन दवाओं को शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर से बात करें।

(फरीदाबाद स्थित क्यूआरजी हॉस्पिटल के नेफ्रोलॉजी व किडनी ट्रांसप्लांट विभाग के डायरेक्टर डॉ. जितेन्द्र कुमार से की गई बातचीत पर आधारित) 

पेशाब में प्रोटीन आने के क्या क्या कारण हो सकते हैं?

यदि लगातार प्रोटीन का स्तर ऊँचा बना रहता है तब किडनी खराब होने की संभावना रहती है. ग्लोमेरूलोनेफाइटिस (Glomerulonephritis) – इस बीमारी में किडनी के उन कोशिकाओं में सूजन हो जाती है जो रक्त से अपशिष्ट को फिल्टर करते हैं. अतः इस बीमारी में प्रोटीन का फिल्टर नहीं हो पाता है जिस कारण से पेशाब में प्रोटीन आने लगता है.

पेशाब में प्रोटीन की जांच कैसे करें?

यह एक चेतावनी संकेत हो सकता है क्योंकि यह इंगित करता है कि गुर्दे के फ़िल्टर क्षतिग्रस्त हैं। कभी-कभी यह पुरुषों में कुछ मूत्र संक्रमण या बढ़े हुए पौरुष ग्रंथि का संकेत भी हो सकता है। झागदार पेशाब या इसमें खून का आना: पेशाब में अत्यधिक झाग इसमें में प्रोटीन कि ओर इशारा करता है।

क्या पानी पीने से पेशाब में प्रोटीन कम होगा?

पेशाब में प्रोटीन आने का मुख्य कारणः दरअसल होता यूं है कि जब हम कम मात्रा में पानी पीते हैं तो हमारी किडनी या गुर्दे कम पानी के कारण शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में असमर्थ रहते हैं। ध्यान रहे कि आप जितना ज्यादा पानी पीते हैं किडनी उतनी ही ज्यादा हमारे रक्त को साफ करने का काम करती है।